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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय खिलौना क्षेत्र की विकास यात्रा

  • 02 Jun 2023
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 31/05/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Unboxing the ‘export turnaround’ in India’s toy story’’ पर आधारित है। इसमें भारतीय खिलौना उद्योग और शुद्ध आयातक से शुद्ध निर्यातक के रूप में उभरने की इसकी यात्रा के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय खिलौना कार्य योजना, टॉयकैथॉन, मेक इन इंडिया

मेन्स के लिये:

भारतीय खिलौना क्षेत्र की विकास यात्रा: महत्त्व, हाल के घटनाक्रम, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह 

भारत दशकों होने वाली आयात की आवश्यकता को समाप्त करते हुए वर्ष 2020-21 और 2021-22 के दौरान खिलौनों का शुद्ध निर्यातक बन गया है। भारत में पिछले 3 वर्षों में खिलौनों के आयात में 70% की कमी आई है जबकि इसके निर्यात में 61% की वृद्धि हुई है।

आधिकारिक प्रेस विज्ञप्तियों में इस उपलब्धि का श्रेय व्यापक रूप से वर्ष 2014 में शुरू की गई ‘मेक इन इंडिया’ पहल और संबंधित नीतियों को दिया गया है। इसके अलावा वर्ष 2020 में प्रधानमंत्री ने कथित रूप से अपने टॉक शो ‘मन की बात’ में भी खिलौना निर्माण को बढ़ावा देने की बात कही थी।

यद्यपि यह सच है कि चीन निर्मित खिलौनों पर भारत की निर्भरता कम हुई है और हाल के महीनों में भारतीय खिलौनों के निर्यात में सुधार हुआ है लेकिन भारत से होने वाला निर्यात अभी भी काफी निम्न स्तर पर है और चीन की तुलना में यह लगभग 200 गुना कम है।

भारत के खिलौना उद्योग की वर्तमान स्थिति: 

  • भारत का खिलौना उद्योग अत्यंत छोटे आकार का है। वैश्विक खिलौना व्यापार में भारत की हिस्सेदारी लगभग नगण्य ही है जहाँ इसकी निर्यात हिस्सेदरी मात्र 0.5 प्रतिशत ही है।
  • वर्ष 2015-16 में इस उद्योग में लगभग 15,000 उद्यम या प्रतिष्ठान सक्रिय थे जिनके द्वारा 1688 करोड़ रुपए मूल्य के खिलौनों का उत्पादन होता था और इसमें 35,000 कामगार नियोजित थे।
  • कुल कारखानों और उद्यमों में पंजीकृत कारखानों (जो नियमित रूप से 10 या अधिक कामगारों को रोज़गार देते हैं) की हिस्सेदारी महज 1% थी, जिसमें इस क्षेत्र से संबंधित लगभग 20% श्रमिक नियोजित थे और इनका उत्पादन मूल्य (value of output) कुल मूल्य का लगभग 77% था।
  • वर्ष 2000 से 2016 के बीच के डेढ़ दशक के दौरान खिलौना उद्योग का उत्पादन शुद्ध रूप से आधा रह जाने के साथ इसमें रोज़गार की हानि हुई थी।
  • कुछ समय पहले तक घरेलू बिक्री में आयात की हिस्सेदारी 80% तक थी। वर्ष 2000 और 2018-19 के बीच निर्यात की तुलना में आयात लगभग तीन गुना बढ़ गया था।
  • पूर्व में लगभग 80 प्रतिशत खिलौनों का आयात किया जाता था, जिसके कारण भारत से विदेश में करोड़ों रुपए का स्थानांतरण होता था।
  • FICCI और KPMG की एक संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार, भारत का खिलौना उद्योग वर्ष 2019-20 के 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य से दोगुना होकर वर्ष 2024-25 तक 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक के मूल्य का हो सकता है।

भारत के खिलौना उद्योग के विकास हेतु प्रेरक तत्त्व:

  • व्यापक उपभोक्ता आधार: भारत में 0-14 आयु वर्ग के बच्चों की संख्या काफी अधिक (कुल जनसंख्या का लगभग 26.62% ) है। इससे देश में खिलौनों और गेम्स (games) की मांग को प्रोत्साहन मिल रहा है।
  • उपभोग आय में वृद्धि होना: भारत की GDP और मध्यम वर्ग की आबादी में होने वाली वृद्धि से उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति में वृद्धि हुई है, जिससे अब लोग अपने बच्चों के लिये अधिक खिलौने खरीद सकते हैं।
  • ई-कॉमर्स: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और डिजिटल भुगतान के प्रसार ने उपभोक्ताओं की खिलौनों एवं गेम्स तक पहुँच को आसान बना दिया है। ई-कॉमर्स के द्वारा खिलौना निर्माताओं को खुदरा विक्रेताओं तक पहुँचने में आसानी होने के साथ परिचालन लागत में कमी को प्रोत्साहन मिल रहा है।
  • सरकारी सहायता प्राप्त होना: भारत सरकार ने घरेलू खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने के लिये कई पहलें शुरू की हैं जैसे कि ‘वोकल फॉर लोकल टॉयज कैंपेन’, टॉयकैथॉन (Toycathon), आत्मनिर्भर टॉयज इनोवेशन चैलेंज आदि। इन पहलों का उद्देश्य भारतीय खिलौनों के नवाचार, गुणवत्ता, सुरक्षा एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना और आयात पर निर्भरता को कम करना है।
  • लोगों की पसंद में परिवर्तन आना: ‘टॉय एसोसिएशन’ की वर्ष 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार 67% माता-पिता छोटे बच्चों में विज्ञान एवं गणित के विकास को प्रोत्साहित करने के अपने प्राथमिक तरीके के रूप में STEM पर केंद्रित खिलौनों पर विश्वास करते हैं। पारंपरिक खिलौनों से आधुनिक एवं हाई-टेक इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों की ओर बदलती पसंद से बाज़ार की वृद्धि को प्रोत्साहन मिल रहा है।
  • वैश्विक प्रवृत्ति: खिलौना क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर प्रोत्साहन मिल रहा है, जहाँ निर्माता नए बाज़ारों की खोज कर रहे हैं जिससे मध्य-पूर्व एवं अफ्रीकी देशों में निर्यात को बढ़ावा मिल रहा है। खिलौनों के निर्यात में भारत की हाल की प्रगति मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका के कारण हुई है जिसके लिये भारत खिलौनों के 9वें बड़े स्रोत के रूप में उभरा है।
  • संरक्षणवाद: भारत का खिलौनों का शुद्ध निर्यातक बनना मुख्य रूप से बढ़ते संरक्षणवाद (Protectionism) और कुछ मायनों में संभवतः घरेलू क्षमताओं के विस्तार के कारण है। ‘वोकल फॉर लोकल’ के आह्वान का इस वृद्धि पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।

खिलौना उद्योग का महत्त्व: 

  • बाल विकास: खिलौने बच्चों के संज्ञानात्मक, शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास में सहायक होते हैं।
  • मनोरंजन: खिलौनों से बच्चों के लिए मनोरंजक और कल्पनाशील खेल उपलब्ध होते हैं।
  • शिक्षण और अधिगम/लर्निंग: खिलौने लर्निंग को सुगम बनाने के साथ बाल-जिज्ञासा और आवश्यक कौशल को बढ़ावा देते हैं।
  • आर्थिक प्रभाव: खिलौना उद्योग से राजस्व एवं रोज़गार का सृजन होने के साथ संबंधित व्यवसायों को समर्थन प्राप्त होता है।
  • नवाचार और प्रौद्योगिकी: खिलौनों से नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
  • सांस्कृतिक प्रभाव: खिलौने सांस्कृतिक मूल्यों एवं प्रवृत्तियों को परिलक्षित करने के साथ विविधता को बढ़ावा देते हैं।

खिलौना उद्योग के विकास हेतु सरकारी पहल:

  • स्टार्ट-अप्स को बढ़ावा देना: सरकार ने स्टार्ट-अप उद्यमियों से खिलौना क्षेत्र में विस्तार करने का आह्वान किया है। सरकार ने औद्योगिकी क्षेत्र से स्थानीय खिलौनों का समर्थन करने और विदेशी वस्तुओं पर निर्भरता कम करने का भी आग्रह किया है। भारतीय लोकाचार एवं मूल्यों को प्रतिबिंबित करने के लिये ऑनलाइन गेम सहित खिलौना प्रौद्योगिकी एवं डिज़ाइन में नवाचार के लिये शिक्षण संस्थानों से छात्रों के लिये हैकेथॉन (hackathons) का आयोजन करने का भी आह्वान किया गया है।
  • आयात शुल्क में वृद्धि: सरकार ने वर्ष 2020 में खिलौनों और उसके घटकों पर आयात शुल्क को 20% से बढ़ाकर 60% कर दिया। इन उत्पादों के आयात में कटौती करने तथा घरेलू विनिर्माण गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसे और बढ़ाकर 70% कर दिया गया है।
  • अनिवार्य गुणवत्ता प्रमाणन: सरकार ने स्वदेशी उद्योग के पुनरुद्धार के लिये खिलौना गुणवत्ता प्रमाणन को अनिवार्यकर दिया है। सरकार ने 1 सितंबर, 2020 से आयातित खिलौनों के लिये गुणवत्ता नियंत्रण लागू करना भी शुरू कर दिया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल मानकों के अनुरूप उत्पाद ही देश में प्रवेश कर सकें।
  • राष्ट्रीय खिलौना कार्य योजना: घरेलू खिलौना उद्योग को बढ़ावा देने और भारत को वैश्विक खिलौना केंद्र के रूप में विकसित करने के लिये भारत सरकार द्वारा यह पहल की गई है। इसमें 15 मंत्रालयों को शामिल करते हुए विभिन्न हस्तक्षेपों (जैसे खिलौना उत्पादन क्लस्टर स्थापित करना, विनिर्माण एवं निर्यात को प्रोत्साहित करने के लिये योजनाएँ शुरू करना, अनुसंधान एवं विकास और गुणवत्ता मानकों को मजबूत करना, शिक्षा के साथ खिलौनों को एकीकृत करना तथा खिलौना मेले एवं प्रदर्शनियों का आयोजन करना) पर बल दिया गया है।
  • पारंपरिक उद्योगों के उन्‍नयन एवं पुनर्निर्माण हेतु कोष की योजना (Scheme of Fund for Regeneration of Traditional Industries- SFURTI): सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (MSME) ने इस योजना के तहत 19 खिलौना क्लस्टर्स को मंज़ूरी दी है।

