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कचरे से समृद्धि की ओर

  • 30 Sep 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 28/09/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “What is the solution to India’s garbage disposal problem?” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में अपशिष्ट निपटान और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

बढ़ती आय, तेजी से बढ़ता हुआ लेकिन अनियोजित शहरीकरण और बदलती जीवन शैली के परिणामस्वरूप भारत में अपशिष्ट/कचरे की मात्रा में वृद्धि हुई है और उनकी संरचना (कागज, प्लास्टिक और अन्य अकार्बनिक सामग्री के बढ़ते उपयोग के साथ) में बदलाव आया है।

भारत में अनुपयुक्त अपशिष्ट प्रबंधन के पर्यावरण और स्वास्थ्य पर कई प्रभाव पड़ते हैं। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की वर्तमान स्थिति के परिणामस्वरूप उत्पन्न पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट को दूर करने पर ध्यान देने के साथ ही भारतीय शहरों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की भविष्य की चुनौतियों का समाधान करने हेतु एक दीर्घकालिक रणनीति तैयार करने की आवश्यकता है।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन की वर्तमान स्थिति

  • नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (प्रबंधन और प्रहस्तन) नियम, 2000 (Municipal Solid Waste Management Handling Rules, 2000) में यह संकेत दिया गया कि भारत में ठोस अपशिष्ट के संग्रहण, परिवहन, निपटान और पृथक्करण का उत्तरदायित्व शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies- ULBs) पर है।
  • प्रत्येक वर्ष भारत 62 मिलियन टन अपशिष्ट उत्पन्न करता है। इनमें से लगभग 43 मिलियन टन (70%) को एकत्र किया जाता है, जिसमें से लगभग 12 मिलियन टन को उपचारित किया जाता है और 31 मिलियन टन को लैंडफिल स्थलों पर डंप किया जाता है।
    • बदलते उपभोग पैटर्न और तीव्र आर्थिक विकास के साथ अनुमान है कि शहरी नगरपालिका ठोस अपशिष्ट उत्पादन वर्ष 2030 तक बढ़कर 165 मिलियन टन हो जाएगा।
  • भारत के अधिकांश डंप या अपशिष्ट निपटान स्थल अपनी क्षमता तथा 20 मीटर की उच्च सीमा के पार जा चुके हैं। अनुमान है कि ये डंप स्थल 10,000 हेक्टेयर से अधिक शहरी भूमि पर फैले हुए हैं।

अपशिष्ट के प्रमुख वर्गीकरण

  • ठोस अपशिष्ट: सब्जियों का कचरा, रसोई का कचरा, घरेलू कचरा आदि।
  • ई-वेस्ट (E-Waste): परित्यक्त कंप्यूटर, टीवी, म्यूजिक सिस्टम जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को उत्पन्न अपशिष्ट।
  • तरल अपशिष्ट: विभिन्न उद्योगों, चर्मशोधन कारखानों, भट्टियों, ताप विद्युत संयंत्रों आदि में प्रयोग किया गया जल।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट: प्लास्टिक बैग, बोतलें, बाल्टी आदि।
  • धातु अपशिष्ट: अप्रयुक्त धातु शीट, धातु स्क्रैप आदि।
  • परमाणु अपशिष्ट: परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से उत्पन्न अनुपयुक्त सामग्री।

इन सभी प्रकार के अपशिष्टों को गीले कचरे (Wet Waste) या जैव-निम्नीकरणीय (Biodegradable) और सूखे कचरे (Dry Waste) या गैर- जैव-निम्नीकरणीय (Non Biodegradable) के दो समूहों में बाँटा जा सकता है।

भारत में अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ

  • अपशिष्ट प्रबंधन में शहरी स्थानीय निकायों की अक्षमता: भारत के अधिकांश नगर निकाय क्षेत्रों में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन अभ्यास भारी अक्षमता से ग्रस्त हैं; इसके साथ ही वे निर्णय निर्माण और लागत योजना की समस्या जैसी अन्य प्रशासनिक बाधाओं से ग्रस्त हैं।
    • राज्य सरकार के अधीन कार्यरत नगर निकाय संस्थाओं में प्रायः कर्मचारियों की कमी है, जबकि इसके वित्तीय बजट का अधिकांश भाग अपशिष्ट डंपिंग अभ्यासों में व्यय हो जाता है।
      • इसके अलावा, कई नगर निकाय मुनाफा कमाने के उद्देश्य से कूड़ा संग्रह एवं निपटान के लिये निजी ठेकेदारों को काम पर रखते हैं।
  • अपशिष्ट पृथक्करण का अभाव: घरेलू कचरे के पृथक्करण के बारे में आबादी के एक बड़े हिस्से में जागरूकता का अभाव है। व्यवसाय संबंधी अपशिष्ट (Trade Waste) को उपयुक्त रूप से पृथक करने की विफलता के कारण ये लैंडफिल में मिश्रित हो जाते हैं।
    • फ़ूड स्क्रैप, कागज, प्लास्टिक जैसे अपशिष्ट पदार्थ और तरल अपशिष्ट मिश्रित और अपघटित होते हुए मृदा में दूषित जल का रिसाव करते हैं और वातावरण में हानिकारक गैस छोड़ते हैं।
  • अनसस्टेनेबल पैकेजिंग: ऑनलाइन रिटेल और फूड डिलीवरी ऐप की लोकप्रियता (हालाँकि ये अभी बड़े शहरों तक सीमित हैं) प्लास्टिक कचरे की वृद्धि में योगदान दे रही है।
    • प्लास्टिक पैकेजिंग के अत्यधिक इस्तेमाल को लेकर ई-कॉमर्स कंपनियों की भी आलोचना की जा रही है।
    • इसके अलावा, पैक किये गए उत्पादों के साथ कोई निपटान निर्देश शामिल नहीं होता है।
  • डेटा संग्रह तंत्र का अभाव: भारत में ठोस या तरल कचरे के संबंध में टाइम सीरीज डेटा या पैनल डेटा का अभाव है इसलिये देश के अपशिष्ट योजनाकारों के लिये अपशिष्ट प्रबंधन की अर्थव्यवस्था का विश्लेषण करना अत्यंत कठिन है।
    • इस परिदृश्य में निजी संस्थाओं के लिये अपशिष्ट प्रबंधन नीतियों की लागत और लाभों के बीच के संबंध को समझना और बाज़ार में प्रवेश करना कठिन हो जाता है।
  • बढ़ते ग्रामीण-शहरी संघर्ष: भारत के अधिकांश शहरों में इसके बाहरी इलाकों में गाँवों के पास अपशिष्ट फेंका जाता है जो गाँवों के पर्यावरण को प्रभावित करता है और कई स्वास्थ्य संबंधी खतरे उत्पन्न करता है। इससे ग्रामीण-शहरी संघर्ष उत्पन्न हो रहे हैं।

