भारत-पाक व्यापार | 21 Oct 2019

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत और पाकिस्तान के मध्य व्यापार के वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सभी विकसित और विकासशील देशों के आर्थिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है। बीते कुछ दशकों में विशेष रूप से 1990 और 2000 के दशक के दौरान अधिकांश देशों ने उनके द्वारा अपनाए गए आर्थिक सुधार के एक हिस्से के रूप में अपने व्यापार को काफी उदार बनाया है। इस क्षेत्र में भारत ने भी काफी प्रयास किये हैं, जिसके कारण वित्तीय वर्ष 2017-18 में भारत का कुल वैश्विक व्यापार 769 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया था। वैश्विक व्यापार के साथ-साथ भारत का अपने पड़ोसी देशों के साथ व्यापार रिश्ता भी काफी अच्छा है। इसी अवधि (यानी वित्तीय वर्ष 2017-18) में भारत ने अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ कुल 12 बिलियन डॉलर का व्यापार किया, जो कि भारत के कुल व्यापार का 1.56 प्रतिशत है। परंतु यदि विशेष तौर पर भारत-पाक व्यापार की बात की जाए तो वह अभी भी एक विचारणीय विषय बना हुआ है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के आँकड़ों की ही बात करें तो इस अवधि में दोनों देशों के मध्य कुल व्यापार मात्र 498 मिलियन डॉलर था, जबकि इसी अवधि में एक अन्य पड़ोसी देश भूटान के साथ हमारा कुल व्यापार 728 मिलियन डॉलर था।

भारत-पाक व्यापार- वर्तमान परिदृश्य

  • इंडियन काउंसिल ऑफ रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (ICRIER) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत और पाकिस्तान के मध्य व्यापार की मात्रा बहुत कम है।
  • आँकड़े बताते हैं कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में पाकिस्तान को भारत से होने वाला निर्यात मात्र 2.17 बिलियन डॉलर का था, जो भारत के कुल निर्यात का 0.83 प्रतिशत है।
  • इसी अवधि में पाकिस्तान से भारत का कुल आयात भी 50 करोड़ डॉलर से कम था, जो कि भारत के कुल आयात का सिर्फ 0.13 प्रतिशत है।
  • भारत और पाकिस्तान के बीच सड़क मार्ग द्वारा लगभग 138 वस्तुओं का आयात-निर्यात किया जाता है।
  • वर्तमान में भारत और पाकिस्तान के मध्य व्यापार के दो महत्त्वपूर्ण मार्ग हैं-
    • समुद्री मार्ग: मुंबई से कराची
    • वाघा सीमा के माध्यम से भूमि मार्ग
  • हालाँकि पुंछ ज़िले के चक्कन-दा-बाग और उरी में सालामाबाद के माध्यम से भी दोनों देशों के मध्य काफी व्यापार होता था।
  • भारतीय निर्यात में मुख्य रूप से लगभग 33 प्रतिशत कपड़ा उत्पाद और 37 प्रतिशत रासायनिक उत्पाद शामिल हैं।
  • दूसरी ओर भारतीय आयातों में मुख्य रूप से 49 प्रतिशत खनिज उत्पाद और 27 प्रतिशत फल शामिल हैं।
  • फरवरी 2019 में जब पुलवामा हमला हुआ तब भारत ने पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा वापस ले लिया और बाद में भारत में आने वाले सभी पाकिस्तानी सामानों पर 200 प्रतिशत सीमा शुल्क भी लगाया गया।
  • इसी वर्ष अप्रैल में भारत ने जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) के पार पाकिस्तान द्वारा व्यापार मार्ग के दुरुपयोग का हवाला देते हुए व्यापार को पूर्णतः निलंबित कर दिया।
  • हाल ही में जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक के पश्चात् पाकिस्तान ने भारत के साथ राजनयिक और आर्थिक संबंधों को पूरी तरह से खत्म कर दिया है।

भारत-पाक व्यापार- कैसी थी शुरुआत?