भारतीय खिलौना उद्योग के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ: 

  • कच्चे माल की प्राप्ति के लिये विदेशों पर निर्भरता:भारतीय विनिर्माता बोर्ड गेम, सॉफ्ट टॉयज एवं प्लास्टिक के खिलौने और पज़ल्स आदि के निर्माण में विशेषज्ञता रखते हैं। कंपनियों को इन खिलौनों के निर्माण के लिये दक्षिण कोरिया और जापान से सामग्री आयात करनी पड़ती है।
  • प्रौद्योगिकी का अभाव: यह भारतीय खिलौना उद्योग के लिये बाधक है। अधिकांश घरेलू विनिर्माता पुरानी तकनीक और मशीनरी का उपयोग करते हैं, जिससे खिलौनों की गुणवत्ता एवं डिज़ाइन प्रभावित होती है।
  • करों की उच्च दरें: खिलौनों पर उच्च जीएसटी दरें भारत में खिलौना उद्योग के लिये एक अन्य चुनौती है। वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर 18% जबकि गैर-इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों पर 12% जीएसटी अधिरोपित किया जाता है।
  • अवसंरचनात्मक संरचना का कमज़ोर होना: कमज़ोर अवसंरचना और एंड-टू-एंड विनिर्माण सुविधाओं का अभाव होने से खिलौना क्षेत्र के विकास में बाधा उत्पन्न होती है। भारत में खिलौना उद्योग के लिये पर्याप्त परीक्षण प्रयोगशालाओं, खिलौना पार्कों, संकुलों और लॉजिस्टिक्स समर्थन का अभाव है।
  • सस्ते विकल्प उपलब्ध होना: चीन जैसे देशों से सस्ते और निम्न गुणवत्तापूर्ण आयात से उत्पन्न प्रतिस्पर्द्धा भारतीय खिलौना उद्योग के लिये एक अन्य चुनौती है। भारत के खिलौना आयात में चीन की 80% हिस्सेदारी है, जिससे घरेलू खिलौना निर्माताओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • इस क्षेत्र का असंगठित होना:भारतीय खिलौना उद्योग अभी भी व्यापक (लगभग 90%) रूप से असंगठित है जिससे अधिकतम लाभ प्राप्त करना अत्यंत कठिन हो जाता है।

आगे की राह:

  • प्रौद्योगिकी और कुशल श्रम के माध्यम से उच्च-गुणवत्तापूर्ण, प्रतिस्पर्द्धी खिलौनों हेतु विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना।
  • समर्थन, कौशल विकास और वित्तीय सहायता के साथ लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) को बढ़ावा देना।
  • नवाचार को बढ़ावा देने और बाजार विस्तार हेतु सहयोग एवं भागीदारी को बढ़ावा देना।
  • उपभोक्ताओं की विश्वास बहाली हेतु कड़े सुरक्षा एवं गुणवत्ता मानकों पर बल देना।
  • खिलौनों की बिक्री बढ़ाने तथा ऑनलाइन बाज़ारों में इनके प्रसार हेतु डिजिटल परिवर्तन को अपनाना।
  • समग्र बाल विकास के लिये खिलौना पुस्तकालयों को प्रोत्साहित करना और खिलौनों को शिक्षण व्यवस्था के साथ एकीकृत करना।
  • उत्पाद पोर्टफोलियो में विविधता लाना तथा उपभोक्ताओं की बदलती प्राथमिकताओं/पसंदों एवं आवश्यकताओं को पूरा करना।इसमें शैक्षिक, डिजिटल, पारंपरिक और अनुकूलित खिलौनों का विकास करना शामिल हो सकता है जो विभिन्न आयु समूहों एवं वर्गों को आकर्षित करते हैं।
  • खिलौना निर्माण में पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाना, जैसे कि अपशिष्ट एवं पुनर्नवीनीकृत सामग्री का उपयोग करना, पर्यावरण अनुकूल पैकेजिंग करना और री-यूज़ एवं री-शेयर मॉडल को बढ़ावा देना।

अभ्यास प्रश्न: भारत के समक्ष खिलौना निर्माण और निर्यात के संदर्भ में एक वैश्विक केंद्र बनने की वृहत क्षमता मौजूद है। भारत के खिलौना उद्योग के समक्ष विद्यमान चुनौतियों की चर्चा करते हुए उन्हें दूर करने के उपाय सुझाइये।

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