काला धन- आर्थिक अभिशाप | 20 Dec 2019
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में काला धन, अर्थव्यवस्था पर उसके प्रभावों और इस संदर्भ में सरकार द्वारा किये गए प्रयासों पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
प्रख्यात भारतीय अर्थशास्त्री अरुण कुमार की पुस्तक “अंडरस्टैंडिंग द ब्लैक इकॉनमी एंड ब्लैक मनी इन इंडिया” के अनुसार, भारत की ब्लैक इकॉनमी का कुल मूल्य देश की GDP के 62 प्रतिशत के बराबर है। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि विगत कुछ वर्षों में काला धन या ब्लैक मनी भारत में राजनीतिक और आर्थिक रूप से सर्वाधिक चर्चित मुद्दा रहा है। जानकार मानते हैं कि अब तक भारतीय अर्थव्यवस्था को काला धन से अत्यधिक नुकसान पहुँचा है। हालाँकि सरकार ने वर्ष 2016 में काला धन समाप्त करने के उद्देश्य से ‘नोटबंदी’ जैसा बड़ा कदम उठाया था, परंतु जब RBI ने वर्ष 2017-18 के लिये अपनी वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की तो यह तथ्य सामने आया कि प्रतिबंधित नोटों में लगभग 99.3 प्रतिशत नोट बैंकों के वापस आ गए हैं। वस्तुतः नोटबंदी के विकल्प के अतिरिक्त अतिरिक्त काला धन अधिनियम को भी एक महत्त्वपूर्ण उपकरण माना जा रहा था जिससे लोगों को अपेक्षाएँ थी कि सरकार को इससे काफी अधिक मात्रा में काले धन की राशि प्राप्त होगी, परंतु इसी वर्ष मई माह में जारी आँकड़ों के अनुसार उन विदेशी संपत्तियों से मात्र 12,500 करोड़ रुपए ही प्राप्त किये जा सके जिन पर करारोपण नहीं किया गया था। उपरोक्त तथ्य यह दर्शाते हैं कि काले धन जैसी गंभीर समस्या से निपटने के लिये अब तक सरकार ने कई प्रयास किये हैं, परंतु विभिन्न कारणों से अब तक इस उद्देश्य की प्राप्ति संभव नहीं हो पाई है।
कैसे परिभाषित होता है काला धन?
- अर्थशास्त्र में काले धन की कोई आधिकारिक परिभाषा नहीं है, कुछ लोग इसे समानांतर अर्थव्यवस्था के नाम से जानते हैं तो कुछ इसे काली आय, अवैध अर्थव्यवस्था और अनियमित अर्थव्यवस्था जैसे नामों से भी पुकारते हैं।
- यदि सरल शब्दों में इसे परिभाषित करने का प्रयास करें तो कहा जा सकता है कि संभवतः काला धन वह आय होती है जिसे कर अधिकारियों से छुपाने का प्रयास किया जाता है। काले धन को मुख्यतः दो श्रेणियों से प्राप्त किया जा सकता है:
- गैर कानूनी गतिविधियों से।
- कानूनी परंतु असूचित गतिविधियों से।
- उपरोक्त दोनों श्रेणियों में पहली श्रेणी ज़्यादा स्पष्ट है, क्योंकि जो आय गैर-कानूनी गतिविधियों से कमाई जाती है, वह सामान्यतः कर अधिकारियों से छुपी होती है और इसलिये उसे काला धन कहा जाता है।
- दूसरी श्रेणी में उस आय को सम्मिलित किया जाता है जो कमाई तो कानूनी गतिविधियों से जाती है, परंतु उसके बारे में कर अधिकारियों को सूचित नहीं किया जाता है।
- उदाहरण के लिये मान लेते हैं कि यदि ज़मीन के एक टुकड़े को बेचा जाता है और उसका 60 प्रतिशत भुगतान चेक के माध्यम से किया जाता है तथा शेष 40 प्रतिशत भुगतान नकद, ऐसी स्थिति में यदि यह राशि प्राप्त करने वाला व्यक्ति कर विभाग को मात्र 60 प्रतिशत की ही जानकारी देता है और शेष 40 प्रतिशत को छुपा लेता है तो इसे दूसरी श्रेणी से प्राप्त काला धन कहा जाएगा।
- देश भर में लगभग सभी छोटी दुकानें नकद में ही व्यापार करती हैं, जिसके कारण पारदर्शी रूप से उनके लाभ की गणना करना काफी कठिन होता है।
- आमतौर पर लोग यह समझते हैं कि जाली मुद्रा काले धन का ही एक रूप होती है, परंतु असल में ऐसा नहीं है। जहाँ एक ओर जाली मुद्रा का संबंध अनधिकृत एजेंटों द्वारा नए और नकली नोट छापने से है, वहीं काले धन का प्रत्यक्ष संबंध कर की चोरी से होता है।
अपेक्षाकृत कठिन होता है काले धन का निर्धारण
