आर्थिक असमानता की चौड़ी होती खाई | 28 Dec 2017
संदर्भ
- आय असमानता एक कल्याणकारी राज्य की सबसे बड़ी विडंबना है और हाल ही में जारी विश्व असमानता रिपोर्ट- 2018 ने भारत में बढ़ती आय असमानता की समस्या को फिर से सतह पर ला दिया है।
- दरअसल, यह नितान्त ही मौलिक बात है कि जब कोई राज्य अपने नागरिकों में कोई भेदभाव नहीं करता और न ही किसी एक वर्ग के कल्याण को तिलांजलि देकर दूसरे की मदद करता है तो फिर क्यों अमीर और भी अमीर और गरीब और भी गरीब होता जा रहा है?
इस लेख में हम विश्व असमानता रिपोर्ट के अलावा आय असमानता के कारणों एवं समाधान पर भी चर्चा करेंगे।
क्या है विश्व असमानता रिपोर्ट?
- विश्व असमानता रिपोर्ट ‘पेरिस स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स’ में स्थित ‘वर्ल्ड इनिक्वेलिटी लैब’ द्वारा तैयार की गई है।
- इस रिपोर्ट को वर्ष 1980 से वर्ष 2016 के बीच 36 वर्षों के वैश्विक आँकड़ों को आधार बनाकर तैयार किया गया है।
- यह व्यवस्थित एवं पारदर्शी तरीके से आय असमानता का आकलन करती है और दुनिया भर में आय असमानता की प्रवृत्ति को दर्शाती है।
- इसके ज़रिये विभिन्न देशों का तुलनात्मक अध्ययन भी संभव है।
विश्व असमानता रिपोर्ट में निहित प्रवृत्तियाँ
- बढ़ती जा रही है आय असमानता:
⇒ इस रिपोर्ट के अनुसार विश्व के 0.1% लोगों के पास दुनिया की कुल दौलत का 13% हिस्सा है। इसके अलावा पिछले 36 वर्षों में जो नई संपत्तियाँ सृजित की गईं, उनमें से भी 27% पर सिर्फ 1% अमीरों का ही अधिकार है।
⇒ सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त असमानता की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि आय की सर्वोच्च श्रेणी में गिने जाने वाले शीर्ष 1% लोगों की कुल संख्या महज़ 7.5 करोड़ है, जबकि सबसे नीचे के 50% लोगों की कुल संख्या 3.7 अरब है। - नई आर्थिक नीतियों के बाद असमानता में और वृद्धि:
⇒ इस रिपोर्ट के अनुसार उभरते हुए देशों में 1980 के बाद से किये गए आर्थिक सुधारों और नई आर्थिक नीतियों के लागू होने के बाद यह असमानता और अधिक बढ़ी है। निजीकरण और आय की असमानता के चलते संपत्ति के वितरण की असमानता में वृद्धि हुई है।
⇒ इस रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि उभरते हुए देश 1980 के बाद की नीतियाँ ही जारी रखते हैं, तो भविष्य में आर्थिक असमानता के और अधिक बढ़ने की संभावना है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विश्व की कुल आय का 10% टैक्स-हैवंस में छिपाकर रखा गया है।
भारत के संदर्भ में क्या कहती है यह रिपोर्ट?
- इस रिपोर्ट के अनुसार 2014 में भारत के शीर्ष 1% अमीरों के पास राष्ट्रीय आय की 22% हिस्सेदारी थी और शीर्ष 10% अमीरों के पास 56% हिस्सेदारी थी।
- देश के शीर्ष 0.1% सबसे अमीर लोगों की कुल संपदा बढ़कर निचले 50% लोगों की कुल संपदा से अधिक हो गई है।
- 1980 के दशक से भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी बदलाव के बाद असमानता काफी बढ़ गई है। यह रिपोर्ट कहती है कि भारत में असमानता की वर्तमान स्थिति 1947 में आज़ादी के बाद के तीन दशकों की स्थिति के बिल्कुल विपरीत है।
- स्वतंत्रता के बाद के तीन दशकों में आय में असमानता काफी कम हो गई थी और नीचे के 50 प्रतिशत लोगों की आमदनी राष्ट्रीय औसत से अधिक बढ़ी थी।
- वर्ष 2016 में भारत में आय असमानता का स्तर उप-सहारा अफ्रीका और ब्राज़ील के स्तर जैसा है।
असमानता के प्रभाव?
