नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-प्रशांत के लिये इंडो-जर्मन पार्टनरशिप

  • 24 Jan 2022
  • 10 min read

यह एडिटोरियल 22/01/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Setting Sail For A Powerful India-German Partnership” लेख पर आधारित है। इसमें जर्मनी के दृष्टिकोण से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के महत्त्व की चर्चा की गई है और विचार किया गया है कि भारत इस क्षेत्र में किस प्रकार जर्मनी का एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार साबित हो सकता है।

संदर्भ

जर्मनी ने भी समझ लिया है कि विश्व का राजनीतिक एवं आर्थिक गुरुत्वाकर्षण काफ़ी हद तक हिंद-प्रशांत क्षेत्र की ओर स्थानांतरित हो रहा है जहाँ भारत एक प्रमुख अभिकर्ता, रणनीतिक भागीदार और दीर्घकालिक लोकतांत्रिक मित्र के रूप में उपस्थिति दर्ज कराता है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जापान, ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, सिंगापुर और अन्य कुछ देशों का दौरा करने के बाद जर्मन नौसेना फ्रिगेट ‘बायर्न’ (Bayern) हाल ही में मुंबई पहुँचा। सूक्ष्मता से देखें तो यह भारत-जर्मनी संबंधों के लिये एक उल्लेखनीय कदम को चिह्नित करता है। बायर्न का आगमन प्रकट करता है कि जर्मनी वर्ष 2020 में अपनाए गए हिंद-प्रशांत नीति दिशा-निर्देशों (Indo-Pacific Policy Guidelines) पर गंभीरता से आगे बढ़ रहा है।

भारत, जर्मनी और हिंद-प्रशांत क्षेत्र

  • भारत-जर्मनी संबंध: भारत और जर्मनी के बीच के द्विपक्षीय संबंध साझा लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित हैं। भारत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी संघीय गणराज्य के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले पहले देशों में से एक था।
    • जर्मनी भारत को विकास परियोजनाओं में प्रति वर्ष 1.3 बिलियन यूरो का सहयोग देता है, जिसमें से 90% जलवायु परिवर्तन से मुकाबले और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के साथ-साथ स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने के उद्देश्य में काम आता है।
      • जर्मनी महाराष्ट्र में 125 मेगावाट क्षमता के एक विशाल सौर संयंत्र के निर्माण में भी सहयोग कर रहा है, जो 155,000 टन वार्षिक CO2 उत्सर्जन की बचत करेगा।
    • दिसंबर 2021 में जर्मनी के नए चांसलर की नियुक्ति के बाद भारत और जर्मनी ने सहमति व्यक्त की है कि दुनिया के प्रमुख लोकतांत्रिक देशों और रणनीतिक भागीदारों के रूप में दोनों देश साझा चुनौतियों से निपटने के लिये आपसी सहयोग की वृद्धि करेंगे जहाँ जलवायु परिवर्तन उनके एजेंडे में शीर्ष विषय के रूप में शामिल होगा।
  • आर्थिक सहयोग की चुनौती: वर्तमान में दोनों देशों के बीच एक पृथक द्विपक्षीय निवेश संधि का अभाव है। जर्मनी का भारत के साथ यूरोपीय संघ के माध्यम से द्विपक्षीय व्यापार एवं निवेश समझौता (Bilateral Trade and Investment Agreement- BTIA) कार्यान्वित है जहाँ उसके पास अलग से वार्ता कर सकने का अवसर नहीं है।
    • इसके अलावा  जर्मनी विशेष रूप से भारत के व्यापार उदारीकरण उपायों को लेकर संदेह रखता है और अधिक उदार श्रम नियमों की अपेक्षा रखता है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व: हिंद-प्रशांत (जिसका केंद्र बिंदु भारत है) जर्मनी और यूरोपीय संघ की विदेश नीति में अधिकाधिक महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में वैश्विक आबादी के लगभग 65% का निवास है और विश्व के 33 मेगासिटीज़ में से 20 यहीं मौजूद हैं।
    • यह क्षेत्र वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 62% और वैश्विक पण्य व्यापार में 46% की हिस्सेदारी रखता है।
    • यह क्षेत्र कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन के आधे से अधिक भाग का उद्गम क्षेत्र भी है जो इस क्षेत्र के देशों को स्वाभाविक रूप से जलवायु परिवर्तन और संवहनीय ऊर्जा उत्पादन एवं उपभोग जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने में प्रमुख भागीदार बनाता है।
  • जर्मनी और हिंद-प्रशांत: जर्मनी नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को सशक्त करने में अपने योगदान के लिये प्रतिबद्ध है।
    • जर्मनी के हिंद-प्रशांत दिशा-निर्देशों के अंतर्गत संलग्नता की वृद्धि और उद्देश्यों की पूर्ति के लिये भारत का उल्लेख किया गया है। अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित विषयों पर चर्चा में भारत अब एक महत्त्वपूर्ण संधि या नोड बन सकता है।
    • चूँकि भारत एक समुद्री महाशक्ति है और मुक्त एवं समावेशी व्यापार का मुखर समर्थक है, वह इस मिशन में जर्मनी (अंततः यूरोपीय संघ) का एक प्राथमिक भागीदार है।

