अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत की सामाजिक न्याय निष्पक्षता सुनिश्चित करने के प्रति दृढ़ संकल्प
- 03 Mar 2017
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मार्टिन लूथर किंग ने कहा था कि जहां भी अन्याय होता है वहां हमेशा न्याय को खतरा होता है| यह बात केवल वैधानिक न्याय के बारे में ही सही नहीं है क्योंकि एक विवेकपूर्ण समाज से सदैव समावेशी प्रणाली के लिये रंग, नस्ल, वर्ग, जाति जैसी किसी भी प्रकार की सामाजिक बाधा से मुक्त न्याय सुनिश्चित करने की उम्मीद की जाती है| ताकि समाज का कोई भी व्यक्ति अपने न्याय के अधिकार से वंचित न हो सके| किसी को भी न्याय से वंचित रखना न केवल सामाजिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है बल्कि संविधानिक प्रावधानों के भी खिलाफ़ हैं|
प्रमुख बिंदु
- वस्तुतः एक समावेशी समाज से समान अवसर, निष्पक्ष कार्य और किसी को भी उसके अधिकारों से वंचित न रखने की उम्मीद की जाती है|
- विदित हो कि इस पक्ष को विश्व सामाजिक न्याय दिवस (WDSJ) में अंतरनिहित प्रावधानों में भी शामिल किया गया हैं|
- ध्यातव्य है कि वर्ष 2007 में सामाजिक विकास के लिये विश्व सम्मेलन के उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र आम सभा में प्रतिवर्ष 20 फरवरी को यह दिवस मनाये जाने का फैसला किया गया था| यही कारण है कि वर्ष 2009 से प्रतिवर्ष यह दिवस मनाया जा रहा है|
- यह दिवस गरीबी, बहिष्कार और बेरोजगारी जैसे मुद्दों से निपटने के प्रयासों को बढ़ावा देने की आवश्यकता को मान्यता देने का दिन होता है|
- भारत में इस दिशा में बहुत तेज़ी से कार्यवाही की जा रही है| इसका सबसे जीवंत उदाहरण यह है कि हाल ही में वेतन भुगतान अधिनियम में संशोधन किया गया है, जिससे चेक द्वारा या बैंक खाते में सीधे वेतन ड़ालने के जरिये भुगतान सुनिश्चित किया जाता है|
- ऐसा इसलिये किया गया है कि ताकि इससे श्रमिकों के लिये तय किये गये वेतन का पूरा भुगतान सुनिश्चित किया जा सके|
- इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक बयान के अनुसार, विश्व के सभी राष्ट्रों के बीच शांतिपूर्ण और समृद्ध सह-अस्तित्व बनाये रखने के लिये सामाजिक न्याय निहित सिद्धांतों को लागू किया जाना चाहिये|
- इसी भाँति लैंगिक समानता या स्वदेशी लोगों और प्रवासियों के अधिकारों को बढ़ावा देते समय सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर निर्णय किया जाना चाहिये|
- वस्तुतः इसी तरह लिंग, आयु, जाति, नस्ल, धर्म, संस्कृति या विकलांगता के कारण लोगों द्वारा झेली जा रही असमानता की बाधा को दूर कर समाज सामाजिक न्याय की ओर अग्रसर हो सकता है|
- उल्लेखनीय है कि अर्थव्यवस्था भी समाज और संस्कृति में घुली-मिली होती है जो प्रत्येक समाज की पारिस्थितिकी अर्थात उसकी जीवन रक्षक प्रणाली (आर्थिक जड़ों) से संबद्ध होती है|
- जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारतीय समाज सदियों से सभी वर्गों के लिये समानता और न्याय सुनिश्चित करने का प्रयास करता रहा है|
- देश के इतिहास में सामाजिक न्याय के क्षेत्र में सबसे समर्पित कुछ लोगों जैसे- चैतन्य महाप्रभु, स्वामी रविदास, स्वामी विवेकानन्द, एम जी रानाडे, वीर सावरकर, के एम मुंशी, महात्मा गांधी, बाबा साहेब अम्बेडकर, ताराबाई शिंदे, बहरामजी मलाबारी आदि लोगों ने अपने-अपने स्तर पर बहुत प्रयास किये हैं|
- इन समाज सुधारकों के दृढ़ निश्चय और साहस के साथ-साथ लोगों के प्रबल समर्थन ने इन लोगों को अन्याय के खिलाफ मजबूत कार्रवाई करने हेतु बल प्रदान किया|
- यही कारण है कि भारत सरकार भी सतत विकास, उचित कार्य के अवसर और एक बेहतर भविष्य से संबद्ध परिवर्तनों तथा नीतिगत ढांचे को आगे बढ़ाने के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के साथ मिलकर प्रयास कर रही है|
