कोरोनरी स्टंट्स की अनुपलब्धता पर सरकार की पैनी नज़र | 07 Mar 2017
सन्दर्भ
ह्रदय रोगों के उपचार में इस्तेमाल होने वाले ‘कोरोनरी स्टेंट’ (coronary stent) नामक चिकित्सकीय उपकरण की कीमत कम करते ही देश में इसकी किल्लत होने लगी है। विदित हो कि सरकार ने कोरोनरी स्टेंट की कीमत 85 फीसदी तक कम की है। बेयर मेटल के स्टेंट की कीमत 7,260 रुपये औऱ ड्रग एल्यूटिंग स्टेंट के दाम 29,600 रुपये तय किये है। दाम घटने के बाद अस्पतालों में स्टेंट्स की कमी पाई गई हैं। अस्पतालों में स्टेंट्स की शॉर्टेज पर केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाते हुए डिपार्टमेंट ऑफ फार्मासुटिकल ने आदेश जारी किए है।
प्रमुख बिंदु
- केंद्र सरकार ने बाजार में कोरोनरी स्टेंट नाम के उपकरण की कमी का हवाला देते हुए दवा मूल्य नियंत्रण कानून के तहत एक आपातकालीन प्रावधान को प्रभावी किया है और स्टेंट निर्माताओं के लिए इसके उत्पादन एवं आपूर्ति को आवश्यक बना दिया है।
- सरकार ने यह आदेश स्टेंट्स की कमी से जुड़ी रिपोर्ट के बाद सुनाया हैं। यह आदेश सभी स्टेंट निर्माताओं, इंपोर्टर्स और स्पलायर्स के लिए है।
- सरकार के कीमत घटाए जाने के बाद कुछ मैन्युफैक्चरर, डिस्ट्रीब्यूटर्स और इम्पोर्टर्स नए प्राइस री-लेबलिंग के नाम पर हॉस्पिटल्स से स्टेंट्स वापस ले रहे हैं। हो सकता है कि इस बहाने स्टेंट्स की कमी दिखाकर मनमानी या पुरानी कीमतों पर इन्हें बेचा जाए।
- जारी किए गए आदेश में सरकार ने कहा है कि सभी अस्पताल ड्रग प्राइज कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) का सेक्शन 3 तत्काल प्रभाव से लागू करें।
- नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA), ड्रग कंट्रोलर जनरल इंडिया (DCGI) और हेल्थ मिनिस्ट्री से कहा गया है कि सरकार की तय की गई कीमत पर स्टेंट्स मरीजों को मिलें, इसकी पुख्ता और जल्द व्यवस्था करें।
- ध्यातव्य है कि केंद्र सरकार के आदेश के तहत कंपनियों को निर्मित और डिस्ट्रीब्यूट किए गए स्टेंट्स की साप्ताहिक रिपोर्ट सरकार को देनी होगी। स्टेंट विनिर्माताओं को छह महीने तक साप्ताहिक रिपोर्ट सीडीएससीओ और एनपीपीए को भेजनी होगी।
- इतना ही नहीं इन कंपनियों को सरकार को डीसीजीआई और एनपीपीए को वीकली प्रोडक्शन प्लान भी बताना होगा।
- इसकी अवहेलना पर एनपीपीए आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 व डीपीसीओ 2013 के प्रावधानों के तहत कानूनी कार्रवाई अमल में लाएगा।
- विदित हो कि सेक्शन 3 के तहत सरकार जनहित में प्रोडक्शन और सप्लाई बढ़ाने का भी आदेश दे सकती हैं।
- स्टेंट ओवर चार्जिंग पर क्रिमिनल केस दर्ज होगा। शिकायत के लिए मंत्रालय ने ‘फार्मा जन समाधान’ और ‘फार्मा सही दाम’ नामक दो मोबाइल एप्प शुरू किये हैं। इनके द्वारा कोई भी व्यक्ति मंत्रालय के पास शिकायत भेज सकता है।
- इस बीच, फार्मास्यूटिकल डिपार्टमेंट ने सम्बंधित एजेंसियों से अस्पतालों में स्टेंट की उपलब्धता सुनिश्चित कराने को कहा है और स्पष्ट किया है कि ऐसे हथकंडे अपनाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
