आंतरिक सुरक्षा
त्रिपुरा के लिये एनआरसी की माँग
- 22 Oct 2018
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संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने त्रिपुरा के लिये एनआरसी की माँग करने वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इस मामले पर केंद्र सरकार से जवाब माँगा है। उल्लेखनीय है कि यह याचिका त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट द्वारा दायर की गई थी। इस लेख के माध्यम से हम त्रिपुरा में प्रवासन के इतिहास और राज्य की राजनीति पर इसके प्रभाव पर नज़र डालेंगे। साथ ही त्रिपुरा में एनआरसी की बढ़ती मांग के कारणों का जिक्र करेंगे।
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
(टीम दृष्टि इनपुट) |
त्रिपुरा के मूल निवासी कौन हैं?
- त्रिपुरा में 19 अनुसूचित जनजातिययाँ अधिसूचित हैं, जिनमें से त्रिपुरी सबसे बड़ा समूह है। इन्हें यहाँ का सबसे पुराना निवासी माना जाता है क्योंकि ये ही सबसे पहले त्रिपुरा में आए।
- 13वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से 15 अक्तूबर, 1949 को भारत सरकार के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये जाने तक त्रिपुरा की रियासत पर त्रिपुरी समुदाय से संबंधित माणिक्य राजवंश का शासन था।
- 2011 की जनगणना के अनुसार त्रिपुरी (जो कि इंडो-मंगोलिया परिवार से संबंध रखते हैं) की संख्या 5.92 लाख है, इसके बाद रियांग (1.88 लाख) और जमातिया (83,000) हैं।
गैर-जनजातीय समूहों का त्रिपुरा में प्रवेश
- 1881 में हुई जनगणना के अनुसार, त्रिपुरा की कुल जनसंख्या में जनजातियों का प्रतिशत 63.77 था, जबकि 2011 में यह प्रतिशत घटकर 31.80 पर आ गया।
- इसमें 1947 और 1971 के बीच पूर्वी पकिस्तान से विस्थापित 6.10 लाख बंगालियों का प्रवासन शामिल था।
- प्रवासन की विशालता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1951 में राज्य की कुल आबादी 6.39 लाख थी तथा उसमें 6.10 लाख लोग प्रवासन के बाद और आ गए।
- हालाँकि ऐसा नहीं था कि 1947 से पहले प्रवासन न हुआ हो लेकिन देश के विभाजन के बाद प्रवासन बहुत अधिक हुआ।
- माणिक्य राजाओं ने चाकला रोशनबाद (अब बांग्लादेश में) के बंगालियों को अपने राज्य में काम करने के लिये नियुक्त किया था उन्हें खेती का विस्तार करने हेतु मैदानी इलाकों में बसने के लिये प्रोत्साहित किया था।
वर्तमान में त्रिपुरा में बंगालियों की संख्या
- वर्ष 2011 की भाषा आधारित जनगणना के अनुसार, त्रिपुरा में 24.14 लाख लोगों की मातृभाषा बांग्ला थी।
- इस प्रकार राज्य में बांग्ला बोलने वालों की संख्या राज्य की कुल आबादी (36.74 लाख) का दो-तिहाई और कोकबोरोक भाषा बोलने वाले 8.87 लाख लोगों की संख्या का लगभग तीन गुना है। कोकबोरोक भाषा तिब्बती-बर्मन परिवार की भाषा है और सबसे बड़े जनजातीय समूहों की भी मातृभाषा है।
- वर्ष 1979 में कोकबोरोक को बांग्ला और अंग्रेज़ी के साथ आधिकारिक भाषा का दर्ज़ा दिया गया था।
- इस भाषा की लिपि बंगाली है जबकि स्थानीय समूह कोकबोरोक के लिये रोमन लिपि को मान्यता देने की मांग कर रहे हैं।
- हालाँकि, हालिया प्रवासन के लिये बांग्ला के प्रभुत्व को अकेले ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। एक समय ऐसा भी था जब बांग्ला त्रिपुरा रियासत की आधिकारिक दरबारी भाषा थी और उस समय बंगाल की आधिकारिक भाषा अंग्रेज़ी थी।
- माणिक्य राजाओं ने बांग्ला को बढ़ावा दिया। रवींद्रनाथ टैगोर ने सात बार त्रिपुरा का दौरा किया और शाही घराने ने उन्हें "भरत भास्कर" का खिताब देने के अलावा विश्व भारती विश्वविद्यालय के निर्माण के दौरान भी दान दिया।
क्या प्रवासन का मुद्दा पहले भी उठा है?
- ट्रबल्ड पेरिफेरी : द क्राइसिस ऑफ इंडियाज़ नॉर्थ ईस्ट के लेखक भौमिक, के अनुसार 1960 के दशक में उभरने वाला समूह सेंगक्राक (Sengkrak) [जिसका अर्थ है बंद मुट्ठी अर्थात clenched fist] राज्य का पहला जनजातीय विद्रोही समूह था।
- 5 जून, 1980 को विद्रोहियों ने पश्चिम त्रिपुरा में लगभग 350 बंगालियों की हत्या कर दी, इसके बाद अगले कुछ दिनों में और 1,000 हत्याएँ हुईं।
- 1988 में आतंकवादी समूह त्रिपुरा राष्ट्रीय स्वयंसेवक (Tripura National Volunteers-TNV) ने नई दिल्ली के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किये, लेकिन विद्रोहियों ने 1992 में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) नामक एक अलगाववादी समूह का गठन किया।
- ऑल त्रिपुरा ट्राइबल फोर्स (ATTF) का गठन 1990 में हुआ था, बाद में इसका नाम बदलकर ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स रखा गया।
- साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के अनुसार, 1992 और 2012 के बीच राज्य में 2509 नागरिक, 455 सुरक्षाकर्मी और 519 विद्रोही मारे गए।
- विद्वान मृणाल कांति देब और अरबिंदो महतो द्वारा लिखे गए लेख ‘Understanding Tipraland movement through migration in Tripura’ के अनुसार, त्रिपुरा में जातीय संघर्ष का मूल कारण ‘भूमि हस्तांतरण’ है।
- त्रिपुरा में भूमि सुधार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व के पुनरीक्षण की आवश्यकता है।
आदिवासियों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व
- त्रिपुरा के 60 विधानसभा क्षेत्रों में से 20 अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षित हैं।
- अब तक राज्य में एकमात्र जनजातीय मुख्यमंत्री स्वर्गीय दशरथ देब (1993-98) रहे।
- त्रिपुरा जनजातीय स्वायत्त ज़िला परिषद की स्थापना 1979 में की गई थी। वर्ष 1985 में इसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया गया था और यह राज्य के दो-तिहाई क्षेत्र (7,332 वर्ग किमी) को कवर करती है।
कौन कर रहा है त्रिपुरा में एनआरसी की मांग?
- असम में एनआरसी लागू करने के बाद इसे त्रिपुरा में भी लागू करने की मांग की जाने लगी है।
- त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट नामक एक नया मंच जिसने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, 19 जुलाई, 1948 को निर्दिष्ट सीमा के रूप में लागू करने की मांग करता है।
- इसके बाद त्रिपुरा की स्वदेशी राष्ट्रवादी पार्टी (Indigenous Nationalist Party of Tripura-INPT) ने भी इसकी मांग की।
- त्रिपुरा के अंतिम राजा के बेटे किरीत प्रद्योत देबबर्मन माणिक्य भी त्रिपुरा के लिये एनआरसी की मांग करने वालों के समूह में शामिल हो गए।
त्रिपुरा : एक नज़र में
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