- इसी वर्ष वित्त पर स्थाई समिति ने देश के अंदर और बाहर दोनों जगहों पर काले धन से संबंधी एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें सामने आया था कि रियल एस्टेट, खनन, औषधीय, तंबाकू, फिल्म तथा टेलीविज़न कुछ ऐसे प्रमुख उद्योग हैं जहाँ काले धन की अधिकता पाई जाती है। रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि भारत के पास काले धन का अनुमान लगाने के लिये कोई भी सटीक और विश्वसनीय पद्धति नहीं है।
- काले धन को मापने के लिये जिन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है वे मान्यताओं पर आधारित होती हैं और भारत में अभी तक इस संदर्भ में कार्यरत सभी एजेंसियों की मान्यताओं में एकरूपता नहीं आ पाई है।
भारत में काला धन
- भारत में काले धन की समस्या का विकास 1960 के दशक से शुरू हुआ था। उस समय इसका मुख्य कारण आय और कॉर्पोरेट कर की उच्च दर को बताया गया था। उच्च करों की दर का परिणाम यह हुआ कि आम लोग और व्यापारिक समुदाय काफी बड़े पैमाने पर कर की चोरी करने लगे। वर्ष 1991 में उदारीकरण के पश्चात् काले धन का मुद्दा और भी जटिल हो गया।
- चूँकि काले धन की गणना अपेक्षाकृत काफी कठिन होती है और इसके निर्धारण में प्रयोग होने वाली मान्यताओं में अब तक एकरूपता नहीं आ पाई है इसलिये इसकी निश्चित मात्रा का अनुमान अब नहीं लगाया गया है। इस संबंध में अलग-अलग रिपोर्ट्स अलग-अलग अनुमान प्रस्तुत करती हैं।
- ग्लोबल फाइनेंशियल इंटीग्रिटी रिपोर्ट में उल्लेख किया गया था कि काले धन के रूप में भारत ने वर्ष 2001-2010 की समय सीमा में लगभग 120 बिलियन अमेरिकी डॉलर खो दिये। विदित है कि इस रिपोर्ट में काले धन के निर्माण में भारत को 8वाँ स्थान प्राप्त हुआ था।
- इसी प्रकार भारत के एक पूर्व CBI निदेशक ने कहा था कि भारत में काले धन की कुल मात्रा लगभग 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
- कई विद्वानों का मत है कि भारत का लगभग 90 प्रतिशत काला धन भारत में ही स्थित है जिसका मूल्य तकरीबन 70 लाख करोड़ है। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में काले धन के रूप में कमाए गए 100 रुपए में से 90 रुपए भारत में ही रहते हैं जबकि शेष 10 रुपए राउंड ट्रिपिंग और ट्रांसफर प्राइसिंग जैसी वित्तीय पद्धतियों के माध्यम से देश से बाहर चले जाते हैं।
काले धन की उत्पत्ति
- भ्रष्टाचार
विशेषज्ञ काले धन की उत्पत्ति के पीछे कई कारण गिनाते हैं, परंतु इनमें से भ्रष्टाचार को सबसे महत्त्वपूर्ण कारण माना जाता है। रिश्वत लेना या देना तथा नौकरशाहों, राजनेताओं, सिविल सेवकों एवं हाई प्रोफाइल कारोबारियों द्वारा ऐसी मुद्रा में लेन-देन करना जिसे सरकार की नज़रों से छिपाया गया हो जैसे प्रथाएँ देश में काले धन की उत्पत्ति को बढ़ावा देती हैं। - उच्च कर
जानकार करों की उच्च दर को भी काले धन की उत्पत्ति का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण मानते हैं। करों की उच्च दर आम नागरिकों को अपनी आय पर कर न देने और उसे अवैध रूप से रखने के लिये मजबूर करती हैं। - विदेशी बैंक
विदेशी बैंक भी इस संदर्भ में एक विशेष भूमिका निभाते हैं, क्योंकि वे विदेशों में काले धन के जमाखोरों के लिये एक सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करते हैं। विशेष रूप से स्विस बैंक उन लोगों के लिये सबसे सुरक्षित जगह बन गई है जो कर का भुगतान नहीं करना चाहते हैं और सरकार से अपनी आय छिपाते हैं, क्योंकि ये अपने ग्राहकों की किसी भी जानकारी का खुलासा नहीं करते हैं। रिपोर्ट बताती हैं कि स्विस बैंक के खातेधारकों में सबसे अधिक संख्या भारतीयों की है। - चुनाव अभियान
