भारत की शरणार्थी नीति | 12 Apr 2021

यह लेख 10/04/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित एडिटोरियल “India does have a refugee problem” पर आधारित है। इसमें भारत की शरणार्थी नीति से संबंधित मुद्दों का विश्लेषण किया गया है।

संदर्भ 

हाल ही में म्याँमार में हुए सैन्य तख्तापलट और उसके बाद उत्पन्न राजनीतिक परिस्थितियों के परिणामस्वरूप भारत में अवैध प्रवासियों की संख्या में वृद्धि हुई है। भारत के समक्ष म्याँमार के रोहिंग्या शरणार्थियों का मुद्दा पहले से ही विद्यमान है ऐसे में वर्तमान राजनीतिक संकट के कारण म्याँमार से आने वाले अवैध प्रवासियों का मुद्दा निश्चित तौर पर चिंता का विषय है।

ऐतिहासिक रूप से भारत में कई पड़ोसी देशों के शरणार्थियों आए हैं। शरणार्थी राज्य के लिये एक समस्या बन जाते हैं क्योंकि इससे देश के संसाधनों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है साथ ही लंबी अवधि में जनसांख्यिकीय परिवर्तन में वृद्धि कर सकता है इसके अतिरिक्त सुरक्षा जोखिम भी उत्पन्न हो सकता है।

हालाँकि शरणार्थियों की देखभाल मानवाधिकार प्रतिमान का मुख्य घटक है। इसके अलावा किसी भी स्थिति में भारत में शरणार्थी प्रवास के भू-राजनीतिक, आर्थिक, जातीय और धार्मिक संदर्भों को देखते हुए इसके जल्द समाप्ति की संभावना नहीं दिख रही है।

इसलिये भारत में शरणार्थी संरक्षण के मुद्दे को संदर्भित और संबोधित करने तथा उचित कानूनी एवं संस्थागत उपायों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता है।

भारत की शरणार्थी संबंधी नीति

  • भारत में शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिये विशिष्ट कानून का अभाव है इसके बावजूद उनकी संख्या में लगातार वृद्धि हुई है।
  • विदेशी अधिनियम, 1946 शरणार्थियों से संबंधित एकीकृत समस्याओं के  समाधान करने में विफल रहता है। यह केंद्र सरकार को किसी भी विदेशी नागरिक को निर्वासित करने के लिये अपार शक्ति भी देता है।
  • इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 में मुसलमानों को बाहर रखा गया है और यह केवल हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बांग्लादेश, पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान से बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करता है।
  • इसके अलावा भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज़ 1967 प्रोटोकॉल का पक्षकार नहीं है।
  • इसके वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और 1967 प्रोटोकॉल के पक्ष में नहीं होने के बावजूद भारत में शरणार्थियों बहुत बड़ी निवास करती है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।
  • इसके अलावा भारत का संविधान भी मनुष्यों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा का सम्मान करता है।
    • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम स्टेट ऑफ अरुणाचल प्रदेश (1996) में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि "सभी अधिकार नागरिकों के लिये उपलब्ध हैं जबकि विदेशी नागरिकों सहित व्यक्तियों को समानता का अधिकार और जीवन का अधिकार उपलब्ध हैं।"

वर्ष 1951 शरणार्थी सम्मेलन में हस्ताक्षर नहीं करने के लिये भारत का तर्क

  • वर्ष 1951 के सम्मेलन के अनुसार, शरणार्थियों की परिभाषा केवल नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के उल्लंघन से संबंधित है लेकिन व्यक्तियों के आर्थिक अधिकारों से संबंधित नहीं है।
    • उदाहरण के लिये सम्मेलन की परिभाषा के तहत एक ऐसे व्यक्ति पर विचार किया जा सकता है जो राजनैतिक अधिकारों से वंचित है लेकिन आर्थिक अधिकारों से वंचित होने की स्थिति में उस पर विचार नहीं किया जाता है।
    • यदि शरणार्थी की परिभाषा में आर्थिक अधिकारों के उल्लंघन को शामिल किया जाता तो यह स्पष्ट रूप से दुनिया पर एक बड़ा आर्थिक बोझ बढ़ा देगा।
  • दूसरी ओर यह तर्क कि अगर यह प्रावधान दक्षिण एशियाई संदर्भ में प्रयुक्त किया जाता है तो भारत के लिये भी आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक समस्या उत्पन्न हो सकती है।

