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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के विदेश संबंधों को मिला और विस्तार

  • 07 Feb 2019
  • 19 min read

संदर्भ

भारत की विदेश नीति ऐसी है जिसमें वैश्विक संतुलन कायम रखते हुए सभी देशों से बेहतर संबंध बनाने पर ज़ोर दिया जाता है। भारत ने अपनी डाइनैमिक विदेश नीति के तहत हाल ही में विश्व के कई देशों के साथ समझौतों और सहमति-पत्रों को मंज़ूरी दी है। ये समझौते वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका को और विस्तार देने का काम करेंगे।

1. भारत-नॉर्वे महासागर वार्ता समझौता

  • इस समझौते से महासागरीय अर्थव्‍यवस्‍था के विकास से संबंधित परस्‍पर हित के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा मिलेगा।
  • महासागरीय अर्थव्‍यवस्‍था के क्षेत्र में नॉर्वे विश्‍वभर में अग्रणी है और इसके पास मछली-पालन, हाइड्रोकार्बन, अक्षय ऊर्जा, समुद्री संसाधनों के समुचित दोहन और समुद्री परिवहन जैसे क्षेत्रों में अत्‍याधुनिक प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता है।
  • इस समझौते से संयुक्‍त कार्यबल (Joint Task Force) कार्यक्रम के तहत सभी हितधारकों के परस्‍पर लाभ के लिये, हाइड्रोकार्बंस और अन्‍य समुद्री संसाधनों के दोहन में मदद मिलेगी।
  • बंदरगाहों के प्रबंधन और पर्यटन के विकास जैसे क्षेत्रों में सहयोग के लिये अवसर तैयार करने में भी आसानी रहेगी।
  • मछली-पालन और एक्‍वाकल्‍चर के क्षेत्र में नई प्रौद्योगिकियों को शामिल करके खाद्य सुरक्षा के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने में इस समझौते का योगदान होगा।
  • इससे दोनों देशों के बीच लाभदायक उद्यमों से जुड़े कारोबारों के लिये एक मंच उपलब्‍ध होगा।
  • इसके परिणामस्‍वरूप वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्त्ता आर्कटिक क्षेत्र के संदर्भ में महासागरीय पारितंत्र के अध्‍ययन में भी सहयोग कर सकते हैं।

2. भारत-फिनलैंड जैव प्रौद्योगिकी समझौता

  • यह समझौता ज्ञापन महत्त्वाकांक्षी उद्योग-जन्य नवाचार और अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं को अनुसंधान विकास और नवाचार के व्यापक कार्य क्षेत्र में लागू करने और वित्तपोषण के लिये जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आपसी हितों के आधार पर सहयोग करने के लिये किया गया है।
  • यह समझौता दीर्घकालीन अनुसंधान, विकास और नवाचार सहयोग करने तथा भारतीय और फिनलैंड के संगठनों के मध्य सहयोग हेतु नेटवर्क स्थापित करने और उसे मज़बूत बनाने में सहायक होगा।
  • उच्च अंतर्राष्ट्रीय मानकों की ज़रूरत आधारित महत्त्वाकांक्षी संयुक्त परियोजनाओं के वित्तपोषण द्वारा दोनों देशों का उद्देश्य विश्व श्रेणी के नवाचारी लाभों को दोनों देशों तक पहुँचाने में सहायता करना है।
  • इससे दोनों देशों के वैज्ञानिकों, अनुसंधानकर्त्ताओं और उद्योग के मध्य ज्ञान को साझा करने और ज्ञान का सृजन करने में मदद मिलेगी।

आपसी हितों के आधार पर निम्नलिखित अनुसंधान क्षेत्रों की पहचान की गई है:

  • मिशन नवाचार- बायोफ्यूचर मंच, जैव ईंधन, जैव ऊर्जा, बायोमास आधारित उत्पाद
  • जैव प्रौद्योगिकी के पर्यावरणीय और ऊर्जा अनुप्रयोग
  • स्टार्ट-अप और प्रगतिशील कम्पनियों का व्यापार विकास
  • जीव विज्ञान में शिक्षा प्रौद्योगिकियां और खेल
  • जीव विज्ञान उद्योग के अन्य क्षेत्र

इस समझौते में आपसी हितों के आधार पर फिनलैंड और भारतीय संगठनों के बीच दीर्घकालीन अनुसंधान और विकास तथा नवाचार सहयोग को बढ़ावा देने पर सहमति दी गई है।