चुनावी अभियानों भी काले धन की उत्पत्ति में अहम योगदान देते हैं। संसद या विधानसभा चुनावों अथवा स्थानीय स्तर पर किसी अन्य प्रकार चुनावों के लिये उम्मीदवारों द्वारा किये गए अभियानों के कारण करोड़ों की काली कमाई पैदा होती है। आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान चुनाव आयोग ने तकरीबन 3,166 करोड़ रुपए से अधिक नकद, शराब, ड्रग्स और ज्वैलरी जब्त की गई थी।
काले धन का प्रभाव
- सार्वजनिक राजस्व की हानि:
काले धन में वृद्धि और प्रसार का अर्थव्यवस्था पर काफी गंभीर प्रभाव देखने को मिलता है, क्योंकि इसके कारण सरकार के राजस्व में कमी आती है। काले धन को कुछ लोग समानांतर अर्थव्यवस्था के रूप में भी देखते हैं, क्योंकि यह धारणा है कि केवल काले धन से ही अलग अर्थव्यवस्था वर्तमान भारतीय अर्थव्यवस्था के समानांतर चल रही है। जानकारों का मानना है कि यदि देश को उसकी समानांतर अर्थव्यवस्था का कुछ हिस्सा भी प्राप्त हो जाता है तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचेगा।
- राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय:
काला धन लोगों द्वारा कर का भुगतान करते समय सरकार को कम आय का खुलासा करने का परिणाम होता है जिसके परिणामस्वरूप देश की राष्ट्रीय आय में भी कमी आती है। यदि देश की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में काले धन की कुछ मात्रा भी समावेशित होती है तो देश की राष्ट्रीय आय में भारी उछाल देखने को मिल सकता है, इससे न सिर्फ देश का विकास होगा बल्कि आम लोगों के जीवन स्तर में सुधार आएगा।
- सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता में कमी:
चूँकि सरकार के राजस्व में कमी आती है तो वह लोगों के कल्याण पर अधिक-से-अधिक खर्च भी नहीं कर पाती है, जिससे सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता में भी कमी देखने को मिलती है। इसका एक अन्य पक्ष यह है कि गुणवत्तापूर्ण सार्वजनिक वस्तुएँ और सेवाएँ केवल उन्ही लोगों को मिल पाती हैं जो अधिकारियों को रिश्वत देते हैं।
- उच्च कराधान:
कराधान के पीछे मुख्य कारण संतुलित बजट बनाने हेतु सरकार द्वारा किये गए व्यय के लिये राजस्व अर्जित करना है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि किसी कारण से सरकार को घाटा होता है तो वह इस घाटे को पूरा करने के लिये कर की दरों में वृद्धि करेगी। अगर काले धन की मात्रा अर्थव्यवस्था में वापस आ जाती है तो उससे कर की दरों में कमी संभावना बढ़ जाएगी।
- मौद्रिक और राजकोषीय नीति निर्धारण में कठिनाई:
काले धन की मौजूदगी के कारण सरकार को अर्थव्यवस्था से संबंधी स्पष्ट आँकड़े प्राप्त नहीं हो पाते हैं जिसके कारण उसे नीति निर्धारण के समय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति के अनुकूल नीतियाँ बनाना भी संभव नहीं हो पाता है।
सरकार द्वारा किये गए प्रयास
- आय घोषणा योजना
सरकार द्वारा इस योजना की शुरुआत काला धन जमा करने वालों को अपनी पूरी अवैध आय घोषित करने में सक्षम बनाने हेतु की गई थी साथ ही इस योजना में अवैध आय के निर्धारण के लिये समय सीमा भी निर्धारित की गई थी। इस योजना में सभी को बैंक या डाकघर में अपनी अवैध आय का खुलासा करने की अनुमति दी गई थी। इस योजना में घोषित अवैध आय का 25 प्रतिशत हिस्सा प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना में जमा किया जाना था।
- विमुद्रीकरण या नोटबंदी:
यह वर्तमान सरकार द्वारा देश में काले धन को समाप्त करने के लिये उठाए गए कुछ महत्त्वपूर्ण कदमों में से एक था। 8 नवंबर, 2016 को केंद्र सरकार ने 500 और 1000 रुपए की वैद्यता को समाप्त कर दिया और 500 तथा 2000 रुपए के नए नोट जारी किये। सरकार के इस कदम का मुख्य उद्देश्य समानांतर अर्थव्यवस्था को समाप्त करना था, हालाँकि बाद के दिनों में इस कदम को आतंकवादी गतिविधियों पर रोक लगाने वाले कदम के रूप में भी प्रस्तुत किया गया।
कितना सफल था विमुद्रीकरण?
