एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक भूमिका के संदर्भ में एस.डी.जी. की महत्ता | 31 Jul 2017

संदर्भ
गौरतलब है कि 19 जुलाई को भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र के समक्ष एस.डी.जी. (Sustainable Development Goals - SDGs) के अनुपालन के संबंध में अपनी पहली स्वैच्छिक राष्ट्रीय रिपोर्ट (Voluntary National Report) प्रस्तुत की गई| भारत द्वारा पेश की गई इस रिपोर्ट को सबसे अप्रत्याक्षित रिपोर्ट माना जा रहा है, क्योंकि एस.डी.जी. की सफलता एवं असफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि क्या भारत इन लक्ष्यों को हासिल कर पाएगा अथवा नहीं| 

एस.डी.जी. के संदर्भ में

  • उदाहरण के लिये, एस.डी.जी. के अंतर्गत वर्णित सबसे पहला लक्ष्य “गरीबी के हर एक रूप का अंत करना है”| ध्यातव्य है कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सबसे ज़रूरी यह है कि भारत इस लक्ष्य को प्राप्त करें, क्योंकि यदि भारत जैसा बड़ा देश ऐसा करने में अपनी असमर्थता व्यक्त करता है अथवा ऐसा नहीं कर पाता है तो संपूर्ण विश्व के लिये गरीबी से निजात पा सकना अत्यंत कठिन साबित होगा|
  • एक अनुमान के अनुसार, विश्व के सबसे गरीब क्षेत्र अफ्रीका के 26 देशों की तुलना में भारत में सबसे अधिक गरीब लोग निवास करते हैं| 
  • स्पष्ट रूप से, भारत द्वारा यू.एन. जैसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक मंच पर एस.डी.जी. के संबंध में अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करना न केवल एस.डी.जी. के संबंध में इसकी गंभीरता को दृष्टिगत करता है बल्कि एक महत्त्वपूर्ण वैश्विक शक्ति के रूप में यू.एन. के समक्ष इसकी महत्ता को भी उल्लेखित करता है|
  • हालाँकि इस संबंध में भारत ने स्वयं को प्रभावशाली रूप में प्रदर्शित करते हुए एस.डी.जी. के संबंध में अर्जित अपनी सभी उपलब्धियों को भी चिन्हित किया है| 

भारत का मत

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र के निर्माण एवं उन्नति के मार्ग पर आगे बढ़ने की दिशा में प्रयोग किये गए दिशा - निर्देशों में एस.डी.जी. को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है| जिनमें महिलाओं एवं लड़कियों के सशक्तिकरण के साथ-साथ लिंग समानता को प्राप्त करना (लक्ष्य 5) तथा मानव आवास को और अधिक सुरक्षित, सुविधाजनक एवं स्थायी रूप में विकसित करना (लक्ष्य 11) के संबंध में पहले से ही कार्य किया जा रहा है|
  • इसके अतिरिक्त लक्ष्य -1 : गरीबी का अंत करना, लक्ष्य – 2 : भुखमरी का अंत करना, लक्ष्य – 3 : स्वस्थ जीवन की सुनिश्चितता, लक्ष्य – 9 : बेहतर विनिर्माण की संरचना, लक्ष्य – 14 : महासागरों का सतत् प्रयोग एवं संरक्षण तथा लक्ष्य – 17 : सतत् विकास के लिये वैश्विक साझेदारी को बढ़ावा देने के संदर्भ में भी भारत निरंतर कार्य कर रहा है| 
  • इसके अतिरिक्त भारतीय नागरिक समाज संगठन (Indian civil society organizations) के अधीन एक समूह के द्वारा ‘वादा न तोड़ो अभियान’ (Wada Na Todo Abhiyan) के अंतर्गत कुछ अन्य लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में भी कार्य किया जा रहा है| उदाहरण के तौर पर इसमें लक्ष्य – 16 : शांतिपूर्ण एवं समावेशी समाज की स्थापना जैसे लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में कार्य किया जा रहा है|

