अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत के हरित भविष्य का निर्माण और ‘हरित बॉन्ड’
- 11 Jan 2017
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सन्दर्भ
भारत विश्व में सबसे बड़े नवीकरणीय क्षमता विस्तार कार्यक्रम का संचालन कर रहा है। सरकार का उद्देश्य नवीकरणीय क्षेत्रों में व्यापक प्रेरणा के माध्यम से स्वच्छ ऊर्जा की सहभागिता में वृद्धि करना है। हरित बॉन्ड, जो हरित भविष्य के लिये पर्यावरण अनुकूल व्यवसायों और संपत्तियों हेतु वित्त प्रदान करता है, यह वर्तमान वैश्विक अर्थव्यवस्था में संक्रमण को संचालित करने वाले एक प्रमुख वित्त पोषण तंत्र के रूप में उभरा है|
सतत् विकास में योगदान
- वर्ष 2007 में दो प्रमुख बहुपक्षीय विकास बैंकों (World Bank and European Investment Bank) द्वारा प्रथम हरित बॉन्ड जारी किये जाने के बाद से ही, हरित बॉन्ड बाज़ार में उत्तरोत्तर प्रगति हुई है और वर्तमान में इसके $180 अरब तक पहुँच जाने का अनुमान है|
- वर्ष 2015 हरित बॉन्ड के लिये अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ| इस दौरान वैश्विक अर्थव्यवस्था में हरित बॉन्ड की नवीन संरचनाओं का आगमन हुआ|
- भारत का हरित बॉन्ड बाज़ार, यस बैंक द्वारा 2015 में जारी देश के पहले हरित बॉन्ड के साथ कई महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों का साक्षी बना|
- पूंजी जुटाने, विदेशी निवेश को आकर्षित करने और बाज़ार में गति उत्प्रेरण को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न कंपनियों और वित्तीय संस्थानों द्वारा इस अभिनव तंत्र का लाभ उठाया गया|
- इस प्रकार, हरित बॉन्ड अक्षय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के वित्तपोषण को बढ़ावा देकर भारत के सतत् विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रहा है।
अक्षय ऊर्जा
- स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में विकास दर से आश्वस्त भारत सरकार ने आईएनडीसी (Intended Nationally Determined Contributions - INDCs) पर संयुक्त राष्ट्र प्रारूप संधि में अपनी प्रस्तुति में निर्दिष्ट किया है कि प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण और न्यून लागत के साथ हरित जलवायु कोष की सहायता से वह 2030 तक गैर-जीवाश्म ईधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 40 प्रतिशत संचयी विद्युत ऊर्जा क्षमता प्राप्त करेगा|
- वर्तमान सरकार ने देश में सौर ऊर्जा के 20,000 मेगावाट के लक्ष्य को स्थापित करने के पुनः संशोधित करते हुए 2022 तक सौर ऊर्जा के लक्ष्य को पाँच गुना बढ़ाकर एक लाख मेगावाट कर दिया है।
- यह लक्ष्य, जो पहले अत्यंत महत्त्वाकांक्षी दिखाई देता था, अब देश भर में घरों की छतों पर सौर ऊर्जा उत्पादन की मौन क्रांति का पहले से साक्ष्य बने कई राज्यों के सहयोग से यह वास्तविक होता प्रतीत हो रहा है।
- ध्यातव्य है कि 31 अक्तूबर, 2015 को देश भर में ग्रिड-इंटरैक्टिव नवीकरणीय ऊर्जा की करीब 38 गीगावाट की संचयी क्षमता को स्थापित कर दिया गया।
- केन्द्र सरकार द्वारा एक राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को लागू करने और उत्पादन आधारित प्रोत्साहनों एवं त्वरित मूल्य ह्रास में सहायता सहित नीतिगत पहलों के माध्यम से अक्षय ऊर्जा में वृद्धि करने के लिये कई पहलें की जा चुकी हैं।
अन्य पहलें
भारत सरकार द्वारा इस संबंध में की गई कुछ अन्य नीतिगत पहलें इस प्रकार हैं :
- स्वच्छ ऊर्जा कोष; राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति; पीएसीई सेंटर कोष की स्थापना|
