इंडो-पैसिफिक वार्ता: महत्त्व और चुनौतियाँ | 29 Oct 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
हाल ही में भारत-अमेरिका के बीच तीसरी टू-प्लस-टू वार्ता (2+2 Dialogue) नई दिल्ली में आयोजित की गई। वार्ता के दौरान एक संयुक्त वक्तव्य के माध्यम से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत और अमेरिका के साझा लक्ष्यों को रेखांकित किया गया तथा दोनों देशों ने दक्षिण चीन सागर के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार, एक वैध ‘आचार संहिता’ के निर्माण पर बल दिया ताकि किसी भी देश के वैध अधिकारों और हितों की रक्षा की जा सके। भारत-अमेरिका ने कानून का शासन, पारदर्शिता और स्वतंत्र नेवीगेशन प्रणाली के साथ ही एक मुक्त एवं खुले और समृद्ध इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की आवश्यकता पर बल दिया। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि विगत कुछ वर्षों से अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीति का गुरुत्वीय केंद्र ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र' में स्थापित हो गया है।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र एक मानसिक मानचित्र संकल्पना
(Indo-Pacific Region a Mental Map Concept):
- किसी भी क्षेत्र के मानचित्र का निर्धारण तीन आधारों, प्रथम भौगोलिक सीमांकन (नदी, सागर आदि के आधार पर सीमा निर्धारण), द्वितीय राजनीतिक सीमाएँ (राज्य, देश, महाद्वीप आदि) तथा तृतीय मानसिक मानचित्र (Mental Map) से समझा जा सकता है।
- मानसिक/मेंटल मानचित्र में भौगोलिक अंतरिक्ष (Geographic Space) भाग में मानवीय कल्पना या किसी उद्देश्य के आधार पर निर्धारण किया जाता है, जबकि वास्तव में उसका कोई अस्तित्त्व नहीं होता है।
- उदाहरण के लिये ‘एशिया-प्रशांत क्षेत्र’ एक राजनीतिक सीमा है, थार का मरुस्थल एक भौगोलिक सीमांकन है जबकि ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ एक मानसिक संकल्पना है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र एक ऐसा मानसिक मानचित्र है जिसने हाल के वर्षों में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त किया है।
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र, हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत महासागर (Pacific Ocean) के कुछ भागों को मिलाकर बना महासागरीय क्षेत्र है, जिसमें पूर्वी अफ्रीका तट, हिंद महासागर, पश्चिमी एवं मध्य प्रशांत महासागर शामिल हैं।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्त्व:
भारत एक आर्थिक महाशक्ति:
- 2000 के दशक के मध्य में ऐसी उम्मीद की गई कि भारत एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आएगा। इसी आशा के साथ भारत को अनेक देशों द्वारा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले देश के रूप में स्वीकार किया गया।
- अमेरिका जैसे देशों द्वारा ’एशिया-प्रशांत क्षेत्र’ के स्थान पर ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ मानसिक भू-राजनीतिक संकल्पना को स्वीकार किया गया है।
चीन के खिलाफ भूमिका:
- पिछले दशक में भारत की आर्थिक विकास की दर उम्मीदों के अनुसार नहीं रह पाई परंतु एक दशक बाद भी भारत विकास की उन उम्मीदों पर कायम है तथा वर्तमान में इस क्षेत्र में 'चीनी कम्युनिस्ट पार्टी' की भूमिका के खिलाफ भारत को एक महत्त्वपूर्ण नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में स्वीकार किया गया है।
रणनीतिक अवस्थिति:
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के अंतर्गत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र यथा दक्षिण चीन सागर, आसियान के देश, मलक्का जलडमरूमध्य, गुआन आईलैंड, मार्शल आईलैंड रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
- इसके अतिरिक्त लाल सागर, अदन की खाड़ी, फारस की खाड़ी ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ से भारत का तेल व्यापार होता है। यहाँ पर हाइड्रोकार्बन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाम क्वाड:
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र एक व्यापक 'राजनीतिक-आर्थिक' संकल्पना है, जबकि क्वाड (Quad) रणनीतिक और सैन्य परामर्श के लिये एक मंच है, जिसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं।
समानता:
- प्रथम, क्वाड के सदस्य 'इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ से हैं तथा सभी देश अपने-अपने क्षेत्रों के प्रमुख देश हैं।
- द्वितीय, क्वाड और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र दोनों का निर्माण चीन को केंद्र में रखकर किया गया है। यदि इन संगठनो/संकल्पनाओं के केंद्र से चीन को अलग कर दिया जाए तो इनके अस्तित्त्व की औचित्यता का आधार बहुत संकीर्ण होगा।
- इसी प्रकार यदि भारत को इन संगठनों से अलग कर दिया जाए तब भी इनके अस्तित्त्व का कोई आधार नहीं रह जाता।
मतभेद/असमानता:
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र एक ‘राजनीतिक-आर्थिक दृष्टिकोण’ है जबकि एक क्वाड ‘सैन्य-रणनीतिक’ दृष्टिकोण है।
- इंडो-पैसीफिक क्षेत्र की संकल्पना एक जटिल 'राजनीतिक और आर्थिक' दृष्टिकोण प्रदान करती है जिसमें चीन के साथ तमाम मतभेदों के बावज़ूद उसकी अवहेलना संभव नहीं है जबकि क्वाड का दृष्टिकोण तथा उद्देश्य ही मुख्यतया चीन विरोधी है।
दृष्टिकोणों का भविष्य:
- वर्तमान समय में केवल इतना कहा जा सकता है कि क्वाड की सफलता चीन की भूमिका पर निर्भर करेगी अर्थात यदि चीन इन देशों के खिलाफ अधिक आक्रमक सैन्य नीति अपनाता है तो 'क्वाड' उतना ही अधिक दृढ़ होगा।
- चीन यदि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘ऋण जाल’ तथा ‘क्षेत्रीय प्रसार’ की नीति लगातार अपनाता है तो भविष्य में यह ‘इंडो-पैसीफीक क्षेत्र’ के देशों को एक साथ मिलकर कार्य करने को बाध्य कर सकता है।
इंडो-पैसिफिक वार्ता के समक्ष चुनौतियाँ:
केवल रणनीतिक वार्ता और सैन्य सहयोग:
- हम जानते हैं कि ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ एक व्यापक 'राजनीतिक-आर्थिक' संकल्पना है, जिसके अस्तित्त्व को बनाए रखने के लिये इसके सदस्यों के बीच मज़बूत आर्थिक भागीदारी और राजनैतिक संबंध आवश्यक है।
- केवल रणनीतिक वार्ता और संभावित सैन्य सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने से इसका अस्तित्त्व बने रहना संभव नहीं है।
RCEP से अलगाव:
- भारत ने 'क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी' (Regional Comprehensive Economic Partnership (RCEP) में शामिल न होने का निर्णय किया है। यह निर्णय क्षेत्र में देश की भविष्य में संबद्धताओं को संभावित रूप से जटिल कर सकता है।
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) एक प्रस्तावित मेगा ‘मुक्त व्यापार समझौता’ (Free Trade Agreement-FTA) है।
बढ़ता व्यापार अंतराल:
- इंडो-पैसिफिक क्षेत्र तथा ‘क्वाड’ देशों के साथ चीन तथा भारत के व्यापार पर दृष्टि पात करे तो हम देखते हैं कि भारत की तुलना में चीन की व्यापार भागीदारी इन देशों के साथ बहुत अधिक है।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार लगभग 90 बिलियन डॉलर है वहीँ चीन का अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार लगभग 737 बिलियन डॉलर है।
- भारत और चीन का इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों के साथ बढ़ता व्यापार अंतराल इस क्षेत्र की रणनीतिक वास्तविकताओं को आकार देने में एक प्रमुख निर्धारण की भूमिका निभाएगा।
अल्प संस्थागत जुड़ाव:
- संस्थागत जुड़ाव को व्यापक संदर्भ में देखने की ज़रूरत है। भारत की तुलना में चीन का इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के देशों के साथ संस्थागत जुड़ाव बहुत अधिक है।
