नि-वैश्वीकरण व आत्मनिर्भर भारत अभियान | 15 Jul 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में नि-वैश्वीकरण व आत्मनिर्भर भारत अभियान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण मार्च 2020 से ही विश्व की लगभग सभी अर्थव्यवस्थाएँ परिणामी स्वास्थ्य व आर्थिक क्षेत्र में हो रही गिरावट के चलते तनाव में हैं। महामारी से निपटने के लिये दुनिया भर के देशों ने लोगों के आवागमन, अंतर्राष्ट्रीय यात्रा और माल एवं सेवाओं के परिवहन पर पाबंदियाँ लगाने हेतु संपूर्ण लॉकडाउन की व्यवस्था को अपनाया। इसके परिणामस्वरूप कई उद्योग और संगठन या तो बंद हो गए हैं या न्यूनतम क्षमता पर काम कर रहे हैं, और इसका प्रभाव अब वैश्विक स्तर पर दिखाई दे रहा है।
विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटकर मात्र 5 प्रतिशत रह जाएगी, तो वहीं 2020-21 में तुलनात्मक आधार पर अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में भारी गिरावट आएगी जो घटकर मात्र 2.8 प्रतिशत रह जाएगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह महामारी ऐसे वक्त में आई है जबकि वित्तीय क्षेत्र पर दबाव के कारण पहले से ही भारतीय अर्थव्यवस्था सुस्ती की मार झेल रही थी। कोरोना वायरस के कारण इस पर और दवाब बढ़ गया है। सरकार इस स्थिति से उबरने व अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये विशेष आर्थिक पैकेज प्रदान कर रही है, जो सार्वजनिक व निजी निवेश (घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों) को राहत प्रदान करने में सहायक होगी। इस महामारी के बाद विश्व के विभिन्न देशों में आपूर्ति के लिये स्थानीय क्षमता में वृद्धि और प्रवासियों पर सख्ती जैसे प्रयासों के साथ नि-वैश्वीकरण (De-Globalization) व संरक्षणवाद की विचारधारा को बढ़ावा मिल सकता है।
नि-वैश्वीकरण से तात्पर्य
- यह विभिन्न राष्ट्रों के बीच निर्भरता और एकीकरण में कमी की प्रक्रिया है। यह देशों के बीच आर्थिक व्यापार और निवेश में गिरावट का प्रतीक है।
- यह ऐसे देशों की प्रवृत्ति को उजागर करता है जो ऐसी आर्थिक और व्यापार नीतियों को अपनाना चाहते हैं जो सर्वप्रथम अपने राष्ट्रीय हितों को पोषित करती हैं।
- ये नीतियाँ अक्सर टैरिफ या मात्रात्मक बाधाओं का रूप लेती हैं जो देश में अन्य देशों से आने वाले लोगों, उत्पादों और सेवाओं के मुक्त आवागमन को बाधित करती हैं।
- नि-वैश्वीकरण विचार का मुख्य उद्देश्य आयात को महँगा करके स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहन देना है।
- इस महामारी ने नि-वैश्वीकरण के विचार को बढ़ावा देने के लिये अनुकूल माहौल निर्मित कर दिया है।
वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर COVID-19 का प्रभाव
- पिछले कुछ वर्षों में चीन विश्व के लिये एक बड़ा उत्पादक बन कर उभरा है और इस दौरान कई देशों से चीन को भारी मात्रा में विदेशी निवेश भी प्राप्त हुआ है।
- COVID-19 की महामारी से उत्पन्न हुई चुनौतियों के बाद विश्व के कई देशों ने अपने उद्योगों की चीन पर निर्भरता को कम करने तथा स्थानीय क्षमता के विकास पर विशेष ध्यान दिया है।
- जापान सरकार ने चीन में सक्रिय जापानी कंपनियों को चीन से बाहर निकालने के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की सहायता देने का निश्चय किया है।
- इसके अतिरिक्त अमेरिका की कई कंपनियों ने चीन पर अपनी निर्भरता को कम करना शुरू किया है।
- भारतीय दवा उद्योग अपनी कुल आवश्यकता की लगभग 70% 'सक्रिय दवा सामग्री' (Active Pharmaceutical Ingredient-API) चीन से आयात करता है परंतु इस महामारी के बाद भारत सरकार ने औद्योगिक क्षेत्र के सहयोग से देश में API निर्माण को प्रोत्साहन देने के लिये विशेष प्रयास किये हैं।
उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का प्रयास
