हिंद महासागर और रूस | 26 Nov 2019
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हिंद महासागर की भू-राजनीति और उस पर रूस के बढ़ते प्रभाव की चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
लंबे समय से हिंद महासागर की भू-राजनीति से दूर रहे रूस ने अब एक बार पुनः अपनी विदेश और समुद्री नीति में उसे शामिल करने का निर्णय लिया है। गौरतलब है कि हाल ही में ऐसे कई घटनाक्रम हुए हैं जो हिंद महासागर में रूस की बढ़ती रणनीतिक हित को उजागर करते हैं। भारत और रूस के संबंधों के कारण जहाँ एक ओर रूस की यह नीति भारत के पक्ष में दिखाई दे रही है वहीं दूसरी ओर इस संबंध में हुए कुछ घटनाक्रमों ने भारत की चिंता को भी बढ़ाया है।
रूस की बदलती नीति
- बीते हफ्ते रूसी नौसेना का एक प्रशिक्षण पोत पेरेकोप (Perekop) श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर पहुँचा था, जो हिंद महासागर में रूस के हित को स्पष्ट रूप से उजागर करता है।
- हालाँकि यदि हंबनटोटा में प्रवेश की अनुमति से संबंधित श्रीलंका के इस निर्णय को भारत के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह स्वागत योग्य कदम है, क्योंकि भारत पहले से ही हंबनटोटा पर चीन के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है।
- पिछले महीने अक्तूबर के अंत में लंबी दूरी के रूसी ‘ब्लैक जैक’ (Black Jack) हवाईजहाजों ने दक्षिण अफ्रीका के लिये उड़ान भरी थी, इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य दोनों देशों के सैन्य संबंधों विशेष रूप से वायु सैन्य संबंधों को मज़बूत करना था।
- दक्षिण अफ्रीका में चल रहा चीन-रूस-दक्षिण अफ्रीका संयुक्त समुद्री युद्धाभ्यास को इस संबंध में सबसे महत्त्वपूर्ण हालिया घटनाक्रम माना जा सकता है और कई विश्लेषक इसे भारतीय दृष्टिकोण से चिंता का सबब भी मान रहे हैं। गौरतलब है कि इस त्रिपक्षीय नौसैनिक अभ्यास को मॉरिस (Moris) नाम दिया गया है।
- यह पहली बार है जब ब्रिक्स में भारत के तीन साझेदार देश (ब्राज़ील के अलावा) इस प्रकार का कोई युद्धाभ्यास आयोजित कर रहे हैं।
- जानकारों के अनुसार, यह अभ्यास दक्षिण अफ्रीका में चीन और रूस के बढ़ते प्रभाव और पश्चिम से दक्षिण अफ्रीका की बढ़ती राजनीतिक दूरी को दर्शाता है।
- इसी के साथ ईरान ने भी घोषणा की है कि वह भी फारस की खाड़ी में चीन और रूस के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास की योजना बना रहा है।
रूस और हिंद महासागर
- विदित हो कि रूस हिंद महासागर से काफी दूर स्थित है, परंतु इस क्षेत्र की भू-रणनीति में रूस ने सदैव ही एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- 1970 और 1980 के दशक के दौरान सोवियत संघ ने हिंद महासागर में नौसेना को तैनात कर काफी सक्रियता दिखाई थी। हालाँकि सोवियत संघ के पतन के बाद कुछ आंतरिक कारणों से इस क्षेत्र पर ध्यान नहीं केंद्रित किया गया, परंतु हाल के कुछ दशकों में ऐसा प्रतीत हुआ है कि रूस, हिंद महासागर के प्रति अपनी नीति पर बार एक पुनः कार्य कर रहा है।
- हिंद महासागर क्षेत्र में सीमित व्यापार और सुरक्षा संबंध प्रगाढ़ न होने के कारण रूस को वहाँ की भू-राजनीति में सदैव ही काफी कम स्थान दिया गया है। हालाँकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि एक वैश्विक शक्ति होने के नाते रूस के इस क्षेत्र में काफी महत्त्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक हित मौजूद हैं।
