सुरक्षित भारत के लिये बचपन को सुरक्षित रखना होगा | 20 Jan 2017

पृष्ठभूमि

तकरीबन दो दशकों के एक लम्बे इंतज़ार के पश्चात्, हाल ही में भारत सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organization-ILO) के 182वें अभिसमय (Convention) के तहत “बाल श्रम के निकृष्टतम रूप” एवं 138वें  अभिसमय के तहत “श्रम की न्यूनतम आयु” के मुद्दे पर अंततः निर्णय ले लिया गया है|  

प्रमुख बिंदु

  • ज़ाहिर सी बात है कि बाल श्रम या यूँ कहें कि देश में बच्चों के भविष्य के  विषय में भारत सरकार द्वारा लिये गए इस महत्त्वपूर्ण फैसले का बहुआयामी प्रभाव होना निश्चित है क्योंकि किसी राष्ट्र के निर्माण में उस राष्ट्र के बच्चों का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान होता है|
  • इस निर्णय का उन लोगों के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव होगा जो न सिर्फ समाज में हाशिये पर जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं, बल्कि हमेशा से शोषण एवं उत्पीड़न के शिकार भी रहे हैं| 
  • गौरतलब है कि वर्तमान में भारत में तकरीबन 4.3 मिलियन बच्चे बाल श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो देश में 4.3 मिलियन बच्चे स्कूलों से संबद्ध ही नहीं है, और यह स्वयं में एक बहुत गंभीर समस्या है| इतना ही नहीं, तकरीबन 9.8 बच्चे आधिकारिक रूप से स्कूली दायरे से बाहर दर्ज़ किये गए हैं|
  • यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि बाल श्रमिक के रूप में उल्लिखित ये बच्चे मात्र श्रमिक के रूप में ही दृष्टिगत नहीं होते हैं, बल्कि ये अशिक्षा एवं गरीबी के भी जीते-जागते चित्र हैं|
  • वस्तुतः यही अशिक्षा एवं गरीबी मानव तस्करी, आतंकवाद, मादक पदार्थों की तस्करी जैसे गंभीर अपराधों की जड़ होती है|

एक अफ्रीकी घोषणा 

  • बाल श्रम के विरुद्ध जंग हेतु गठित संगठन “ग्लोबल मार्च” (Global March) तथा कैलाश सत्यार्थी बाल संस्थान (Kailash Satyarthi Children’s Foundation) के संस्थापक एवं नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी के निजी अनुभवों के अनुसार, अफ्रीका के नाइजीरिया की उनकी यात्रा भारी जोखिमों से भरी थी, तथापि सम्पूर्ण विश्व का ध्यान नाइजीरिया के बाल श्रम की निकृष्टतम स्थिति की ओर खींचने के लिये उन्होंने अकेले उस क्षेत्र की यात्रा की ताकि नाइजीरिया में बच्चों पर हो रहे अत्याचार को रोकने की दिशा में कठोर कदम उठाने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को विवश किया जा सके|
  • कैलाश सत्यार्थी की इस यात्रा का परिणाम यह हुआ कि वे यहूदी बस्तियों (Ghetto) के जिन लोगों को उन्होंने बाल श्रम के दुष्परिणामों के विषय में समझाया, उन्हें शिक्षा प्राप्ति की ओर प्रोत्साहित करने जैसा साहसी कार्य संभव हो सका, फलस्वरूप उन लोगों ने अपने बच्चों को श्रम कार्य से हटाकर स्कूल भेजना आरंभ कर दिया|
  • वस्तुतः कैलाश सत्यार्थी की इस सम्पूर्ण मुहीम का सार (Crux) भी यही था, जिसकी ओर सम्पूर्ण विश्व की राजनैतिक संस्थाओं के साथ-साथ समाज सेवी संगठनों का भी ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया गया, जो कि अब सफल होता प्रतीत हो रहा था|
  • यदि उपरोक्त विवरण का विश्लेषण किया जाए तो ज्ञात होता है कि यह करुणा एवं मानवता की भाषा (Language of Compassion and Humanity) ही थी जिसके माध्यम से कैलाश सत्यार्थी द्वारा एक अजनबी जगह एवं भाषा के लोगों को इस अति संवेदनशील मुद्दे के विषय में समझाने एवं बाल शोषण जैसी कुरीति के विरुद्ध एक वैश्विक आन्दोलन को आरंभ करने में सफलता हासिल हो पाई|
  • उल्लेखनीय है कि सम्पूर्ण विश्व को बाल श्रम के विरुद्ध एकजुट करने के उद्देश्य से कैलाश सत्यार्थी द्वारा विश्व के 103 देशों की यात्रा की गई| तकरीबन 80,000 किलोमीटर की इस यात्रा के दौरान उन्होंने 7.2 मिलियन लोगों का एक मज़बूत समूह निर्मित किया, जिसे “बाल श्रम के विरुद्ध वैश्विक मुहिम” (Global March Against Child Labour) नाम दिया गया|
  • ध्यातव्य है कि इस मुहिम की स्थापना 1 जून, 1998 को जेनेवा (स्विट्ज़रलैंड)में की गई थी| अपनी स्थापना के बाद से इस समूह द्वारा बाल श्रम के निकृष्टतम स्वरूपों के विरुद्ध कार्रवाई की निरंतर मांग की जाती रही| इसकी परिणति वर्ष 1999 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 182वें अभिसमय के मसौदे के रूप में परिलक्षित हुई|
  • ध्यातव्य है कि यह पहला ऐसा अभिसमय था जिसे संगठन के सभी सदस्य देशों का पूर्ण समर्थन प्राप्त हुआ हो| 

