वैश्विक महामारी संधि के करीब | 15 Sep 2022
यह एडिटोरियल 10/09/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The outline of an essential global pandemic treaty” लेख पर आधारित है। इसमें स्वास्थ्य असमानता की बढ़ती व्यापकता और एक वैश्विक महामारी संधि की आवश्यकता के संबंध में चर्चा की गई है।
संदर्भ
संक्रामक रोगों का प्रकोप पहले कुछ देशों तक ही सीमित रहा करता था, लेकिन अब विश्व में महामारियों का खतरा बढ़ता जा रहा है।
कोविड-19 पिछले 100 वर्षों में विश्व में उभरी सबसे गंभीर महामारियों में से एक रहा है। इसने वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और महामारी शासन में व्याप्त खामियों को उजागर किया है और इस तथ्य की बेहतर समझ प्रदान की है कि जब तक हर कोई सुरक्षित नहीं है तब तक कोई भी सुरक्षित नहीं है।
हाल ही में अफ्रीका के लिये स्थानिक प्रकोप रहे मंकी पॉक्स (Monkey Pox) को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (Public Health Emergency of International Concern- PHEIC) घोषित किया गया था। इस तरह के खतरों की बारंबारता एक ठोस वैश्विक कार्रवाई के लिये आवश्यक सूचनाओं और संसाधनों की साझेदारी हेतु दुनिया के देशों के बीच सहयोग की वृद्धि की आवश्यकता रखती है।
पेंडेमिक और एपिडेमिक के बीच अंतर
- पेंडेमिक (Pandemic) को ‘विश्वव्यापी महामारी’ और एपिडेमिक (Epidemic) को ‘सीमित महामारी’ के रूप में समझा जा सकता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की परिभाषा के अनुसार पेंडेमिक की स्थिति उसे माना जाता है जब किसी नए रोग का, जिसके लिये लोगों में प्रतिरक्षा (Immunity) नहीं होती है, दुनिया भर में अपेक्षा से अधिक गति से प्रसार होता है।
- दूसरी ओर, एपिडेमिक की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब किसी आबादी या क्षेत्र में किसी रोग का प्रकोप होता है, लेकिन सीमित क्षेत्र में इसके प्रभाव के कारण यह पेंडेमिक से कम गंभीर स्थिति होती है।
- उदाहरण:
- पेंडेमिक: स्पेनिश फ्लू, कोविड-19
- एपिडेमिक: येलो फीवर, पोलियो
वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग के लिये मौजूदा ढाँचा
- अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमन (International Health Regulations- IHR), जिसे वर्ष 1969 में अपनाया गया और वर्ष 2005 में अंतिम बार संशोधित किया गया, अंतर्राष्ट्रीय विधि का एक साधन है जो भारत सहित 196 देशों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।
- यह रोगों के विश्वव्यापी प्रसार पर रोक, नियंत्रण, इससे बचाव और इस पर सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रतिक्रिया प्रदान करने लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग स्थापित करने पर लक्षित है।
- यह एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है जो विश्वव्यापी प्रसारित होने की क्षमता रखने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य घटनाक्रमों और आपात स्थितियों के प्रबंधन के मामले में विश्व के देशों के अधिकारों और दायित्वों को परिभाषित करता है।
- IHR, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को मुख्य वैश्विक निगरानी प्रणाली के रूप में कार्य करने हेतु सशक्त बनाता है।
- ये विनियमन यह निर्धारित करने के मानदंडों को भी रेखांकित करते हैं कि कोई विशेष स्वास्थ्य घटनाक्रम अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल (PHEIC) का गठन कर रहा है या नहीं।
वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये चुनौतियाँ:
