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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-ब्रिटेन संबंध

  • 07 May 2021
  • 9 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 04/05/2021 को 'द इंडियन एक्सप्रेस' में प्रकाशित लेख “Could Modi-Johnson meet improve unsteady Indo-Brit ties?" पर आधारित है। इसमें भारत ब्रिटेन संबंध के नए अवसरों पर चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत और यूनाइटेड किंगडम के मध्य मज़बूत ऐतिहासिक संबंधों के साथ-साथ आधुनिक कूटनीतिक संबंध भी मौज़ूद  हैं। वर्ष 2004 में द्विपक्षीय संबंध में जो रणनीतिक साझेदारी विकसित हुई उसे क्रमिक सरकारों द्वारा और मज़बूत किया गया।

हाल ही में दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों के मध्य एक आभासी द्विपक्षीय बैठक का आयोजन किया गया है। यद्यपि बातचीत में स्वास्थ्य क्षेत्र आवश्यक रूप से मुख्य मुद्दा रहा, किंतु भारत और ब्रिटेन के प्रतिनिधियों द्वारा द्विपक्षीय रणनीतिक सहयोग से संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण विषयों पर भी चर्चा की गई।

भारत और ब्रिटेन: दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता

  • भारत का उदय: भारत एक ट्रांजीशन अथवा परिवर्तन के दौर से गुज़र रहा है, जिसका परिणाम ब्रिटेन के पक्ष में हो सकता है। भारत पहले से ही क्रय शक्ति समता विनिमय दरों (Purchasing Power Parity Exchange Rates) के हिसाब से दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और आने वाले दशकों में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है।
    • जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था बदल रही है, इसकी राजनीतिक, सैन्य और सांस्कृतिक शक्ति भी बढ़ रही है। इसी के साथ, भारत 21वीं सदी की महाशक्ति बनने की राह पर है।
    • जैसा कि ‘जिम ओ नील’ ने लिखा है, "भारत जल्द ही विश्व को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले देशों में से एक होगा।" ऐसे में भारत वैश्विक दौड़ में शामिल होने के लिये नए भागीदारों की तलाश कर रहा है। अतः ब्रिटेन के लिये यह एक अच्छा अवसर हो सकता है।
  • ब्रिटेन का पुनरुत्थान: ब्रिटेन के पास शिक्षा, अनुसंधान, नागरिक समाज एवं रचनात्मक क्षेत्र में भारत को देने के लिये बहुत कुछ है।
    • भारत में अंग्रेज़ी बोलने वाले मध्यम वर्ग की जनसंख्या में भारी वृद्धि ब्रिटेन के लिये एक महत्त्वपूर्ण अवसर है। इससे पहले कि भारत की अगली पीढ़ी कहीं और अवसर तलाशे, ब्रिटेन व्यापार, कूटनीति, सांस्कृतिक और शिक्षा के क्षेत्र में भारत के लिये अपने दरवाज़े खोल सकता है। 

संबंधित चुनौतियाॅं

हाल के वर्षों में अमेरिका और फ्राॅंस जैसे देशों के साथ भारत के संबंधों में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है, जबकि ब्रिटेन के साथ संबंध खराब हुए हैं। इसके लिये निम्नलिखित कारणों को उत्तरदायी माना जा सकता है:

  • औपनिवेशिक प्रिज़्म: इस असफलता का एक कारण औपनिवेशिक प्रिज़्म है, जिसने पारस्परिक धारणाओं को विकृत कर दिया है।
    • ब्रिटेन के खिलाफ उपनिवेशवाद विरोधी आक्रोश हमेशा भारतीय राजनीतिक और नौकरशाही वर्गों के बीच बना रहता है।
    • ब्रिटेन को भी भारत के बारे में अपने पूर्वाग्रहों से छुटकारा पाने में मुश्किलें होती हैं।
  • विभाजन की विरासत: विभाजन की विरासत और पाकिस्तान के प्रति ब्रिटेन के कथित झुकाव के कारण भी भारत और ब्रिटेन के बीच अच्छे संबंध बनने में कठिनाई आती रही है। 
    • इसके अलावा कई पूर्व भारतीय प्रधानमंत्रियों ने ब्रिटेन पर कश्मीर समस्या पैदा करने का भी आरोप लगाया है।
  • लेबर पार्टी का हालिया रवैया:  ब्रिटिश लेबर पार्टी की भारत के समस्याओं के प्रति बढ़ती राजनीतिक नकारात्मकता ने भी दोनों देशों के मध्य संबंधों को प्रभावित किया है। भारत के आंतरिक मामलों पर भी लेबर पार्टी का दृष्टिकोण नकारात्मक रहा है।

