इदलिब, सीरियाई युद्ध हेतु अंतिम विकल्प | 29 Sep 2018
संदर्भ
हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उनके तुर्की समकक्ष रसेप तय्यिप एर्दोगान के बीच इदलिब को आतंकवादी हमले से बचाने के लिये समझौता किया गया है। उल्लेखनीय है कि है यह सीरिया में अंतिम स्थान है जहाँ सरकार विरोधी तथा आतंकवदी गतिविधियाँ जारी हैं। इस समझौते के अनुसार, रूस और तुर्की इदलिब के आतंकवादियों और प्रशासनिक बलों के बीच एक असैन्य ज़ोन के माध्यम से संपर्क स्थापित करेंगे, उम्मीद है कि इससे मानवतावाद के समक्ष उत्त्पन्न संकट को रोका जा सकेगा।
इदलिब शहर
- इदलिब, सीरिया के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित एक शहर है और इस पर सीरियाई सरकार द्वारा शासन चलाया जाता है तथा यह अलेप्पो से 59 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
- कई महीनों से इदलिब पर युद्ध के बादल छाए हुए थे, तीन साल से अधिक समय तक यह शहर सीरियाई सरकार के नियंत्रण से बाहर रहा है। हाल ही में राष्ट्रपति बशर अल-असद ने वास्तव में यहाँ चल रहे गृहयुद्ध में जीत हासिल की है।
- दरअसल, तब से यहाँ शासन ने अलेप्पो, दारा और पूर्वी घौता समेत अधिकांश प्रमुख जनसंख्या वाले केंद्रों को फिर से हासिल कर लिया है जो प्रमुख रूप से आतंकवादियों के कब्ज़े में थे।
- सरकारी नियंत्रण के बाहर स्थित इन तीन क्षेत्रों को इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है: पहला क्षेत्र इदलिब शहर है, जो आतंकवादियों और जिहादी समूहों द्वारा नियंत्रित है, वहीं दूसरा क्षेत्र कुर्दिस्तान का है जिस पर कुर्द विद्रोहियों का नियंत्रण है और ये दमिश्क के शत्रु नहीं हैं, बल्कि अधिक स्वायत्तता चाहते हैं तथा तीसरे क्षेत्र के अंतर्गत अफरीन तथा जराबुलस जैसे सीमावर्ती कस्बे शामिल हैं जो तुर्की के नियंत्रण में हैं।
सीरियाई गृहयुद्ध हेतु स्पष्ट और आखिरी विकल्प इदलिब
- उपर्युक्त क्षेत्रों में शासन के पास कुर्दों पर हमला करने की कोई तत्काल योजना नहीं है, क्योंकि उन्हें अमेरिका का समर्थन प्राप्त है।
- साथ ही सीरियाई सरकार तुर्की पर हमला कर एक बड़ा युद्ध का जोखिम नहीं उठा सकती है।
- जाहिर है कि अगली लड़ाई या शायद सीरियाई गृहयुद्ध के लिये स्पष्ट और आखिरी विकल्प इदलिब ही था।
- उल्लेखनीय है कि हाल ही में रूस और तुर्की के बीच हुए समझौते के आधार पर ईरान ने भी इस योजना का समर्थन किया क्योंकि वह चाहता है कि बशर अल-असद पूरे सीरिया में अपना अधिकार दोबारा स्थापित करें।
- ये प्रांत सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को सत्ता से हटाने की कोशिश कर रहे विद्रोहियों और जिहादी गुटों का आख़िरी गढ़ है।
- संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि इदलिब में लगभग 29 लाख लोग रहते हैं जिनमें से क़रीब 10 लाख बच्चे हैं और इस शहर में रहने वाले अधिकतर लोग विद्रोहियों के कब्ज़े वाले अन्य इलाकों से भागकर आए हैं।
- दरअसल, जैसे-जैसे सरकार विद्रोहियों के ठिकानों पर जीत हासिल करती गई, वहाँ के लोग भागकर इदलिब आकर बस गए।
- उम्मीद जताई जा रही है कि अगर इदलिब में विद्रोहियों को ख़त्म कर दिया गया तो उनके पास सीरिया के भीतर बहुत कम इलाके बचेंगे और इस प्रकार इदलिब में विद्रोहियों की हार उनका अंत साबित हो सकती है।
तुर्की की भूमिका
- गृहयुद्ध की पिछली लड़ाई में रूस ने इस क्षेत्र में अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। अलेप्पो और पूर्वी घौता में रूसी युद्धक विमान द्वारा की गई बमबारी शासन की जीत के लिये महत्त्वपूर्ण थी लेकिन इदलिब में स्थिति अलग है।
- पिछले दो वर्षों से रूस और तुर्की का एक-दूसरे के साथ संबंध ठीक नहीं हैं और पिछले साल रूस, तुर्की और ईरान इदलिब के लिये एक डी-एस्केलेशन योजना पर सहमत हुए, जिसने प्रांत को रूसी-सीरियाई हमलों से बाहर रखा था।
