शासन व्यवस्था
भारत में शहरीकरण की बढ़ती चुनौतियाँ
- 28 Feb 2019
- 15 min read
संदर्भ
कुछ समय पूर्व स्विट्ज़रलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum-WEF) सम्मेलन आयोजित हुआ। इसमें यह बात उभर कर सामने आई कि शहरों के विकास को ही भारत के विकास की धुरी माना जा रहा है। यह सही भी है क्योंकि किसी भी आधुनिक और विकासशील अर्थव्यवस्था में शहरों को विकास का सबसे बड़ा वाहक माना जाता है। भारत में नवीन भारत (New India) की पहल के विचार को आगे बढ़ाने की कड़ी में शहरी बुनियादी ढाँचों में सुधार के लिये शहरीकरण के प्रति समग्र दृष्टिकोण अपनाने की प्रक्रिया अपनाई गई है।
समावेशी विकास में शहरीकरण की अवधारणा
वैश्वीकरण के उपरांत शहरी विकास की अवधारणा समावेशी विकास की एक अनिवार्य शर्त बन गई है। शहरी विकास की इस प्रक्रिया ने गाँवों के सामने अस्तित्व का संकट उत्पन्न कर दिया है। शहरों का अनियोजित विकास, महानगरों का असुरक्षित परिवेश एवं शहरी संस्कृति में बढ़ते जा रहे संबंधमूलक तनाव हमें यह सोचने पर विवश करते हैं कि शहरी विकास की अवधारणा पर एक बार फिर से विचार किया जाना चाहिये। विभिन्न प्रकार के प्रदूषण उत्पन्न करने में गाँवों की तुलना में शहरों की भूमिका अधिक है, तो क्या यह कहा जा सकता है कि विकास और प्रदूषण का एक-दूसरे के साथ सकारात्मक संबंध है?
ऐसे में कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर विचार करना ज़रूरी हो जाता है।
विकास का प्रतीक शहरीकरण क्यों?
- शहरी क्षेत्रों में रोज़गार की संभावनाएँ अधिक होती हैं, इसलिये वहाँ ज़्यादा लोग रोज़गार में लगे होते हैं। यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में वे अधिक धन कमाते हैं और राष्ट्रीय आय में योगदान करते हैं।
- आँकड़ों के अनुसार, 2001 तक भारत की आबादी का 27.81% हिस्सा शहरों में रहता था। 2011 तक यह 31.16% और 2018 में 33.6% हो गया।
- 2001 की जनगणना में शहर-कस्बों की कुल संख्या 5161 थी, जो 2011 में बढ़ कर 7936 हो गई।
- आज हर तीन भारतीयों में से एक शहरों और कस्बों में रहने लगा है।
- संयुक्त राष्ट्र की एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में विश्व की आधी आबादी शहरों में रहने लगी है और 2050 तक भारत की आधी आबादी महानगरों और शहरों में रहने लगेगी।
- भारत में शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है और वैश्विक स्तर पर भी तब तक कुल आबादी का 70% हिस्सा शहरों में रह रहा होगा।
संपत्ति का असंतुलन प्रमुख कारण
- शहरों में तनाव भी तुलनात्मक रूप से अधिक है क्योंकि यहाँ पर संपत्ति संबंधी और आर्थिक असमानता अधिक पाई जाती है, या कहें कि प्रत्येक प्रकार की असमानता का केंद्र शहर ही हैं।
- भारत की शीर्ष 10% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 77.4% हिस्सा है। इनमें से भी सिर्फ एक प्रतिशत आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 51.53% हिस्सा है।
- भारत की 60% आबादी के पास देश की सिर्फ 4.8% संपत्ति है।
- देश के शीर्ष नौ धनवानों की संपत्ति 50% गरीब आबादी की संपत्ति के बराबर है।
स्वास्थ्य समस्याएँ और शहरीकरण
तेजी से बढ़ता हुआ शहरीकरण और शहरों की जनसंख्या में हो रही बढोतरी को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के समाधान की दिशा में प्रमुख चुनौतियों के रूप में देखा जाता रहा है। अनुमान है कि 1990 और 2025 के बीच विकासशील देशों में शहरी आबादी में तीन गुना वृद्धि हो चुकी होगी और यह कुल जनसंख्या के 61 प्रतिशत के बराबर हो जाएगी। इस बढ़ती हुई शहरी आबादी को देखते हुए पानी, पर्यावरण, हिंसा और चोट , गैर संचारी रोगों जैसी स्वास्थ्य संबंधी अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, तम्बाकू के उपयोग, अस्वास्थ्यकर आहार, शारीरिक अकर्मण्यता और महामारियों के फैलने से जुड़ी आशंकाएँ और खतरे भी कोई कम चुनौतीपूर्ण नहीं हैं।