- आईएलओ के अनुसार, महत्त्वपूर्ण नीतिगत क्षेत्र के अंतर्गत आर्थिक एवं प्रगतिकारक नीतियों, औद्योगिक तथा क्षेत्रीय नीतियों, उद्यम नीतियों, कौशल विकास, व्यवसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, श्रम बाजार नीतियों, अधिकार, सामाजिक संवाद तथा त्रिपक्षीय नीतियों को शामिल किया गया है|
- ध्यातव्य है कि देश के संविधान में सामाजिक न्याय शब्द का उपयोग व्यापक अर्थों में किया गया है| वस्तुतः इसके अंतर्गत सामाजिक और आर्थिक न्याय दोनों को ही शामिल किया गया है|
- इस संदर्भ में भारत संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों का पूरा समर्थन करता हैं| भारत सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने में संयुक्त राष्ट्र की आम सभा के सभी प्रयासों में सहायता करने के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध है|
- इसके अतिरिक्त भारत ने ‘संयुक्त राष्ट्र महिला’ के विचार को भी समर्थन देने की इच्छा व्यक्त की हैं|
- सामाजिक न्याय उपलब्ध कराने के उपाय के तौर पर भारत ने घरेलू हिंसा अधिनियम के मध्य महिलाओं को एक सुरक्षा अधिनियम प्रदान किया है| जिसमें कहा गया है कि शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक सहित कई रूपों में हिंसा हो सकती है|
- इस अधिनियम में महिलाओं को परिवार के भीतर-वैवाहिक और पारिवारिक दुर्व्यवहार जैसी हिंसा के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिये वैधानिक प्रावधान उपलब्ध कराए गए है|
- इस कानून के अंतर्गत आश्रय, चिकित्सीय सहायता, रखरखाव के आदेश और बच्चों का अस्थायी संरक्षण करने आदि के रुप में घरेलू हिंसा से पीडि़त महिलाओं की सहायता की भी व्यवस्था की गई हैं|
- इसके अतिरिक्त काम का अधिकार सुनिश्चित करने के लिये मनरेगा जैसा एक बड़ा कार्यक्रम भी भारत में संचालित किया गया है|
- ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार के आम बजट में सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण मंत्रालय को वर्ष 2016-17 के लिये किये गए बजटीय आवंटन में से लगभग 54 प्रतिशत अनुसूचित जाति के लगभग 60 लाख लोगों और 53 लाख अन्य पिछड़ा वर्ग की छात्रवृत्ति पर खर्च करना सुनिश्चित किया गया है|
- इसके अतिरिक्त मंत्रालय के तीन निगमों- राष्ट्रीय अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम (एनएसएफडीसी), राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग वित्त विकास निगम (एनबीसीएफडीसी) और राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त विकास निगम द्वारा डिजिटल तरीके से लगभग दो लाख लाभार्थियों को करीबन 552 करोड़ रुपए की धनराशि भी वितरित की गई है|
- बावजूद इसके विश्व में सामाजिक न्याय की स्थिति उतनी अच्छी नहीं है जैसी कि दिखाई पड़ती है|
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, वृहद स्तर पर किये गए वैश्विक प्रयासों के बावजूद अमीरों का अमीर होना और गरीबों का और अधिक गरीब होना एक कड़वी सच्चाई है| जिसका परिणाम वैश्विक स्तर पर न तो गरीबी को कम करने में पर्याप्त सफलता हासिल हो पा रही हैं और न ही इन लोगों कि लिये आवश्यक सामाजिक न्याय की उपलब्धता ही सुनिश्चित हो पा रही हैं|
- स्पष्ट है कि अब समय आ गया है कि जब विश्व लाभ के अवसरों के परिणामों पर चर्चा करने की बजाय विकास की दिशा में बढा़ने की राह सुनिश्चित करें| ऐसा करके न केवल नए अवसरों हेतु आवश्यक एक स्वतंत्र वातावरण की रूपरेखा तैयार की जा सकती है बल्कि सुसंगत पुनर्वितरण नीतियों के सटीक अनुपालन को भी सुनिश्चित किया जा सकता हैं ताकि वैश्विक समाज को न्यायसंगत बनाया जा सके|