- दवा नियामक एनपीपीए ने देश में स्टेंट्स की किल्लत पर अस्पतालों और चिकित्सकों से रिपोर्ट मांगी है। नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने यह कदम सरकार द्वारा स्टेंट्स की कीमत तय किए जाने के बाद बाजार में इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उठाया है। उसे ऐसी रिपोर्ट मिली है कि बाजार में स्टेंट्स की किल्लत हो गई है।
- सरकार ने स्पष्ट किया है कि स्टेंट्स की कोई कमी नहीं है, लेकिन कुछ हॉस्पिटल्स ऐसा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं।
कोरोनरी स्टेंट्स
- हृदय को रक्त पहुँचाने वाली धमनियों में लगाये जाने वाले ट्यूब के आकार के यंत्र को कोरोनरी स्टेंट कहते है जो दिल की बीमारियों के इलाज में कोरोनरी धमनियों को खुला रखता है।
- कोरोनरी स्टंट्स एक पतला, लचीला एवं ट्यूबनुमा उपकरण है, जिसको रक्त नलिकाओं (blood vessels) में लगाया जाता है|
- यह ट्यूब जैसी डिवाइस ब्लॉकेज होने पर आर्टरी में लगाया जाता है, ताकि हार्ट को पूरी तरह खून की सप्लाई मिलती रहे।
- सर्जरी के जरिए स्टेंट को आर्टरी के उस हिस्से में लगाया जाता है, जहाँ कोलेस्ट्रॉल जमने से ब्लड सप्लाई नहीं हो पाती है और हार्ट अटैक का खतरा रहता है।
- रक्त की आपूर्ति द्वारा संकरी अथवा कमज़ोर धमनियों के उपचार के लिये इसका उपयोग किया जाता है|
रोगियों की आवश्यकतानुसार कई प्रकार के कोरोनरी स्टंट्स विकसित किये गए हैं, जिनमें- धातु स्टंट्स, औषध परत वाले स्टंट्स तथा अवशोष्य स्टंट्स (absorbable stents) प्रमुख हैं|
- बेयर मेटल स्टेंट (BMS) नॉर्मल स्टेंट होता है। जबकि खास तरह के ड्रग एल्यूटिंग स्टेंट (DES) पर मेडिसिन लगी होती है। इसलिए उसकी कीमत थोड़ी ज्यादा होती है।
- मेटल स्टेंट 7,260 रुपए में मिलेंगे। खुले बाजार में इसकी कीमत 30-75 हजार रुपए है।
- ड्रग-एलुटिंग स्टेंट 29,600 रुपए में मिलेंगे। खुले बाजार में इसकी कीमत 40 हजार से 2 लाख रुपए तक है।
- विदेशी स्टेंट भारतीय स्टेंट से बेहतर हैं या नहीं इस पर अभी ठीक-ठीक कुछ कहा नहीं जा सकता किन्तु जानकारों की राय में दोनो में कोई खास फर्क नहीं है। यह 10 हजार का हो या 80 हजार का, सभी एक ही काम करते हैं। हालाँकि भारतीय स्टेंट अमेरिकी एजेंसी एफडीए से मान्यता प्राप्त नहीं हैं।
पृष्ठभूमि
- मरीजों को सस्ती स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए सरकार विभिन्न कदम उठा रही है। इसी श्रृंखला में 13 फरवरी 2017 को नेशनल फॉर्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (NPPA) और हेल्थ मिनिस्ट्री ने एक नोटिफिकेशन जारी कर स्टेंट्स की कीमत 85% तक कम कर दी। मरीजों को सरकार ने इस कदम से बहुत बड़ी राहत मिली है |
