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जैव विविधता और पर्यावरण

प्लास्टिक के खतरे से निपटना

  • 29 Dec 2021
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 28/12/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The Gaps in the Plan to Tackle Plastic Waste” लेख पर आधारित है। इसमें ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (EPR) विनियमनों के मसौदे से संबद्ध समस्याओं और प्लास्टिक अपशिष्ट से निपटने के मार्ग की अन्य चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

समाज को प्रभावित करने वाली विभिन्न संवहनीयता चुनौतियों में से जलवायु परिवर्तन और प्लास्टिक अपशिष्ट विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।  

इस संदर्भ में पर्यावरण मंत्रालय ने हाल ही में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016  के अंतर्गत विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility- EPR) विनियमनों का मसौदा प्रकाशित किया है।   

हालाँकि ये विनियमन विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र के एकीकरण और विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक के समावेशन के संबंध में एक प्रतिगामिता को दर्शाते हैं।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये इस तरह के ढाँचे तभी प्रभावी हो सकते हैं जब वे मौजूदा तंत्र के साथ मिलकर प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या को संबोधित करें, दुहराव (Duplication) को न्यूनतम करें और उपयुक्त निगरानी तंत्र के साथ सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव पैदा करें।  

प्लास्टिक अपशिष्ट और प्रबंधन

  • वैश्विक परिदृश्य: अगले 20 वर्षों में वैश्विक स्तर पर 7.7 बिलियन मीट्रिक टन से अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट के कुप्रबंधन का अनुमान है, जो मानव आबादी के भार के 16 गुना के बराबर है। 
    • ‘सेंटर फॉर इंटरनेशनल एनवायरनमेंटल लॉ’ की वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2050 तक प्लास्टिक से ग्रीनहाउस गैस (GHG) का उत्सर्जन 56 गीगाटन से अधिक हो सकता है, जो शेष कार्बन बजट का 10-13% होगा।     
  • भारत का अपशिष्ट उत्पादन और संग्रहण: भारत सालाना 9.46 मिलियन टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न करता है, जिसमें से 40% प्लास्टिक अपशिष्ट का संग्रहण नहीं हो पाता।  
    • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार भारत प्रतिदिन लगभग 26,000 टन से अधिक प्लास्टिक उत्पन्न करता है और 10,000 टन प्रतिदिन से अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट असंग्रहित रह जाता है।  
    • भारत में उत्पादित समस्त प्लास्टिक का 43% पैकेजिंग के लिये उपयोग किया जाता है, जिसमें से अधिकांश एकल-उपयोग प्लास्टिक (Single-Use Plastic) हैं। 
  • ड्राफ्ट EPR नोटिफिकेशन- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये पहल:
    • यह प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री के उत्पादकों के लिये वर्ष 2024 तक अपने सभी उत्पादों को संग्रहित करना अनिवार्य बनाता है और सुनिश्चित करता है कि इसका एक न्यूनतम प्रतिशत पुनर्नवीनीकरण के साथ-साथ उत्तरवर्ती आपूर्ति में उपयोग किया जाएगा।  
    • इसने एक ऐसी प्रणाली भी निर्दिष्ट की है जहाँ प्लास्टिक पैकेजिंग के निर्माता और उपयोगकर्त्ता EPR प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकते हैं और उनमें व्यापार कर सकते हैं।  
    • प्लास्टिक का केवल एक अंश, जिसका पुनर्नवीनीकरण नहीं किया जा सकता (जैसे बहु-स्तरित बहु-सामग्री प्लास्टिक), एंड-ऑफ-लाइफ निपटान के लिये भेजे जाने के योग्य होगा।  

