सामाजिक न्याय
क्या भारत में बढ़ती लिंग असमानता को रोक पाना संभव है?
- 25 Jun 2018
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संदर्भ
अमर्त्य सेन द्वारा भारत में महिलाओं की कम होती संख्या की चुनौतियों के बारे में लिखने के लगभग 28 साल बाद आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 ने इसे देश की सबसे प्रमुख समस्याओं में से एक माना है। हालाँकि यह सर्वेक्षण कई महिला सशक्तीकरण संकेतकों में सुधार के बावज़ूद यह भी प्रदर्शित करता है कि भारत में कम होते लिंगानुपात ने लिंग असमानता को जन्म दिया है। देश में 63 मिलियन महिलाएँ लापता हैं तथा 21 मिलियन लड़कियाँ अवांछनीय हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है जो लैंगिक समानता के मुद्दे पर भारत को रवांडा जैसे देश जिसका इतिहास नरसंहार तथा भेद-भाव से परिपूर्ण है, के पीछे खड़ा करती हैं। ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट, 2016 (Global Gender Gap Report) के अनुसार रवांडा लैंगिक समानता में 5वें स्थान पर है जबकि भारत की इस सूची में 87वें स्थान पर था वर्ष 2017 की वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट में भारत 108वें स्थान पर है।
क्या है लैंगिक असमानता?
- लैंगिक असमानता का तात्पर्य लैंगिक आधार पर महिलाओं के साथ भेद-भाव से है। परंपरागत रूप से समाज में महिलाओं को कमज़ोर वर्ग के रूप में देखा जाता रहा है। वे घर और समाज दोनों जगहों पर शोषण, अपमान और भेद-भाव से पीड़ित होती हैं। महिलाओं के खिलाफ भेद-भाव दुनिया में हर जगह प्रचलित है।
वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट
(Global Gender Gap Report)
- वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) द्वारा जारी की जाती है।
- वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक निम्नलिखित चार क्षेत्रों में लैंगिक अंतराल का परीक्षण करता है।
♦ आर्थिक भागीदारी और अवसर
♦ शैक्षिक उपलब्धियाँ
♦ स्वास्थ्य एवं उत्तरजीविता
♦ राजनीतिक सशक्तिकरण - यह सूचकांक 0 से 1 के मध्य विस्तारित है।
- इसमें 0 का अर्थ पूर्ण लिंग असमानता तथा 1 का अर्थ पूर्ण लैंगिक समानता है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
कन्या भ्रूण हत्या ‘राष्ट्रीय शर्म’
- भारतीय प्रधानमंत्री ने इस वर्ष राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर जब कन्या भ्रूण हत्या को ‘राष्ट्रीय शर्म’ घोषित किया था और ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना को आगे बढ़ाने की बात कही थी तो ऐसी स्थिति में यह प्रतिबिंबित करना और जानना आवश्यक है कि पिछले 30 वर्षों में भारत में लिंग अनुपात को बढ़ावा देने के लिये जिन प्रभावी नीतियों को विकसित किया गया उनसे हमने क्या सीखा है? इस प्रश्न का जवाब हमें तब मिल सकता है जब हम इस धारणा पर पुनर्विचार करें कि क्या केवल सूचना अभियान से व्यवहार में परिवर्तन हो सकता है?
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियानों की समस्या
- हाल के दिनों में सरकार ने ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ जैसे अभियानों के माध्यम से लड़कियों के प्रति लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास किया है।
- इन अभियानों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि स्वयं शिक्षा ने भी भारत में लड़कों को दी जाने वाली प्राथमिकता को कम नहीं किया है।
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम (BBBP)
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम की शुरुआत भारत सरकार द्वारा लड़कियों को बचाने, उनकी सुरक्षा करने और उन्हें शिक्षा देने के लिये की गई है।
- इसका उद्देश्य देशभर में जन अभियान के माध्यम से सामाजिक मानसिकता में बदलाव लाना और इस विषम विषय पर जागरूकता का निर्माण करते हुए बाल लिंगानुपात में आ रही गिरावट का समाधान करना है।
- यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय की एक संयुक्त पहल है।
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस कार्यक्रम के लिये नोडल मंत्रालय है, जो मानव संसाधन विकास और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से ‘बाल लिंगानुपात’ (child sex ratio-CSR) में सुधार करने का प्रयास करता है।
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत क्षेत्रवार हस्तक्षेपों में निम्नलिखित शामिल हैं:
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय
- आंगनवाड़ी केंद्रों पर गर्भावस्था के पंजीकरण को प्रोत्साहित करना;
- भागीदारों को प्रशिक्षित करना;
- सामुदायिक लामबंदी और संवेदीकरण;
- अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे कार्यकर्त्ताओं और संस्थानों को मान्यता और पुरस्कार देना।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
- गर्भधारण पूर्व और जन्म-पूर्व जाँच तकनीकों का निगरानी क्रियान्वयन कानून 1994;
- अस्पतालों में प्रसव को बढ़ोत्तरी, जन्म पंजीकरण, पीएनडीटी सेल को मज़बूत करना;
- निगरानी समितियों का गठन।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय
- लड़कियों का पंजीकरण;
- ड्रॉप आउट दर में कमी लाना;
- विद्यालयों में लड़कियों के अनुरूप मानक बनाना;
- शिक्षा के अधिकार अधिनियम का सख्ती से क्रियान्वयन करना;
- स्कूलों में लड़कियों के लिये शौचालयों के निर्माण पर विशेष ध्यान देना।
क्या कहते हैं 2011 की जनगणना के आँकड़े तथा इस वर्ष जारी स्वास्थ्य सूचकांक?
