जी.एस.टी. से कौन-सी वस्तुएँ हैं बाहर? | 05 Jul 2017
संदर्भ
1 जुलाई से पूरे देश में ‘वस्तु एवं सेवा कर’ (GST) लागू हो गया है। विदित है कि 122वें संविधान संशोधन (101वाँ) के तहत जी.एस.टी. कानून बनाया गया तथा जी.एस.टी. परिषद के द्वारा करों की विभिन्न दरें तय की गईं। इसे भारतीय इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा कर सुधार माना जा रहा है। जी.एस.टी. ने जहाँ एक तरफ पूरे देश में ‘एक कर-एक बाज़ार’ को बढ़ावा दिया है, वहीं दूसरी तरफ ‘सहकारी संघवाद’ को मज़बूती प्रदान की है, लेकिन इससे अनेक उत्पादों को बाहर रखा गया। प्रस्तुत लेख में इसी पर चर्चा की गई है।
कौन-सी वस्तुएँ हैं बाहर?
पेट्रोलियम
- जी.एस.टी. के डिज़ाइन में सुधार करने के लिये अगला कदम उन उत्पादों को जी.एस.टी. के अंतर्गत शामिल करना है, जो अभी इससे बाहर हैं। यह तभी होगा जब कुछ संक्रमणकालीन मुद्दों को हल कर लिया जाएगा।
- क्रूड पेट्रोलियम और पेट्रोलियम उत्पाद जी.एस.टी. का हिस्सा हैं, लेकिन कच्चे तेल, पेट्रोल, डीजल, विमानन टरबाइन ईंधन और प्राकृतिक गैस को अस्थायी रूप से बाहर रखा गया है। उल्लेखनीय है कि जी.एस.टी. कानून में यह व्यवस्था की गई है कि जी.एस.टी. परिषद के अनुमोदन के बाद किसी भी समय किसी भी उत्पाद को जी.एस.टी. के तहत लाया जा सकता है।
- पेट्रोलियम मंत्रालय ने भी इस विचार को अपना समर्थन दिया है। यह कहा गया है कि अगर पेट्रोलियम को शामिल करना तुरंत संभव न हो सके तो प्राकृतिक गैस को शामिल करने पर विचार किया जा सकता है, क्योंकि यह औद्योगिक इकाईयों के लिये एक मध्यवर्ती इनपुट है और जी.एस.टी. में शामिल अंतिम उत्पादों को जी.एस.टी. इनपुट क्रेडिट दिया जा सकता है।
बिजली
- दूसरे चरण में बिजली और उसके बाद इमारतों और रियल एस्टेट को शामिल किया जाना चाहिये।
- बिजली एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण उत्पाद है, लेकिन राज्यों द्वारा इसके जी.एस.टी. में शामिल किये जाने का विरोध किया जा रहा है। राज्यों का मानना है कि इसको शामिल करने से शुल्क में वृद्धि हो जाएगी, जिससे उपभोक्ताओं पर भार बढ़ेगा और विनिर्माण क्षेत्र की लागत भी बढ़ सकती है। वैसे बिजली क्षेत्र को जी.एस.टी. में लाना आसान है, क्योंकि इसमें कोई कानूनी बाधा नहीं है। अत: बिजली क्षेत्र को जी.एस.टी. में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इसके बाद यह इनपुट करों का निर्बाध श्रेय प्रदान कर सकता।
- इस कदम से विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र को लाभ हो सकता है, जहाँ अनेक नई क्षमताएँ (new capacities) स्थापित की जा रही हैं तथा बड़ी मात्र में पूंजीगत निवेश भी किया जा रहा है। इसके साथ ही पूंजीगत वस्तु क्रेडिट (capital goods credit ) भी मिल सकता है। इसके माध्यम से ‘विनिर्माण’ और ‘मेक इन इंडिया’ के प्रयासों को भी गति मिलेगी।
भूमि और रियल एस्टेट
- भूमि और रियल एस्टेट, जो की अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र हैं, जी.एस.टी. से बाहर है। इन क्षेत्रों को भी जी.एस.टी. में शामिल किया जाना चाहिये, क्योंकि यह काले धन का सफाया करते हुए भूमि बाज़ारों को पारदर्शी बनाएगा।
- इसके शामिल होने के बाद मध्यवर्ती और पूंजीगत सामान के कर के बोझ को अंतिम उपभोग को हस्तांतरित किया जा सकता है। अत: इसके समावेशन से मिलने वाले लाभ बहुत अधिक हो सकते हैं।
- इसका उपाय करने हेतु सी.जी.एस.टी. कानून (CGST) की ‘तृतीय अनुसूची’ (यहाँ शामिल मद न तो माल और न ही सेवाओं की आपूर्ति को भूमि और इमारतों की आपूर्ति के रूप में स्वीकार करती है) में संशोधन करना पड़ेगा।
- इसके अलावा इनपुट क्रेडिट नियमों के लिये भी एक संशोधन करना होगा, जहाँ भूमि और भवनों के संबंध में इनपुट क्रेडिट का लाभ उठाने पर रोक लगाई गई है।
- सेवा की आपूर्ति के रूप में भूमि और भवन को जी.एस.टी. में शामिल करना यानि जी.एस.टी. को एक अच्छा जी.एस.टी. (good GST, a great GST) बनाना।
विवाद निवारण उपाय
- जी.एस.टी. के अंतर्गत केंद्र और राज्यों स्तर पर एक ‘तकनीकी सचिवालय’ (Technical Secretariat) की स्थापना की गई है, जो एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संस्थागत उपाय है।
- यह संस्था केंद्र एवं राज्य स्तर पर विवादों को कम करने में मदद करेगी।
निष्कर्ष
अत: हमें बिजली, पेट्रोलियम और भूमि एवं रियल एस्टेट को भी जी.एस.टी. में शामिल करते हुए कर आधार बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ाना चाहिये। इसके लिये केंद्र एवं राज्यों को आपस में गहन विचार-विमर्श करना चाहिये, ताकि इन छूटे हुए बड़े क्षेत्रों को भी जी.एस.टी. में शामिल किया जा सके। इससे एक तरफ राजस्व के उतार-चढ़ाव में सुधार होगा तो दूसरी तरफ सरकार को कर की दरों को कम करने में भी मदद मिलेगी।