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भारत-नेपाल संबंध : वर्तमान परिदृश्य

  • 18 Sep 2018
  • 7 min read

संदर्भ

भारत-नेपाल संबंधों की पुनर्स्थापना के कई प्रयासों के बावज़ूद यह चिंता का कारण बना हुआ है। दोनों देशों की सरकारों के बीच का मनमुटाव हाल ही में संपन्न बिम्सटेक की सहयोगात्मक बैठक की अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट दिखाई दे रहा है। गौरतलब है कि इसी दौरान नेपाल द्वारा जून में भारत एवं नेपाल के बीच होने वाले संयुक्त सैन्याभ्यास में नेपाल की सेना की भागीदारी की मनाही, भी दोनों देशों के वर्तमान मनमुटाव को प्रदर्शित करती है।

नेपाल की मंशा

  • नेपाल के प्रधानमंत्री कहना है कि वे हाल ही में हुए बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान बहुपक्षीय अभ्यास हेतु भारतीय प्रधानमंत्री की "एकपक्षीय" घोषणा से परेशान थे, जिसे उन्होंने आनौपचारिक रूप से मेज़बानों को प्रस्तावित किया था।
  • नेपाल का कहना है कि बिम्सटेक सम्मेलन के दौरान भारत ने सदस्य देशों के साथ विभिन्न मुद्दों पर स्पष्ट संदेश नहीं दिया था और खासकर प्रत्यक्ष रूप से काठमांडू के साथ अपने संबंधों की चर्चा नहीं की थी।
  • यहाँ तक कि उनका कहना है कि थाईलैंड के सैन्यदल ने भी भारत के पर्याप्त नोटिस की कमी के कारण आतंकवाद के खिलाफ अभ्यास में शामिल नहीं हुए।
  • उल्लेखनीय है कि नेपाल पिछले 13 वर्षों से भारतीय सेना के साथ ‘सूर्य किरण’ नामक सैन्याभ्यास आयोजित कर रहा है और इसमें दोनों पक्षों से लगभग 300 सैन्यकर्मी हिस्सा लेते हैं। लेकिन हाल के वर्षों में नेपाल और चीन के रक्षा बलों ने अपने सहयोग को बढ़ाया है। 
  • नेपाल का कहना है कि सिचुआन प्रांत में 12 दिनों के आतंकवाद विरोधी ड्रिल पर आधारित माउंट एवरेस्ट मैत्री अभ्यास में चीन के साथ शामिल होने के नेपाल के फैसले ने उसके आतंकवाद के खात्मे की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया है।
  • इसके अलावा नेपाल ने भारत को वर्ष 2015 की आर्थिक नाकाबंदी के लिये भी दोषी ठहराया है।
  • हालाँकि, उपर्युक्त सभी कदमों का कारण नेपाल के प्रधानमंत्री की अति महत्त्वाकांक्षा को माना जा सकता है।
  • उल्लेखनीय है कि नेपाल ने हाल ही में चीन के साथ अपनी नज़दीकियाँ बढ़ा दी हैं।
  • साथ ही, इस दिशा में आगे बढ़ते हुए नेपाल ने चीन के साथ एक महत्त्वाकांक्षी कनेक्टिविटी प्रस्ताव को अंतिम रूप दिया है, जो रेल द्वारा काठमांडू को शिगेटसे (Shigatse) से जोड़ देगा।
  • यह रेल लिंक नेपाली सामानों की पहुँच चीन के समुद्री बंदरगाहों जैसे - तिआनजिन, शेन्ज़ेन, लिआनयुंगांग और झांजियांग तथा भूमि बंदरगाहों जैसे - लानज़ो, ल्हासा तथा शिगात्से में भूमि बंदरगाहों तक सुनिश्चित करेगा।
  • अतः ये सभी प्रकरण नेपाल के चीन के प्रति झुकाव को प्रदर्शित करते है।

भारत की राय

  • भारत ने नेपाल के सभी आरोपों का खंडन किया है।
  • भारत ने कहा है कि उसने हमेशा से नेपाल के साथ अपने संबंधों को अहमियत दी है, जिसकी पुष्टि भारतीय प्रधानमंत्री की हाल की नेपाल यात्रा और उनके द्वारा नेपाल को समर्पित की गई विभिन्न परियोजनाओं से होती है।
  • उल्लेखनीय है कि चाहे नेपाल में आए भयंकर भूकंप के बाद मदद हो या भारत और नेपाल को जोड़ती रक्सौल रेल लिंक परियोजना, इन सभी का एकमात्र उदेश्य दोनों देशों के पारस्परिक संबंधों को बनाए रखना ही है।
  • भारत ने आगे बढ़ते हुए हमेशा अपनी प्रतिबद्धताओं को पूर्ण करने का हरसंभव प्रयास किया है।
  • दरअसल, वर्तमान विवाद केवल नेपाल के प्रधानमंत्री की अति महत्त्वाकांक्षा को माना जा सकता है जिसके कारण वे अपने संबंधों को चीन के साथ मज़बूत बनाने पर तुले हैं।
  • हालाँकि, भारत का मानना है कि सिचुआन प्रांत में चीन के साथ नेपाल का आतंकवाद विरोधी ड्रिल में शामिल होने से भारत एवं नेपाल के संबंधों को कोई हानि नहीं पहुँचेगी।
  • हाल ही में नेपाल के इस रवैये पर भारतीय सेना प्रमुख, जनरल बिपिन रावत ने स्पष्ट संदेश दिया कि भारत की भौगोलिक अवस्थिति के कारण नेपाल या भूटान जैसे देश भारत से दूरी कायम नहीं कर सकते।

आगे की राह

  • उपर्युक्त मुद्दे पर राजनयिक प्रयासों को नवीनीकृत करके नई दिल्ली और काठमांडू को इन अनजाने विवादों का अंत करना होगा।
  • हमें याद रखना होगा कि भारत और नेपाल सिर्फ एक खुली सीमा साझा ही नहीं करते हैं बल्कि दोनों देशों के बीच मज़बूत संबंध भी हैं।
  • उल्लेखनीय है कि दोनों देश पारंपरिक रूप से एक-दूसरे के सेना प्रमुखों को मानद रैंक जनरल प्रदान करते हैं। दरअसल, केवल संचार की कमी के कारण इस तरह के अद्वितीय संबंधों को कमज़ोर नहीं किया जाना चाहिये।
  • ऐसे समय में सेना प्रमुख, जनरल बिपिन रावत का बिम्सटेक-माइलेक्स-18 के समापन समारोह में दिया गया बयान, कि "भूगोल यह सुनिश्चित करेगा कि भूटान और नेपाल जैसे देशों का झुकाव किस ओर होगा” भी इन देशों के लोगों में भारत के प्रति अविश्वास और पराए का भाव भर सकता है।
  • अतः आवश्यकता है कि हम हमारे किसी भी पडोसी के खिलाफ किसी भी प्रकार का वक्तव्य देने से पूर्व अपने संबंधों और वर्तमान चीन के बढ़ते प्रसार को ध्यान में रखें।
  • हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि चीन की मंशा हमारे पडोसी देशों में घुसकर भारत के लिये खतरा उत्पन्न करना है।
  • साथ ही दोनों देशों के बीच सैन्य अभ्यास को लेकर जन्मे विवाद में महत्त्वपूर्ण भू-राजनीति के संदर्भ को नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि सर्विदित है कि चीन इस परिस्थिति का लाभ उठाने के लिये अपने सभी कूटनीतिक प्रयासों को अंजाम ज़रूर देगा।
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