बाधाओं के पार

  • हालाँकि, इस सन्दर्भ में सबसे बड़ी बाधा उस समय दूर हुई जब हाल ही में भारत सरकार द्वारा 182वें एवं 138वें अभिसमयों को सर्वसम्मति से स्वीकृत कर लिया गया| 
  • दरअसल, इन दोनों अभिसमयों को स्वीकृत करने में भारत के समक्ष समझ सबसे बड़ी मुश्किल थी- श्रम कार्यों में बच्चों की ज़बरन एवं अनिवार्य भारती और खतरनाक उद्यमों में कार्यरत बच्चों की आयु को उपयुक्त ढंग से बढ़ाकर 14-18 वर्ष करना| 
  • फलस्वरूप संसद ने बाल श्रम (निषेध तथा विनियमन) विधेयक, 2016 पारित किया | इसके अंतर्गत, 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को रोज़मर्रा के कार्योंमें नियोजित करने तथा 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक उद्यमों से नियोजितत करने को प्रतिबंधित कर दिया गया है|
  • हालाँकि, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का सदस्य राष्ट्र होने के बावजूद भारत अंतर्राष्ट्रीय श्रम अभिसमय में निहित आठ मुख्य घटकों में से दो की पुष्टि करने में असफल हो गया है, जिससे वैश्विक स्तर पर एक उभरते हुए राष्ट्र के रूप में हमारी खराब छवि उजागर होती है|
  • तथापि, उक्त दोनों अभिसमयों को लागू करने के हमारे फैसले ने बाल श्रम एवं बाल उत्थान की दिशा में हमारे लक्ष्य को भलीभाँति स्पष्ट कर दिया है| इससे स्पष्ट होता है कि अब भारत इस दिशा में और ज़्यादा ढील बरतने के लिये तैयार नहीं है|
  • जहाँ तक बात उक्त निर्णय के तात्कालिक प्रभाव की है, तो जल्द ही भारत सरकार बाल श्रम के निकृष्टतम रूपों यथा; बाल गुलामी (Child Slavery) (बच्चों को बेचने, उनकी तस्करी करने, बंधुआ मज़दूर बनाने, सशस्त्र समूहों में बलपूर्वक भर्ती करने), बाल वेश्यावृत्ति एवं अश्लील गतिविधियों में उनके अनुचित इस्तेमाल, नशीले पदार्थों की तस्करी जैसे घृणित कृत्यों में उनके उपयोग तथा अन्य जोखिम भरे कार्यों (विशेषकर ऐसे कार्यों में जिनसे बच्चों के स्वास्थ्य, सुरक्षा तथा नैतिकता को नुकसान पहुँचता है) को चिंहित करने तथा इस दिशा में प्रभावी एवं निषेधात्मक कदम उठाने के लिये पूर्णतया प्रतिबद्ध है|
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं, एक आदर्श कानून हमेशा मार्गदर्शक की भाँति कार्य करता है, न कि हुक्म देता है| इसी सन्दर्भ में भारत सरकार भी उक्त दोनों अभिसमयों के तहत बाल श्रम की दिशा में कार्रवाई करने हेतु कोई विशेष समय-सीमा तय करने के लिये विवश नहीं है|
  • इसका कारण यह है कि बच्चों के बचपन को बचाने तथा देश का भविष्य सुरक्षित करने हेतु भारत सरकार द्वारा उठाए गए ये सभी कदम तभी सार्थक सिद्ध हो सकते हैं जब देश स्वयं अपने नैतिक साहस का परिचय देते हुए इस विषय को सार्वजनिक चिंता का मुद्दा बनाए और इस दिशा में सामाजिक सहानुभूति, राजनैतिक इच्छा-शक्ति तथा बाल संरक्षण एवं उनके विकास हेतु निवेश किये गए संसाधनों के उचित कार्यान्वयन पर ध्यान केन्द्रित करे|

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि इन सभी समस्याओं को हम रातोंरात समाप्त नहीं कर सकते हैं क्योंकि महान लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सही दिशा में पूरी लगन एवं मेहनत से प्रयास करना बहुत ज़रूरी होता है| जैसा कि हम सभी जानते हैं कि वतर्मान में बच्चों पर किया गया निवेश भविष्य हेतु किया गया निवेश होता है| अतः हमे एक सुरक्षित भारत की परिकल्पना करने के लिये सर्वप्रथम अपने बच्चों को सुरक्षित करना होगा|