  • वर्ष 1948-49 के मध्य पाकिस्तान का 70 प्रतिशत से अधिक लेन-देन भारत के साथ था और भारत से पाकिस्तान को होने वाला निर्यात 63 प्रतिशत था।
  • हालाँकि वर्ष 1949 के अंत तक भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापार में गिरावट आनी शुरू हो गई थी।
  • वित्तीय वर्ष 1965-66 तक दोनों देशों के मध्य व्यापार में काफी कमी आ गई। जहाँ एक ओर वित्तीय 1948-49 में दोनों देशों के मध्य कुल 184.06 करोड़ रुपए का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था, वहीं वित्तीय वर्ष 1965-66 आते-आते यह 10.53 करोड़ रुपए तक पहुँच गया।
  • वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद दोनों देशों के मध्य व्यापार प्रतिबंध (Trade Embargo) शुरू हुआ और यह 1974 तक जारी रहा। इस अवधि के दौरान भारत ने व्यापार को पुनर्जीवित करने के कई प्रयास किये, परंतु इससे कुछ अधिक हासिल नहीं किया जा सका।
  • 30 नवंबर, 1974 को व्यापार प्रतिबंध (Trade Embargo) समाप्त करने के उद्देश्य से शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
  • व्यापार में विविधता लाने के प्रयास में पाकिस्तान की सरकार ने वर्ष 1976 में अपने निजी क्षेत्र को भारत के साथ व्यापार करने की अनुमति दे दी।
  • वर्ष 1981 में पाकिस्तान, दिल्ली के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले में शामिल हुआ और इसके पश्चात् दोनों देशों के मध्य व्यापार वार्त्ताओं का दौर तेज़ी से शुरू हो गया।
  • वर्ष 1983 में संयुक्त व्यापार आयोग का गठन किया गया, जिसका मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार को सुगम बनाना था।
  • जुलाई 1989 में पाकिस्तान ने कुल 322 वस्तुओं के आयात पर सहमति व्यक्त की जिसके बाद वर्ष 1991 में पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ सरकार आने से दोनों देशों के द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाने में काफी सहायता मिली और वर्ष 1992-93 में दोनों देशों का कुल व्यापार 522.59 करोड़ रुपए तक पहुँच गया।
  • इसके बाद दिसंबर 1995 में SAPTA अस्तित्व में आया जिसने इस क्षेत्र में एकीकृत व्यापार व्यवस्था की शुरुआत की।
  • भारत ने वर्ष 1996 में पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशनल (MFN) का दर्जा दिया और इसी वर्ष पाकिस्तान ने भी आयात की जाने वाली वस्तुओं की संख्या को 600 कर दिया। वर्ष 2003 में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इस सूची में 78 अन्य वस्तुओं को जोड़ने की घोषणा की, जिसमें रसायन, खनिज और धातु उत्पाद आदि शामिल थे।
  • 7 अप्रैल, 2005 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री ने श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर स्टेडियम से मुज़फ्फाराबाद की ओर जाने वाली पहली क्रॉस-एलओसी (Cross-LoC) बस ‘करवाँ-ए-अमन’ की शुरुआत की।
  • मई 2008 में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने अंतर-कश्मीर व्यापार और ट्रक सेवा के तौर-तरीकों को अंतिम रूप देने का फैसला किया।

भारत-पकिस्तान अनौपचारिक व्यापार

  • भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले व्यापार का एक बड़ा हिस्सा अनौपचारिक मार्ग से होता है, जिसका अर्थ है कि दोनों देशों के मध्य व्यापार किसी तीसरे देश के माध्यम से होता है।
  • ICRIER की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2018-2019 में भारत से पाकिस्तान को कुल औपचारिक निर्यात लगभग 2 बिलियन डॉलर का था, जबकि दोनों देशों के मध्य कुल अनौपचारिक निर्यात तकरीबन 3.9 बिलियन डॉलर का था।