- राज्य विद्युत नियामक आयोगों (एसईआरसी) ने छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्रों को लगाने की पहल को प्रोत्साहन देने के लिये नेट-मीटरिंग और फीड-इन-टैरिफ पर नियामक को अधिसूचित किया है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने प्राथमिक क्षेत्र के ऋण में नवीकरणीय ऊर्जा के लिये महत्त्वपूर्ण मार्ग प्रशस्त करते हुए सभी सूचीबद्ध वाणिज्यिक बैंको के लिये संशोधित दिशा-निर्देश जारी किये हैं।
- सौर आधारित विद्युत जेनरेटर, पवन चक्कियों, सूक्ष्म जलविद्युत संयंत्रों, सड़कों और गलियों में पर प्रकाश की व्यवस्था तथा दूरस्थ ग्रामीण विद्युतीकरण जैसे उद्देश्यों के लिये बैंक ऋण की व्यवस्था|
- अक्षय ऊर्जा स्रोतों से विद्युत उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिये तकनीकी एवं वित्तीय दोनों ही पक्षों पर अन्य देशों के साथ सहयोग के प्रति आशान्वित।
- राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (एनआईडब्ल्यूई) डेनमार्क, अमरीका, स्पेन और जर्मनी के विशेष संस्थानों के साथ सहयोग से वायु पूर्वानुमानों, अपतटीय वायु, एयरो-स्ट्रक्चरल डिज़ाइन जैसे क्षेत्रों में कार्य कर रहा है।
- वित्तीय पक्ष के मामले में, भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (आईआरईडीए) देश में व्यवहार्य नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं के लिये ऋण के प्रोत्साहन हेतु विभिन्न द्विपक्षीय/बहुपक्षीय संस्थानों से ऋणों के संचालन की दिशा में कार्य कर रही है।
भारत में हरित बॉन्ड बाज़ार
- भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ऐसे नियमों पर कार्य कर रहा है, जिनसे कंपनियाँ ग्रीन बॉन्ड जारी करने के लिये प्रोत्साहित होंगी। कंपनियों के लिये इस बेहद लोकप्रिय रास्ते से भारत में ही रकम जुटाना आसान हो जाएगा और कार्बन उत्सर्जन घटाने के सरकारी संकल्प को भी समर्थन मिलेगा|
- ग्रीन बॉन्ड दूसरे बॉन्डों की ही तरह होते हैं, लेकिन इनके तहत केवल पर्यावरण के अनुकूल यानी हरित परियोजनाओं में निवेश किया जाता है।
- ऐसी परियोजनाएँ आम तौर पर अक्षय ऊर्जा, कचरा प्रबंधन, स्वच्छ परिवहन, सतत् जल प्रबंधन एवं जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन के क्षेत्र में होती हैं।
- ध्यातव्य है कि पहले इस संबंध में नियम नहीं होने के कारण विभिन्न भारतीय कंपनियों को ऐसे बॉन्डों के ज़रिये विदेश में ही रकम जुटानी पड़ती थी, किन्तु यस बैंक जैसे ऋणदाताओं ने विदेशी बाज़ार में ग्रीन बॉन्ड जारी किये थे और अब भारत में भी ग्रीन बॉन्ड जारी किये गए हैं|
- सेबी के नियमों में इस बात पर पूरी नज़र रखी जाएगी कि इन बॉन्डों का आखिर में कैसे और किसके द्वारा इस्तेमाल किया जा रहा है। इनके लिये सेबी कोई अलग व्यवस्था करने का प्रस्ताव भी कर सकता है।
- सेबी के नियमन के बाद इस संबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक के नियम भी आ सकते हैं ताकि प्रतिस्पर्द्धी दरें बनी रहें।
- इस तरह के बॉन्डों को जारी करने वालों या उनमें रकम लगाने वालों को अभी तक किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं मिलता है। उनके लिये केवल इतनी सहूलियत है कि ये बॉन्ड नकद आरक्षी अनुपात और सांविधिक उधारी दर जैसे नियमों से परे रहते हैं क्योंकि ये केंद्रीय बैंक के इन्फ्रा बॉन्ड की श्रेणी में आते हैं।
- विशेषज्ञों का कहना है कि 2022 तक देश में 175 गीगावॉट अक्षय ऊर्जा उत्पादन का सरकारी लक्ष्य पूरा करने की दिशा में यह पहला कदम है।
- एक विशेषज्ञ ने कहा कि ग्रीन बॉन्ड को प्रोत्साहन देकर घरेलू और विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया जा सकता है। अगस्त में जारी ग्रीन बॉन्ड पर जारी अपनी रिपोर्ट में मूडीज़ ने कहा था, 'ग्रीन बॉन्ड से 2015 की दूसरी तिमाही में करीब 12.9 अरब डॉलर की रकम जुटाई गई और यह आँकड़ा इस साल तक करीब 19.2 अरब डॉलर तक पहुँच जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि 2013 में अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (International Finance Corporation-IFC) ने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में भारतीय रुपए में पहले मसाला बॉन्ड को सूचीबद्ध किया था।