अपशिष्ट प्रबंधन के संबंध में सरकार की हाल की पहलें

आगे की राह

  • विस्तारित उत्पादनकर्त्ता उत्तरदायित्व (Extended Producer Responsibility): भारत में विस्तारित उत्पादनकर्त्ता उत्तरदायित्व का एक तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है ताकि सुनिश्चित हो सके कि उत्पाद निर्माताओं को उनके उत्पादों के जीवन चक्र के विभिन्न भागों के लिये वित्तीय रूप से उत्तरदायी बनाया जाए।
    • इसमें उत्पादों के उपयोगी जीवन चक्र के अंत में उन्हें वापस लेना, उनका पुनर्चक्रण एवं अंतिम निपटान शामिल है और एक प्रकार से चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
  • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन: सामुदायिक स्तर पर पुनर्चक्रण योग्य वस्तुओं के संग्रह के लिये, अधिमानतः अनौपचारिक क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से, शहरी स्तर पर एक नई नवीन प्रणाली शुरू की जा सकती है।
    • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली या सामुदायिक स्तर की अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली एक केंद्रीकृत स्थान पर बड़ी मात्रा में नगरपालिका कचरे को संभालने के बोझ को कम करेगी, साथ ही परिवहन और मध्यवर्ती भंडारण की लागत में कमी लाएगी।
    • यह शहर के स्तर पर अनौपचारिक श्रमिकों और छोटे उद्यमियों के लिये रोज़गार के अवसर भी प्रदान करेगी।
      • उदाहरण के लिये, भोपाल (मध्य प्रदेश) में शहरी स्थानीय निकाय एक स्थानीय संगठन के साथ साझेदारी में वर्ष 2008 से ही प्लास्टिक अपशिष्ट संग्रहण और पुनर्चक्रणकर्ता को उनकी बिक्री को सुव्यवस्थित करने के लिये अपशिष्ट संग्रहकर्ताओं के साथ काम कर रहे हैं।
  • कूड़ा और कूड़ा बीनने वालों के प्रति व्यवहार परिवर्तन: कूड़े या अपशिष्ट को प्रायः गंदे और अनुपयोगी वस्तु की तरह देखा जाता है और कूड़ा संग्रहकर्ताओं को प्रायः अलगाव का सामना करना पड़ता है। इस धारणा को बदलने और उचित अपशिष्ट प्रबंधन पर विचार करने की आवश्यकता है।
    • इसके साथ ही, शहरी स्थानीय निकायों को कूड़ा बीनने वालों को वित्तीय प्रोत्साहन देकर और लोगों में उनके सामाजिक समावेश के बारे में जागरूकता का प्रसार कर सहयोग देना चाहिये।
      • कूड़ा बीनने वालों को का सामाजिक समावेशन न केवल उनके स्वयं के स्वास्थ्य और आजीविका के लिये, बल्कि नगर पालिकाओं की अर्थव्यवस्था के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
  • शहरी खाद केंद्र: जैविक कचरे के पुन: उपयोग के लिये शहरों में खाद्य केंद्र (Composting Centers) स्थापित किये जा सकते हैं, जिससे मृदा में कार्बन की मात्रा बढ़ेगी और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता समाप्त हो जाएगी।
    • कम्पोस्ट कार्बन को वापस मृदा में जमा कर कार्बन डाइऑक्साइड सिक्वेशट्रेशन (Carbon Dioxide Sequestration) में भी मदद करेगा।
  • प्रौद्योगिकी-संचालित पुनर्चक्रण: सरकार को विश्वविद्यालय और स्कूल स्तर पर अपशिष्ट पुनर्चक्रण के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि अपशिष्ट प्रबंधन के क्षेत्र में प्रौद्योगिकीय संवृद्धि में आम लोगों की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा मिल सके।
    • मदुरै स्थित त्यागराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग को अपशिष्ट प्लास्टिक से टाइल और ब्लॉक निर्माण का पेटेंट प्राप्त हुआ है।
      • ये टाइलें अत्यधिक भार को सह सकती हैं और इनका उपयोग निर्माण सामग्री के रूप में किया जा सकता है।

एकीकृत ठोस-अपशिष्ट प्रबंधन:

Integrated-solid-waste-management

अभ्यास प्रश्न: अपशिष्ट निपटान की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, चर्चा कीजिये कि भारत में किस प्रकार एक विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली शुरू की जा सकती है?

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