भारत की शरणार्थी नीति से संबद्ध चुनौतियाँ

  • शरणार्थी बनाम अप्रवासी: हाल के दिनों में पड़ोसी देशों के कई लोग अवैध रूप से भारत में राज्य उत्पीड़न के कारण नहीं बल्कि भारत में बेहतर आर्थिक अवसरों की तलाश में आते हैं।
    • जबकि वास्तविकता यह है कि देश में ज्यादातर बहस शरणार्थियों के बजाय अवैध प्रवासियों को लेकर होती है ऐसी स्थिति में सामान्यतः दोनों श्रेणियों को एकीकृत कर दिया जाता है।
    • इसके कारण इन मुद्दों से निपटने के लिये नीतियों और उपायों में स्पष्टता के साथ-साथ नीतिगत उपयोगिता की कमी को दूर करना चाहिये।
  • फ्रेमवर्क में अस्पष्टता: अवैध अप्रवासियों और शरणार्थियों के प्रति हमारी नीतियों का मुख्य कारण यह है कि भारतीय कानून के अनुसार, दोनों श्रेणियों के लोगों को एक समान माना जाता है और इन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 के तहत कवर किया जाता है।
  • तदर्थवाद: इस तरह के कानूनी ढाँचे की अनुपस्थिति भी नीति अस्पष्टता की ओर ले जाती है जिससे भारत की शरणार्थी नीति को मुख्य रूप से तदर्थवाद द्वारा ही निर्देशित की जाती है।
    • तदर्थ उपाय सरकार को कार्यालय में ‘किस तरह के शरणार्थियों’ को राजनीतिक या भू राजनीतिक कारणों से यह स्वीकार करने में सक्षम बनाते हैं।
    • इससे भेदभावपूर्ण कार्रवाई होती है जो एक प्रकार मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है।
  • भेदभावपूर्ण CAA: भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित कर दिया है। CAA भारत के पड़ोस में धार्मिक अल्पसंख्यकों और राज्य द्वारा प्रताड़ित लोगों को नागरिकता प्रदान करने की परिकल्पना करता है।
    • हालाँकि CAA मुख्य रूप से शरणार्थी समस्या का कारण नहीं है क्योंकि इसकी गहरी भेदभावपूर्ण प्रकृति है तथा एक विशेष धर्म को इसके दायरे में शामिल नहीं किया गया है।
    • इसके अलावा कई राजनीतिक विश्लेषकों ने CAA को शरणार्थी संरक्षण से नहीं बल्कि शरणार्थियों से बचने के अधिनियम के रूप में स्वीकार्य किया है।

निष्कर्ष

वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और 1967 प्रोटोकॉल के पक्ष में न होने के बावजूद इसके भारत दुनिया में शरणार्थियों के सबसे बड़े प्राप्तकर्ताओं में से एक रहा है। हालाँकि यदि भारत में शरणार्थियों के संबंध में घरेलू कानून होता तो वह पड़ोसी देशों में किसी भी दमनकारी सरकार को उनके नागरिकों पर अत्याचार करने और उनके भारत में प्रवास की संभावना को मज़बूत कर सकता था।

प्रश्न: भारत में शरणार्थी संरक्षण के मुद्दे को लाक्षणिक दृष्टि से संबोधित करने और उचित कानूनी तथा संस्थागत उपायों को लागू करने की तत्काल आवश्यकता है। चर्चा कीजिये।