नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

भारत में हुआ असंगत और असमान विकास

  • 09 Feb 2019
  • 12 min read

जैसे जैसे आम चुनाव नजदीक आ रहा है वर्तमान सरकार के कार्यो की समीक्षा भी की जाने लगी है। जाहिर है सरकार के कार्य विभिन्न कसौटियों पर कसे जाएंगे। वर्तमान में चल रहे संसद के बजट अधिवेशन में राष्ट्रपति का अभिभाषण केवल इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित था कि पिछले साढ़े चार वर्षों में सरकार ने क्या-क्या काम किये। सरकार ने एक ठोस, मज़बूत, प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण में सहायक बजट की रूपरेखा पूरे देश के समक्ष रखी है।

व्यापारिक स्तर पर

  • विश्व बैंक द्वारा जारी होने वाले व्यापार सुगमता सूचकांक (Ease of Doing Business-EDB) में विभिन्न देशों में व्यापार करने की सुविधाओं के बारे में जानकारी दी जाती है।

यह सूचकांक व्यापार के प्रति सरकारी अधिकारियों, वकीलों, बिज़नेस कंसल्टेंट्स इत्यादि का रुख भी दर्शाती है। कारोबार शुरू करना, निर्माण अनुमति, बिजली की उपलब्धता, संपत्ति का रजिस्ट्रेशन, ऋण की उपलब्धता, निवेशकों की सुरक्षा, टैक्स अदायगी, सीमा पर व्यापार, कॉन्ट्रैक्ट्स का पालन, दिवालियेपन से उबरने की शक्ति जैसे आधारों पर इस सूचकांक में किसी देश की रैंकिंग निर्भर करती है।

  • सरकार ने इस दिशा में बेहतर प्रदर्शन करते हुए चार सालों में भारत को 57 रैंक ऊपर पहुँचाया है। ज्ञातव्य है कि 2014 में भारत 134वें रैंक पर था, जबकि 2018 में 190 देशों में 77वें रैंक पर है।
  • हालाँकि यह सूचकांक विश्व पटल पर विवादों में घिरा रहता है क्योंकि यह व्यापार सुगमता के लिये केवल सरकारी प्रयासों को ही आधार बनाता है, जबकि इसके अलावा कई ऐसे बिंदु हैं जिन पर कारोबार की सुगमता निर्भर करती है। ये बिंदु हैं- उत्पादकों को मिलने वाली सेवाएँ, बिजली के साथ पानी की उपलब्धता, कचरा प्रबंधन आदि।

मानव संसाधन विकास के स्तर पर

  • मानव विकास सूचकांक (Human Development Index-HDI) संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम यानी UNDP द्वारा जारी किया जाता है।
  • इस सूचकांक को पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक एवं भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने मिलकर विकसित किया है।

इसमें प्रति व्यक्ति आय, स्वास्थ्य एवं स्कूली शिक्षा के आधार पर विभिन्न देशों को रैंकिंग दी जाती है। यह सूचकांक विकास की गुणात्मकता की जानकारी तो देता है, लेकिन उसकी गुणवत्ता के बारे में मौन रहता है। जैसे केवल यह देखा जाना कि स्कूल में कितने विद्यार्थी हैं, काफी नहीं है; इसके साथ यह देखना भी जरूरी है कि उन्हें मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता का स्तर कैसा है।

  • पिछले चार सालों के आँकड़े देखने पर पता चलता है कि इस सूचकांक में भारत का स्थान जस-का-तस बना हुआ है।
  • जहाँ 2014 में भारत का रैंक 130 था, वहीं 2018 में भी 130 ही है, जबकि भारत हालिया वर्षों में सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था है।
  • यह इस बात को दर्शाता है कि किसी देश की अर्थव्यवस्था मानव संसाधनों के मामले में उल्लेखनीय वृद्धि प्राप्त किये बिना भी तेजी से आगे बढ़ सकती है।

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी के स्तर पर

विश्व आर्थिक मंच के साथ येल यूनिवर्सिटी एवं कोलंबिया यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित किये जाने वाले पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक में 2018 में भारत को 180 देशों में 177वाँ रैंक मिला। 2014 में भारत को 180 देशों में 155वें रैंक पर रखा गया था। इस सूचकांक में 24 संकेतकों के आधार पर रैंकिंग दी जाती है। इनमें पर्यावरण स्वास्थ, पारिस्थितिक तंत्रों की विविधता, वायु की गुणवत्ता, पेयजल एवं स्वच्छता, कृषि, जैवविविधता एवं जैव-आवास, जलवायु एवं ऊर्जा प्रमुख हैं।

  • तुलनात्मक अध्ययन करने पर हम पाते हैं कि भारत पर्यावरण के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले देशों में से है।
  • 2018 में तटीय आर्थिक क्षेत्र में उन स्थानों को भी निर्माण एवं पर्यटन के लिये खोल दिया गया है जिन्हें पहले पवित्र एवं पारिस्थितकीय रूप से संवेदनशील माना जाता था।

उपरोक्त तीनों सूचकांकों का अध्यनन करने एवं इसमें भारत का प्रदर्शन देखने पर हम पाते हैं कि देश में एक तरफ तो कारोबारों के लिये सकारात्मक वातावरण तैयार हो रहा है किंतु दूसरी तरफ सामाजिक एवं पर्यावरण के स्तर पर लगातार या तो स्थिति जस-की-तस बनी हुई है या और बिगड़ रही है।