- आर्थिक उदारीकरण के बाद भारत ने कई क्षेत्रों में अपनी उत्पादन क्षमता में वृद्धि की है परंतु अन्य कई क्षेत्रों में भी जहाँ बेहतर संभावनाएँ हैं, भारतीय कंपनियाँ उत्पादन (Production) से हटकर व्यापार (Trade) में एक सेवा प्रदाता के रूप में अधिक सक्रिय रही हैं।
- पूर्व में भारत में जिन क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ाने का प्रयास किया गया है उनमें हम काफी सफल भी रहें हैं, उदाहरण के लिये स्टील उत्पादन, सूचना प्रौद्योगिकी और मोबाइल फोन या अन्य इलेक्ट्रिक उत्पादों की असेंबली आदि।
- लगभग 135 करोड़ की आबादी के साथ भारत के पास निर्यात के अलावा उत्पादों की खपत के लिये एक बड़ा स्थानीय बाज़ार भी उपलब्ध है।
- ऐसे में यह बहुत ही आवश्यक है कि ऐसे कुछ क्षेत्रों की पहचान की जाए जहाँ आसानी से अगले कुछ वर्षों देश में में स्थानीय आत्मनिर्भरता का विकास किया जा सकता है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान
- वर्तमान वैश्वीकरण के युग में आत्मनिर्भरता (Self-Reliance) की परिभाषा में बदलाव आया है। आत्मनिर्भरता (Self-Reliance), आत्म-केंद्रितता (Self-Centered) से अलग है।
- भारत 'वसुधैव कुटुंबकम्' की संकल्पना में विश्वास करता है। चूँकि भारत दुनिया का ही एक हिस्सा है, अत: भारत प्रगति करता है तो ऐसा करके वह दुनिया की प्रगति में भी योगदान देता है।
- ‘आत्मनिर्भर भारत’ के निर्माण में वैश्वीकरण का बहिष्करण या संरक्षणवाद को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा अपितु दुनिया के विकास में मदद की जाएगी।
- आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा के प्रथम चरण में चिकित्सा, वस्त्र, इलेक्ट्रॉनिक्स, प्लास्टिक, खिलौने जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा द्वितीय चरण में रत्न एवं आभूषण, फार्मा, स्टील जैसे क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया जाएगा।
- सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में उन 10 क्षेत्रों की पहचान की है, जिनमें घरेलू उत्पादन को बढ़ावा दिया जाएगा। सरकार ने इन 10 क्षेत्रों के आयात में कटौती का भी निर्णय किया है।
- इसमें फर्नीचर, फूट वेयर और एयर कंडीशनर, पूंजीगत सामान तथा मशीनरी, मोबाइल एवं इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न एवं आभूषण, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल आदि शामिल हैं।
आत्मनिर्भर भारत के पाँच स्तंभ
- अर्थव्यवस्था (Economy): जो वृद्धिशील परिवर्तन (Incremental Change) के स्थान पर बड़ी उछाल (Quantum Jump) पर आधारित हो।
- अवसंरचना (Infrastructure): ऐसी अवसंरचना जो आधुनिक भारत की पहचान बने।
- प्रौद्योगिकी (Technolog): 21 वीं सदी प्रौद्योगिकी संचालित व्यवस्था पर आधारित प्रणाली।
- गतिशील जनसांख्यिकी (Vibrant Demography): जो आत्मनिर्भर भारत के लिये ऊर्जा का स्रोत है।
- मांग (Demand): भारत की मांग और आपूर्ति श्रृंखला की पूरी क्षमता का उपयोग किया जाना चाहिये।
स्थानीय आपूर्ति श्रृंखला का निर्माण
- भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ कुछ हिस्सों में बड़ी प्रगति हुई है परंतु अन्य में आज भी हम किसी न किसी रूप में अन्य देशों पर निर्भर हैं।
- उदाहरण के लिये भारत सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र वैश्विक बाज़ार में अपना स्थान बनाया है परंतु हार्ड वेयर के निर्माण में भारतीय कंपनियाँ उतनी सफल नहीं रही हैं। अन्य उदाहरणों में भारतीय दवा उद्योग, मोबाइल असेम्बली आदि हैं, जहाँ स्थानीय आपूर्ति शृंखला को मज़बूत किया जाना अति आवश्यक है।
तकनीकी हस्तक्षेप में वृद्धि:
- भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की स्थापना के माध्यम से दो मुख्य लक्ष्यों (औद्योगिक विकास और रोज़गार) को प्राप्त करने का प्रयास किया गया।
- वर्तमान में वैश्वीकरण और प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में सरकारों को अपनी नीतियों में बदलाव करना होगा।