- विगत 22 दिसंबर को दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता बीरेंदर सांगवान की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को 1 मार्च, 2017 तक “कोरोनरी स्टंट्स” (coronary stents) नामक चिकित्सकीय उपकरण का ‘अधिकतम खुदरा मूल्य’ (MRP) और ‘अधिकतम मूल्य’ (ceilling price) तय करने का निर्देश दिया था|
- ध्यातव्य है कि रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने 21 दिसंबर, 2016 को हृदय में लगाये जाने वाले स्टेंट को औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (DPCO), 2013 की अनुसूची 1 में शामिल किया था।
- इसी तरह 19 जुलाई 2016 को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने ‘स्टंट्स’ को आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय आवश्यक औषधि सूची (National List of Essential Medicines) 2015 में शामिल किया था|
- केंद्र सरकार की अधिसूचना के अनुसार, इस सूची में शामिल दवाओं की कीमतों को राष्ट्रीय औषध कीमत प्राधिकरण (एनपीपीए) द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है |
- वस्तुतः निर्दिष्ट सूची में शामिल होने के बाद इन मँहगे व आवश्यक चिकित्सकीय उपकरणों की कीमतों को अभी तक नियंत्रित नहीं किया गया था|
- न्यायालय में प्रस्तुत याचिका में सरकार व एनपीपीए पर “असंवेदनशील व गैर-ज़िम्मेदार” होने का आरोप लगाया गया था क्योंकि जुलाई में ही अधिसूचना जारी हो जाने के बावजूद इस उपकरण के कीमत नियंत्रण की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया गया, इसी कारण यह देशभर में उच्च कीमतों पर ही बिक रहा था |
- गौरतलब है कि देश में सभी आयु वर्ग के लोग ह्रदय संबंधी बीमारियों से जूझ रहे हैं तथा स्टंट्स की ज़रूरत होने के बावजूद वे इसका खर्च वहन करने में सक्षम नहीं हैं|
- न्यायालय के आदेश के बाद एनपीपीए अगले दो महीनों में इस उपकरण की कीमतों को नियंत्रित करने के लिये मानक बनाए |
- केंद्र सरकार द्वारा स्टेंट की दरें तय करने के फैसले के बाद स्टेंट की दरें लागू कर दी । अब हर अस्पताल को तय दर पर ही स्टेंट लगाना होगा।
- विदित हो कि अब वेयर मेटल स्टेंट 7260 रुपए और दवाई वाला (ड्रग इल्युटिंग स्टेंट्स, इन्क्लूडिंग मेटेलिक, डीईएस एंड बायोरिसॉर्वेबल वास्कुलर स्कॉफोल्ड बीवीएस बायोडिग्रेडेबल स्टेंट) स्टेंट 29600 रुपए में मिलेगा।
- ध्यातव्य है कि नई दरें पुराने स्टॉक पर भी लागू होंगी। ऐसा न करने पर कड़ी कार्रवाही के संकेत हैं।
- कॉर्डियोलॉजिस्ट का कहना है कि निजी अस्पतालों इसका भी तोड़ निकाल लिया है। पहले एंजियोप्लास्टी के बाद 3 दिन तक मरीज को भर्ती रखा जाता था और 1.50 लाख से 2 लाख के पैकेज में सीसीयू का बिल शामिल था। अब 3 दिन का बिल प्रतिदिन के हिसाब से 10 हजार रुपए कर दिया है। दवा खर्च अलग है।
- केंद्र ने दरें तय कर दी हैं किन्तु निजी अस्पताल अब भी यह कहकर मरीजों को भ्रमित कर रहे हैं कि अभी उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
- उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार के फैसले के बाद देश के कई बड़े अस्पताल, जो एंजियोप्लास्टी के 1.50 लाख से 2.50 लाख रुपए तक ले रहे थे, उन्होंने सर्जरी कम या बंद कर दी थी।
- हालांकि इसका फायदा सरकारी अस्पतालों को हुआ, एकाएक एंजियोप्लास्टी बढ़ गई। केंद्र ने जब से स्टेंट की दरें तय की है, सरकारी अस्पताल में एंजियोप्लास्टी करवाने वालों की संख्या बढ़ी है। संभवतः मरीजों का सरकार पर विश्वास बढ़ा है |
- एक रिपोर्ट के अनुसार 14 से 28 फरवरी (10 वर्किंग डे) के बीच 28 स्टेंट डाले गए। यानी 3 स्टेंट प्रतिदिन, जो इससे पहले 1 हुआ करता था।
- सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि हर मरीज को हर संभव, बेहतर इलाज मिले।
- दवा नियामक एनपीपीए ने देश में स्टेंट्स की किल्लत पर अस्पतालों और चिकित्सकों से रिपोर्ट मांगी है। नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) ने यह कदम सरकार द्वारा स्टेंट्स की कीमत तय किए जाने के बाद बाजार में इनकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उठाया है।
- उसे ऐसी रिपोर्ट मिली है कि बाजार में स्टेंट्स की किल्लत हो गई है।
आसन्न मुद्दे
→ स्टंट्स के प्रयोग से इलाज कराने में इसकी महँगी कीमत के साथ-साथ सुरक्षा संबंधी मुद्दा भी जुड़ा हुआ है| गौरतलब है कि स्टंट्स के प्रयोग के बावजूद धमनी के पुनर्संकुचन का खतरा बना रहता है|
→ अतः इस संबंध में भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) को विदेशी व भारतीय स्टंट्स विनिर्माताओं द्वारा निर्मित स्टंट्स उपकरणों की कुशलता संबंधी आँकड़ों की तुलनात्मक समीक्षा करनी चाहिये|
→ स्टंट्स के प्रयोग द्वारा इलाज कराने के लिये मरीजों को एक-साथ कई उपकरणों की कीमत चुकानी पड़ती है, क्योंकि एक ही रोगी को कई उपकरणों को बारी-बारी से लगाकर सही उपकरण का चुनाव किया जाता है| अतः ऐसी मँहगी उपचार प्रक्रिया को नियंत्रित करने के लिये सरकार को मानक दिशानिर्देश जारी करने चाहियें|
→ ध्यान देने वाली एक अन्य बात यह भी है कि कई बार डॉक्टरों द्वारा मरीजों पर पंजीकृत स्टंट्स वितरक की बजाय बाहर से इन उपकरणों को खरीदने का दबाव डालने के कारण भी इनकी उच्च कीमत चुकानी पडती है|
→ लाभ कमाने के लिए जन-स्वास्थ्य को नज़रंदाज़ करने की घातक प्रवृत्ति
- कीमतों का नियमन होने से पूर्व अब तक हॉस्पिटल स्टेंट पर 196 % और 654% मार्जिन लेकर मोटी कमाई करते रहे हैं ।
- स्टेंट बनाने वालीं कंपनियों को आदेश पर यह आपत्ति है कि जिस तरह आदेश दिया गया कि वो तुरंत दाम कम करें और नए प्राइसिंग लेबल लगाएँ, यह ठीक नहीं है।
- भारत की सबसे बड़ी स्टेंट बनाने वाली कंपनी मेरिल के मुताबिक, कीमत तय कर देने के इस फैसले से इस क्षेत्र में रिसर्च के साथ साथ ‘मेक इन इंडिया’ पर भी प्रभाव पड़ेगा।
- घरेलू विनिर्माताओं के संगठन एआईमेड ने तो सरकार के इस फैसले को ‘उद्योग की हत्या’ के समान बताया है।
