अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत और शंघाई सहयोग संगठन (SCO)
- 08 Jun 2017
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संदर्भ
अस्ताना, कज़ाकिस्तान में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भारत के साथ-साथ पाकिस्तान को भी इस संगठन की पूर्ण सदस्यता प्रदान की जाएगी। भारत ने लंबे समय से इस संगठन की पूर्ण सदस्यता प्राप्त करने हेतु प्रयास किया है। इस संगठन का पूर्ण सदस्य बनने के बाद भारत एक तरफ जहाँ मध्य एशिया की भू-राजनीति में भागीदार बन जाएगा वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान एवं चीन के साथ अपने द्विपक्षीय मुद्दों को हल कर सकेगा।
क्या हैं आशंकाएं?
- एस.सी.ओ. की सदस्यता प्राप्त करने के बाद भारत की रणनीति क्या होनी चाहिये? क्या भारत को केन्द्रीय शक्तियों (Heartland Powers) के साथ हाथ मिलाना चाहिये या फिर एक रिमलैंड गठबंधन के साथ? या फिर भारत को यूरेशियन या भारत-प्रशांत शक्ति के रूप में स्वयं को परिभाषित करना चाहिये।
- भारत मध्य एशिया में अपनी स्थिति को मज़बूत बनाना चाहता है। सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही वह इस दिशा में प्रयासरत है, लेकिन भारत का अनुभव बताता है कि भारत मध्य एशिया में अपनी पैठ बढ़ाने में ज़्यादा सफल नहीं रहा। इसका कारण पाकिस्तान द्वारा भारत को मध्य एशिया की भू-राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने से अवरुद्ध करना है। अब, जब पाकिस्तान भी एस.सी.ओ.का सदस्य बन जाएगा तो क्या वह भारत को ऐसा करने देगा?
- भारत सोवियत संघ के विघटन के बाद तथाकथित एकध्रुवी विश्व को बहुध्रुवीय विश्व बनाना चाहता है। भारत का मानना था कि अमेरिका के खिलाफ रूस और चीन भारत का सहयोग कर सकते हैं। इसी क्रम में भारत ने रूस और चीन के सहयोग से बने त्रिपक्षीय मंच जैसे ब्रिक्स, एस.सी.ओ. और ए.आई.आई.बी. (Asian Infrastructure Investment Bank) में भाग लिया। लेकिन पिछले महीने बीजिंग में ‘बेल्ट और रोड फोरम’ में भारत ने भाग लेने से इनकार कर दिया था क्योंकि भारत ने इस परियोजना को अपनी संप्रभुता का हनन माना है। इससे ऐसा लग रहा है कि चीन अपनी सत्ता में वृद्धि कर रहा है जो भारत के लिये अमेरिका और पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक समस्याएँ पैदा कर सकता है। अत: भारत एस.सी.ओ. का पूर्ण सदस्य बनने के बाद भी इन समस्याओं को शायद ही हल कर पाए।
- एससीओ के प्रमुख उद्देश्यों में आतंकवाद, उग्रवाद और अलगाववाद का मुकाबला करना शामिल है, तथा भारत की एक प्रमुख चिंता आतंकवाद है। जहाँ कश्मीर में सीमा पार आतंकवाद और अलगाववाद को रोकने के लिये चीन द्वारा पाकिस्तान पर मौखिक या वास्तविकता दबाव बनाने की संभावना कम ही नज़र आती है। वहीं दूसरी ओर चीन एक "अच्छे पड़ोसी" होने का हवाला देकर भारत पर पाकिस्तान से कश्मीर समस्या को हल करने के लिये दबाव बना सकता है।
भारत क्या करे?
- एक, अगर पाकिस्तान और चीन एस.सी.ओ. शिखर सम्मेलन में भारत पर कश्मीर समस्या को लेकर दबाव बनाते हैं तो भारत को चीन को यह याद दिलाना चाहिये कि पाकिस्तान के साथ-साथ उसके भी कश्मीर में (अक्साई चीन) भारत के साथ सीमा विवाद विद्यमान हैं।
- दूसरा, एस.सी.ओ.भारत को कुछ राजनयिक अवसर भी प्रदान करेगा, जिनका लाभ भारत मध्य एशियाई देशों के साथ संबंधों को बेहतर करने में उठा सकता है। चीन और रूस के साथ भारत के वर्तमान मुद्दों को हल करने में भी एस.सी.ओ. एक मंच प्रदान कर सकता है।
- तीसरा, लंबे समय में एस.सी.ओ. की राजनीति में होने वाले संभावित बदलावों को लेकर भारत को हमेशा तैयार रहना चाहिये।
निष्कर्ष
भारत का एस.सी.ओ. का पूर्ण सदस्य बनाना भारत की वैश्विक स्तर पर बढ़ती छवि को दर्शाता है। भारत इस मंच का उपयोग करके चीन तथा पाकिस्तान से अपने संबंधों को बेहतर बना सकता है तथा वर्षों से लंबित पड़े सीमा विवादों को सुलझा सकता है। इस मंच की सहायता से ही भारत मध्य एशियाई देशों से अपने संबंधों को और प्रगाढ़ बना सकता है और इससे भारत की ‘लुक वेस्ट नीति’ को भी बढ़ावा मिलेगा। भारत को इस मंच का लाभ राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुये ही उठाना चिहिये।