3. भारत-इंडोनेशिया बाह्य अंतरिक्ष अन्वेषण और उपयोग समझौता

  • यह रूपरेखा समझौता अंतरिक्ष विज्ञान, बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के उपयोग, पृथ्वी के सुदूर संवेदीकरण, इंडोनेशिया के बियाक (Biak) में बनाए गए समेकित टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड (TTC) केंद्र के परिचालन और रखरखाव में मददगार होगा।
  • भारतीय ग्राउंड स्टेशन की होस्टिंग, IRAMS स्टेशन की होस्टिंग, LAPAN निर्मित उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिये भी इससे सहायता मिलेगी।
  • ग्राउंड स्टेशनों के परस्पर उपयोग इत्यादि जैसे संभावित दिलचस्पी वाले क्षेत्रों में सहयोग करने में समर्थ बनाएगा।
  • यह समझौता इंडोनेशिया में इसरो का TTC केंद्र और IRAMS आईआरएमएस केंद्र की स्थापना करने में सहायक होगा।
  • इस समझौते से विशिष्ट कार्यकलापों के लिये प्रक्रियाओं के कार्यान्वयन को अंतिम रूप दिया जा सकेगा। इस समझौते के लक्ष्यों को अर्जित करने के उद्देश्‍य से एक संयुक्त कार्य बल का गठन किया जाएगा।
  • इस कार्यबल में अंतरिक्ष विभाग/इसरो, इंडोनेशियन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस के सदस्य शामिल होंगे। इस समझौते से भारत और इंडोनेशिया के बीच सहयोग और सुदृढ़ होगा।

गौरतलब है कि भारत और इंडोनेशिया पिछले दो दशकों से भी अधिक समय से अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग कर रहे हैं। इसरो ने अपने प्रक्षेपण यान और उपग्रह मिशन के लिये टेलीमेट्री ट्रैकिंग एंड कमांड (TTC) को समर्थन देने के लिये इंडोनेशिया के बियाक में ग्राउंड स्टेशन की स्थापना की है। वर्तमान में यह सहयोग 1997 एवं 2002 में हस्ताक्षरित एजेंसी स्तर (इसरो-इंडोनेशियन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस-LAPAN) के समझौतों के तहत आगे बढ़ाया जा रहा है। 
1997 के समझौता ज्ञापन के अनुसार, परिचालन, रखरखाव एवं उपयोग के अधिकार को बरकरार रखते हुए उपकरण के टाइटल को 5 वर्षों के बाद LAPAN को सुपुर्द किया जाना था। इसके मद्देनज़र सरकार के स्तर पर सहयोग को बढ़ाते हुए इसरो एवं LAPAN ने शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिये बाह्य अंतरिक्ष के अन्वेषण और उपयोग में सहयोग हेतु यह समझौता किया।

4. अफ्रीका में विकास संबंधी भारत-UAE सहयोग समझौता

  • इस MoU में दोनों देशों के बीच सहयोग की रूपरेखा तय करने का उल्‍लेख किया गया है, ताकि अफ्रीका में विकास साझेदारी परियोजनाओं और कार्यक्रमों को कार्यान्वित किया जा सके।
  • इस प्रस्‍ताव से भारत और अफ्रीकी देशों के बीच राजनीतिक एवं आर्थिक संबंधों को मजबूत करने में मदद मिलेगी और इसके साथ ही व्‍यापक सामरिक हितों की पूर्ति होगी।
  • इस MoU पर अबू धाबी में पिछले वर्ष विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और उनके UAE समकक्ष, शेख अब्दुल्ला बिन जायद अल नाहयान ने आर्थिक और तकनीकी सहयोग के लिये द्विपक्षीय संयुक्त आयोग के 12वें सत्र में हस्ताक्षर किये थे।

5. भारत-मालदीव कृषिगत व्‍यवसाय सुधार समझौता

  • इस समझौते के परिणामस्‍वरूप कृषि गणना, कृषिगत कारोबार, समन्वित कृषि प्रणाली, सिंचाई, उन्‍नत बीज, मृदा स्‍वास्‍थ्‍य प्रबंधन, अनुसंधान को प्रोत्साहन मिलेगा।
  • स्‍थानीय कृषिगत कारोबारों के क्षमता निर्माण, खाद्य सुरक्षा एवं पोषण के क्षेत्र में उद्यमियों की जानकारी बढ़ाने, जलवायु प्रतिरोधी कृषि प्रणाली विकसित करने में भी यह समझौता लाभकारी सिद्ध होगा।
  • कीटनाशक अवक्षेपों आदि के परीक्षण के लिये सुविधाएँ स्‍थापित करने आदि क्षेत्रों में सहयोग के लिये दोनों देशों के बीच परस्‍पर कार्य करने में भी इससे मदद मिलेगी।
  • समझौते के तहत सहयोग के लिये योजना तैयार करने, पक्षों द्वारा निर्धारित कार्यों को लागू करने और निर्धारित क्रियाकलापों के कार्यान्‍वयन के बारे में संकेत देने के लिये एक संयुक्‍त कार्य समूह गठित किया जाएगा।

