भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ | 17 Jan 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ और उसके विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
जनसंचार, वैश्विक व्यापार और पर्यटन के मौजूदा दौर में ‘सॉफ्ट पॉवर’ की अवधारणा ने विश्व के विभिन्न देशों की विदेश नीति में विशिष्ट स्थान हासिल कर लिया है। अधिक-से-अधिक ‘पॉवर’ की तलाश में प्राचीन काल से ही युद्ध लड़े जा रहे हैं, किंतु समय के साथ ‘पॉवर’ के स्वरूप और मायने में परिवर्तन आया है। अब ‘हार्ड पॉवर’ के स्थान पर ‘सॉफ्ट पॉवर’ के प्रयोग को अधिक सहूलियत भरा माना जाता है। भारत अपनी बौद्धिक व सांस्कृतिक शक्ति अर्थात् ‘सॉफ्ट पॉवर’ का प्रयोग तब से कर रहा है, जब से राजनीतिक विशेषज्ञों ने इस अवधारणा का प्रतिपादन भी नहीं किया था। बीते कुछ समय में भारत ने अपनी ‘सॉफ्ट पॉवर’ के प्रयोग की रणनीति काफी व्यवस्थित की है और एक रणनीतिक उपकरण के रूप में इसका प्रयोग करने में सक्षम रहा है। ऐसे में ‘सॉफ्ट पॉवर’ का अध्ययन करते हुए यह जानना आवश्यक है कि इसने भारत की विदेश नीति को आकार देने में किस प्रकार की भूमिका निभाई है।
‘सॉफ्ट पॉवर’ की अवधारणा
- ‘सॉफ्ट पॉवर’ शब्द का प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में किया जाता है जिसके तहत कोई राज्य परोक्ष रूप से सांस्कृतिक अथवा वैचारिक साधनों के माध्यम से किसी अन्य देश के व्यवहार अथवा हितों को प्रभावित करता है।
- इसमें आक्रामक नीतियों या मौद्रिक प्रभाव का उपयोग किये बिना अन्य राज्यों को प्रभावित करने का प्रयास किया जाता है।
- ‘सॉफ्ट पॉवर’ की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग अमेरिका के प्रसिद्ध राजनीतिक विशेषज्ञ जोसेफ न्ये (Juseph Nye) द्वारा किया गया था।
- जहाँ एक ओर पारंपरिक ‘हार्ड पॉवर’ राज्य के सैन्य और आर्थिक संसाधनों पर निर्भर करती है, वहीं ‘सॉफ्ट पॉवर’ अनुनय के आधार पर कार्य करती है, जिसका लक्ष्य देश के 'आकर्षण' को बढ़ाना होता है।
- ‘सॉफ्ट पॉवर’ ज़्यादातर अमूर्त चीजों जैसे- योग, बौद्ध धर्म, सिनेमा, संगीत, आध्यात्मिकता आदि पर आधारित होती है।
- ‘सॉफ्ट पॉवर’ की अवधारणा प्रस्तुत करने वाले जोसेफ न्ये के अनुसार, ‘सॉफ्ट पॉवर’ किसी भी देश के तीन प्रमुख संसाधनों- संस्कृति, राजनीतिक मूल्य और विदेश नीति पर निर्भर करती है।
- मौजूदा समय में अधिकांश देश ‘सॉफ्ट पॉवर’ और ‘हार्ड पॉवर’ के संयोजन का प्रयोग करते हैं, जिसे राजनीतिक विश्लेषकों ने ‘स्मार्ट पॉवर’ की संज्ञा दी है।
- हाल के कुछ वर्षों में भारत ने भी ‘स्मार्ट पॉवर’ के प्रयोग पर बल दिया है, परंतु इसमें ‘सॉफ्ट पॉवर’ पर ही अधिक ध्यान दिया गया है।
‘सॉफ्ट पॉवर’ के उदाहरण
- चीन का ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल एक ‘सॉफ्ट पॉवर’ के प्रयोग का सबसे अच्छा उदाहरण है, जिसका उद्देश्य विकास के नाम पर छोटे देशों को चीन पर निर्भर बनाना है ताकि वे चीन की नीतियों का समर्थन करें।
- विदेशों खासकर अमेरिका में रहने वाले भारतीयों ने एक सकारात्मक माहौल के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की जिसके कारण अमेरिका भारत के साथ परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर करने को बाध्य हो गया।
‘सॉफ्ट पॉवर’ का महत्त्व