- इस समझौते की शर्तों के अनुसार, तुर्की द्वारा फ्रंट लाइन पर 12 अवलोकन अंक स्थापित किये गए और जो लोग शासनाधिकार क्षेत्रों के तहत नहीं रहना चाहते थे उन्हें इदलिब में शामिल किया गया था।
- वर्तमान में इस प्रांत में लगभग तीन मिलियन निवासी हैं और उनमें से से भी आधे से अधिक आंतरिक रूप से विस्थापित लोग हैं।
- तुर्की, जिसमें पहले से ही 5 मिलियन सीरियाई शरणार्थी हैं, को डर है कि इदलिब पर एक पूरी तरह से हमला एक और बड़े पैमाने पर शरणार्थी प्रवाह को उसकी और धकेल देगा।
- इदलिब में जिहादियों की एक बड़ी संख्या हयात ताहरिर अल-शम (HTS) की है, पूर्व में जबात अल-नुसर जो कि सीरिया में अल-कायदा सेना थी, प्रांत के सबसे शक्तिशाली आतंकवादी समूहों में से एक है।
- इसके अलावा, इदलिब तुर्की के साथ सीमा भी साझा करता है, जो अब बंद है और युद्ध की स्थिति में शरणार्थी तुर्की सीमा में या पड़ोसी अफरीन और जराबुलस क्षेत्रों में जाएंगे, जो तुर्की द्वारा ही नियंत्रित होते हैं।
- अतः किसी भी स्थिति में, इदलिब पर हमले से तुर्की को खुद संकट का सामना करना पड़ेगा। दरअसल, अभी तक 2016 से जारी आतंकवादी हमलों की श्रृंखला खत्म नहीं हुई है इसलिये तुर्की की रुचि भी इदलिब के लिये एक अहिंसक समाधान खोजने की है।
रूस की भूमिका
- दूसरी तरफ, रूस दुविधा में है और वह चाहता है कि असद गृहयुद्ध को जीतने के लिये सीरिया में वैध रास्ते का चयन करें। लेकिन रूस यह भी जानता है कि अलेप्पो और पूर्वी घौता के अभियानों से पहले ही स्थिति बिगड़ चुकी हैं और इदलिब की आबादी को देखते हुए अगला युद्ध अधिक विनाशकारी होगा।
- इसके अलावा, रूसी राष्ट्रपति के साथ संबंधों को तरजीह दी है। उल्लेखनीय है कि तुर्की, जो नाटो का सदस्य है, का संबंध अमेरिका के प्रति तेज़ी से शत्रुतापूर्ण हो रहा है,
- उपर्युक्त वैचारिक कारणों से रूस पश्चिम एशिया के मामलों में संलग्न नहीं हो रहा है।
- रूस ने ईरान और इज़राइल दोनों के साथ अपने मज़बूत संबंध बनाए हैं और तुर्की के साथ बढ़ती साझेदारी इस क्षेत्र में उसके शक्ति परीक्षण के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि तुर्की के साथ शत्रुता रखकर रूस की बोस्पोरस तक पहुँच स्थापित नहीं हो पाएगी और इससे रूस की भूमध्य रणनीति भी खतरे में आ सकती है।
- आगे की राह
- इदलिब समझौता महत्त्वपूर्ण तो है लेकिन इसने संकट के लिये कोई यथार्थवादी समाधान नहीं दिया है क्योंकि समस्या का मुख्य कारण इदलिब में HTS की उपस्थिति है।
- संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, इदलिब में लगभग 15,000 HTS सेनानी हैं। सरकार की योजना HTS और तुर्की समर्थित विद्रोहियों सहित सभी आतंकवादी समूहों पर हमला करना है और इस प्रकार वह अलेप्पो प्रांत को फिर से अपने कब्ज़े में लाना चाहता है।
- न तो सीरियाई सरकार और न ही तुर्की अल-कायदा से जुड़े समूह को इदलिब में एक सुरक्षित आश्रय प्रदान करने की अनुमति दे सकते हैं।
- हालाँकि, तुर्की ने HTS सेनानियों से अपने संगठनात्मक शक्ति को बढ़ाने के लिये अहिंसक रणनीति का उपयोग करने का प्रस्ताव किया है।
- इसके साथ ही वर्तमान समझौते को लागू करने का बोझ भी तुर्की पर ही है जिसके लिये प्रस्तावित असैन्य क्षेत्र से विद्रोहियों के भारी हथियारों की वापसी और प्रांत के अंदर HTS को हराने के लिये एक मज़बूत रोड मैप तैयार करना ज़रूरी है और यह बहुत आसान नहीं है।
- यदि तुर्की अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहता है, तो रूस को उसकी मूल योजना यानी अलेप्पो मॉडल (जिस तरह अलेप्पो शहर से आतंकवादियों को खदेड़ा और इस शहर में शांति स्थापना हेतु भारी विध्वंश का मार्ग चुना गया) पर वापस जाने का बहाना देगा और यह एक और विध्वंश का कारण भी बनेगा।
- अतः कहा जा सकता है कि पुतिन-एर्दोगन समझौते ने भले ही एक युद्ध को स्थगित कर दिया हो, लेकिन इससे युद्ध का संकट खत्म नहीं हुआ है।