रिपोर्ट की खामियाँ

यदि उक्त रिपोर्ट में निहित खामियों के संदर्भ में बात करें तो ज्ञात होता है कि यू.एन. के समक्ष भारत के पक्ष को और अधिक दृढ़ता के साथ पेश किया जा सकता था परंतु, इस रिपोर्ट में कुछ बातों की उपेक्षा की गई जो कि निम्नवत हैं-

  • यह बात सच है कि उक्त रिपोर्ट में राष्ट्रीय आर्थिक वृद्धि एवं एस.डी.जी. की प्राप्ति के मध्य एक दृढ़ संबंध को इंगित किया गया है तथापि इन लक्ष्यों की प्राप्ति के संबंध में कॉर्पोरेट जगत की सहभागिता के संबंध में यह उतना अधिक प्रभावी सिद्ध नहीं होता है|
  • इसके अतिरिक्त इस संबंध में कुछ राज्य सरकारों की भूमिका के संबंध में भी स्थिति संदेहपूर्ण बनी हुई है| हालाँकि कुछ राज्यों के द्वारा इन लक्ष्यों की प्राप्ति की दिशा में कार्रवाई आरंभ की जा चुकी है|
  • इसके अतिरिक्त उक्त रिपोर्ट के अंतर्गत वैश्विक जगत के समक्ष भारत को प्रस्तुत करती इसकी मुख्य थीम ‘वसुदेव कुटुम्बक’ को भी निहित नहीं किया गया है| इतना ही नहीं इसके अंतर्गत इस थीम के समीपवर्ती कोई बात नहीं की गई है|
  • साथ ही रिपोर्ट के अंतर्गत इस बात पर भी कोई विशेष बल नहीं दिया गया है कि किस प्रकार भारत की उन्नति समस्त वैश्विक परिदृश्य में अपनी महत्ता रखती है? किस प्रकार इस दिशा में भारत की सफलता का प्रभाव विश्व की अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर परिलक्षित होगा?  
  • इन सबके विपरीत इस रिपोर्ट ने ‘दक्षिण-दक्षिण’ सहयोग के नाम पर एक अजीब स्थिति उत्पन्न कर दी है| हालाँकि इसमें दक्षिण-उत्तर-दक्षिण सहयोग के विषय में कोई विशेष चर्चा नहीं की गई हैं| तथापि भारत के संदर्भ में ओ.ई.सी.डी. (Organisation for Economic Co-operation and Development) की महत्ता पर अवश्य प्रकाश डाला गया है| 

निष्कर्ष
यदि इस रिपोर्ट के संदर्भ में गंभीरता से चिंतन किया जाए तो ज्ञात होता है कि रिपोर्ट में निहित तकरीबन सभी बातें जहाँ एक ओर वैश्विक परिदृश्य में भारत की उभरती हुई सशक्त राष्ट्र की तस्वीर को उजागर करती है, वहीं दूसरी ओर इसे एक प्रेरणा के रूप में भी स्थापित करती हैं| हालाँकि एक अनुमान के अनुसार, वर्तमान में भारत द्वारा विकास कार्यों के लिये तकरीबन 4.5 बिलियन डॉलर का अनुदान प्रदान किया जाता है, परंतु रिपोर्ट में वर्णित बातों के संदर्भ में विचार करने के पश्चात् यह ज्ञात होता है कि यदि भारत अपने विकास को गति प्रदान करने की दिशा में कार्य करता है तो इस अनुदान में भारी कमी होने की संभावना है| ध्यातव्य है कि एस.डी.जी. लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में भारत की स्थिति चीन की अपेक्षा काफी बेहतर है| हालाँकि अभी भी इस संदर्भ में भारत को कईं प्रकार की चुनौतियों को पार करने की आवश्यकता है ताकि एस.डी.जी. को इसके सार्थक प्रारूप में प्राप्त किया जा सकें| जिनमें लक्ष्यों की प्राप्ति के संदर्भ में आवश्यक मानकों की स्थापना करने के साथ-साथ भारत की आर्थिक एवं सामाजिक उन्नति को भी बढ़ावा देने पर बल दिया जाना चाहिये|