शासन व्यवस्था
स्वच्छता और महिला नेतृत्त्व
- 08 Mar 2021
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इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में स्वच्छता और स्वच्छता में महिलाओं की भूमिका व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ:
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निर्धारित सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के तहत शामिल लक्ष्य 6.2 को प्राप्त करने हेतु भारत को वर्ष 2030 तक महिलाओं, लड़कियों तथा समाज के सुभेद्य वर्ग की ज़रूरतों पर विशेष ध्यान देते हुए, सभी के लिये स्वच्छता एवं सफाई तक पर्याप्त एवं समान पहुँच सुनिश्चित करने के साथ खुले में शौच की कुप्रथा को भी समाप्त करना होगा।
इस संदर्भ में भारत सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन (SBM) की शुरुआत की गई है, जिसके तहत जल और स्वच्छता के बुनियादी ढाँचे की स्थापना के साथ-साथ भारत को खुले में शौच मुक्त बनाने की परिकल्पना की गई है।
हालाँकि SBM स्वास्थ्य एवं स्वच्छता में सुधार हेतु एक जन आंदोलन है, फिर भी ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिनमें लड़कियों तथा महिलाओं को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है जहाँ स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच आसान नहीं है और यहाँ तक कि यह असुरक्षित भी है।
चूँकि अन्य सामाजिक मुद्दों की तरह ही लैंगिक पहलू स्वच्छता और सफाई का भी एक महत्त्वपूर्ण घटक है, इसलिये इसमें कोई संदेह नहीं है कि जैसे-जैसे स्वच्छता, स्वास्थ्य और सफाई का यह जन आंदोलन गति पकड़ेगा महिलाएँ इस क्षेत्र में व्यापक तथा स्थायी परिवर्तन लाने में सहायता कर सकती हैं।
स्वच्छता और लैंगिक मुद्दों से जुड़ी चुनौतियाँ:
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की 50% से अधिक आबादी शौच के लिये खुले में जाती है जबकि एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार 60% ग्रामीण घरों और 89% शहरी घरों में शौचालय की मौजूदगी है।
- निर्णय प्रक्रिया में सीमित भूमिका: वास्तविकता में स्वच्छता से जुड़ी योजनाओं के प्रवर्तक शायद ही कभी महिलाओं को जल और स्वच्छता समितियों में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करते हैं, जो उनकी भागीदारी की गारंटी नहीं देता है।
- इसके अतिरिक्त उम्र, परिवार में स्थिति और सामाजिक तथा सांस्कृतिक बाधाएँ भी कुछ ऐसे कारक हैं जो स्वच्छता संबंधी निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी को निर्धारित करते हैं।
- लिंग आधारित स्वच्छता असुरक्षा: स्वच्छता सुविधाओं कमी या अनुपलब्धता का भार पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं के लिये असमान रूप से अधिक होता है, जिसे “लिंग आधारित स्वच्छता असुरक्षा” भी कहा जा सकता है।
- पुरुषों के अपेक्षा महिलाओं के लिये अपने दैनिक जीवन में गोपनीयता का महत्त्व अधिक होता है।
- ऐसे में उचित स्वच्छता सुविधाओं की अनुपलब्धता महिलाओं के लिये एक असहाय स्थिति पैदा करती है और यह उनमें विभिन्न रोगों के जोखिम को बढ़ावा देती है।
- खुले में शौच से जुड़े जोखिम: खुले में शौच हेतु जाते समय महिलाएँ असुरक्षित महसूस करती हैं और कई मामलों में उन्हें अपने जीवन के लिये खतरे का सामना करना पड़ता है।
- इससे जुड़े जोखिमों में शाम होने के बाद या सुबह ही अँधेरे में बाहर जाते समय असुरक्षित महसूस करना; और सुरक्षित एवं पर्याप्त सुविधाओं के अभाव में मासिक धर्म की शुरुआत के साथ ही लड़कियों का स्कूल छोड़ना आदि शामिल है।
आगे की राह:
- व्यवहार परिवर्तन सुनिश्चित करना: आम जनता के व्यवहार परिवर्तन पर केंद्रित सूचना, शिक्षा और संचार प्रबंधन स्वच्छता मिशन 2.0 की सफलता की कुंजी है।
- स्वच्छ भारत मिशन 2.0 के तहत स्थायी ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और अपशिष्ट जल के सुरक्षित निपटान तथा पुन: उपयोग के नए एजेंडों को शुरू करने के साथ सतत् व्यवहार परिवर्तन की बात भी कही गई है।