इन सूचकांकों के अलावा भी बहुत से ऐसे करक हैं जो भारत के चहुँमुखी विकास को प्रभावित कर रहे हैं। इनमें गरीबी और बेरोज़गारी दो प्रमुख मुद्दे हैं। इसके अलावा कुछ सामाजिक चुनौतियाँ भी हैं जो राह में बाधा का कम करती हैं।

विकास तो हुआ, पर स्पष्ट गरीबी भी दिखती है

भारत के विकास को लेकर अमेरिकी अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता पॉल क्रुगमैन का कहना है कि आर्थिक मोर्चे पर भारत ने तेजी से प्रगति की है, लेकिन देश में कायम आर्थिक असमानता एक बड़ा मुद्दा है। लगातार बढ़ रही बेरोजगारी भारत के विकास की राह में बाधक बन सकती है और यदि भारत के विनिर्माण क्षेत्र के विकास की तेज़ी नहीं दिखाई दी तो इस संभावना को और बल मिलेगा। हालाँकि पॉल क्रुगमैन ने भारत में हुए विकास की प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत ने पिछले 30 सालों में जितनी आर्थिक प्रगति की है उतनी ग्रेट ब्रिटेन को करने में 150 साल लग गए थे।

पहले की तुलना में भारत में कारोबारी सुविधाओं में इजाफा हुआ है, इसके बावजूद भारत में स्पष्ट दिख जाने वाली गरीबी भी है। भारत में आर्थिक असमानता का उच्च स्तर देखने को मिलता है , जो विकास के साथ बढ़ता ही गया है। इसके अलावा, देश में संपत्ति का असमान वितरण साफ दिखता है। आर्थिक सुधारों की वज़ह से देश ने तरक्की और विकास तो किया है, लेकिन एक-तिहाई आबादी अभी भी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर कर रही है।

पॉल क्रुगमैन ने भारत की आर्थिक प्रगति को असाधारण बताया और कहा कि देश खरीदारी क्षमता के मामले में जापान से आगे निकल चुका है। चूँकि भारत में लाइसेंस राज रहा है, जहाँ नौकरशाही बाधाएँ बहुत हैं और इन्हें पूर्ण रूप से समाप्त कर पाना फिलहाल संभव भी नहीं है, फिर भी इसमें काफी कमी आई है और भारत में व्यापार करना पहले की तुलना में काफी आसान हो गया है।

विकास की राह में बड़ी बाधा है बेरोज़गारी

  • एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल तकरीबन सवा करोड़ शिक्षित युवा तैयार होते हैं। ये नौजवान रोज़गार के लिये सरकारी और निजी क्षेत्रों में राह तलाशते हैं, लेकिन इनमें से अधिकांश के हाथ असफलता ही लगती है।
  • सरकारी क्षेत्र में नौकरियाँ लगातार कम होती जा रही हैं और निजी क्षेत्र में भी उन्हीं लोगों को रोजगार मिल रहा है, जिन्हें किसी प्रकार का विशेषज्ञ प्रशिक्षण हासिल है।
  • सबसे अधिक बेरोजगारी ग्रामीण क्षेत्रों में है और यह देश के विकास में मुख्य बाधा है, क्योंकि इसकी वज़ह से बड़ी संख्या में गाँवों की ओर से शहरों के तरफ लोगों का पलायन हो रहा है।
  • नए रोज़गारों का सृजन करने में सरकार की विफलता की वजह से बड़े पैमाने पर हो रहे इस पलायन की वजह से शहरों की अवसंरचना पर दबाव बढ़ रहा है।
  • आधुनिकता के कारण परंपरागत संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और नौकरी के लिये युवा लोगों ने शहरों का रुख किया है, और नौकरियाँ हैं नहीं।

सामाजिक चुनौतियाँ भी हैं बाधक

भारत ने 1990 के दशक में आर्थिक सुधार शुरू किये, उम्मीद थी कि इनसे लोगों के आर्थिक हालात सुधरेंगे, लेकिन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर पर्याप्त ध्यान न देने की वज़ह से गरीबी, कुपोषण, भ्रष्टाचार और लैंगिक विषमता जैसी सामाजिक समस्याएँ कम होने के बजाय बढ़ी हैं और देश के विकास को प्रभावित कर रही हैं।

जनसंख्या विस्फोट की स्थिति

  • किसी भी देश का आर्थिक विकास प्राकृतिक संसाधनों और जनसंख्या के आकार-प्रकार तथा कार्यक्षमता पर निर्भर करता है।
  • जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। आज देश की जनसंख्या का आँकड़ा करीब 135 करोड़ तक पहुँच गया है। वैश्विक आंकड़ों पर नज़र डालें, तो भारत विश्व के 2.4 फीसद क्षेत्रफल पर विश्व की 1.5 फीसद आय द्वारा 17.5 फीसद जनसंख्या का पालन-पोषण कर रहा है, जो कि बेहद असमानता भरा है।
  • जनसंख्या की यह वृद्धि आर्थिक विकास के मार्ग को अवरुद्ध करती है।

इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्र के विकास में जनसंख्या की महती भूमिका होती है और विश्व के सभी संसाधनों में सर्वाधिक शक्तिशाली और सर्वप्रमुख संसाधन मानव संसाधन है। परंतु जनसंख्या विस्फोट की स्थिति किसी भी राष्ट्र की सेहत के लिये ठीक नहीं है। ऐसे में आवश्यक है कि भारत जनसंख्या की तीव्र वृद्धि को रोकने के लिये ठोस नीति को आकार दे। जनसंख्या एक बार काबू में आ गई तो गरीबी, बेकारी, बेरोज़गारी, कुपोषण और भुखमरी जैसी समस्याओं का स्वतः ही अंत हो जाएगा।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow