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क्यों महत्त्वपूर्ण है न्यूट्रिनो वेधशाला?

  • 27 Jun 2017
  • 15 min read

सन्दर्भ:
विज्ञान और रुढ़िवादियों के मध्य हमेशा से टकराव होता आया है। आज हम कितना भी वैज्ञानिक प्रवृति के होने का ढोंग कर लें, यदाकदा हमारी जड़ता जगज़ाहिर हो ही जाती है। ऐसा ही कुछ आजकल भारत में प्रस्तावित न्यूट्रिनो वेधशाला के विकास के सन्दर्भ में देखने को मिल रहा है। दरअसल, कुछ राजनैतिक दलों एवं सामाजिक कार्यकर्त्ताओं का यह कहना है कि तमिलनाडु में मदुरई के निकट थेनी में एक पहाड़ के नीचे विकसित की जाने वाली इस वेधशाला से वहाँ रेडियोधर्मिता का खतरा देखने को मिल सकता है, जबकि सच यह है कि इस वेधशाला से आस पास के वातावरण को कोई खतरा नहीं है। इन सभी बातों के मद्देनज़र यह देखना दिलचस्प होगा कि न्यूट्रिनो वेधशाला क्या है और किस प्रकार से यह पूर्णतः सुरक्षित है?

क्या होते हैं न्यूट्रिनो (neutrino)?

  • वर्ष 1610 में गैलिलियो ने स्वयं के द्वारा विकसित टेलिस्कोप से जुपिटर ग्रह के आस-पास चार चमचमाते बिंदुओं को देखा। कुछ ही दिनों में वह इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि ये चमकीले बिंदु जुपिटर का चक्कर लगा रहे हैं, अर्थात् उसकी परिक्रमा कर रहे हैं।  गैलिलियो ने घोषित कर दिया कि ये चारों बिंदु जुपिटर के उपग्रह हैं। इस समूची प्रक्रिया में हम यह देख सकते हैं कि प्रकाश के माध्यम से हम कई महत्त्वपूर्ण अन्वेषण कर सकते हैं।
  • वास्तव में विभिन्न खगोलीय पिंडों के स्वयं के या उनके द्वारा परावर्तित प्रकाश की मदद से वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड के कई रहस्य सुलझाए हैं,  लेकिन क्या हमने कभी प्रकाश के अलावा अन्य माध्यमों पर गौर किया है, जिनसे कि खगोलीय रहस्यों से पर्दा उठाया जा सके? न्यूट्रिनो एक ऐसा ही माध्यम है। 
  • दरअसल, हमारा ब्रह्मांड एक सुपर हाइवे जैसा है। इसमें अरबों-खरबों कण बहुत लम्बी-लम्बी यात्राओं पर निकलते हैं, जिनमें से कई हम तक पहुँच चुके हैं तो कई अभी रास्ते में ही हैं। इन सभी कणों में न्यूट्रिनो नामक कण सबसे दृढ़निश्चयी यात्री प्रमाणित होता है। यह कण सघन खगोलीय पिंडों के बीच से होकर आगे बढ़ता है, विशालकाय आकाशगंगाएँ और अन्तरतारकीय बाधाएँ भी इसका रास्ता रोक नहीं पाती हैं।
  • जिस प्रकार यात्री के पास यात्रा से प्राप्त विभिन्न प्रकार के अनुभव होते हैं, उसी प्रकार एक संभावना है कि न्यूट्रिनो कण से भी अंतरिक्ष से संबंधित विभिन्न प्रकार की जानकारियां प्राप्त की जा सकती हैं। यही कारण है कि वैज्ञानिकों की न्यूट्रिनो के अध्ययन में विशेष रुचि रही है।
  • फोटोन के बाद न्यूट्रिनो प्रचुर मात्रा में ब्रह्माण्ड में विद्यमान है। हमारे ब्रह्माण्ड में प्रत्येक एक घन सेंटीमीटर में लगभग 300 न्यूट्रिनो होते हैं। ये कण सूर्य जैसे तारों से, रेडियोसक्रिय क्षय और वायुमंडल से कॉस्मिक विकिरणों की अंतःक्रिया से उत्पन्न होते हैं। हम इन्हें नाभिकीय रियक्टर से भी निर्मित कर सकते हैं।

कैसे पैदा होते हैं न्यूट्रिनो?