पर्यावरण चुनौती
पर्यावरण सुरक्षा के मद्देनज़र शहर एक बड़ी चुनौती बन रहे हैं क्योंकि शहर के विकास के लिये हरित क्षेत्र की बलि चढ़ाई जा रही है। जलवायु संबंधी परिवर्तनों ने कई शहरों के अस्तित्व को चुनौती दी है, विशेषत: समुद्र किनारे बसे शहर अब मानव निर्मित आपदाओं से अछूते नहीं रह गए हैं। इसके अलावा, तीव्र प्रौद्योगिकीय विकास शहरों में अनेक परंपरागत व्यवसाय करने वाले समूहों के लिये खतरा बन गया है क्योंकि इससे भी पर्यावरण को नुकसान होता है।
शहरों में बढ़ती स्लम बस्तियाँ
देश के सभी बड़े शहरों और महानगरों में बड़ी संख्या में स्लम बस्तियाँ बन गई हैं। इनमें रहने वाले लोग शहरी जनसंख्या से संबंधित उच्च एवं मध्य वर्ग की अनेक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, परंतु वे न केवल गरीबी के शिकार हैं अपितु बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं।
यातायात की समस्या
प्रत्येक शहर में बेतरतीब यातायात एक गंभीर समस्या बन गया है क्योंकि सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को लगभग समाप्त कर दिया गया है। शहर में रहने वाले समृद्ध लोग अपनी शक्ति और संपन्नता के प्रदर्शन के लिये यातायात नियमों का उल्लंघन करते हैं और इससे बड़ी संख्या में सड़क हादसे होते हैं।
कुछ अन्य समस्याएँ
- हमारे देश का लगभग हर शहर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण एवं व्यवसायीकरण ने शहरों में असमानताओं को जन्म दिया है।
- शहरों की सड़कों पर गड्ढे, सीवर प्रणाली का अभाव एवं जल-जमाव से होने वाली परेशानियाँ, बिजली, पानी एवं संचार सुविधाओं का अस्त-व्यस्त व असमान रूप शहरी जीवन को इतना अधिक समस्यामूलक बना देता है कि कई शहरों में जाने की कल्पना मात्र से सिहरन होने लगती है।
- अपराध की दृष्टि से भी शहर तुलनात्मक रूप से अधिक असुरक्षित हैं...कंक्रीट के जंगल में रहने वाले लोग अपने पड़ोसी को भी नहीं जानते।
- भावनाशून्यता, संवादहीनता और व्यक्तिवादिता की प्रवृत्ति शहरी जनसंख्या के जीवन का हिस्सा बन गई है।
नवउदारवाद और वैश्वीकरण के बाद अब गाँव केवल खाद्य, श्रम एवं कच्चे उत्पादों के आपूर्तिककर्त्ता बनकर रह गए हैं। शहर आधुनिकीकरण व उपभोक्तावादी सभ्यता को प्रदर्शित करते हैं और अधिकांश गाँव अपने अस्तित्व के लिये इन शहरों से जुड़े हुए हैं। शहरीकरण, औद्योगीकरण, सामाजिक गतिशीलता एवं पलायन की प्रक्रिया में वृद्धि हुई है और नई पीढ़ी गाँवों से शहरों की ओर पलायन करने लगी है।
नेटवर्क सोसायटी की अवधारणा
इस संदर्भ में मैनुअल कैसेल द्वारा प्रस्तुत ‘नेटवर्क सोसायटी’ की अवधारणा की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। इसे ‘स्मार्ट सिटी’ के रूप में भारत में समझे जाने की आवश्यकता है। शहर की भौगोलिक सीमा का जितना अधिक विस्तार होगा, हमें नए नेटवर्क बनाने की उतनी अधिक आवश्यकता होगी, ताकि सुविधाओं एवं सेवाओं का तार्किक एवं समय सीमा के अंतर्गत वितरण हो सके। कंप्यूटर आधारित संचार आने वाले समय में हर शहर की ज़रूरत बनेगा, लेकिन इसके साथ ही यह भी संभावना है कि निर्धनता, साक्षरता की निम्न दर, असमानता एवं कंप्यूटर के उपयोग को न जानने वाले अथवा कम जानने वाले लोगों के लिये शहर रहने की दृष्टि से समस्यामूलक हो जाएंगे। क्या स्मार्ट शहरों में निम्न वर्ग या हाशिये पर रहने वालों का कोई स्थान होगा या केवल वही लोग निवास करेंगे जिन्हें कंप्यूटर विशेषज्ञता हासिल है?