- औपचारिक स्तर पर वर्ष 2015 में रूस ने ‘रूसी संघ के समुद्री सिद्धांत’ (Marine Doctrine of the Russian Federation) नाम से एक रणनीतिक दस्तावेज़ जारी किया था। गौरतलब है कि यह दस्तावेज़ समुद्री क्षेत्र में रूस के हितों से संबंधित है।
- ध्यातव्य है कि यह दस्तावेज़ हिंद महासागर को रूस की प्राथमिकताओं में से एक मानता है और इस क्षेत्र में रूस के हितों को साधने के लिये तीन दीर्घकालिक उद्देश्य निर्धारित करता है:
- इस क्षेत्र में स्थित राष्ट्रों के साथ शिपिंग और मत्स्य पालन के लिये नेवीगेशन का विकास करना।
- रूस की स्थिति को मज़बूत करने के लिये अंटार्कटिका में समुद्री वैज्ञानिक अनुसंधान का आयोजन करना।
- इस क्षेत्र में शांति को बढ़ावा देना।
- विगत कुछ वर्षों में हिंद महासागर विश्व की कुछ शक्तियों के बीच शक्ति प्रदर्शन का आखाडा बन गया है और जानकारों का मानना है कि यह परिवर्तन निश्चित रूप से रूस के हितों को प्रभावित करेगा।
- सर्वप्रथम हिंद महासागर जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में इस प्रकार का कोई भी संघर्ष या गंभीर तनाव न केवल क्षेत्रों की सुरक्षा और समृद्धि को बल्कि पूरे विश्व के हित को लंबे समय तक प्रभावित करेगा।
- इसके अलावा रूस के भारत और चीन दोनों से ही अच्छे संबंध हैं तथा उसके लिये दोनों में से किसी एक का चुनाव करना अपेक्षाकृत काफी कठिन होगा, इसलिये रूस चाहेगा कि इस क्षेत्र में सदैव शांति बनी रहे।
रूस की समुद्री नीति और भारत
- रूसी संघ के समुद्री सिद्धांत में उल्लेख किया गया है कि भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों का विकास करना हिंद महासागर क्षेत्र में रूस की राष्ट्रीय समुद्री नीति का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है।
- ज्ञातव्य है कि हाल ही में दोनों देशों ने चेन्नई और व्लादिवोस्तोक के बंदरगाहों के बीच समुद्री संचार मार्ग का विकास करने के लिये भी समझौता किया था।
हिंद महासागर का भू-राजनैतिक परिदृश्य
- हिंद महासागर क्षेत्र विगत कुछ दशकों में विभिन्न कारणों से वैश्विक गतिविधि का केंद्र बन गया है। विदित हो कि दुनिया के प्रमुख व्यापार मार्ग यहीं से होकर गुज़रते हैं।
- हिंद महासागर के चोक पॉइंट्स दुनिया में सामरिक दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, दुनिया का लगभग 80 प्रतिशत से अधिक तेल का व्यापार हिंद महासागर के इन्हीं चोक पॉइंट्स के माध्यम से होता है।
- इनमें होर्मुज, मलक्का और बाब अल-मन्देब जलडमरूमध्य प्रमुख हैं।
- यह क्षेत्र सिर्फ व्यापार के लिये ही महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि वर्तमान में दुनिया के आधे से अधिक सशस्त्र संघर्ष इसी क्षेत्र में देखें जा रहे हैं।
- यह क्षेत्र न सिर्फ भारत-चीन के बीच चल रही शक्ति प्रतिस्पर्द्धा के लिये जाना जाता है बल्कि यहाँ भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष और आतंकवाद जैसे मुद्दों के अलावा कई अन्य मुद्दे भी चर्चा के केंद्र में रहते हैं।
- इस सब के परिणामस्वरूप दुनिया की लगभग सभी बड़ी शक्तियों ने इस क्षेत्र में पर्याप्त सैन्य बल तैनात किया है। कुछ विशेषज्ञ इस क्षेत्र को दुनिया के सबसे खतरनाक क्षेत्रों में से एक मानते हैं।
- ध्यातव्य है कि हिंद महासागर मध्य पूर्व, अफ्रीका और पूर्वी एशिया को यूरोप तथा अमेरिका से जोड़ने वाले प्रमुख समुद्री मार्ग के रूप में कार्य करता है।
- विश्व के तेल एवं गैस रिज़र्व का 40% हिस्सा इसी महासागर में स्थित है। इसका संसाधनों से परिपूर्ण होना इसे आर्थिक महत्त्व का केंद्र बना देता है। इस क्षेत्र में सोना, टिन, यूरेनियम, कैडमियम, कोबाल्ट, निकिल जैसे खनिज भी यहाँ पाए जाते हैं।
