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भारत तथा अमेरिका के बीच बढ़ती असहमति

  • 07 Jun 2018
  • 13 min read

संदर्भ

सिंगापुर में शांगरी-ला वार्ता में अपने भाषण में एक प्रमुख विदेश नीति वक्तव्य के रूप में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत और अमेरिका के खुले और सुरक्षित हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर "साझा दृष्टिकोण" की बात की। फिर भी उनका कथन अमेरिकी रक्षा सचिव जेम्स मैटिस द्वारा इसी समारोह में बोले गए कथन से काफ़ी अलग था,  इन बातों से स्पष्ट होता है कि नई दिल्ली और वाशिंगटन अब इस मुद्दे के साथ-साथ कई अन्य मुद्दों पर बहुत अधिक समय तक सहमति बनाए रखने के लिये तैयार नहीं हैं।

बढ़ता फ़ासला

  • श्री मोदी ने हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र (हिंद तथा प्रशांत महासागरीय क्षेत्र के लिये अमेरिका द्वारा प्रयुक्त किया गया शब्द) को एक प्राकृतिक भू-क्षेत्र के रूप में संबोधित किया, न कि रणनीतिक, जबकि श्री मैटिस ने भारत-प्रशांत को "प्रायोरिटी थियेटर" और "सैन्य अधिकार के लिये [अमेरिका की] व्यापक सुरक्षा रणनीति का सबसेट", (अब इसका नाम बदलकर इंडो-प्रशांत कमांड रखा गया है) के रूप में उल्लेखित किया। 
  • जब श्री मोदी ने अमेरिका, रूस और चीन के साथ भारत के अच्छे संबंधों को समान माप में संदर्भित किया तो श्री मैटिस ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की गतिविधियों का मुकाबला करने का वादा किया, और इस वर्ष जनवरी में जारी अमेरिकी राष्ट्रीय रक्षा रणनीति का उल्लेख किया जो चीन और रूस दोनों को अपने क्रॉसहेयर में दुनिया की दो "संशोधनवादी शक्तियों" (revisionist powers) के रूप में देखता है।
  • एक साल पहले, मोदी सरकार ने अपने पड़ोस में चीन के बढ़ते दबाव, विशेष रूप से पोस्ट-डोकलाम के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को चुनौती दी और साथ ही भारत, अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया के एक चतुर्भुज समूह को समर्थन दे रही थी। 

वर्तमान परिदृश्य

  • आज, डोकलाम मुद्दे को दफना दिया गया है, BRI पहले की तरह चिंता का विषय नहीं है, और मालदीव और नेपाल के लिये सरकार के गैर-टकराववादी दृष्टिकोण से पड़ोस में चीन पर एक नरम नीति का संकेत मिलता है। 
  • इस बीच, श्री मोदी ने वुहान बैठक के द्वारा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ घनिष्ठ संबंधों और चीन के साथ रिश्ते को रीसेट करने का प्रयास किया।
  • क्वाड गठन (Quad formation) जो सिंगापुर में आज अपनी दूसरी आधिकारिक बैठक आयोजित कर रहा है, को भी कम महत्त्व दिया गया है। 

भारत द्वारा अमेरिका तथा जापान के साथ समुद्री अभ्यास से इनकार

  • भारत ने इस वर्ष जून में अमेरिका और जापान के साथ समुद्री अभ्यास में शामिल होने के लिये ऑस्ट्रेलियाई अनुरोध को खारिज कर दिया और नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने पिछले महीने स्पष्ट रूप से कहा कि क्वाड में "सैन्यीकरण" की कोई योजना नहीं थी। 
  • इसके विपरीत रुस तथा चीन की अगुवाई वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के देशों के साथ सैन्य अभ्यास जिसका आयोजन क़िंगदाओ में होगा, में शामिल होने के लिये भारत की स्वीकृति से वाशिंगटन में उत्पन्न व्याकुलता को कोई भी समझ सकता है। 

शिखर-सम्मेलनों का युग

ऐसी दुनिया जहाँ नेताओं के बीच शिखर सम्मेलन ने महान रणनीति को बदल दिया है वहाँ दृश्यमान शक्तियाँ आज भी स्पष्ट हैं। 