प्लास्टिक अपशिष्ट से निपटने के मार्ग की चुनौतियाँ

  • ड्राफ्ट EPR में 3P’s की अनदेखी:
    • People: आजीविका के दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन भारत में 1.5-4 मिलियन कचरा बीनने वालों की आय के लगभग आधे भाग का निर्माण करता है।  
      • उन्हें न केवल हितधारकों के रूप में दिशानिर्देशों से बाहर रखा गया है, बल्कि दिशानिर्देशों में उत्पादकों को एक समानांतर प्लास्टिक अपशिष्ट संग्रह और रीसाइक्लिंग शृंखला स्थापित करने के लिये निर्देशित किया गया है, जो कचरा बीनने वालों को उनके आजीविका के साधनों से वंचित करेगा।   
    • Plastic: EPR दिशानिर्देश प्लास्टिक पैकेजिंग तक सीमित हैं, जबकि उत्पादित प्लास्टिक का एक बड़ा हिस्सा ‘सिंगल-यूज़’ या ‘थ्रोअवे प्लास्टिक पैकेजिंग’ का भी है।   
      • सैनिटरी पैड और पॉलियेस्टर जैसी अन्य बहु-सामग्री प्लास्टिक वस्तुओं को EPR के दायरे से बाहर रखा गया है।
    • Processing: रीसाइक्लिंग के अलावा वेस्ट-टू-एनर्जी, सह-प्रसंस्करण और भस्मीकरण (Incineration) जैसी अन्य प्रक्रियाएँ कार्बन डाइऑक्साइड और पर्टिकुलेट मैटर का उत्सर्जन करती हैं।   
      • मसौदा नियमों ने उन्हें बहु-स्तरित प्लास्टिक के निरंतर उत्पादन को सही ठहराने के लिये वैध कर दिया है। 
  • बहु-स्तरित प्लास्टिक की समस्या: बहु-स्तरित और बहु-सामग्री वाले प्लास्टिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध प्रकार के प्लास्टिक अपशिष्ट का निर्माण करते हैं। 
    • ये कम वजन एवं बड़े आकार के होते हैं और इस प्रकार इनका प्रबंधन एवं परिवहन महँगा होता है। मुख्य रूप से खाद्य पैकेजिंग में उपयोग किये जाने के कारण वे प्रायः कृन्तकों (Rodents) को आकर्षित करते हैं और इसके उनका भंडारण करना कठिन हो जाता है।   
    • यदि इस प्लास्टिक का संग्रह कर भी लिया जाता है तो इनकी रीसाइक्लिंग तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण होती है, क्योंकि यह एक विषम सामग्री है।  
    • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 द्वारा इन प्लास्टिकों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना अनिवार्य कर दिया गया था। लेकिन वर्ष 2018 में इस अधिदेश को उलट दिया गया। 
  • अपर्याप्त कार्यान्वयन और निगरानी: प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम, 2016 की अधिसूचना और वर्ष 2018 में किये गए संशोधनों के बावजूद स्थानीय निकाय, यहाँ तक ​​कि सबसे बड़े नगर निगम भी अपशिष्ट के पृथक्करण के कार्यान्वयन और निगरानी में विफल रहे हैं।

आगे की राह

  • EPR दिशानिर्देशों में सुधार का दायरा: सरकार को अनौपचारिक श्रमिकों को शामिल करने के लिये दिशानिर्देशों के मसौदे पर पुनर्विचार करना चाहिये।  
    • दिशानिर्देशों के अंतर्गत आने वाले प्लास्टिक के दायरे से उन प्लास्टिकों को बाहर करने के लिये बदलाव किया जा सकता है, जो पहले से ही कुशलतापूर्वक पुनर्नवीनीकृत किये जा रहे हैं और इसके दायरे में अन्य प्लास्टिक एवं बहु-सामग्री वस्तुओं को शामिल किया जा सकता है।   
  • अनौपचारिक क्षेत्र के कचरा बीनने वालों के लिये EPR फंड: EPR फंड को अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के मानचित्रण और पंजीकरण, उनके क्षमता निर्माण, अवसंरचना के उन्नयन, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को बढ़ावा देने और क्लोज़्ड लूप फीडबैक एवं निगरानी तंत्र के निर्माण के लिये उपयोग किया जा सकता है।  
  • प्लास्टिक प्रबंधन के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था: एक चक्रीय अर्थव्यवस्था एक क्लोज़्ड-लूप सिस्टम के निर्माण और संसाधनों के उपयोग, कचरे के उत्पादन, प्रदूषण एवं कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम करने के लिये संसाधनों के पुन: उपयोग, साझाकरण, मरम्मत, नवीनीकरण, पुन: निर्माण और पुनर्चक्रण पर निर्भर करती है।   
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था न केवल प्लास्टिक और वस्त्रों की वैश्विक धाराओं पर लागू होती है, बल्कि सतत् विकास लक्ष्यों की उपलब्धि में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है। 
  • पुनर्चक्रण योग्य प्लास्टिक के लिये बाज़ार मूल्य में वृद्धि करना: लचीले प्लास्टिक पुनर्चक्रण योग्य होते हैं, लेकिन जैविक कचरे के साथ उनके दूषित होने के कारण पुनर्चक्रण की लागत उत्पादन के बाज़ार मूल्य के सापेक्ष निषेधात्मक रूप से महँगी होती है।
    • इस संबंध में पैकेजिंग में पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक की माँग और उपयोग में वृद्धि कर इन प्लास्टिकों के बाज़ार मूल्य में वृद्धि की जा सकती है और इस प्रकार रीसाइक्लिंग की मौजूदा लागत को समायोजित करने के लिये मूल्य सृजन किया जा सकता है।  
  • व्यवहार परिवर्तन: नागरिकों को व्यवहार में बदलाव लाना होगा और कचरा न फैलाकर और अपशिष्ट पृथक्करण एवं अपशिष्ट प्रबंधन में मदद करके योगदान करना होगा। 
    • शिक्षा और आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से प्लास्टिक प्रदूषण से होने वाले नुकसान के बारे में जनता के बीच जागरूकता बढ़ानी होगी और उनके व्यवहार में बदलाव लाना होगा। 
    • प्लास्टिक अपशिष्ट के विरूद्ध एक आंदोलन को बहु-स्तरितत पैकेजिंग, ब्रेड बैग, फूड रैप और प्रोटेक्टिव पैकेजिंग जैसे एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक में कमी लाने को प्राथमिकता देना होगा।  

अभ्यास प्रश्न: भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या से निपटने के लिये किये जा सकने वाले उपायों की चर्चा कीजिये।

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