हिंद महासागर के प्रति भारत की नीति
- भारतीय प्रायद्वीप की भौगोलिक अवस्थिति इस क्षेत्र में भारत को एक महत्त्वपूर्ण पक्ष बनाती है। भारत का प्रायद्वीप तीन दिशाओं से हिंद महासागर के जलीय क्षेत्र से घिरा हुआ है।
- भारत अपने पश्चिम तटीय बंदरगाहों से होकर अफ्रीका, पश्चिमी एशिया, ईरान तथा स्वेज़ नहर के माध्यम से यूरोप तक और पूर्वी तटीय बंदरगाहों के माध्यम से ऑस्ट्रलिया एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया तक पहुँचता है।
- आँकड़ों के अनुसार, भारत अपने लगभग 70 प्रतिशत तेल का आयात हिंद महासागर के माध्यम से ही करता है।
- जानकारों के अनुसार, अब तक हिंद महासागर को लेकर भारत की नीति मुख्यतः चीन के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा पर केंद्रित है।
- उल्लेखनीय है कि इस नीति के परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और जापान के अलावा क्षेत्रीय सहयोगियों जैसे-इंडोनेशिया एवं सिंगापुर के साथ भारत के नौसैनिक सहयोग का तेजी से विस्तार हुआ है।
हिंद महासागर की भू-राजनीति को प्रभावित कर सकता है रूस
- विशेषज्ञ मानते हैं कि हालाँकि रूस कभी भी इस क्षेत्र में पूरी तरह से हावी नहीं हो पाएगा, परंतु फिर भी उसके पास हिंद महासागर क्षेत्र की भू-राजनैतिक स्थिति को प्रभावित करने की क्षमता है।
- विदित हो कि रूस दुनिया के सबसे प्रमुख हथियार निर्यातकों में से एक है, जो कि उसे इस क्षेत्र में एक बड़ी शक्ति के रूप में स्थापित करता है।
- सीरिया के शासक बशर अल असद को बचाने में रूस के सैन्य हस्तक्षेप की सफलता ने नागरिक युद्ध से निपटने के लिये संघर्षरत कई देशों का ध्यान आकर्षित किया है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में एक स्थायी सदस्य होने के नाते रूस कई राष्ट्रों को पश्चिमी दबाव के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है। आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत के लिये रूस का मजबूत समर्थन कई अफ्रीकी देशों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
- रूस की ऊर्जा और खनिज कंपनियाँ इस क्षेत्र में संसाधन विकास के लिये महत्त्वपूर्ण विकल्प प्रदान करती हैं।
रूस की नीति का भारतीय दृष्टिकोण
- विश्लेषकों का मानना है कि हिंद महासागर क्षेत्र में रूस की सक्रियता भारत के पक्ष में है और सरकार को इसका स्वागत करना चाहिये। परंतु इस संबंध में कुछ चुनौतियाँ भी मौजूद हैं जिन पर चर्चा करना आवश्यक है।
- पश्चिम के साथ रूस का गहरा तनाव और चीन के साथ मज़बूत होते रणनीतिक संबंध भारत के लिये समस्याएँ खड़ी कर सकते हैं।
- भारत द्वारा रूस से एस-400 मिसाइलों की खरीद और अमेरिका के प्रतिबंधों का खतरा, रूस एवं अमेरिका के बीच तनाव को स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं।
- भारत द्वारा अनवरत उभरती चीन-रूस नौसैनिक और समुद्री भागीदारी की ओर भी अब तक ध्यान नहीं दिया गया है।
- गौरतलब है कि विगत कुछ वर्षों में चीन और रूस ने पश्चिमी प्रशांत महासागर, बाल्टिक सागर एवं भूमध्यसागर में कई नौसैनिक युद्धाभ्यास किये हैं।
- दक्षिण अफ्रीका के साथ दोनों देशों (रूस और चीन) का हालिया युद्धाभ्यास भी भारत की चिंताएँ बढ़ाने वाला है।
- अतः जल्द-से-जल्द भारत और रूस के मध्य हिंद महासागर क्षेत्र में सहयोग तथा अन्य मुद्दों को लेकर द्विपक्षीय वार्ता किये जाने की आवश्यकता है, ताकि भारत और रूस मिलकर इस क्षेत्र में विकास की नई संभावनाएँ तलाश सकें।
प्रश्न: हिंद महासागर क्षेत्र के प्रति रूस की बदलती नीति और भारत पर उसके प्रभावों की चर्चा कीजिये।