कृषि में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी | 15 Oct 2018
संदर्भ
15 अक्तूबर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ग्रामीण महिलाओं के अंतर्राष्ट्रीय दिवस और भारत में राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है। वर्ष 2016 में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कृषि के प्रत्येक स्तर (बुवाई से लेकर रोपण, जल निकासी, सिंचाई, उर्वरक, पौध संरक्षण, कटाई, खरपतवार हटाने, और भंडारण तक) के कार्यों में महिलाओं द्वारा निभाई जा रही अग्रणी भूमिका के महत्त्व को रेखांकित करने के लिये इस दिन को राष्ट्रीय महिला किसान दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया।
डेटा और वास्तविकता
- मंत्रालय ने इस वर्ष फसल की खेती, पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन में महिला किसानों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने के लिये विचार-विमर्श का प्रस्ताव दिया है। इसका उद्देश्य क्रेडिट, कौशल विकास और उद्यमी अवसरों तक बेहतर पहुँच का उपयोग करके एक कार्य-योजना पर काम करना है। लेकिन केवल यह कह देने से खेतों में उन महिलाओं के सामने आने वाली कठिनाई कम नहीं होने वाली।
- ऑक्सफैम इंडिया के अनुसार, खाद्य उत्पादन के लिये 60 से 80 प्रतिशत तथा डेयरी उत्पादन के लिये लगभग 90 प्रतिशत महिलाएँ ज़िम्मेदार हैं।
- चाहे फसलों की खेती की बात हो, पशुधन प्रबंधन या फिर घर पर काम करने की बात हो, महिला किसानों द्वारा किये जाने वाले काम पर कभी किसी का ध्यान नहीं जाता है। हालाँकि सरकार द्वारा इन महिलाओं को मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन और ग्रामीण हस्तशिल्प में प्रशिक्षण देने के प्रयास किये गए हैं लेकिन सरकार के ये प्रयास महिला किसानों की इतनी बड़ी संख्या के सामने मामूली हैं।
- कृषि में महिलाओं की रुचि को बनाए रखने और उनके उत्थान के लिये एक ऐसी दूरदर्शिता की आवश्यकता है जो उचित नीति और कार्यवाही वाली कार्य-योजनाओं द्वारा समर्थित हो।
कृषि जनगणना के अनुसार
- कृषि जनगणना (2010-11) के अनुसार, अनुमानित 118.7 मिलियन किसानों में से 30.3% महिलाएँ थीं। इसी प्रकार, अनुमानित 144.3 मिलियन कृषि श्रमिकों में से 42.6% महिलाएँ थीं।
- परिचालन संपत्ति के स्वामित्व के मामले में नवीनतम कृषि जनगणना (2015-16) चौंकाने वाली है। कुल 146 मिलियन परिचालन संपत्ति में से महिला परिचालन संपत्ति धारकों का हिस्सा 13.87% (20.25 मिलियन) है, जिसमें पाँच वर्षों में लगभग एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- जबकि कृषि में महिलाओं की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, सरकार को महिला किसानों और मज़दूरों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिये तैयार होना शेष है।
महिला किसानों की अधिकारहीनता
- पुरुष किसानों की तुलना में लंबे समय तक अधिक काम (वैतनिक तथा अवैतनिक) करने के बावजूद महिला किसान न तो उत्पादन पर कोई दावा कर सकती हैं और न ही उच्च मज़दूरी दर की माँग कर सकती हैं।
- खेत पर काम करने के अलावा, उनके पास घर और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ भी हैं। कम मुआवज़े के साथ बढ़े हुए काम का बोझ उन्हें हाशिये पर ले जाने के लिये ज़िम्मेदार एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
- अभी तक, महिला किसानों का समाज में शायद ही कोई प्रतिनिधित्व है और किसानों के संगठनों या समय–समय पर किये जाने वाले आंदोलनों में उनका कहीं भी स्पष्ट प्रतिनिधित्व नहीं हैं। वे ऐसी अदृश्य श्रमिक हैं जिनके बिना कृषि अर्थव्यवस्था में वृद्धि करना मुश्किल है।
महिला किसानों के समक्ष समस्याएँ
1. भू-स्वामित्त्व
- महिला किसानों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जिस भूमि पर वे खेती कर रही हैं, उस पर स्वामित्त्व का दावा करने के मामले में वे शक्तिहीन हैं।
- कृषि जनगणना 2015 के अनुसार, लगभग 86% महिला किसान इस संपत्ति से शायद इसलिये वंचित हैं क्योंकि हमारे समाज में पितृसत्तात्मक व्यवस्था स्थापित है। विशेष रूप से भूमि पर स्वामित्व की कमी महिला किसानों को संस्थागत ऋण के लिये बैंकों से संपर्क करने की अनुमति नहीं देती क्योंकि बैंक आमतौर पर ज़मीन के आधार पर ही ऋण स्वीकृत करते हैं।