मसाला बॉन्ड
- सामान्यतः भारत से बाहर रुपए में जारी किये गए बॉन्ड मसाला बॉन्ड कहलाते हैं।
- इससे पहले भारतीय कंपनियों ने विदेशी मुद्राओं में बॉन्ड जारी करके पूंजी जुटाई है।
- प्रथम विदेशी मुद्रा बॉन्ड 2013 में अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (जो विश्व बैंक की निजी क्षेत्र में निवेश करने वाली इकाई है) द्वारा जारी किया गया था।
- अगर बॉन्ड जारीकर्ता रुपए में बॉन्ड जारी करता है तो उसे मुद्रा मूल्य के वैश्विक उतार-चढ़ाव का जोखिम नहीं रहेगा।
- यह बॉन्ड भारतीय कंपनियों के लिये बैंक फंड तथा कॉरपोरेट बॉन्ड बाज़ार के अतिरिक्त निवेशकों को शामिल करने तथा मुद्रा में तरलता लाने का एक नया तरीका है।
- वस्तुतः मसाला बॉन्ड रुपया मूल्य वाले बॉन्ड का ही लोकप्रिय नाम है, जिसे केवल विदेशी निवेशकों को ही बेचा जाता है।
- विदित हो कि वित्त वर्ष 2015-16 की द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में भारतीय रिज़र्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों और भारतीय कंपनियों को ऐसे बॉन्ड जारी करने की अनुमति देने का इरादा जताया था।
- उचित नियामकीय ढाँचे के तहत ऐसे बॉन्ड जारी किये जा सकते हैं।
- बाह्य वाणिज्यिक उधारी की पात्र भारतीय कंपनियों को विदेश में रुपए वाले बॉन्ड जारी करने की अनुमति दी गई है।
- आरबीआई ने ऐसे बॉन्ड के नियमों का मसौदा जारी किया था, जिसके अनुसार विदेश में जारी रुपए वाले बॉन्ड में निवेश करने वाली निवेशक कंपनी विदेशी विनिमय के जोखिम व अन्य जोखिमों के लिये देसी बाज़ार में मंजूर डेरिवेटिव उत्पादों के ज़रिये हेजिंग (Hedging) कर सकते हैं।
- इन बॉन्डों की कीमतों पर सीमा लगी हुई है, ये समकक्ष परिपक्वता अवधि वाले सरकारी बॉन्डों के प्रतिफल के मुकाबले 500 आधार अंक से ज़्यादा के नहीं हो सकते|
प्रमुख बिंदु
- मौजूदा प्रावधानों के अतिरिक्त, प्रभावी और समन्वित ऑफ-ग्रिड, ऊष्मा और परिवहन सहित सभी प्रासंगिक अनुप्रयोगों के लिये नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग में वृद्धि की सुविधा सुनिश्चित करने के लिये भारत में एक अक्षय ऊर्जा अधिनियम की आवश्यकता है, जो ऊर्जा और विद्युत प्रणाली से अच्छी तरह से एकीकृत हो और इसके माध्यम से एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र का विकास, एक संस्थागत ढाँचे की संरचना और पारदर्शी एवं प्रभावी प्रोत्साहन संरचना के लिये प्रारूप तैयार किया जा सके।
- इस संदर्भ में, मिश्रित ऊर्जा में नवीकरणीय ऊर्जा की भागीदारी को बढ़ाने के लिये न सिर्फ अक्षय ऊर्जा तैनाती से संबंधित नीतियों में, बल्कि पूर्ण ऊर्जा प्रणाली की योजनाओं से संबंधित नीतियों में भी बदलावों को प्रोत्साहन देने के लिये नीतियों को सक्षम बनाने की आवश्यकता होगी।
निष्कर्ष
वैश्विक अर्थव्यवस्था कुछ एक अड़चनों को छोड़कर अंततः वित्तीय संकट से उबर रही है। प्रौद्योगिकीय सफलताओं ने नवीकरणीय ऊर्जा को जीवाश्म ईंधनों के साथ प्रतिस्पर्द्धा योग्य बना दिया है| आज अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, सतत विकास और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई पर महत्त्वपूर्ण समझौते करने की ओर अग्रसर प्रतीत होता है। 2017 में होने वाला कॉप 22 (cop 22) इस संबंध में एक सशक्त भूमिका निभा सकता है| यदि समावेशी विकास को बरकरार रखना है तो हमें अपनी वित्तीय प्रणाली की विफलताओं के मूल तक जाकर विचार करना होगा| ऐसे मानकों, विनियमों और प्रथाओं को अपनाना होगा जो इसे अधिक समावेशी और टिकाऊ अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक आवश्यकताओं के अनुरूप बनाएँ।