- 2011 के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में शिक्षित लोगों के अवैध रूप से लिंग आधारित गर्भपात में शामिल होने की अधिक संभावना है।
- नीति आयोग द्वारा इस वर्ष फरवरी माह में जारी स्वास्थ्य सूचकांक यह दर्शाता है कि हाल के वर्षों में पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सहित भारत के 21 बड़े राज्यों में से 17 में लिंगानुपात में कमी आई है। केवल बिहार, पंजाब और उत्तर प्रदेश में लैंगिक अनुपात में सुधार हुआ है।
क्या सूचना कार्यक्रम लिंगानुपात में सुधार के लिये पर्याप्त हैं?
- उपरोक्त आँकड़े दर्शाते हैं कि भले ही सरकार ने लोगों की मानसिकता को बदलने के लिये जागरूकता कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया है लेकिन यह मुद्दा बहुत अधिक जटिल है।
- मात्र सूचनाएँ देना परिवारों के व्यवहार को बदलने के लिये पर्याप्त नहीं है, विशेष रूप से उन स्थानों पर सामाजिक व आर्थिक मुद्दे पर बेटों को बेटियों की तुलना में अधिक प्राथमिकता दी जाती है।
सूचना अभियान तथा व्यवहार परिवर्तन
- हालाँकि लिंगानुपात में सुधार के लिये आयोजित किये गए सूचना अभियानों के प्रभावों को मापने के लिये कोई शोध नहीं किया गया है लेकिन सूचना अभियानों तथा व्यवहार परिवर्तन के बारे में मुद्रित लेखों के माध्यम से इनका उपयोगी निरीक्षण किया जा सकता है।
- भारत में अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (J-PAL) से संबद्ध एक शोधकर्त्ता द्वारा किये गए एक यादृच्छिक मूल्यांकन से पता चलता है कि नौकरी की जानकारी के प्रावधान ने महिला रोज़गार में सुधार किया है और लड़कियों के विरुद्ध होने वाले भेद-भाव को कम किया है।
अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (J-PAL) का अध्ययन
- अध्ययन के हिस्से के रूप में, रिक्रूटर्स ने बीपीओ नौकरियों, मुआवजे के स्तर, आवश्यक योग्यता, और आवेदन प्रक्रियाओं की प्रकृति को महिलाओं को समझाते हुए कुछ चयनित गाँवों में सूचना सत्र आयोजित किये।
- अध्ययन में पाया गया कि सूचना के प्रसार ने महिलाओं को नौकरी ढूँढ़ने में मदद की, माता-पिता को बेटियों की शिक्षा में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित किया और विवाह तथा प्रसव की आयु में काफी वृद्धि हुई।
- J-PAL से संबद्ध शोधकर्त्ता द्वारा किये गए एक और मूल्यांकन में पाया गया कि HIV के प्रसार को कम करने के प्रयास में, किशोर लड़कियां किसी भी जोखिम संबंधित सूचना के प्रति अत्यधिक प्रतिक्रियाशील हैं अतः उन्हें जोखिम संबंधित सूचना उपलब्ध कराने से व्यवहार में परिवर्तन हो सकता।
- ये अध्ययन उन अभियानों में जोखिम की जानकारी शामिल करने में योग्यता का सुझाव देते हैं जिनका उद्देश्य लिंग अनुपात में सुधार करना है।
अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (J-PAL)
(Abdul Latif Jameel Poverty Action Lab, J-PAL)
वर्ष 2003 में स्थापित किया गया अब्दुल लतीफ जमील पावर्टी एक्शन लैब (Abdul Latif Jameel Poverty Action Lab, J-PAL) एक वैश्विक शोध केंद्र है जो वैज्ञानिक साक्ष्यों द्वारा नीतियों की समीक्षा करता है तथा गरीबी उन्मूलन के लिये काम करता है। J-PAL गरीबी के खिलाफ लड़ाई में महत्त्वपूर्ण सवालों के जवाब देने के लिये यादृच्छिक प्रभाव मूल्यांकन से परिणाम प्राप्त करता है और इस जानकारी को साझा करने और प्रभावी कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिये सरकारों, गैर सरकारी संगठनों और दाताओं के साथ संपर्क स्थापित करता है।
(टीम दृष्टि इनपुट)
नकद हस्तांतरण योजनाएँ तथा उनका प्रभाव
- सूचना अभियानों के अतिरिक्त, व्यवहार परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारों द्वारा एक और आम दृष्टिकोण प्रत्यक्ष नकदी हस्तांतरण को अपनाया गया है।
- पश्चिम बंगाल और हरियाणा सहित अन्य कई राज्य सरकारों ने परिवारों को लड़कियों की शिक्षा के प्रति प्रेरित करने के लिये और इसके माध्यम से लैंगिक समानता में सुधार करने के लिये कन्याश्री, लाडली और देवीरुपक जैसे सशर्त और बिना शर्त नकद हस्तांतरण योजनाएँ लागू की हैं।
- हालाँकि इस बात के साक्ष्य कम ही हैं कि नकद हस्तांतरण योजनाएँ लिंगानुपात को सुधारने में कितनी सफल रही हैं फिर भी कुछ साक्ष्य दर्शाते हैं कि व्यवहार परिवर्तन के लिये नकद हस्तांतरण योजनाएँ उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।
- उदहारण के लिये मलावी में J-PAL संबद्ध शोधकर्त्ताओं ने लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य परिणामों में सुधार तथा इनके खिलाफ भेद-भाव को कम करने के लिये नकद हस्तांतरण के प्रभाव की जाँच की। इस अध्ययन में पाया गया कि सशर्त नकद हस्तांतरण ने स्कूलों में लड़कियों की उपस्थिति में वृद्धि की साथ ही HIV के प्रसार में भी कमी लाने में मदद की। वहीँ लड़कियों के विवाह तथा प्रसव की उम्र में वृद्धि के लिये बिना शर्त हस्तांतरण अधिक प्रभावी थे।
- विवाह और प्रसव संबंधी व्यवहार गंभीर रूप से आरोपित किये गए व्यवहार हैं, इसलिये इन परिणामों से पता चलता है कि लड़कों को वरीयता दिये जाने वाले व्यवहार में परिवर्तन उत्पन्न करने की दिशा में सशर्त और बिना शर्त नकद हस्तांतरण प्रभावी सिद्ध हो सकते हैं। इस दृष्टिकोण की क्षमता को बेहतर ढंग से समझने और लैंगिक समानता में सुधार के उद्देश्य से नकदी हस्तांतरण कार्यक्रमों के प्रभाव का आकलन करने के लिये और अधिक मूल्यांकन किये जाने चाहिये।
जारी है प्रजनन में दर में गिरावट
- इस मुद्दे से संबंधित वास्तविक जानकारी J-PAL संबद्ध शोधकर्त्ता द्वारा किये गए शोध से प्राप्त की जा सकती जो बताता है कि प्रजनन दर में गिरावट जारी है, इसलिये लिंग अनुपात में और अधिक कमी होने का खतरा है।
- हरियाणा में देवीरुपक योजना से संबंधित एक अध्ययन में पाया गया कि परिवार में कम बच्चे होने की योजना के परिणामस्वरूप बेटे को दी जाने वाली प्राथमिकता तेज़ी से बढ़ी।
- यद्यपि योजना के मुताबिक केवल एक बेटी को जन्म देना अधिक फायदेमंद था, लेकिन उसने ऐसे परिवारों के अनुपात में वृद्धि नहीं की जिसमें केवल एक बेटी ही हो बेटा नहीं। लेकिन अधिकांशतः दंपत्तियों ने परिवार को सीमित रखने के विकल्प के रूप में एक बेटे का चुनाव किया और छोटा पारितोषिक प्राप्त किया।
आगे की राह
- उपरोक्त निष्कर्षों से पता चलता है कि यदि एक ही समय में प्रजनन दर को कम करने तथा लिंगानुपात को बढ़ाने का लक्ष्य रखा जाता है तो नकद हस्तांतरण लिंग अनुपात को सुधारने में असफल हो सकता है।
- इन शोधों से प्राप्त परिणाम लागत-लाभ अभियानों की प्रभावशीलता का सुझाव देते हैं जो कुछ व्यवहारों से जुड़े जोखिम और अवसर प्रस्तुत करते हैं और लोगों को अपने निर्णय लेने के लिये सशक्त बनाते हैं।
निष्कर्ष
सशर्त नकद हस्तांतरण व्यवहार परिवर्तन के लिये एक उपयोगी माध्यम सिद्ध हो सकता है। इसके अलावा यदि ऐसे कार्यक्रमों का निर्माण किया गया जिनमें लिंग अनुपात को बेहतर बनाने तथा परिवारों को सीमित करने का उद्देश्य एक साथ शामिल किया जाता है तो उसके परिणाम प्रतिकूल हो सकते हैं। सरकारी कार्यक्रमों के दीर्घकालिक प्रभावों का आकलन करने के लिये कुछ कठोर अध्ययन किये जाने की आवश्यकता है जिनका लक्ष्य लिंग अनुपात में गिरावट की समस्या को हल करना हो।