भारतीय अर्थव्यवस्था
‘हरित ऊर्जा’ ट्रांज़ीशन: आवश्यकता और महत्त्व
- 22 Jul 2021
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यह एडिटोरियल 21/07/2021 को ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘India needs an economic stimulus that can also aid green energy transition’’ लेख पर आधारित है। यह तीव्र आर्थिक विकास के लिये हरित उपायों की आवश्यकता की चर्चा करता है।
संदर्भ
कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक और सामाजिक व्यवधान विनाशकारी साबित हुए हैं। लाखों उद्यमों के अस्तित्त्व पर खतरा मंडरा रहा है। महामारी के कारण अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से संबद्ध कर्मी विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं क्योंकि उनमें से अधिकांश सामाजिक सुरक्षा और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल पहुँच की कमी से प्रभावित हैं और अर्थव्यवस्था में उत्पादक आस्तियों और माँग तक अपनी पहुँच काफी कम हैं।
भारत को V-आकार की रिकवरी की आवश्यकता है और इसके लिये एक वृहत मांग प्रोत्साहन दिया जाना काफी महत्त्वपूर्ण है। इस संदर्भ में एक हरित प्रोत्साहन (Green Stimulus) आवश्यक है, जो कि मांग उत्पन्न करने, वायु प्रदूषण की समस्या को संबोधित करने और हरित ऊर्जा की ओर ट्रांज़ीशन या अवस्थांतर में तेज़ी लाने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 का प्रभाव
- जीडीपी विकास दर: आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान के साथ ही व्यापार विश्वास, वित्तीय बाज़ारों और यात्रा-पर्यटन क्षेत्र पर कोविड-19 के प्रभाव के कारण आर्थिक विकास दर को भारी नुकसान हुआ है।
- फार्मास्यूटिकल्स: चीन के साथ फार्मास्यूटिकल उद्योग के गहरे संबंधों के कारण दवाओं के कच्चे माल की आपूर्ति शृंखला प्रभावित हुई है।
- ऑटोमोबाइल उद्योग: भारतीय मोटर वाहन उद्योग भी कोरोना महामारी के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है और इस प्रकार ऑटोमोबाइल घटक और फोर्जिंग उद्योग भी इसके प्रभाव में आए हैं जो बाज़ार परिदृश्यों और BS-IV से BS-VI उत्सर्जन मानदंडों की ओर ट्रांज़ीशन (अप्रैल 2020 से लागू) के कारण पहले ही अपने उत्पादन दर में कटौती कर चुके हैं।
- विनिर्माण और अन्य क्षेत्र: हालाँकि, संभव है कि आंशिक लॉकडाउन के कारण विनिर्माण उद्योग प्रत्यक्षतः प्रभावित न हुआ हो, किंतु आतिथ्य, यात्रा और पर्यटन जैसे संपर्क सेवा क्षेत्रों पर महामारी का गुणक प्रभाव पड़ा है, क्योंकि इन क्षेत्रों का अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के साथ मज़बूत पूर्वगामी संबंध है।
आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु हरित ऊर्जा पर ध्यान देना आवश्यक
- फसल अवशेष और बिजली उत्पादन: प्रत्येक वर्ष दिवाली के आसपास उत्तर भारत में धान के अवशेषों (पराली) को जलाने से वायु प्रदूषण का गंभीर संकट उत्पन्न होता है।
- लाभकारी मूल्य पर फसल अवशेषों की खरीद कर इससे बचा जा सकता है।
- फसल अवशेष को ‘ब्रिकेट’ (Briquettes) में रूपांतरित किया जा सकता है, जो थर्मल पावर स्टेशनों में कोयले के विकल्प के रूप में उपयोगी हो सकता है।
- NTPC ने उत्पादन लागत में किसी अतिरिक्त वृद्धि के बिना इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया है, क्योंकि ऊर्जा संदर्भ में ब्रिकेट की लागत कोयले की लागत के समतुल्य ही है।
- निवेश को बढ़ावा: फसल अवशेषों को ब्रिकेट में रूपांतरित करने का कार्य निजी उद्यमियों को सौंपा जा सकता है। इससे रूपांतरण के लिये प्रकीर्ण निजी निवेश का मार्ग खुलेगा और रूपांतरण उपकरण, श्रम और परिवहन की मांग उत्पन्न होगी।
- इसके साथ ही सरकार पर किसी प्रकार की अतिरिक्त लागत का भार पड़े बिना वायु प्रदूषण में कमी आएगी।