- दुनिया भर में किये गए शोधों से पता चलता है कि जिन महिलाओं की पहुँच सुरक्षित भूमि, औपचारिक ऋण और बाज़ार तक है, वे फसल-सुधार, उत्पादकता में वृद्धि और घरेलू खाद्य सुरक्षा तथा पोषण में सुधार करने के लिये अधिक निवेश कर पाती हैं।
2. भूमि अधिग्रहण
- पिछले वर्षों में भूमि अधिग्रहण दोगुना हो गया है जिसके परिणामस्वरूप खेतों का औसत आकार घट गया है। इसलिये, अधिकांश किसान छोटे और सीमांत वर्ग (एक श्रेणी जो निर्विवाद रूप से महिला किसानों को शामिल करती है) के अंतर्गत आते हैं, इनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि होती है।
3. अनुकूल मशीनरी
- महिला किसान और मज़दूर आमतौर पर श्रम-केंद्रित कार्य (कुदाल या फावड़े की मदद से गड्ढा खोदना, घास काटना, खरपतवार हटाना, कटाई करना, बेंत का संग्रह, पशुधन की देखभाल) करती हैं।
- विभिन्न कृषि परिचालनों के लिये महिला-अनुकूल उपकरण और मशीनरी रखना महत्त्वपूर्ण है।
- अधिकाँश कृषि मशीनरी ऐसी हैं जिनका संचालन करना महिलाओं के लिये मुश्किल है। इस समस्या के बेहतर समाधान के लिये निर्माताओं को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
4. संसाधनों तक पहुँच
- अंतिम समस्या यह है कि कृषि को अधिक उत्पादक बनाने के लिये संसाधनों और आधुनिक उपकरणों (बीज, उर्वरक, कीटनाशक) तक महिला किसानों की पहुँच आमतौर पर पुरुषों की तुलना में कम होती है।
- खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, महिला और पुरुष किसानों के लिये उत्पादक संसाधनों तक समान पहुँच सुनिश्चित हो जाने से विकासशील देशों के कृषि उत्पादन में 2.5% से 4% की वृद्धि हो सकती है।
समाधान
- कृषि और ग्रामीण विकास के लिये नेशनल बैंक के माइक्रो-फाइनेंस पहल के तहत किसी आनुषांगिक के बिना ही दिये जाने वाले ऋण प्रावधान को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। क्रेडिट, प्रौद्योगिकी और उद्यमशीलता क्षमताओं के प्रावधान तक बेहतर पहुँच महिलाओं के आत्मविश्वास को और बढ़ावा देगी और उन्हें किसानों के रूप में मान्यता प्राप्त करने में मदद करेगी।
- महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिये सामूहिक खेती की संभावना को प्रोत्साहित किया जा सकता है। कुछ स्वयं-सहायता समूहों और सहकारी- डेयरी गतिविधियों (राजस्थान में सरस और गुजरात में अमूल) द्वारा महिलाओं को प्रशिक्षण तथा कौशल प्रदान किया गया है।
- इन्हें किसान निर्माता संगठनों के माध्यम से और अधिक विकसित किया जा सकता है। इसके अलावा, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, बीज और रोपण सामग्री पर उप-मिशन तथा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना जैसी सरकारी प्रमुख योजनाओं में महिला केंद्रित रणनीतियों और समर्पित व्यय को शामिल किया जाना चाहिये।
- महिला किसानों को सब्सिडी वाली सेवाएँ प्रदान करने के लिये राज्य सरकारों द्वारा प्रचारित कृषि मशीनरी बैंक और कस्टम भर्ती केंद्रों को तैयार किया जा सकता है।
- प्रत्येक ज़िले में कृषि विज्ञान केंद्रों को विस्तार सेवाओं के साथ-साथ अभिनव प्रौद्योगिकी के बारे में महिला किसानों को शिक्षित और प्रशिक्षित करने का एक अतिरिक्त कार्य सौंपा जा सकता है।
निष्कर्ष
- जब महिलाएँ कृषि के क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं तो इस कार्य में उनकी निरंतरता को बनाए रखने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य है उन्हें भूमि संपत्ति के अधिकारों को सौंपना। एक बार महिला किसानों को प्राथमिक अर्जक और भूमि परिसंपत्तियों के मालिकों के रूप में सूचीबद्ध कर दिया जाए तो उनके लिये बैंकों से ऋण प्राप्त करना आसान हो जाएगा। साथ ही महिला किसान तकनीक और मशीनों का उपयोग करके फसल उगाने और गाँव के व्यापारियों या थोक बाजारों में उपज का निपटान करने का निर्णय ले सकेंगी। इस प्रकार वास्तविक और दृश्यमान किसानों के रूप में उनकी पहचान सुनिश्चित हो सकेगी।