भारत में खाद्य पदार्थों के उपभोग का वर्गीय ढाँचा | 16 May 2017
संदर्भ
इस बात से हम सभी अवगत हैं कि भारतीय समाज में असमानताएँ विद्यमान हैं| आर्थिक स्तर पर धनी और निर्धन के मध्य अंतराल बहुत ही व्यापक है| विलासिता की वस्तुओं के उपभोग में भी असमानता का स्तर उच्च है, लेकिन सोचने वाली बात ये है कि खाद्य पदार्थों के उपभोग के स्तर पर कितनी असमानता है?
प्रमुख बिंदु
- यह जानने के लिये कि समाज का कौन-सा वर्ग किस प्रकार के भोजन को पसंद करता है, एनएसएसओ द्वारा वर्ष 2011-12 में एक सर्वेक्षण किया गया था| इस रिपोर्ट में प्रति व्यक्ति उपभोग को 12 वर्गों (फ्रैकटाइल) में विभाजित किया गया था| वर्ग 1 में उस सबसे गरीब 5% जनसंख्या को शामिल किया गया था जिसके उपभोग का स्तर सबसे निम्न है, इसके बाद वर्ग 2 में अगली 5% जनसंख्या, वर्ग 3 सबसे गरीब 10-20% जनसंख्या, जबकि वर्ग 4 सबसे गरीब 20-30% को दर्शाता है| वर्ग 12 उपभोग के मामले में सबसे धनी 5% जनसंख्या, वर्ग 11 इसके नीचे की 5% जनसंख्या और वर्ग 10, 80-90% जनसंख्या को दर्शाता है| अन्य शब्दों में उपयोग किये गए वर्ग का तात्पर्य प्रतिशत वर्ग 0-5%, 5-10%,10-20%, 20-30%, 30-40%, 70-80%, 80-90%, 90-95% और 95-100 % से है|
- इस सर्वेक्षण में विभिन्न फ्रैकटाइल अथवा वर्गों के प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग को प्रदर्शित किया गया था| इसके अनुसार, शहरी जनसंख्या के सबसे धनी 5% लोग प्रति माह प्रति व्यक्ति पर 2,859 रुपए व्यय करते हैं जोकि ग्रामीण जनसंख्या के सबसे गरीब 5% लोगों द्वारा किये गए व्यय से 9 गुना अधिक है|
- सबसे धनी लोग (शहरी जनसंख्या के सबसे अमीर 5% लोग) अथवा वर्ग 12 अनाज पर अधिक व्यय नहीं करते हैं, जबकि ये ग्रामीण जनसंख्या के सबसे गरीब 5% लोगों द्वारा अनाज पर किये गए व्यय से 2.2 गुना अधिक व्यय करते हैं| लेकिन यदि पोषण स्तर की बात की जाए तो इस सर्वेक्षण की एक अन्य ही तस्वीर दिखाई देती है| सबसे धनी 5% लोग सबसे गरीब 5% लोगों द्वारा सब्जियों पर किये गए व्यय की तुलना में दालों पर 3.8 गुना, अण्डों, मछली और माँस पर 14.5 गुना और दूध के उत्पादों पर 23.8 गुना अधिक व्यय करते हैं| ताजे फलों (जो बेशक विलासिता ही है) पर वे सबसे गरीब 5% लोगों के व्यय की तुलना में 61 गुना अधिक व्यय करते हैं|
- परन्तु, सबसे गरीब 5% लोग बेसहारा हैं अतः सबसे धनी और सबसे गरीब अथवा प्रमुख 5% और शहरी जनसंख्या के 40-50% लोगों (मध्यम स्तरीय उपभोग) के मध्य यह अंतराल होना स्वाभाविक भी है|
- खाद्य पदार्थों को ग्रहण करने के स्तर में भी बड़ा अंतराल देखने को मिलता है| शहरी जनसंख्या के सबसे धनी 5% लोग 40-40% लोगों द्वारा खाद्य पदार्थों पर किये गए व्यय की तुलना में 3 गुना अधिक व्यय करते हैं| वे शहरी जनसंख्या के 40-50% वर्ग में आने वाले लोगों की तुलना में दालों पर 1.5 गुना, दूध के उत्पादों पर 2.6 गुना, अंडों, मछली और माँस पर 2.4 गुना अधिक व्यय करते हैं| ताजे फलों के मामले में शहरी भारत के प्रमुख 5% लोग 40-50% के मध्य आने वाली जनसंख्या की तुलना में 5 गुना अधिक व्यय करते हैं| ग्रामीण भारत का छठा वर्ग अथवा ग्रामीण भारत का 40-50% वाला वर्ग अपने शहरी समकक्ष की तुलना में खाद्य पदार्थों का उपभोग कम करता है|
देश की 40-50% जनसंख्या के उपभोग का स्तर क्या है?
इस वर्ग का प्रति व्यक्ति प्रति माह अन्य चीज़ों के साथ ही 5.8 केले, 3/4 संतरे, 5 कप चाय, 0.012 अनानास, लगभग 5 लीटर दूध और 2.8 अंडे का उपभोग करता है| वास्तव में शहरी भारत का आठवाँ वर्ग अथवा 60-70% एक माह में 3 ग्राम मक्खन, 1.45 रुपए की आइसक्रीम, 3.3 अंडे, 7 केले, 1.1 संतरे, 2.5 नींबू और 7कप चाय का उपभोग करते हैं| जब भारत में मध्यम वर्ग के उपभोग का स्तर यह है तो सबसे गरीब 5% जनसंख्या के उपभोग स्तर का पता लगाना कोई कठिन कार्य नहीं है| परन्तु भारत में सामाजिक विभाजन केवल वर्ग के आधार पर ही नहीं होता है बल्कि जाति के आधार पर भी होता है| इस सर्वेक्षण में जाति पर आधारित आँकड़े भी प्रदर्शित किये गए थे|
जाति असमानता का खाद्य पदार्थों के उपभोग से क्या संबंध है?
ग्रामीण भारत में खाद्य सामग्री पर प्रति व्यक्ति मासिक उपभोग व्यय अनुसूचित जनजाति के लिये 630.86 रुपए, अनुसूचित जाति के लिये 684.25 रुपए, अन्य पिछड़े वर्गों के लिये 757.21 रुपए और अन्य जातियों के लिये यह 879.74 रुपए था| स्पष्ट है कि जातीय असमानता के आधार पर खाद्य पदार्थों के उपभोग में भी असमानता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है|
ग्रामीण भारत में ताजे फलों पर प्रति व्यक्ति प्रति माह औसत व्यय अनुसूचित जनजाति के लिये 19.82 रुपए, अनुसूचित जाति के लिये 25.27 रुपए, अन्य पिछड़े वर्गों के लिये 33.30 रुपए और अन्य जातियों के लिये 42.06 रुपए था|
निष्कर्ष
इन आँकड़ों से यह पता चलता है कि भारतीय जनसंख्या के कई वर्गों में पोषण का स्तर अति न्यून है| जब तक भारत में प्रत्येक स्तर (जैसे- जाति, लिंग) पर सभी वर्गों के मध्य समानता नहीं आती, तब तक इस प्रकार की असमानताएँ दिखाई देती रहेंगी|