- अनुनय और आकर्षण का प्रयोग कर सॉफ्ट पॉवर प्रतिस्पर्द्धा या संघर्ष के बिना अन्य राष्ट्रों के व्यवहार में परिवर्तन को संभव बनाता है।
- सॉफ्ट पॉवर की नीति के अंतर्गत विभिन्न देशों के मध्य सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे यह संबंधों को मजबूत कर विकास में योगदान करती है जबकि हार्ड पॉवर नीति में एक तरफा कार्रवाई, सैन्य क्षमता को बढ़ाना जैसे कदमों के कारण यह अत्यधिक महँगी, कठिन एवं चुनौतिपूर्ण हो गई है।
- ‘सॉफ्ट पॉवर’ में व्यापक स्तर पर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को प्रभावित करने की क्षमता होती है।
- प्राचीन काल में भी कौटिल्य और कामंदक जैसे विद्वानों ने राज्य के मामलों में सफलता हासिल करने के लिये ‘सॉफ्ट पॉवर’ के प्रयोग की वकालत की थी।
- ‘हार्ड पॉवर’ की अपेक्षा ‘सॉफ्ट पॉवर’ नीति में संसाधनों का प्रयोग लागत प्रभावी तरीके से हो सकता है। डिजिटल क्रांति के वर्तमान युग में राज्यों के बीच संपर्क एवं सद्भाव का महत्त्व बढ़ता जा रहा है, इस परिप्रेक्ष्य में ‘सॉफ्ट पॉवर’ रणनीतियाँ ही उचित मानी जा रही हैं।
‘सॉफ्ट पॉवर’ बनाम ‘हार्ड पॉवर’
जहाँ एक ओर ‘सॉफ्ट पॉवर’ का अर्थ बिना संघर्ष या शक्ति प्रयोग के किसी के व्यवहार में परिवर्तन करने से है, जबकि ‘हार्ड पॉवर’ में सैन्य या आर्थिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए किसी के व्यवहार में परिवर्तन की वकालत की जाती है। ‘सॉफ्ट पॉवर’ की अवधारणा का महत्त्व शीत युद्ध (1945-1991) के पश्चात् काफी अधिक बढ़ गया, जबकि ‘हार्ड पॉवर’ का प्रयोग काफी लंबे समय से चलता आ रहा है। ‘हार्ड पॉवर’ मुख्यतः हथियारों और प्रतिबंधों पर निर्भर करती है, जबकि ‘सॉफ्ट पॉवर’ सांस्कृतिक गतिविधियों, अध्यात्म तथा योग जैसी अमूर्त चीज़ों पर निर्भर करती है।
भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ कूटनीति
- भारत में ‘सॉफ्ट पॉवर’ प्राचीन काल से ही कूटनीति का एक प्रमुख उपकरण रहा है और इतिहास में हमें इसके प्रयोग के कई उदाहरण देखने को मिले हैं।
- भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का विश्वास था कि भारत वैश्विक मामलों में एक बढ़ती और लाभकारी भूमिका निभाने के लिये बाध्य है। उन्होंने एक ऐसी कूटनीति का विकास किया जो ‘हार्ड पॉवर’ के सैन्य और आर्थिक कारकों द्वारा समर्थित नहीं थी।
- इसका सबसे मुख्य कारण यही था कि उन्हें और संपूर्ण देश को गाँधी के अहिंसा के मार्ग पर गर्व था, जिसके माध्यम से हमने आज़ादी प्राप्त की थी।
- भारत के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने वर्ष 1996 में बतौर विदेश मंत्री ‘गुजराल सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया था, जिसे भारत की विदेश नीति में ‘सॉफ्ट पॉवर’ का प्रमुख उदाहरण माना जाता है।
- इस सिद्धांत के अनुसार, भारत को दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा देश होने के नाते अन्य एशियाई देशों जैसे- मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और भूटान आदि के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाने होंगे।
- मौजूदा समय में भारत विदेशों में अपनी छवि को बढ़ाने के लिये अपने ‘सॉफ्ट पॉवर’ संसाधनों का उपयोग करने की दिशा में एक रणनीतिक दृष्टिकोण लेता दिख रहा है।