असंतुलित शहरी विकास
आज देश के सम्मुख शहरीकरण का प्रबंधन सबसे जटिल समस्या है। शहरों की चकाचौंध आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिये हमेशा से ही आकर्षण का विषय रही है और वे प्राय: इस आकर्षण के वशीभूत होकर शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं, जहाँ पहले से ही लोगों की भरमार होती है। वहाँ पहुंच कर वे भी आवास, जलापूर्ति, जलमल निकासी, स्थानीय परिवहन और रोज़गार के अवसरों जैसी पहले से ही मौजूद गंभीर समस्याओं के शिकार हो जाते हैं । शहरी गरीब अनेक जटिल रोगों सहित कई प्रकार की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के शिकार होते हैं। शहरी क्षेत्रों में लोगों की बढ़ती हुई संख्या के कारण सरकारों की अधिकांश बुनियादी सेवाएँ प्रदान करने की क्षमता पर भारी दबाव पड़ता है । अवैध रूप से बसने वाली स्लम बस्तियाँ शहरों का अविभाज्य हिस्सा बन चुकी हैं। इनमें रहने वाले लोगों को पेयजल और कचरे के निपटान जैसी बुनियादी सुविधाएँ तक नहीं मिल पातीं।
गाँवों पर ध्यान दिये बिना अधूरा रहेगा विकास
- भारत को गाँवों का देश कहा जाता है और यहाँ की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती है।
- देश के आधे से अधिक लोगों का जीवन खेती पर निर्भर है, इसलिये यह कल्पना करना बेमानी होगा कि गाँव के विकास के बिना देश का विकास किया जा सकता है।
- थोड़ी सी सुविधाएँ प्रदान कर देने मात्र से गाँवों का विकास होना बहुत मुश्किल है। बदलते वक्त के साथ अगर भारतीय गाँवों पर ध्यान नहीं दिया गया तो इनका अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
- ग्रामीण विकास के ज़रिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिये सरकार ने इस बात को स्वीकार किया है कि आवास और बुनियादी सुविधाएँ आर्थिक विकास के मुख्य वाहक हैं।
- सरकार के ग्रामीण विकास कार्यक्रम का एजेंडा समावेशी विकास पर आधारित है, जिसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि विकास का लाभ गरीब और वंचित वर्गों तक पहुँचे।
- ग्रामीण संकट का मूल कारण वहाँ रहने वालों की आय का कम होना है। इसके लिये सरकार ने रोज़गार सृजन, कौशल विकास और उद्यमिता से संबंधित कई योजनाओं, कार्यक्रमों और पहलों की शुरुआत की है।
शहरीकरण को लेकर सरकार की प्राथमिकता
शहरी क्षेत्रों का सतत, संतुलित एवं समेकित विकास सरकार की मुख्य प्राथमिकता एवं शहरी विकास का एक केंद्रीय विषय है। जिस तरीके से देश में ‘शहरीकरण’ की प्रक्रिया का प्रबंधन होगा, उसी से यह निर्धारित होगा कि किस सीमा तक शहरी अवस्थांतर का लाभ उठाया जा सकता हैं। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के संचालन में शहरों के उभरने से भारत अपनी विकास यात्रा के एक अहम पड़ाव पर है, जहाँ शहरों/कस्बों के विकसित होने, संपन्न होने तथा निवेश एवं उत्पादकता का व्यावसायिक केंद्र बनने के लिये पर्याप्त अवसरों का सृजन अवश्य किया जाना चाहिये। जलवायु परिवर्तन की गंभीर स्थिति को कम करने के लिये स्मार्ट सिटी मिशन जैसे अभियानों को पर्यावरण, सतत एवं अवसंरचना विकास के लिये अनेक प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रयासों, उत्सर्जन में कमी एवं आपदा के प्रति शहरों का लचीलापन बढ़ाने के अनुरूप तैयार किया गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के अंतर्गत अभिनव एवं आधुनिक निर्माण प्रौद्योगिकी के उपयोग की सुविधा प्रदान करने के लिये प्रौद्योगिकी सब-मिशन भी शुरू किया गया है। इसके अलावा शहरों में रहने की उपयुक्तता के मापन की आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय की परियोजना में सभी 79 संकेतक विभिन्न सतत विकास लक्ष्यों से जुड़े हैं। इनमें सार्वजनिक परिवहन से लेकर पानी के दोबारा इस्तेमाल, प्रदूषण आदि को शामिल किया गया है।
स्रोत: PIB तथा अन्य समाचार पत्रों से एकत्र जानकारी पर आधारित