  • यदि अनौपचारिक और औपचारिक शिखर सम्मेलन के साथ-साथ SCO, ब्रिक्स और जी-20 बैठकों की गणना की जाए, तो भारतीय प्रधानमंत्री चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से वर्ष के अंत तक चार-पाँच बार मिले होंगे। 
  • इसके विपरीत, भारतीय और अमेरिकी रक्षा मंत्रियों और विदेश मामलों के मंत्रियों की आगामी 2+2 बैठक को निर्धारित करने में लगभग आधा साल बीत चुका है।
  • व्यापार संरक्षणवाद जो हाल के महीनों में कई मुद्दों पर एक दूसरे को विश्व व्यापार संगठन में ले गए हैं, स्पष्ट रूप से भारत और अमेरिका के बीच विरोध का दूसरा बड़ा मुद्दा है। 

दोनों देशों के बीच बढ़ता विवाद

दोनों देशों के बीच कई विवादों में वृद्धि हुई है, जैसे -

  • अमेरिका के नए स्टील और एल्युमीनियम टैरिफ।
  • H1B पेशेवर वीजा में प्रस्तावित कटौती और H4 पति/पत्नी के वीजा रद्द करना।
  • डेयरी और पोर्क उत्पादों के अमेरिकी निर्यात के प्रतिरोध पर भारत के टैरिफ। 
  • चिकित्सा उपकरणों पर भारतीय मूल्य में कटौती।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अमेरिकी कंपनियों पर भारतीय सर्वर पर डेटा स्थानीयकरण के नियम लागू करना।

हार्ले-डेविडसन विवाद

  • भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते विवादों के संदर्भ में हार्ले-डेविडसन मोटरसाइकिलों का एक छोटा सा मामला है, जहाँ रिश्ते में थोड़ी सी दरार होनी चाहिये थी लेकिन  इस मामले ने काफी गंभीरता से भारत और अमेरिका के बीच विवाद को बढ़ा दिया। 
  • जब ट्रंप ने पिछले साल फरवरी में हार्ले के अधिकारियों और संघ प्रतिनिधियों के लिये घोषणा की कि वह अन्य देशों को इसका "लाभ लेने" पर रोक लगाएंगे तो उस समय नई दिल्ली में किसी ने भी इस घोषणा पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। 
  • साल भर के दौरान श्रीमान ट्रंप इस मांग को लेकर और अधिक मुखर होते गए जिसमें मोदी के साथ वाशिंगटन तथा मनीला में हुई दो मीटिंग भी शामिल हैं, जिसमें इसने भारत से अपने टैरिफ को 75 से 100 प्रतिशत तक कम करने के लिये कहा था, उल्लेखनीय है कि अमेरिका इंडियन रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल के आयात पर शून्य टैरिफ लगाता है।
  • श्री मोदी ने अमेरिकी चिंताओं को समायोजित करने की कोशिश की और यहाँ तक कि इस साल 8 फरवरी को श्री ट्रंप को फ़ोन कर यह आश्वासन भी दिया कि टैरिफ 50% तक कम किया जाएगा। श्रीमान ट्रंप ने इस व्यापार वार्ता को सार्वजनिक कर दिया था।
  • वाशिंगटन के अधिकारियों का कहना है कि यदि भारत अपनी दरों को कम करना चाहता है, तो वाणिज्य के अन्य क्षेत्रों में इसके बड़े लाभ दिखाई देंगे, जबकि नई दिल्ली के अधिकारियों का कहना है कि श्री ट्रंप ने मोदी के प्रस्ताव को सार्वजनिक किया है तथा आगे इस दर को और अधिक कम करना असंभव होगा। 