- अक्षम स्वास्थ्य अवसंरचना: सार्वजनिक स्वास्थ्य डेटा और अवसंरचना खंडित हैं तथा किसी भी वैश्विक मानक की कमी है जो मौजूदा स्वास्थ्य प्रणालियों की गुणवत्ता एवं विश्वसनीयता के बारे में एक प्रमुख चिंता का विषय है।
- इसके अलावा, अस्पताल के खर्च का एक बड़ा हिस्सा उन निरोध्य चिकित्सा चूकों या संक्रमणों (Preventable medical mistakes or infections) को ठीक करने में व्यय होता है जिसके शिकार लोग अस्पतालों में होते हैं। इसके साथ ही मेडिकल स्टाफ की कमी की स्थिति भी पाई जाती है।
- भारत में प्रत्येक 10,189 लोगों पर 1 सरकारी चिकित्सक उपलब्ध है (WHO द्वारा अनुशंसित 1:1,000 के अनुपात की तुलना में), जो 6,00,000 चिकित्सकों की कमी को दर्शाता है।
- जलवायु परिवर्तन का खतरा: जलवायु परिवर्तन स्वच्छ हवा, सुरक्षित पेयजल, पौष्टिक खाद्य आपूर्ति और सुरक्षित आश्रय जैसे सुस्वास्थ्य के आवश्यक तत्वों के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
- जलवायु परिवर्तन सूखे और बाढ़ जैसी चरम मौसमी घटनाओं की वृद्धि कर रहा है, जो खाद्य असुरक्षा और कुपोषण दर को बढ़ाने के साथ ही संक्रामक रोगों के प्रसार में मदद करता है।
- बढ़ता व्यावसायीकरण: हालाँकि स्वास्थ्य सेवा का व्यावसायीकरण (Commercialization of healthcare) बेहतर बुनियादी ढाँचे, चिकित्सा सुविधाओं और तकनीकी उन्नति का वादा करता है, लेकिन उच्च लाभ कमाने की मंशा से आरोपित सेवा शुल्कों के कारण गरीब और मध्यम वर्ग के लोग इस लागत का वहन करने में अक्षम होते हैं। यह एक बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली मौजूद होने के मूल उद्देश्य को ही नष्ट कर देता है।
- इसके अतिरिक्त, चिकित्सक अपने लांभ की मंशा से दवा कंपनियों के साथ भ्रष्ट संबंध रखते हैं और प्रायः महँगी ब्रांडेड दवाएँ लिखते हैं (जबकि उनके सस्ते जेनेरिक संस्करण उपलब्ध होते हैं) जो समयबद्ध और सस्ते स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच को बाधित करता है।
- जैव-हथियारों का जोखिम: तकनीकी उन्नति ने जैव आतंकवाद या जैविक युद्ध के लिये उपयोग किये जा सकने वाले जैविक हथियारों के खतरे को बढ़ा दिया है।
- WHO के अनुसार, जैविक और विषाक्त हथियार विषाणु, जीवाणु या कवक जैसे सूक्ष्मजीव के रूप में अथवा जीवित जीवों द्वारा उत्पादित जहरीले पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किये जाते हैं जो मनुष्यों, जीवों या पादपों में रोग एवं मृत्यु का कारण बनने के लिये जानबूझकर उत्पादित और जारी किये जाते हैं।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR): रोगाणुरोधी प्रतिरोध दवाओं की प्रभावशीलता को कम कर रहा है, जिससे संक्रमण और रोगों का उपचार कठिन या असंभव हो जाता है।
- WHO ने AMR को मानव जाति के समक्ष विद्यमान शीर्ष 10 वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों में से एक घोषित किया है।
- वैश्विक एकजुटता का अभाव: दुर्बल वैश्विक एकजुटता की एक झलक तब देखी गई जब महामारी के समय उच्च आय वाले देशों ने विश्व के अन्य देशों के साथ न्यायसंगत रूप से टीकों, दवाओं और निदानों को साझा करने में रुचि नहीं दिखाई।
- विभिन्न वायरस वैरिएंट के उभार से ऐसी असमता के दुष्परिणामों की पुष्टि हुई।
- पेटेंट अधिकारों के कारण विश्व का एक बड़ा भाग वैक्सीन के विकास में पीछे रहा गया।
- विश्व व्यापार संगठन की दोहा घोषण (Doha Declaration) सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल के मामले में पेटेंट अधिकारों में छूट प्रदान करती है।