आगे की राह

  • भारत-जर्मनी संबंधों को मज़बूत करना: जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा और अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा सहित विभिन्न वैश्विक मुद्दों के समाधान के लिये जर्मनी भारत को एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है।
    • इसके साथ ही जर्मनी में सत्ता में आई नई गठबंधन सरकार भारत के लिये दोनों देशों के बीच की रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने का अवसर प्रदान कर रही है।
    • जर्मनी चीन का मुकाबला करने के लिये यूरोपीय संघ के माध्यम से कनेक्टिविटी परियोजनाओं को लागू करने का इच्छुक है। यह गठबंधन ‘भारत-यूरोपीय संघ BTIA’ के संपन्न होने की इच्छा रखता है और इसे संबंधों के विकास के लिये एक महत्त्वपूर्ण पहलू के रूप में देखता है।
  • आर्थिक सहयोग का दायरा: भारत और जर्मनी को बौद्धिक संपदा दिशा-निर्देशों के सहकारी लक्ष्यों को साकार करना चाहिये और व्यवसायों को भी संलग्न करना चाहिये।
    • जर्मन कंपनियों को भारत में विनिर्माण केंद्र स्थापित करने के लिये उदारीकृत PLI योजना का लाभ उठाने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • जर्मनी ने एक वैक्सीन उत्पादन प्रतिष्ठान के लिये अफ्रीका को 250 मिलियन यूरो का ऋण देने की प्रतिबद्धता जताई है। भारत के सहयोग से सुविधाहीन पूर्वी अफ्रीकी क्षेत्र में ऐसा प्रतिष्ठान स्थापित किया जा सकता है।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उत्तरदायित्वों की साझेदारी: भारत की ही तरह जर्मनी भी एक व्यापारिक राष्ट्र है। जर्मन व्यापार का 20% से अधिक हिंद-प्रशांत क्षेत्र में संपन्न होता है।  
    • यही कारण है कि जर्मनी और भारत विश्व के इस हिस्से में स्थिरता, समृद्धि और स्वतंत्रता को बनाए रखने और उसका समर्थन करने का उत्तरदायित्व साझा करते हैं। एक स्वतंत्र और खुले हिंद-प्रशांत के समर्थन में भारत और यूरोप दोनों के महत्त्वपूर्ण हित निहित हैं।
  • समन्वय का अवसर: जर्मनी मानता है कि भारत की सक्रिय भागीदारी के बिना किसी भी वैश्विक समस्या का समाधान संभव नहीं है।
    • वर्ष 2022 में जर्मनी G7 की अध्यक्षता ग्रहण करेगा और इसी वर्ष दिसंबर में भारत को G20 की अध्यक्षता प्राप्त होगी। इस प्रकार, यह संयुक्त और समन्वित कार्रवाई का एक अवसर प्रदान कर रहा है।
  • सतत् विकास की ओर एक साथ: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये जर्मनी से सर्वाधिक वित्तीय सहायता भारत को ही प्रदान की जाती है।
    • ग्लासगो में आयोजित COP-26 में वैश्विक नेताओं के बीच जिस बात पर सहमति बनी थी, जर्मनी और भारत उसे व्यावहारिक रूप से लागू कर रहे हैं।
    • दोनों देश साथ मिलकर भारत के विकास के लिये एक संवहनीय पथ पर कार्य कर सकते हैं जिससे दोनों को लाभ होगा।

निष्कर्ष

  • भारत और जर्मनी शांत जल और समुद्र दोनों में ही समान रूप से एक मज़बूत साझेदारी के लिये आगे बढ़ रहे हैं। दोनों देशों को संपूरकता के क्षेत्रों में और निकट संलग्नता के लिये नए सिरे से विचार करना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: चर्चा कीजिये कि किस प्रकार भारत-जर्मन सहयोग दोनों देशों के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उनके अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिये जीत की स्थिति का निर्माण कर सकता है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow