भारत-रूस रक्षा खरीद | 07 Oct 2019

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत द्वारा S-400 की खरीद और उसके कारण भारत तथा अमेरिका के रिश्तों पर पड़ने वाले प्रभावों का उल्लेख किया गया है। साथ ही अमेरिका के CAATSA कानून पर भी चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

लगभग एक वर्ष पहले भारत और रूस ने वर्ष 2015 में शुरू हुई वार्ता को समाप्त करते हुए एस-400 (S-400) की खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। हालाँकि इस वार्ता अवधि के दौरान अमेरिकी कांग्रेस ने CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) नाम से एक नया कानून पारित किया था, इस कानून का उद्देश्य अमेरिका के हितों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने वाले देशों को प्रतिबधों के माध्यम से दंडित करना है। वर्ष 2017 में संयुक्त राज्य अमेरिका ने रूस से बड़े हथियारों की खरीद पर देशों के खिलाफ प्रतिबंध जारी किया था। इस विषय पर अमेरिका का कहना था कि इन प्रतिबधों का कारण सीरिया और यूक्रेन के विवादों में रूस की कुछ सैन्य भागीदारी है। समझौता पूर्ण होने से पूर्व कई बार अमेरिका ने भारत को प्रतिबधों की धमकी देते हुए अन्य विकल्पों की खोज करने की बात कही थी, परंतु इस विषय पर भारत का स्पष्ट कहना था कि उसके लिये अपने राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं और यह समझौता उसके राष्ट्रीय हित में है। इस पूरे घटनाक्रम में यह प्रश्न अनिवार्य हो जाता है कि क्या भारत द्वारा रूस के साथ किये जाने वाले खरीद समझौते भारत और अमेरिका के रिश्तों को प्रभावित करेंगे।

भारत के लिये कितना महत्त्वपूर्ण है यह समझौता?

  • भारत ने अक्तूबर 2018 में नई दिल्ली में 19वें भारत-रूस वार्षिक द्विपक्षीय सम्मेलन के दौरान पाँच एस-400 प्रणालियों की खरीद के लिये रूस के साथ 5.43 बिलियन डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये थे।
  • भारत वर्ष 2021 में रूस से S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली का पहला शिपमेंट प्राप्त करेगा।
  • उल्लेखनीय है कि एस-400 दुनिया की सबसे उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों में से एक है जो एक साथ कई विमानों, मिसाइलों और यूएवी को कुछ सौ किलोमीटर के दायरे में ट्रैक कर सकती है तथा उन्हें बेअसर कर सकती है।
  • इसके महत्त्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि भारत के विदेश मंत्री ने कहा था कि “हम यह बिलकुल भी पसंद नहीं करेंगे की कोई और राष्ट्र हमें यह बताए कि हमें रूस से क्या लेना है और क्या नहीं।”
  • भारतीय वायुसेना ने भी बेहतर वायु रक्षा प्रणाली का समर्थन किया है, जो भारत की विशेष ज़रूरतों को पूरा करेगी।
  • साथ ही इस रक्षा प्रणाली की खरीद का एक कारण पड़ोसी देशों की बढ़ती रक्षा शक्ति को देखते हुए अपने रक्षा संसाधनों में वृद्धि करना भी हो सकता है।

क्या है CAATSA?

2 अगस्त, 2017 को अधिनियमित और जनवरी 2018 से लागू इस कानून का उद्देश्य दंडनीय उपायों के माध्यम से ईरान, रूस और उत्तरी कोरिया की आक्रामकता का सामना करना है। यह अधिनियम प्राथमिक रूप से रूसी हितों, जैसे कि तेल और गैस उद्योग, रक्षा एवं सुरक्षा क्षेत्र तथा वित्तीय संस्थानों पर प्रतिबंधों से संबंधित है। यह अधिनियम अमेरिकी राष्ट्रपति को रूसी रक्षा और खुफिया क्षेत्रों (महत्त्वपूर्ण लेनदेन) से जुड़े व्यक्तियों पर अधिनियम में उल्लिखित 12 सूचीबद्ध प्रतिबंधों में से कम-से-कम पाँच लागू करने का अधिकार देता है। इन दो प्रतिबंधों में से एक निर्यात लाइसेंस प्रतिबंध है जिसके द्वारा अमेरिकी राष्ट्रपति को युद्ध, दोहरे उपयोग और परमाणु संबंधी वस्तुओं के मामले में निर्यात लाइसेंस निलंबित करने के लिये अधिकृत किया गया है। यह स्वीकृत व्यक्ति के इक्विटी या ऋण में अमेरिकी निवेश पर प्रतिबंध लगाता है।

समझौते से मज़बूत होंगे भारत और रूस के मध्य संबंध

  • S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली को खरीदने के समझौते ने भारत-रूस रक्षा संबंधों को एक नई दिशा दिखाने का कार्य किया है।
  • उल्लेखनीय है कि वैसे तो रूस पारंपरिक रूप से भारत का सबसे बड़ा रक्षा आपूर्तिकर्त्ता रहा है, लेकिन विगत कुछ वर्षों में अमेरिका इस दौड़ में आगे निकल गया है।