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV): कार, तिपहिया और दोपहिया वाहन के रूप में EV बाज़ार में उपलब्ध हैं। उनसे वायु प्रदूषण नहीं होता है। वे परिचालन के दृष्टिकोण से काफी सस्ते भी होते हैं।
- लेकिन चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के कारण इनकी मांग में वृद्धि नहीं हो रही है।
- दस लाख से अधिक आबादी वाले सभी शहरों में चार्जिंग स्टेशन की स्थापना के लिये एक राष्ट्रीय कार्यक्रम की आवश्यकता है। इसे केंद्र सरकार द्वारा गारंटीकृत ऋण के माध्यम से पूर्णरूपेण वित्तपोषित किया जा सकता है।
- यह देश भर में एक वृहत मांग प्रोत्साहन प्रदान करेगा और इलेक्ट्रिक वाहनों एवं उनकी विनिर्माण आपूर्ति शृंखला की माँग में सतत् वृद्धि को बल देगा। सिटी बस सेवाओं के लिये इलेक्ट्रिक बसों की खरीद को भी सरकार द्वारा गारंटीकृत ऋण के माध्यम से पूर्णरूपेण वित्तपोषित किया जा सकता है।
- मांग प्रोत्साहन के सृजन के साथ ही ये उपाय हमारे अत्यधिक प्रदूषित शहरों की वायु गुणवत्ता में भी पर्याप्त सुधार लाएंगे।
- नवीकरणीय ऊर्जा अवसंरचना: भारत ने पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 तक 450 GW नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के लक्ष्य की अपनी प्रतिबद्धता से आगे जाने की महत्त्वाकांक्षा प्रदर्शित की है, जो कि सराहनीय है।
- इस दिशा में प्रगति के लिये एक सरल तरीका यह होगा कि राज्यों को एक राष्ट्रीय नीति के माध्यम से मार्गदर्शन प्रदान किया जाए, जहाँ वे बिजली वितरण कंपनियों को उस लाभकारी मूल्य (फीड-इन टैरिफ) की घोषणा हेतु राज़ी करें जिस पर वे ग्रामीण क्षेत्रों से किलोवाट रेंज में सौर ऊर्जा की खरीद करेंगे।
- किसी गाँव में उत्पन्न सौर ऊर्जा से किसानों को सिंचाई हेतु दिन के समय बिजली उपलब्ध कराना बहुत आसान हो जाएगा।
- यह जल के अधिक कुशल उपयोग को भी बढ़ावा देगा। यदि एक गाँव में 1 मेगावाट बिजली पैदा करना संभव है तो देश के 6 लाख गाँवों के सहयोग से 600 गीगावाट क्षमता प्राप्त की जा सकती है।
- इस तरह के कार्यक्रम से व्यापक रूप से प्रकीर्ण निजी निवेश और आय में वृद्धि का होगी।
- ग्रामीण स्तर पर आय सृजन: वर्तमान में जब प्रायः सभी घरों को रसोई गैस स्टोव और सिलेंडर प्राप्त हो रहे हैं और उन्हें बिजली कनेक्शन भी मिल गया है, ऐसे में रसोई ईंधन हेतु गाय के गोबर की आवश्यकता नहीं रह गई है। इसे लघु ग्राम-स्तरीय संयंत्रों में गैस में रूपांतरित करने के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है, जिसका उपयोग रसोई के लिये ईंधन, परिवहन अथवा बिजली के निर्माण हेतु किया जा सकेगा।
- एक सरकार-समर्थित प्रणाली द्वारा लाभकारी मूल्य पर इस गैस या इससे उत्पन्न बिजली की खरीद से निजी निवेश के लिये सकारात्मक प्रोत्साहन प्राप्त होगा और ग्रामीण स्तर पर आय सृजन का अवसर उपलब्ध होगा।
- पशुधन का उपयोग: भारत में विश्व की मवेशियों की सबसे बड़ी आबादी मौजूद है और ऐसे में उत्पादित गोबर को संपूर्ण रूप से उपयोगी व्यावसायिक ऊर्जा में आसानी से रूपांतरित किया जा सके। यह क्रॉस-सब्सिडी हेतु भी उपयुक्त विषय होगा।
- राष्ट्रीय सौर ऊर्जा मिशन को आगे बढ़ाने हेतु क्रॉस-सब्सिडी का इस्तेमाल किया गया था। तब से लागत में महत्त्वपूर्ण रूप से गिरावट आई है।
निष्कर्ष
यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि सौर ऊर्जा, फसल अवशेष आदि विषयों में नवोन्मेषी उपाय वृहत गुणक प्रभावों के साथ प्रकीर्ण मांग और रोज़गार का सृजन कर सकते हैं।
ये हरित प्रोत्साहन के लिये कुछ नवोन्मेषी और वहनीय उपाय हैं, जो व्यापक गुणक प्रभाव के साथ मांग और रोज़गार का सृजन करेंगे, साथ ही ये स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा को भी बढ़ावा देंगे।
अभ्यास प्रश्न: भारत को ऐसे आर्थिक प्रोत्साहन की आवश्यकता है, जो हरित ऊर्जा की ओर अवस्थांतर में भी योगदान करे। इस कथन के आलोक में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के हरित उपायों की चर्चा कीजिये।