- स्टंट्स कि कीमतों पर निजी अस्पतालों और विनिर्माताओं की आपत्ति के विपरीत डॉक्टरों के एक समूह ने कोरोनेरी स्टेंट्स की कीमत तय करने के केंद्र के फैसले की सराहना की है। साथ ही, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इसी तरह दवाओं, हिप और नी इम्प्लांट्स और इंट्राऑक्यूलर लैंसेस की कीमतें तय करने की मांग की है।
- एलांयस ऑफ डॉक्टर्स फॉर एथिकल हेल्थकेयर (एडीईएच) ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा है कि दवाओं और इन इम्प्लांट्स की कीमतें भी स्टेंट्स की तरह बढ़ा-चढ़ाकर तय की जाती हैं।
- एडीईएच की कोर कमेटी के सदस्य का कहना है कि कंपनियाँ, खासकर जेनेरिक और कैंसर की दवाओं की कीमत बढ़ा-चढ़ाकर तय करती हैं। ऐसा ही हिप और नी इम्प्लांट्स और इंट्राऑक्यूलर लैंसेस के मामले में होता है।
- इस प्रवृत्ति पर रोक लगाए जाने की आवश्यकता है।
- एडीईएच ने अपने पत्र के साथ कुछ दस्तावेज भी अटैच किए हैं जो बताते हैं कि कैसे कैंसर की दवाओं, नी इम्प्लांट्स और इन्ट्राआक्यूलर लैंसेस की कीमतें वास्तविक मूल्य से 200 फीसदी तक बढ़ जाती हैं।
- इस गोरखधंधे में दवा बनाने वाली कई प्रमुख बड़ी कंपनियाँ भी शामिल हैं जो दवाएं, इम्प्लांट्स और लैंसेस को इन पर दी गई एमआरपी से काफी कम कीमतों पर अस्पतालों को सप्लाई करती हैं।
- अस्पतालों द्वारा अपनाया जाने वाला स्पेशल “हॉस्पिटल रेट’ और “एमआरपी’ का तरीका सिर्फ अनैतिक ही नहीं बल्कि अपराध भी है।
- एडीईएच ने मांग की है कि स्टेंट की तरह अन्य स्वास्थ्य उपकरणों और दवाईयों की कीमतों पर भी निगाह रखी जानी चाहिए और इनका भी नियमन किया जाना चाहिए।
- ये कीमतें लागत के पूरे आकलन के बाद तय की जानी चाहिए। साथ ही दवा या उपकरण की पैकिंग पर इसका स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
- इससे उन लाखों जरूरतमंद मरीजों को फायदा होगा जो कीमतें अधिक होने की वजह से इन्हें खरीद नहीं पाते हैं और उचित इलाज से वंचित रह जाते हैं।
निष्कर्ष
सरकार द्वारा सस्ती और बेहतर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने के संबंध में हस्तक्षेप के बाद अब राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (National Pharmaceutical Pricing Authority- NPPA) कीमत नियंत्रण की दिशा में कदम उठाएगा, लेकिन सरकार को भी इससे जुडी अन्य चीजों पर ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि मरीजों को इसका वास्तविक लाभ मिल सके | कीमत तय करने के अपने फैसले को सही बताते हुए एनपीपीए ने कहा, 'इस क्षेत्र के सभी हिस्सेदारों के प्रतिनिधियों से बातचीत के बाद यह पाया गया कि कोरोनरी स्टेंट्स की आपूर्ति श्रंखला के हर स्तर पर कीमतें बढ़ जाती हैं, जो अतार्किक है और इससे मरीजों की जेब पर भारी बोझ पड़ता है। सरकार ने आश्वासन दिया है कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को निर्देशित किया जाएगा कि कीमतों को बढ़ने से रोका जाये तथा डॉक्टरों की फीस और अस्पताल में मरीज के रहने की अवधि के संबंध में निगरानी रखी जाये ताकि कीमतों की कमी का लाभ मरीजों को मिल सके |