- एक सक्रिय एसबीएम संदेश जो प्रमुख परिवर्तनों को दर्शाता है, महिला समूहों के अनुभवों एवं सफलता को प्रचारित तथा लोकप्रिय बनाने का प्रयास करता है। इस प्रकार का सक्रिय संदेश वर्तमान में सामाजिक जागरूकता में वृद्धि करने में सहायक होगा और यह महिलाओं को स्वच्छता संबंधी पहलों का पूर्ण नियंत्रण लेने के लिये प्रेरित करेगा।
सकारात्मक व्यवहार परिवर्तन लाने वाले मामलों से जुड़े अध्ययन:
- स्वच्छता के क्षेत्र में महिला नेतृत्त्व के साहसी उदाहरण: छत्तीसगढ़ की एक दिव्यांग पंचायत प्रमुख उत्तरा ठाकुर अपने गाँव में स्वच्छता सेवाओं को बेहतर बनाने के लिये प्रतिबद्ध थी।
- उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को शौचालय के उपयोग हेतु प्रेरित किया। उनकी इस प्रतिबद्धता ने पूरे गाँव को इस मुहिम में उनके साथ खड़े होने और अपने गाँव को खुले में शौच से मुक्त बनने के लिये प्रेरित किया।
- झारखंड में प्रशिक्षित महिला राजमिस्त्रियों ने एक वर्ष में 15 लाख से अधिक शौचालयों का निर्माण किया और राज्य को खुले में शौच से मुक्त (ग्रामीण) बनाने के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता की।
- सरकार के अलावा गैर-सरकारी नेतृत्त्व जैसे बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, यूनिसेफ जैसी संस्थाओं तथा कई अन्य गैर-सरकारी संगठनों ने भी इस संबंध में विविध प्रयास किये हैं जिनकी सराहना की जानी चाहिये।
- सरकार ने भी बहुत ही प्रभावी ढंग से 8 लाख से अधिक स्वच्छाग्रहियों (मुख्य रूप से महिलाएँ) का उपयोग किया है, जो छोटे मानदेय के बदले सामुदायिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने का कार्य करते हैं।
- स्वच्छता और सफाई को आजीविका से जोड़ना: फिक्की द्वारा शुरू किये गए ‘इंडिया सैनिटेशन कोअलिशन’ ने महिलाओं द्वारा स्वच्छता आवश्यकताओं के लिये संचालित स्व-सहायता समूहों को सूक्ष्म-वित्त सुविधाओं से जोड़ने में सहायता की है।
- जल, स्वच्छता और सफाई या वाश (Water, Sanitation, and Hygiene- WASH) कार्यक्रमों के साथ आय और कल्याण प्रभावों में वृद्धि करने हेतु लक्षित समूहों के साथ इस तरह के हस्तक्षेप को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- लिंग आधारित परिणामों की निगरानी: SBM में लिंग आधारित परिणामों को ट्रैक करने और मापने के लिये एक राष्ट्रीय निगरानी एवं मूल्यांकन प्रणाली को स्थापित करना बहुत ही आवश्यक है।
- इस क्षेत्र से जुड़े कई शोधकर्त्ताओं ने विकास से जुड़ी प्रथाओं में लिंग आधारित विश्लेषण ढाँचे के एक लंबे इतिहास को रेखांकित किया है।
- हम कार्यक्रमों की प्रभावी परिकल्पना, कार्यान्वयन और उनकी निगरानी को समर्थन प्रदान करने के लिये ऐसी रूपरेखाओं से सीख प्राप्त सकते हैं, जो स्वच्छता में लैंगिक समानता के अंतर को समाप्त/दूर करने में सहायक हों।
- वर्तमान में हस्तक्षेप के दोनों पक्षों (आपूर्ति और मांग) पर लैंगिक लक्ष्यीकरण के लिये हितधारकों में क्षमता निर्माण हेतु प्रभावी संचार एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
वर्तमान में बालिकाओं की उत्तरजीविता एवं उनकी सुरक्षा को सुनिश्चित करने हेतु स्वच्छता और पोषण से समर्थित अच्छे स्वास्थ्य एवं पेयजल प्रबंधन से जुड़े सुनियोजित दृष्टिकोण अपनाने के अलावा कोई त्वरित समाधान नहीं हैं। ऐसे प्रयास न केवल महिलाओं को जल-प्रबंधन के लिये उठाई जाने वाली कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने व उनके शिक्षा प्राप्त करने के अवसरों को सुनिश्चित करने में सहायक होंगे बल्कि ये आगामी पीढ़ी के विकास का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
अभ्यास प्रश्न: स्वच्छ भारत मिशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु आवश्यक बदलाव लाने में महिलाओं की सक्रिय भूमिका एक महत्त्वपूर्ण बढ़त प्रदान कर सकती है । चर्चा कीजिये।