  • बिग बैंग के बाद जो बेहद आरंभिक न्यूट्रिनो पैदा हुए थे, वो आज तक भी हमारे ब्रह्मांड में घूमते रहते हैं। सौर केंद्र में परमाणु संलयन की वजह से जो न्यूट्रिनो उत्पन्न हुए, वो पृथ्वी के ऊपर, हम सब के ऊपर घूमते रहते हैं। प्रति सेकंड लगभग 100 खरब न्यूट्रिनो सूर्य और अन्य पिंड़ों से उत्सर्जित होकर हमारे शरीर से टकराते हैं, लेकिन इससे हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचता है।
  • हालाँकि, न्यूट्रिनो के बारे में गहराई से जानने से पहले हमें इसके अतीत से भी रूबरू होना पड़ेगा। सन् 1930 में जब जाने-माने वैज्ञानिक पॉउली (Wolfgang Ernst Pauli) को प्रयोगों से पता चला कि जब कोई अस्थिर आण्विक नाभिक एक इलेक्ट्रॉन को छोड़ता है, तो उसकी नई ऊर्जा और गति उम्मीद के मुताबिक नहीं होती है। इस समीकरण को संतुलित करने और ऊर्जा सरंक्षण सिद्धांत को कायम रखने के लिये पॉउली ने एक सैद्धांतिक कण की अवधारणा प्रस्तुत की। 
  • पाउॅली के अनुसार इस कण में न तो धनात्मक आवेश था और न ही ऋणात्मक। आगे चलकर सन् 1933 में प्रसिद्ध वैज्ञानिक फर्मि (Enrico Fermi) ने इस कण को न्यूट्रिनो नाम दिया। न्यूट्रिनो के नामकरण के साथ ही पॉउली की ऊहापोह तो खत्म हो गई पर ये कण उन्हें फिर भी परेशान करता ही रहा। उनकी परेशानी यह थी कि उन्होंने एक ऐसे कण की मौजूदगी स्वीकार की थी, जिसका पता ही नहीं लगाया जा सकता। सन् 1956 में फ्रेड रैनिस् और क्लायड कोवेन नामक वैज्ञानिकों ने आखिरकार न्यूट्रिनो के मिल जाने की घोषणा की।

क्यों कठिन है न्यूट्रिनो को खोजना?

  • दरअसल, न्यूट्रिनो कण भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल में सबसे मुश्किल से दिखने वाला कणों में से एक है। हालाँकि आधुनिक भौतिकी में स्टैंडर्ड मॉडल इस सवाल का बेहद सरल जवाब देता है की पूरे ब्रह्मांड को बनाने वाले कुल 12 बुनियादी ब्लॉक हैं।
  • ये ब्लॉक चार बलों के ज़रिये आपस में अंतःक्रिया करके तमाम पदार्थों को बनाते हैं। हम कुछ अधिक प्रसिद्ध बुनियादी कणों जैसे कि इलैक्ट्रॉन और फोटोन के बारे में तो जानते हैं, लेकिन न्यूट्रिनो का एक अलग ही गुण होता है, जिसके कारण यह आसानी से नज़र नहीं आता है। 
  • हम जानते हैं कि गुरुत्व और विद्युतचुम्बकत्व हमारे जीवन को बड़ी गहराई से प्रभावित करते हैं, लेकिन गुरुत्व और विद्युतचुम्बकत्व का बिना आवेश वाले और लगभग द्रव्यमान विहीन न्यूट्रिनो पर कोई प्रभाव देखने को नहीं मिलता है। यह इलैक्ट्रॉन्स या प्रोटोन की तरह, किसी पदार्थ के अणु बनाने के लिये न तो अंतःक्रिया करता है और न ही यह दूसरे भारी पिंडों की ओर आकर्षित होता है।
  • न्यूट्रिनो की अंतःक्रियाएं बहुत ही कमज़ोर होती हैं, इतनी कमजोर कि उन्हें आसानी से न तो रोका जा सकता है और न ही नियंत्रित किया जा सकता है। यह कमजोर अंतःक्रियाएँ न्यूट्रिनो से संबंधित अन्वेषण में वैज्ञानिकों की रुचि के महत्त्वपूर्ण कारण हैं। न्यूट्रिनो के रास्ते में लगभग कोई बाधा नहीं होती है इसलिये वे हम तक पहुंचने के लिये आराम से अंतरिक्ष में सफर कर पाते हैं।
  • सूर्य से आने वाले न्यूट्रिनो क पहचानना इसलिये भी मुश्किल है क्योंकि अपनी यात्रा में पहले ये इलेक्ट्रॉन प्रकार के न्यूट्रिनो होते हैं, लेकिन बाद में म्यूएन प्रकार के न्यूट्रिनो में परिवर्तित हो जाते हैं। भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल के अनुसार किसी एक प्रकार का न्यूट्रिनो दुसरे प्रकार के न्यूट्रिनो में परावर्तित नहीं हो सकता है। अतः इनका अध्ययन भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल में बदलाव का भी संकेत हो सकता है।