असमानता को आय तथा अवसरों के असमान वितरण के रूप में परिभाषित किया गया है। यह एक देश में गरीबी और लोगों में निराशा की वृद्धि का सबसे बड़ा कारण है।
क्या हैं इस असमानता के कारण?
- एलपीजी सुधारों ने मुख्य रूप से उनकी आय में वृद्धि की है जो पहले से ही समृद्ध थे।
- बढ़ते निजीकरण के कारण सरकार द्वारा तय मापदंडों के अनुसार लोगों को पारिश्रमिक नहीं मिला है।
- कृषि सुधार और भूमि सुधार को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है।
- धन का पुनर्वितरण (wealth redistribution) संभव नहीं हो पाया है।
- महिलाओं को प्रायः किसान नहीं माना जाता और न ही उनके पास कोई भूमि है, इसलिये किसानों के लिये चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उन्हें नहीं मिल पाया है।
- भारत में पुस्तैनी अरबपतियों की संख्या अधिक है और ऐसे में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक धन का हस्तातंरण एवं संचयन होता रहता है।
- रोज़गार में कमी का भी आय असमानता पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है।
- राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण रखने की जुगत में प्रायः सरकारें सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की अनदेखी करती हैं।
कैसे किया जाता है आय असमानता का आकलन?
- गिनी गुणांक (GINI Coefficient):
⇒ समाज में व्याप्त आय एवं सम्पत्ति के असमान वितरण के सांख्यिकीय आकलन हेतु गिनी गुणांक का उपयोग किया जाता है।
⇒ यदि गिनी गुणांक का मान जीरो हो तो माना जाता है कि समाज में आय एवं संपति का वितरण एक समान है।
⇒ गिनी गुणांक का मान जितना अधिक होगा समाज में विषमता भी उतनी ही अधिक होगी इसके विपरीत गिनी गुणांक का मान जितना कम होगी आय का वितरण उतना ही न्यायसंगत माना जाएगा। - लोरेंज़ वक्र (Lorenz Curve):
⇒ लोरेंज़ वक्र कुल आय व आय प्राप्तकर्त्ताओं के मध्य व्याप्त विषमता को दर्शाता है। इस वक्र के अनुसार यह ज्ञात किया जाता है कि देश की आधी या इससे अधिक आबादी की कुल आय में कितनी भागीदारी है।
⇒ लोरेंज़ वक्र देश के 5% या 10% धनाढ़य लोगों की कुल आय में हिस्सेदारी का भी आकलन करता है।
⇒ लोरेंज़ वक्र समानता रेखा से जितना दूर होगा, समाज में आय के वितरण में उतनी ही विषमता देखने को मिलेगी।
⇒ एक आदर्श स्थिति तब मानी जाती है जब समानता रेखा और लोरेंज़ वक्र के बीच कोई दूरी नहीं रह जाती।
⇒ आदर्श परिस्थितियों में देश की सबसे गरीब 25 प्रतिशत जनता का भी देश की कुल आय में 25 हिस्सा होता है। (उदाहरण के तौर पर 25 प्रतिशत लिया गया है, यह आँकड़ा कुछ भी हो सकता है)
आगे की राह
निष्कर्ष
- हाल ही में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी (Thomas Piketty) और लुकास चांसेल (Lucas Chancel) की एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया था कि वर्ष 1922 (तब भारत में पहली बार आयकर लगाया गया था) के बाद से वर्तमान में आय असमानता अपने उच्चतम स्तर पर है।
- “इनकम इनइक्केलिटी इन इंडिया: फ्रॉम ब्रिटिश राज टू बिलेनियर राज” (income inequality in India: From British Raj to Billionaire Raj) नामक इस रिसर्च रिपोर्ट में भारत की आर्थिक नीतियों की प्रकृति को समझने में व्यापक मदद मिल सकती है।
- दरअसल, आय असमानता जब गंभीर रूप से उच्चतम स्तर पर पहुँच जाती है तो उदार आर्थिक सुधारों के लिये सार्वजनिक समर्थन कम हो जाता है।
- जबकि सत्य यह भी है कि कोई भी देश तेज़ आर्थिक विकास के बिना बड़े पैमाने पर गरीबी के खिलाफ जंग जीतने में सफल नहीं रहा है।
- अतः आर्थिक सुधारों की रूपरेखा कुछ ऐसे तय करनी होगी, जिससे कि आय असमानता को कम किया जा सके।