- हालाँकि कोविड से संबंधित प्रौद्योगिकियों पर पेटेंट अधिकारों से छूट देने के दक्षिण अफ्रीका और भारत के एक प्रस्ताव को अभी तक विश्व व्यापार संगठन की सहमति नहीं मिली है।
आगे की राह
- एक वैश्विक महामारी संधि का निर्माण: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को और सशक्त करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए WHO ने अब भविष्य की महामारियों के लिये बेहतर तैयारी एवं न्यायसंगत प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने और सभी के लिये समानता, एकजुटता एवं स्वास्थ्य के सिद्धांतों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से एक नई अंतर्राष्ट्रीय संधि के विकास और अंगीकरण की प्रक्रिया शुरू की है।
- यह संधि मई 2024 तक प्रक्रिया को पूरा कर लेने के घोषित इरादे के साथ एक अंतर्राष्ट्रीय वार्ता निकाय (International Negotiating Body- INB) के विचार-विमर्श के माध्यम से विकसित की जाएगी।
- ‘वन हेल्थ’ दृष्टिकोण: जीव-मानव-पारितंत्र इंटरफेस पर उत्पन्न होने वाले संभावित या मौजूदा जोखिमों को दूर करने के लिये एक समन्वित, सहभागितापूर्ण, बहु-विषयक और क्रॉस-सेक्टोरल दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- ज़ूनोटिक रोगों के प्रकोप और बढ़ते पर्यावरणीय खतरों का प्रभावी ढंग से पता लगाने के लिये मनुष्यों, जीव-जंतुओं एवं पर्यावरण के स्वास्थ्य को इष्टतम कर उन्हें काफी हद तक रोका जा सकता है।
- रोगाणुरोधी प्रतिरोध के खतरे को कम करने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को विनियमित करने की भी आवश्यकता है।
- आनुवंशिक निगरानी: आनुवंशिक निगरानी (Genetic Surveillance) दुनिया भर में विभिन्न रोग वाहकों, विशेष रूप से विषाणुओं के विकास को समझने का एक उपाय हो सकता है।
- रोगाणुओं की आनुवंशिक निगरानी संपर्क अनुरेखण (contact tracing) के लिये और दुनिया भर में रोगाणुओं के संचरण को समझने के लिये एक आणविक दृष्टिकोण का पालन करते हुए अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
- आपूर्ति शृंखला में लचीलापन: विश्व भर में अत्यंत खंडित स्वास्थ्य सेवा आपूर्ति शृंखला को अनुकूलित करने की आवश्यकता है ताकि सुनिश्चित हो सके कि संकट के समय स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त आपूर्ति उपलब्ध है।
- इसके साथ ही विश्व भर में स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं, निर्माताओं और वितरकों के बीच प्रभावी उपयोजन डेटा की वृहत आवश्यकता है।
अभ्यास प्रश्न: कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और महामारी शासन में व्याप्त खामियों को कैसे उजागर किया है? वैश्विक स्वास्थ्य प्रबंधन में सुधार के उपाय सुझाइए।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स Q.1 H1N1 वायरस का उल्लेख कभी-कभी, निम्नलिखित में से किस रोग के संदर्भ में समाचारों में किया जाता है? (2015) (A) एड्स वर्ष: (D) Q.2 अक्सर समाचारों में रहने वाला 'डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (Médecins Sans Frontières)' है (2016)) (A) विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक प्रभाग उत्तर: (B) मेन्स Q.1 भारत में 'सभी के लिए स्वास्थ्य' प्राप्त करने हेतु उपयुक्त स्थानीय सामुदायिक स्तर पर स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। स्पष्ट कीजिये। (2018) Q.2 सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्रदान करने की सीमाएँ हैं। क्या आपको लगता है कि निजी क्षेत्र इस अंतर को पाटने में मदद कर सकता है? आप और कौन से व्यवहार्य विकल्प सुझाएंँगे? (2015) |