न्यूट्रिनो से संबंधित अनुसंधान और भारत

  • पूरी दुनिया में बहुत से वैज्ञानिक पिछली सदी के दौरान, मुश्किल से नज़र आने वाले न्यूट्रिनो को खोजते रहे हैं और भारत भी इसमें पीछे नहीं है। कॉस्मिक रे से बनने वाले न्यूट्रिनो का सबसे पहले पता 1965 में जमीन में करीबन 2.3 किलोमीटर की गहराई पर, कोलार सोने की खदानों में एक न्यूट्रिनो संसूचक की मदद से लगाया गया था।
  • हालाँकि आज वायुमंडलीय न्यूट्रिनो शोध के लिये सर्वाधिक आर्कषक क्षेत्र है। 1990 के दशक में कोलार सोने की खदानों के बंद हो जाने से भारत के न्यूट्रिनो कार्यक्रमों का मार्ग अवरुद्ध हो गया। हमारे देश के न्यूट्रिनो कार्यक्रम के खत्म हो जाने के कारण अमेरिका और जापान जैसे देश आगे बढ़ गए और उन्होंने कई नई और अनोखी खोजें की।
  • बदकिस्मती से उस समय इस दिशा में काम बंद कर दिया था। हालाँकि टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान द्वारा केरल की सीमा से सटे तमिलनाडु के थानी ज़िले में बोडी पहाड़ियों वाले स्थान को विज्ञान के एक अहम प्रयोगस्थल ‘न्यूट्रिनो वेधशाला’ के लिये चुना गया है। आज न्यूट्रिनो वेधशाला भारत की विज्ञान की व्यापक और बेहद महत्त्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक है।
  • विकसित होने के बाद यह वेधशाला न्यूट्रिनो भौतिकी के सन्दर्भ में नए और अनोखे प्रयोगों की साक्षी बनेगी। न्यूट्रिनो वेधशाला भारतीय विज्ञान के क्षेत्र में अब तक के सबसे बड़े सहयोग का भी उदाहरण है। इस अंतरसंस्थानिक सहयोग में 26 जाने-माने विज्ञान संस्थानों के 100 से ज़्यादा वैज्ञानिक शामिल हैं।
  • न्यूट्रिनो वेधशाला परियोजना के तहत 1300 मीटर ऊंचे चट्टानी पहाड़ों के ठीक नीचे 2 किलोमीटर लम्बी एक सुरंग बनाई जाएगी, ताकि एक अनोखी भूमिगत प्रयोगशाला बनाई जा सके। इस परियोजना को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा सहयोग प्रदान किया गया है।
  • इस परियोजना की संकल्पना पूरी तरह से भारतीय वैज्ञानिकों ने प्रस्तुत की। सन् 2002 में सात भारतीय संस्थानों ने इस संबंध में एक ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य न्यूट्रिनो का अध्ययन करना है।

क्या है चिंता का विषय?

  • विदित हो कि थेनी जहाँ यह वेधशाला स्थापित की गई है वहाँ आसपास मौजूद स्थानीय निवासियों को तमाम जानकारियाँ दी जा रही है ताकि बेवजह की आशंकाओं और गलतफहमियों को दूर किया जा सके। असल में इस प्रयोग को लेकर कुछ अफवाहें भी प्रचारित हुईं।
  • एक अफवाह के अनुसार इस वेधशाला में नाभिकीय अपशि‍ष्टों को एकत्र किया जा रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि यहाँ सिर्फ आधारभूत विज्ञान को गहराई से समझने विशेष रूप से न्यूट्रिनो को समझने से संबंधित प्रयोग किये जाएंगे।
  • एक अफवाह यह भी उड़ी कि यहाँ होने वाले प्रयोग पर्यावरण को क्षति पहुँचाएंगे, लेकिन इस वेधशाला की स्थापना से पहले पर्यावरण से संबंधित सभी पहलुओं पर विचार किया जा चुका है। इसलिये विभिन्न अफवाहों से परे यह वेधशाला विज्ञान के कल्याणकारी स्वरूप को समर्पित है।

निष्कर्ष
स्थानीय लोगों की चिंताओं का संज्ञान लेते हुये वेधशाला के कर्मियों द्वारा आम लोगों और पर्यावरण की चिंता करने वाले लोगों के साथ बातचीत की जानी चाहिये। स्थानीय लोगों से बात करके उन्हें इस परियोजना के प्रभाव के बारे में बताया जाना चाहिये। इस परियोजना से जुड़े वैज्ञानिकों को उनसे चर्चा करते रहना चाहिये, ताकि इस परियोजना के बारे में स्थानीय लोगों के बीच एक सकारात्मक माहौल बनाया जा सके। छुद्र लाभ और व्यक्तिगत हितों की आड़ में परियोजना के बारे में दुष्प्रचार करने वाले लोगों से सख्ती से निपटना चाहिये।

विदित हो कि सूर्य से आने वाला न्यूट्रिनो हो या वायुमंडल में पहले से ही मौज़ूद न्यूट्रिनो, यह किसी भी प्रकार से हमारे वातावरण को क्षति पहुँचाने वाला नहीं है, क्योंकि यह बहुत ही कमजोर कण है जो अन्य कणों से अंतःक्रिया करने में लगभग असमर्थ है, जिसे हम बिना किसी वेधशाला की मदद के देख या महसूस तक नहीं कर सकते हैं। अतः इस वेधशाला के प्रति व्यक्त चिंताएँ निर्मूल हैं और लोगों को यह समझना होगा।

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