6. भारत-ब्राज़ील पारंपरिक चिकित्‍सा प्रणालियाँ और होम्‍योपैथी सहयोग समझौता

  • इस MoU से चिकित्‍सा की पारंपरिक प्रणालियों के क्षेत्र में भारत और ब्राज़ील के बीच द्विपक्षीय सहयोग बढ़ेगा।
  • भारत में औषधीय पौधों सहित चिकित्‍सा की पारंपरिक प्रणालियां काफी विकसित हैं, जिनमें वैश्विक स्‍वास्‍थ्‍य परिदृश्‍य को ध्‍यान में रखते हुए अपार क्षमता है।
  • औषधीय पौधों पर आधारित अनगिनत स्‍वास्‍थ्‍य प्रणालियों और पारंपरिक चिकित्‍सा के उपयोग के लंबे इतिहास के साथ भारत और ब्राज़ील दोनों ही जैव विविधता के मामले में काफी समृद्ध हैं।
  • आयुर्वेद, योग और अन्‍य पारंपरिक प्रणालियाँ ब्राज़ील में भी लोकप्रिय हैं।

भारत और ब्राज़ील के बीच अत्‍यंत घनिष्‍ठ एवं बहुआयामी संबंध द्विपक्षीय स्‍तर के साथ-साथ ब्रिक्‍स, बेसिक, जी-20,  जी-4 एवं बीएसए जैसे बहुपक्षीय स्‍तर और इसके अलावा बहुपक्षीय संगठनों जैसे कि संयुक्‍त राष्‍ट्र, विश्‍व व्‍यापार संगठन, यूनेस्‍को और विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन में भी परिलक्षित होते हैं। यही नहीं, ब्राज़ील समूचे लैटिन अमेरिका और कैरिबियाई क्षेत्र में भारत के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण व्‍यापार साझेदारों में से एक है।

7. भारत-मलेशिया कंपनी सचिव सहयोग समझौता

  • इस समझौते का उद्देश्‍य दोनों देशों के कंपनी सचिवों के अभ्‍यास और सम्‍मान के स्‍तर को बढ़ाना तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में कंपनी सचिवों के आवागमन की बेहतर सुविधा प्रदान करना है।
  • यह समझौता भारत कंपनी सचिव संस्‍थान (ICSI) और मलेशियन एसोसिएशन ऑफ कंपनी सेक्रेटरीज़ (MACS) के बीच हुआ है।

ICSI संसद द्वारा पारित कंपनी सचिव अधिनियम, 1980 के अंतर्गत गठित एक वैधानिक निकाय है। इसका उद्देश्‍य भारत में कंपनी सचिव के पेशे को विकसित करना और इसका नियमन करना है। दूसरी तरफ MACS कंपनी सचिवों का एक निकाय है, जिसका उद्देश्‍य मलेशिया में कंपनी सचिवों की प्रतिष्‍ठा और कार्य कुशलता को बेहतर बनाना है।

8. भारत का नामीबिया और पनामा के साथ चुनाव प्रबंधन निकाय समझौता

  • भारत और इलेक्शन कमीशन ऑफ नामीबिया (ECN) तथा इलेक्शन ट्रिब्यूनल ऑफ पनामा (ETP) के बीच चुनाव प्रबंधन और प्रशासन के क्षेत्र में सहयोग के संबंध में यह समझौता हुआ है।
  • इस समझौता ज्ञापन में ऐसे मानक अनुच्छेद और धाराएँ शामिल हैं, जो मोटे तौर पर चुनाव प्रबंधन और प्रशासन के क्षेत्र में सहयोग को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हैं।
  • इनमें चुनाव प्रक्रिया के संगठनात्मक और तकनीकी विकास के बारे में जानकारी तथा अनुभव का आदान-प्रदान करना तथा सूचना का आदान-प्रदान करना शामिल है।
  • संस्थागत सुदृढ़ीकरण और क्षमता निर्माण करना, कार्मिकों को प्रशिक्षण देना, नियमित विचार-विमर्श आदि को बढ़ावा देना भी समझौते के उद्देश्यों में शामिल है।
  • यह समझौता ज्ञापन द्विपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देगा। इसका लक्ष्य ECN और ETP के लिये तकनीकी सहायता/क्षमता का निर्माण करना है।
  • यह चुनाव प्रबंधन और प्रशासन के क्षेत्र में सहयोग तथा उन देशों में चुनाव आयोजित कराने के स्तर तक सहायता उपलब्ध कराने की परिकल्पना करता है। इसके परिणामस्वरूप भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को बढ़ावा मिलेगा।

भारत का निर्वाचन आयोग कुछ देशों और एजेंसियों के साथ समझौतों के माध्यम से दुनियाभर में चुनाव से संबंधित मामलों और निर्वाचन प्रक्रियाओं में सहयोग को बढ़ावा देता है। भारत में निर्वाचन आयोग एक संवैधानिक निकाय है जो दुनिया में सबसे बड़े चुनावों का आयोजन करता है। निर्वाचन आयोग का यह उत्तरदायित्व है कि वह विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लगभग 85 करोड़ मतदाताओं वाले देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का आयोजन करे। भारत में लोकतंत्र की सफलता ने दुनिया भर की लगभग हर राजनीतिक व्यवस्था का ध्यान अपनी ओर खींचा है।

  • उत्कृष्टता हासिल करने के लिये चुनाव और उससे जुड़े मामलों में द्विपक्षीय संबंध कायम करने हेतु भारत के निर्वाचन आयोग को विदेशी चुनाव निकायों की ओर से प्रस्ताव मिलते रहते हैं।

9. भारत-उज्‍बेकिस्‍तान ई-प्रशासन द्विपक्षीय सहयोग समझौता

  • ई-प्रशासन के क्षेत्र में सहयोग तथा IT शिक्षा को बढ़ावा देना, विभिन्‍न क्षेत्रों के ई-प्रशासन उत्‍पादों/उपकरणों की शुरुआत करना तथा इनका कार्यान्‍वयन करना और डेटा केंद्रों का विकास करना आदि इस समझौते के उद्देश्‍यों में शामिल हैं।

भारत के इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का एक प्रमुख कार्य द्विपक्षीय तथा क्षेत्रीय नेटवर्क के तहत सूचना संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के उभरते क्षेत्रों में अंतर्राष्‍ट्रीय सहयोग को प्रोत्‍साहन प्रदान करना है। मंत्रालय ने चिन्हित क्षेत्रों में सूचना के आदान-प्रदान को प्रोत्‍साहित करने के लिये विभिन्‍न देशों की एजेंसियों के साथ समझौते किये हैं।

10. भारत-यूक्रेन कृषि एवं खाद्य उद्योग सहयोग समझौता

  • इस समझौते में कृषि एवं खाद्य उद्योग के विभिन्‍न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया है।
  • इसके तहत दोनों देशों के प्रतिनिधियों को शामिल करते हुए एक संयुक्‍त कार् समूह गठित किया जाएगा।
  • यह कार्यसमूह चयनित क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की योजना पर विचार-विमर्श करके उसकी रूपरेखा तैयार करेगा और दोनों पक्षों द्वारा निर्धारित कार्यों के कार्यान्‍वयन की निगरानी करेगा।
  • इस कार्यसमूह की बैठक बारी-बारी से भारत और यूक्रेन में कम-से-कम दो वर्ष में आयोजित होगी।
  • यह समझौता पाँच वर्ष की अवधि के लिये लागू रहेगा और इसे अगले पाँच वर्ष की अवधि के लिये स्‍वत: बढ़ाया भी जा सकता है।

विभिन्न देशों की विदेश नीतियों के रणनीतिक उद्देश्य तथा भौगोलिक निर्देश अंतर्राष्ट्रीय संवाद की रूपरेखा को मोटे तौर पर परिभाषित करते हैं। फिर भी सभी देशों की विदेश नीति में समयानुसार बदलाव होते रहते हैं। इसके अलावा विदेश नीति को घरेलू बाध्यताओं तथा वैश्विक संपर्क की संभावनाओं एवं क्षमताओं के अनुसार भी ठीक-ठाक किया जाता है। विगत पाँच वर्षों में भारत की विदेश नीति में भी कई बड़े-छोटे बदलाव हुए ताकि राष्ट्रीय हितों को तत्कालीन सरकार की धारणा के अनुसार सर्वश्रेष्ठ तरीके से साधा जा सके।

स्रोत: PIB

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