आगे की राह: नए अवसर

  • महामारी का प्रबंधन: ब्रिटेन और G7, भारत की आंतरिक क्षमताओं को बढ़ाने में मदद करने के साथ-साथ भविष्य में होने वाली वैश्विक महामारियों का प्रबंधन करने में काफी हद तक सक्षम हैं। भारत के लिये इन देशों से लाभांवित होने का एक अच्छा अवसर हो सकता है।
    • इन देशों के साथ मिलकर भारत में टीके के उत्पादन को बढ़ाने से लेकर एक मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की संरचना विकसित करने भी अपर संभावनाएँ हैं।
  • आर्थिक लाभ: दोनों देश अपने संबंधित क्षेत्रीय ब्लॉक से अलगाव का सामना कर रहे हैं। ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो गया है (ब्रेक्ज़िट) और भारत ने भी चीन-केंद्रित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (Regional Comprehensive Economic Partnership- RCEP) में शामिल होने से मना कर दिया है।
    • यद्यपि दोनों अपने क्षेत्रीय भागीदारों के साथ व्यापार करना जारी रखेंगे और साथ ही, दोनों ही देश नई वैश्विक आर्थिक भागीदारी बनाने के लिये प्रयासरत हैं।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP)

  • यह एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) है, जिसमें आसियान (ASEAN) के दस सदस्य देश तथा पाँच अन्य देश (ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूज़ीलैंड) शामिल हैं।
  • ध्यातव्य है कि यह समझौता इस लिहाज़ से भी काफी महत्त्वपूर्ण है कि इसमें विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल नहीं है। 
  • आसियान के दस सदस्य देशों के अलावा क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में मुख्यतः वे देश शामिल हैं, जिन्होंने आसियान देशों के साथ पहले से ही मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
  • रणनीतिक लाभ: यूरोप में एक सुरक्षा सहयोगी के रूप में बने रहते हुए ब्रिटेन हिंद-प्रशांत क्षेत्र की तरफ झुक रहा है, जहाॅं भारत एक स्वाभाविक सहयोगी हो सकता है।
    • वैश्विक स्तर पर चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए भारत को क्षेत्रीय संतुलन बहाल करने के लिये व्यापक गठबंधन की आवश्यकता है।
  • डोमिनो इफेक्ट: यदि दोनों देश अपनी द्विपक्षीय साझेदारी को और मज़बूत करते हैं एवं क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को विस्तृत करते हैं तो भारत और ब्रिटेन के लिये क्रमशः पाकिस्तान और दक्षिण-एशियाई प्रवासी राजनीति पर ब्रिटेन में होने वाली अनियमितताओं का प्रबंधन करना आसान हो सकता है।
    • भारत और ब्रिटेन, ब्रिटेन में भारतीयों के कानूनी प्रवासन को सुविधाजनक बनाने के लिये ‘प्रवास और गतिशीलता’ (Migration And Mobility) समझौता करने की दिशा में भी प्रयास कर रहे हैं।

निष्कर्ष

भारत एवं ब्रिटेन के बीच संस्कृति, इतिहास और भाषा के रूप में पहले से ही एक मज़बूत नींव उपलब्ध है, जिस पर दोनों देशों के संबंध और अधिक विकसित हो सकते हैं।

साथ ही, नई परिस्थितियों में भारत और ब्रिटेन को यह समझना चाहिये कि अपने बड़े और व्यापक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘नई परिस्थितियों में भारत और ब्रिटेन को यह समझना चाहिये कि अपने बड़े और व्यापक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये दोनों को एक-दूसरे की आवश्यकता है।’ चर्चा कीजिये।

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