- सरकार ने काले धन को कम करने और कर संग्रह को बढ़ने आदि को विमुद्रीकरण के उद्देश्यों के रूप में प्रस्तुत किया था। हालाँकि वर्ष 2018 में ही जारी भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि विमुद्रीकरण के दौरान अवैद्य घोषित किये गए कुल नोटों का तकरीबन 99.3 प्रतिशत हिस्सा वापस आ गया था।
- RBI द्वारा प्रस्तुत आँकड़ों के आधार पर कई विशेषज्ञों का मानना था कि यदि विमुद्रीकरण का उद्देश्य काले धन को समाप्त करना था तो आँकड़ों के अनुसार यह योजना असफल रही है।
- बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016
यह अधिनियम बेनामी लेनदेन को रोकता है और बेनामी संपत्ति को ज़ब्त करने का प्रावधान है। उल्लेखनीय है कि यह अधिनियम बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 में संशोधन का प्रावधान करता है। संशोधित कानून में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति अदालत द्वारा बेनामी लेनदेन संबंधी अपराध का दोषी पाया जाता है, तो उसे कम-से-कम 1 वर्ष कारावास की सजा दी जाएगी, लेकिन यह 7 वर्ष से अधिक नहीं हो सकती। इसके अलावा उस व्यक्ति को संपत्ति के बाज़ार मूल्य का अधिकतम 25 प्रतिशत हिस्सा भी शुल्क के रूप में देना होगा। - दोहरे करवंचना समझौते (DTAA):
DTAA वह संधि है जिसे करदाताओं को उनकी अर्जित आय पर दो बार कर का भुगतान करने से बचाने के लिये भारत तथा अन्य देशों द्वारा हस्ताक्षरित किया गया था। वर्तमान में भारत ने 88 देशों के साथ DTAA संधि पर हस्ताक्षर किये हैं। - पैन रिपोर्टिंग को अनिवार्य बनाना:
सरकार ने 2.5 लाख रुपए से अधिक के लेन-देन के लिये पैन (PAN) को अनिवार्य बना दिया है, जिसका प्रमुख उद्देश्य कर अधिकारियों से छुपाए जाने वाले लेन-देन को नियंत्रित करना है।
आगे की राह
- आयकर विभाग को आय के एक निश्चित प्रतिशत के रूप में व्यय की सीमा भी निर्धारित करना चाहिये ताकि इससे अधिक व्यय करने पर वह स्वयमेव जाँच के दायरे में आ जाए।
- शिक्षण संस्थाओं की कैपिटेशन फीस पर नज़र रखनी चाहिये। धर्मार्थ संस्थाओं के लिये वार्षिक रिटर्न अनिवार्य बनाना, इन संस्थाओं का पंजीकरण एवं विभिन्न एजेंसियों के बीच सूचना के आदान-प्रदान की व्यवस्था होनी चाहिये।
- चुनावों में काले धन का प्रयोग रोकने के लिये व्यापक कार्य योजना बनानी चाहिये क्योंकि यहाँ काला धन खपाना काफी आसान है जो काला धन के सृजन को प्रेरित करता है। राजनीतिक दलों को ‘सूचना का अधिकार’ (RTI) के दायरे में लाना चाहिये एवं इनके बही-खातों की नियमित ऑडिटिंग करनी चाहिये।
- हवाला करोबार पर अंकुश लगाना चाहिये और आयकर विभाग के अधिकारों एवं स्वायत्तता में वृद्धि की जानी चाहिये।
प्रश्न: काले धन से आप क्या समझते हैं? काले धन के प्रभावों को स्पष्ट करते हुए सरकार द्वारा इस पर अंकुश लगाने हेतु किये गए विभिन्न उपायों पर चर्चा करें।