कई देशों को किया गया है प्रतिबंधित

  • ध्यातव्य है कि संयुक्त राष्ट्र ने अब तक दो बार CAATSA का प्रयोग कर देशों पर प्रतिबंध लगाए हैं एवं दोनों बार यह उन्ही देशों के विरुद्ध लगाया गया है जो रूस से मिसाइल रक्षा प्रणाली खरीद रहे थे।
  • सितंबर 2018 में अमेरिकी विदेश विभाग और ट्रेजरी विभाग ने एस-400 वायु रक्षा प्रणाली और सुखोई एस-35 लड़ाकू विमानों की खरीद के लिये चीन के उपकरण विकास विभाग (Equipment Development Department-EDD) पर प्रतिबंधों की घोषणा की थी।
  • जुलाई 2019 में भी अमेरिका ने तुर्की को F-35 फाइटर जेट प्रोग्राम से S-400 की पहली डिलीवरी के बाद निष्कासित कर दिया था और साथ ही कहा था कि प्रतिबंध तब तक विचाराधीन हैं जब तक कि तुर्की रूस के साथ अपने समझौते को समाप्त नहीं कर देता।
  • उल्लेखनीय है कि भारत न तो चीन की तरह है, जिसके यू.एस. के साथ एक द्विपक्षीय संबंध अच्छे नहीं हैं और न ही तुर्की की तरह, जो यू.एस. का नाटो सहयोगी है तथा उसकी मांगों का अनुपालन करने को विवश भी। अतः यह उम्मीद की जा सकती है कि भारत पर अन्य देशों जैसे प्रतिबंध नहीं लगाए जाएंगे।

कितना संभव है CAATSA से बचना

  • इस अधिनियम में एक बचाव खंड दिया गया है जिसके अनुसार “यदि अमेरिकी राष्ट्रपति चाहे तो वह CAATSA को रद्द कर प्रतिबंधों से मुक्त कर सकता हैं।”
  • अगस्त 2018 में अमेरिकी कांग्रेस ने इस खंड में संशोधन करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति को यह निर्धारित करने का अधिकार दिया कि संयुक्त राज्य अमेरिका सरकार के साथ अन्य मामलों पर सहयोग कर रहा है जो संयुक्त राज्य अमेरिका के रणनीतिक राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत को प्रतिबंधों से छूट प्राप्त होने के पीछे निम्नलिखित कारण हैं:
    • सैन्य रूप से मज़बूत भारत स्वयं अमेरिका के राष्ट्रीय हित में है।
    • भारत, रूस के सैन्य उपकरणों पर अपनी निर्भरता को पूरी तरह से समाप्त नहीं कर सकता।

क्या होगा यदि नहीं मिली छूट?

  • CAATSA की धारा 235 में 12 प्रकार के दंडात्मक प्रतिबंध लगाए गए हैं, जो कि अमेरिका द्वारा उन देशों पर लगाए जा सकते हैं जो किसी अन्य अमेरिकी विरोधी के साथ रक्षा, ऊर्जा, तेल पाइपलाइनों और साइबर सुरक्षा प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्र में लेनदेन कर रहे हों।
  • साथ ही अधिनियम में यह भी कहा गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति किसी देश पर पाँच या उससे अधिक प्रतिबंध लगा सकता है।
  • प्रतिबंध के मुख्य प्रकार:
    • निर्यात प्रतिबंध
    • अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्ति पर प्रतिबंध
    • निवेश और खरीद पर प्रतिबंध
    • विदेशी मुद्रा और बैंकिंग लेनदेन पर प्रतिबंध
  • उल्लेखनीय है कि भारत पर फिलहाल किसी भी प्रकार का प्रतिबंध लगने की कोई संभावना नहीं है, क्योंकि अभी तक S-400 हेतु अग्रिम भुगतान ही किया गया है और प्रतिबंध की प्रक्रिया तब शुरू होगी जब भारत उन विमानों को प्राप्त कर लेगा।

निष्कर्ष

किसी भी देश के लिये उसके राष्ट्रीय हित सर्वोपरि होते हैं और सभी अपनी विदेश नीति बनाते समय संभवतः इसे केंद्र में भी रखते हैं, परंतु आवश्यकता से अधिक सिद्धांतवादी होकर भी कोई देश अंतर्राष्ट्रीय पटल पर अपना स्थान नहीं बना पाएगा। अतः आवश्यक है कि भारत को इस विषय के संदर्भ में राष्ट्रीय हितों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के मध्य समन्वय बनाकर चलना होगा, ताकि हम सैन्य शक्ति में बढ़ोतरी के साथ-साथ बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में स्वयं को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर सकें।

प्रश्न: CAATSA क्या है? भारत द्वारा S-400 मिसाइल रक्षा प्रणाली की खरीद से यह भारत और अमेरिका के संबंध को किस प्रकार प्रभावित करेगा?