- आज बॉलीवुड, सूफी संगीत और योग जैसी तमाम चीज़े जो भारतीय संस्कृति का हिस्सा हैं, विश्व के विभिन्न देशों तक पहुँच गई हैं। भारत की आध्यात्मिकता, योग, दर्शन, धर्म आदि के साथ-साथ अहिंसा, लोकतांत्रिक विचारों आदि ने भी वैश्विक समुदाय को आकर्षित किया है।
- भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ कूटनीति में शामिल हैं: आयुर्वेद, बौद्ध धर्म, क्रिकेट, भारतीय प्रवासी, बॉलीवुड, भारतीय भोजन, गांधीवादी आदर्श और योग आदि।
भारत की ‘सॉफ्ट पॉवर’ कूटनीति की चुनौतियाँ
- भारत में 30 से अधिक बिलियन-डॉलर के सफल स्टार्टअप हैं, किंतु इसके बावजूद भी देश में डिजिटल पहुँच काफी कम है और लाखों लोग बुनियादी डिजिटल प्रोद्योगिकी के जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
- भारत में यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों की संख्या काफी अधिक है, परंतु अभी भी देश का पर्यटन क्षेत्र कुछ खास विकास नहीं कर पाया है। यह स्थिति हमें अपनी पर्यटन नीति पर गंभीरता से विचार करने के लिये प्रेरित करती है।
- सांस्कृतिक विकास के लिये बुनियादी ढाँचे की कमी की समस्या भी देश की ‘सॉफ्ट पॉवर’ कूटनीति की एक बड़ी चुनौती है।
- भारत सांस्कृतिक कूटनीति में निवेश की कमी, भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, शहरी क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे की कमी और गंभीर प्रदूषण जैसी समस्याओं का सामना कर रहा है।
‘सॉफ्ट पॉवर’ कूटनीति की दिशा में भारत के प्रयास
- बीते कुछ समय में सरकार ने विभिन्न देशों में मौजूद भारतीय प्रवासियों से जुड़ने के लिये कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
- यह भारत के लिये गर्व की बात है कि दुनिया की शीर्ष तीन सबसे बड़ी कंपनियों के CEO भारतीय मूल के हैं।
- साथ ही सरकार वैश्विक पटल पर योग को भारतीय विरासत के रूप में प्रस्तुत करने में सफल रही है। ज्ञात हो कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भारत सरकार के आग्रह पर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी है।
- बौद्ध धर्म पूर्वी एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ जुड़ने के लिये एक महत्त्वपूर्ण कड़ी रहा है। देश में बौद्ध धर्म से संबंधित पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने वर्ष 2014 में बौद्ध सर्किट के विकास की भी घोषणा की थी।
- रूस और अन्य पड़ोसियों के लिये लाइन ऑफ क्रेडिट (LOC) की व्यवस्था ने भारत की सहयोगी देशों के साथ अपने गठबंधन को मज़बूत करने में मदद की है।
आगे की राह
बढ़ती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था में भारत को खुद को स्थापित करने की आवश्यकता है। चूँकि ‘हार्ड पॉवर’ न तो भारत के नज़रिये से सही है और न ही उसे एक सीमा से अधिक उपयोग नहीं किया जा सकता है, इसलिये ‘सॉफ्ट पॉवर’ ही भारत को वैश्विक पटल पर अपना स्थान हासिल करने में मदद कर सकती है। अतः आवश्यक है कि भारत अपनी विदेश नीति में ‘सॉफ्ट पॉवर’ को उचित स्थान दे और और ‘स्मार्ट पॉवर’ का प्रयोग करते हुए वैश्विक जगत में अपनी एक नई पहचान स्थापित करे।
प्रश्न: ‘सॉफ्ट पॉवर’ की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए भारत द्वारा ‘सॉफ्ट पॉवर’ कूटनीति की दिशा में उठाए गए विभिन्न कदमों पर चर्चा कीजिये।