भारत-अमेरिका संबंधों के लिये बड़ी चुनौतियाँ 

  • समन्वित भारत-अमेरिका दृष्टिकोण के लिये सबसे बड़ी चुनौती अब नए अमेरिकी कानून Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act तथा ईरान परमाणु समझौते से अमेरिका के अलग होने के कारण और अधिक प्रतिबंधों का खतरा उत्पन्न हो गया है। 
  • रूस से रक्षा हार्डवेयर पर इसकी उच्च निर्भरता और ईरान में इसकी काफी ऊर्जा हितों के कारण, अमेरिका की इन दोनों कार्रवाइयों का भारत पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। 
  • विशेष रूप से रूसी एस-400 मिसाइल प्रणाली हासिल करने की भारत की योजना लिटमस परीक्षण के सामान हो जाएगी जिसमें यह देखना शेष है कि क्या भारत और अमेरिका अपने मतभेदों को समाप्त कर पाएंगे या नहीं। 
  • स्पष्ट रूप से इस तरह के बड़े सौदों के कारण होने वाले मतभेदों को निर्णय लेने से बहुत पहले ही हल कर लेना चाहिये था। हालाँकि इस बात के बिल्कुल भी संकेत नहीं हैं  कि ट्रंप प्रशासन तथा मोदी सरकार को ऐसा करने से पहले एक दूसरे को विश्वास में लेने की आवश्यकता है।

अमेरिकी प्रतिबंधों का विरोध 

  • रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की एस-400 समझौते की घोषणा और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज द्वारा इस महीने अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस में रूस, ईरान और वेनेजुएला पर अमेरिकी प्रतिबंधों का खुला विरोध किया गया। 
  • सच्चाई यह है कि गत वर्ष के दौरान ट्रंप प्रशासन के साथ संबंध बनाना वाशिंगटन में साउथ ब्लॉक और भारतीय दूतावास दोनों के लिये मुश्किल रहा है, क्योंकि 30 से अधिक प्रमुख प्रशासनिक अधिकारियों ने या तो पदत्याग दिया है या उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है।
  • साथ ही यह भी स्पष्ट है कि भारत-अमेरिका समीकरण पिछले साल के समान संतुलन की स्थिति में नहीं हैं जब मोदी और ट्रंप द्वारा “2+2” वार्ता की घोषणा की गई थी।  
  • सुश्री स्वराज, सुश्री सीतारमण और उनके अमेरिकी समकक्षों ने 6 जुलाई को वाशिंगटन में आयोजित होने वाली बैठक के लिये अपने कार्यों में कटौती की है। 

 ‘2+2’ संवाद क्या है?

  • यदि दो देशों के बीच एक साथ ही दो-दो मंत्रिस्तरीय वार्ताएँ आयोजित की जाएँ तो इसे 2+2 संवाद मॉडल का नाम दिया जाता है।
  • भारत और अमेरिका के बीच संवाद को नया रूप देने के लिये नियमित वार्ता का एक ऐसा ढाँचा विकसित किया जा रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा के क्षेत्र में साझेदारी और मज़बूत होगी। 
  • इसका एक अन्य उद्देश्य यह भी है कि हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने में भारत-अमेरिका मिलकर अपनी भूमिका निभाएँ।  
  • प्रस्तावित संरचना के तहत अब भारत और अमेरिका के बीच ‘2+2’ व्यवस्था के तहत नियमित रूप से मंत्रिस्तरीय वार्ता होती रहेगी और दोनों देशों के रक्षा एवं विदेश सचिवों के बीच सतत् संपर्क बना रहेगा। 
  • मंत्रिस्तरीय वार्ता का नया तंत्र शुरू कर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बढ़ने से दोनों देशों के बीच रणनीतिक विचार-विमर्श और बढ़ेगा।  

निष्कर्ष

चीन और हिंसक चरमपंथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दीर्घकाल में कई चुनौतियाँ पेश कर सकते हैं, जबकि किसी भी क्षेत्र की समृद्धि सुरक्षा पर निर्भर करती है। भारत के लिये इस संवाद के साथ आगे बढ़ना एक ‘बैलेंसिंग एक्ट’ के समान होगा, जिसमें संतुलन साधने की आवश्यकता पड़ेगी। यदि राजनीति में एक सप्ताह की अवधि एक लंबा समय है तो भू राजनीति में वर्तमान समय अनंतकाल के समान है।

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