- वर्तमान में COVID-19 के कारण बदली हुई परिस्थितियों में अधिकांश कंपनियों में ‘ऑटोमेशन’ (Automation), घर से काम करने और अनुबंधित कामगारों को अधिक प्राथमिकता देंगी।
- ऐसे में आधुनिक तकनीकी प्रगति के अनुरूप कुशल श्रमिकों की मांग को पूरा करने और लोगों को रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु कौशल विकास के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना होगा।
उत्पादन श्रृंखला में भागीदारी:
- औद्योगिक विकास के साथ-साथ ही उत्पादन के स्वरूप और कंपनियों/उद्योगों की कार्यशैली में बड़े बदलाव होंगे।
- ऐसे में कृषि और अन्य क्षेत्रों को इन परिवर्तनों के अनुरूप तैयार कर औद्योगिक विकास के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था में योगदान दिया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये विभिन्न प्रकार के कृषि उत्पादों की पैकेजिंग या उनसे बनने वाले अन्य उत्पादों के निर्माण हेतु स्थनीय स्तर पर छोटी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना को बढ़ावा देकर औद्योगिक उत्पादन श्रृंखला में ग्रामीण क्षेत्रों की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है।
अभियान के समक्ष संभावित चुनौतियाँ:
- लागत और गुणवत्ता
- वर्तमान में कई क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों को बहुत अधिक अनुभव नहीं है, ऐसे में लगत को कम-से-कम रखते हुए वैश्विक बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धा में बने रहने के लिये उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी।
- आर्थिक समस्या
- हाल ही में भारतीय औद्योगिक क्षेत्र में सक्रिय पूंजी और वित्तीय तरलता की चुनौती के मामलों में वृद्धि देखी गई थी, COVID-19 की महामारी से औद्योगिक गतिविधियों के रुकने और बाज़ार में मांग कम होने से औद्योगिक क्षेत्र की समस्याओं में वृद्धि हुई है।
- ऐसे में सरकार को औद्योगिक अर्थव्यवस्था को पुनः गति प्रदान करने के लिये विभिन्न श्रेणियों में लक्षित योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिये।
- आधारिक संरचना:
- विशेषज्ञों के अनुसार, चीन से निकलने वाली अधिकांश कंपनियों के भारत में न आने का एक मुख्य कारण भारतीय औद्योगिक क्षेत्र (विशेष कर तकनीकी के संदर्भ में) में एक मज़बूत आधारिक ढांचे का अभाव है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय उत्पादक किसी-न-किसी रूप में आयात पर निर्भर रहें हैं।
- वैश्विक मानक:
- सरकार द्वारा स्थानीय उत्पादकों और व्यवसायियों को दी जाने वाली सहायता मुक्त व्यापार समझौतों और ‘अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संघ’ (World Trade Organisation- WTO) के मानकों के अनुरूप ही जारी की जा सकती है।
निष्कर्ष
COVID-19 के कारण उपजी हुई परिस्थितियों के बाद देश के नागरिकों का सशक्तीकरण करने की आवश्यकता है ताकि वे देश से जुड़ी समस्याओं का समाधान कर सके तथा बेहतर भारत का निर्माण करने में अपना योगदान दे सके। आत्मनिर्भर भारत अभियान के समक्ष अनेक चुनौतियों के होने के बावजूद, भारत को औद्योगिक क्षेत्र में मज़बूती के लिये उन उद्यमों में निवेश करने की आवश्यकता है जिनमें भारत के वैश्विक ताकत के रूप में उभरने की संभावना है। इस दिशा में कार्य करते हुए सरकार ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ के अंतर्गत 20 लाख करोड़ रुपए के विशेष आर्थिक और व्यापक पैकेज की घोषणा की है। आत्मनिर्भर राहत पैकेज़ के माध्यम से न केवल सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (Micro, Small and Medium Enterprises-MSMEs) क्षेत्र में सुधारों की घोषणा की गई, अपितु इसमें दीर्घकालिक सुधारों; जिनमें कोयला और खनन क्षेत्र जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
प्रश्न- नि-वैश्वीकरण की अवधारणा से आप क्या समझते हैं? विभिन्न देशों द्वारा आत्मनिर्भरता की दिशा में किये जा रहे प्रयास इस अवधारणा की परिणति हैं। मूल्यांकन कीजिये।