- भारत का दक्षिण कोरिया, आसियान, जापान और श्रीलंका के साथ ‘मुक्त व्यापार समझौता’ (FTA) है, जबकि ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड, अमेरिका, बांग्लादेश और मालदीव के साथ कोई ‘मुक्त व्यापार समझौता’ नहीं है।
- चीन का अमेरिका, बांग्लादेश के अलावा उपर्युक्त सभी देशों के साथ एफटीए है। जबकि श्रीलंका के साथ एफटीए पर वार्ता जारी है। इसी प्रकार चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच भी एक त्रिपक्षीय एफटीए पर वार्ता भी चल रही है।
चीन की ऋण जाल की कूटनीति:
- चीन क्षेत्र के देशों की मदद करने में 'आर्थिक सहायता' (Economic Aid) को एक रणनीतिक हथियार के रूप में प्रयोग करता है। जबकि भारत की नीति आर्थिक मदद के स्थान पर विकास में भागीदारी की है तथा यह भी चीन की तुलना में बहुत कम है।
“ रणनीतिक वार्ता अकेले आर्थिक वास्तविकताओं को साकार नहीं कर सकती है।”
ऋण-जाल कूटनीति (Debt-trap Diplomacy):
- यह देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों में किये गए ऋण पर आधारित एक प्रकार की कूटनीति है।
- इसमें एक लेनदार (Creditor) देश जानबूझकर किसी अन्य देनदार (Debtor) देश को तब तक ऋण प्रदान करता रहता है, जब वह ऋण दायित्वों को पूरा कराने में असमर्थ न हो जाए।
- देनदार देश के ऋण चुकाने में असमर्थ हो जाने के बाद लेनदार देश इसके बदले में आर्थिक एवं राजनीतिक रियायतें प्राप्त करता है।
- उदाहरण के लिये, चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज़ पर ले लिया क्योंकि श्रीलंका चीन को ऋण का पुनर्भुगतान नहीं कर पाया था।
सैन्य भागीदारी कमी:
- भारत का इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ न केवल आर्थिक जुड़ाव कम है अपितु क्षेत्र के साथ रणनीतिक और सैन्य भागीदारी भी कम है। चीन क्षेत्र के कई देशों जिसमें बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड आदि शामिल है , के लिये प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्त्ता है। सैन्य जुड़ाव के क्षेत्र में भारत का प्रदर्शन वांछनीय से कम है।
आगे की राह:
- भारत को क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करने के लिये अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ सैन्य ‘गठबंधन’ का आसान रास्ता चुनने के स्थान पर क्षेत्र के साथ आर्थिक, सामरिक और सैन्य उपकरणों का उपयोग करते हुए एक स्थायी रणनीति अपनाने पर विचार करना चाहिये।
- भारत ने शीत युद्ध (Cold War) के दौरान गुटनिरपेक्षता की नीति तथा उसके बाद रणनीतिक स्वायत्तता की नीति का पालन किया है। इस प्रश्न पर विचार किया जाना चाहिये कि क्या भारतीय 'रणनीतिक अभिजात वर्ग' क्वाड देशों के साथ सैन्य जुड़ाव का समर्थन करेगा? इस संबंध में सभी राजनीतिक दलों के साथ मिलकर एक 'आम राजनीतिक सहमति' बनाए जाने की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
- भारत की विदेश नीति वर्तमान में एक ’यथार्थवादी मोड़’ (Realistic Turn) पर है, जहाँ शक्ति-संतुलन और गठबंधन की राजनीति को किसी भी देश के लिये एक आवश्यक बुराई के रूप में स्वीकार किया गया है। भारत भी वर्तमान में इसी विवशता के बीच फंसा हुआ है जहाँ भारत को भी अपनी रणनीतिक स्थिति पर पुनर्विचार करना ज़रूरी है। यदि भारत इस क्षेत्र में अपनी स्थिति को मज़बूत नहीं करता है, तो क्षेत्र में सुरक्षा की स्थिति बिगड़ सकती है तथा उसका प्रभाव पूरी दुनिया भर पर पड़ना संभावित है।
अभ्यास प्रश्न: “इंडो-पैसिफिक क्षेत्र एक ऐसा मानसिक मानचित्र (मेंटल मैप) है, जिसने हाल के वर्षों में पर्याप्त महत्त्व प्राप्त किया है।” इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के संबंध में भारत की रणनीति के समक्ष चुनौतियों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।