ज़रूरी है व्यापार की शुरुआत

  • आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2008-2018 के बीच नियंत्रण रेखा के पार तकरीबन 7,500 करोड़ रुपए का व्यापार हुआ था और जिसके कारण जम्मू-कश्मीर में कुल 1.7 लाख कार्य दिवस और 66.4 करोड़ रुपए का अनुमानित राजस्व उत्पन्न हुआ।
  • व्यापार के उद्देश्य से इसी अवधि (वर्ष 2008-2018) के दौरान लगभग 75,114 ट्रकों की आवाजाही दर्ज की गई और 90.2 करोड़ रुपए मज़दूरी के रूप में भुगतान किये गए।
  • यदि उपरोक्त आँकड़ों को भारत के समग्र व्यापार के चश्मे से देखें तो ये काफी कम लगते हैं, परंतु उस क्षेत्र की स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिये यह आँकड़ा काफी बड़ा है।
  • अमृतसर, भारत-पाकिस्तान के मध्य व्यापार का एक अन्य महत्त्वपूर्ण मार्ग है और यहाँ की स्थानीय अर्थव्यवस्था काफी हद तक इसी व्यापार पर टिकी हुई है, क्योंकि अमृतसर के पास अपना कोई पारंपरिक उद्योग नहीं है।
  • इसके कारण भारत-पाकिस्तान के मध्य व्यापार पर लिया गया कोई भी निर्णय अमृतसर की स्थानीय अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव डालता है। आँकड़े बताते हैं कि दोनों देशों के मध्य द्विपक्षीय व्यापार रुक जाने से अब तक कुल 5000 परिवार प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हुए हैं, जिनमें व्यापारियों सहित उनके कर्मचारी, कस्टम हाउस एजेंट (CHAs), फ्रेट फारवर्डर, ट्रक ऑपरेटर, ढाबा मालिक और ईंधन स्टेशन से जुड़े लोग शामिल हैं।
  • इसके अलावा दोनों देशों के मध्य दशकों से तनातनी चली आ रही है और समय-समय पर मुख्य रूप से सीमा के पास वाले इलाकों में तनाव देखा जाता रहा है। ऐसी स्थिति में दोनों देशों के कई विद्वान व्यापार को शांति स्थापित करने का एक मुख्य ज़रिया मानते हैं।
  • LoC पर होने वाले व्यापार से दोनों ओर रहने वाले लोगों की भावनाएँ जुड़ी हुई हैं और यदि ऐसा नहीं होता तो यह प्रयास अपने शुरुआती दिनों में ही विफल हो जाता।
  • यह व्यापार दोनों क्षेत्रों में वस्तुओं के आदान-प्रदान से कहीं ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है, यह दोनों समुदायों को जोड़ने के लिये एक पुल का कार्य करता है।

क्या किया जाना चाहिये?

  • जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक है कि भारत क्रॉस-एलओसी व्यापार के सभी हितधारकों को जोड़ने की योजना बनाए ताकि व्यापार पुनरुत्थान के प्रयास किये जा सकें।
  • पिछले कुछ वर्षों में पारदर्शिता से संबंधित चिंताओं ने व्यापार को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है और इसलिये व्यापार के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र में इन चिंताओं को जल्द-से-जल्द संबोधित किया जाना आवश्यक है।
    • इसमें GST इनवॉइसिंग और व्यापारी पंजीकरण आदि शामिल हैं।
  • वस्तुओं के गलत विवरण से बचने के लिये उनके नाम सहित अन्य विवरणों का स्पष्टीकरण किया जाना चाहिये।
  • व्यापारियों के पंजीकरण हेतु नीति तैयार की जानी चाहिये, ताकि धोखाधड़ी से बचा जा सके।
  • दोनों देशों के बीच अनौपचारिक व्यापार की मात्रा औपचारिक व्यापार से काफी अधिक है, अतः दोनों देशों के अधिकारियों को इस ओर ध्यान देना चाहिये और अनौपचारिक व्यापार को औपचारिक व्यापार में बदलने का प्रयास करना चाहिये।
  • इस क्षेत्र में व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा देने के लिये कुशल और प्रभावी परिवहन की व्यवस्था करना भी अनिवार्य है।
  • वीज़ा प्रक्रिया की जटिलताओं को कम करना भी इस कार्य हेतु सहायक हो सकता है।
  • उरी और पुंछ में व्यापार सुविधा केंद्रों का डिजिटलीकरण भी इस ओर एक महत्त्वपूर्ण कदम हो सकता है।

प्रश्न: वर्तमान में भारत-पाक व्यापार पूर्णतः अवरुद्ध है। स्पष्ट कीजिये कि इससे भारत के हितों पर क्या प्रभाव पड़ा है एवं इसकी पुनः बहाली के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?