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मीडिया की स्वतंत्रता

  • 18 Sep 2020
  • 10 min read

यह संपादकीय “Stop press: On blanket gag order against the media” पर आधारित है, जिसे 17 सितंबर 2020 को द हिंदू में प्रकाशित किया गया था। इसमें मीडिया की स्वतंत्रता के महत्त्व एवं संबंधित मुद्दों के बारे में बात की गई है।

संदर्भ

हाल ही में, उच्च न्यायपालिका ने एक आदेश पारित किया जो मीडिया के विनियमन से संबंधित है। एक आदेश में, आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के पूर्व महाधिवक्ता से जुड़े एक मामले के संबंध में कुछ भी उल्लेख करने से, मीडिया और यहाँ तक कि सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया। दूसरे मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश पारित किया जिसने एक समाचार चैनल के शेष एपिसोड के प्रसारण को रोक दिया, क्योंकि यह एक विशेष समुदाय को तिरस्कृत कर रहा था। हालाँकि दोनों आदेशों के प्रभाव वाक् स्वतंत्रता और जानकारी प्राप्त करने के नागरिक अधिकारों पर होंगे, उन्हें अलग-अलग संदर्भों में देखा जाना चाहिये। जहाँ प्रथम आदेश संभावित मानहानि या गोपनीयता के हस्तक्षेप को रोकने या मुकदमे या जाँच की निष्पक्षता की रक्षा करने के लिये परिकल्पित किया जा सकता है, वहीं दूसरे को घृणा के प्रचार पर रोक लगाने के रूप में देखा जा सकता है। इस संदर्भ में, व्यक्तिगत अधिकारों एवं स्वतंत्र प्रेस के मध्य उचित संतुलन की आवश्यकता है।

प्रेस की स्वतंत्रता

  • संविधान, अनुच्छेद 19 के तहत वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, जो वाक् स्वतंत्रता इत्यादि के संबंध में कुछ अधिकारों के संरक्षण से संबंधित है।
  • प्रेस की स्वतंत्रता को भारतीय कानूनी प्रणाली द्वारा स्पष्ट रूप से संरक्षित नहीं किया गया है, लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (क) के तहत संरक्षित है, जिसमें कहा गया है - "सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होगा"।
  • वर्ष 1950 में, रोमेश थापर बनाम मद्रास राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि सभी लोकतांत्रिक संगठनों की नींव पर प्रेस की स्वतंत्रता पर आधारित होती है।
  • हालाँकि, प्रेस की स्वतंत्रता भी असीमित नहीं होती है। एक कानून इस अधिकार के प्रयोग पर केवल उन प्रतिबंधों को लागू कर सकता है, जो अनुच्छेद 19 (2) के तहत इस प्रकार हैं-
    • भारत की संप्रभुता और अखंडता के हितों से संबंधित मामले, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता या न्यायालय की अवमानना के संबंध में, मानहानि या अपराध का प्रोत्साहन।

स्वतंत्र मीडिया का महत्त्व

  • स्वतंत्र मीडिया विचारों की मुक्त चर्चा को बढ़ावा देता है जो व्यक्तियों को राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने, निर्णय लेने की अनुमति देता है और परिणामस्वरूप समाज को सशक्त करता है - विशेष रूप से भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में।
  • लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिये विचारों का स्वतंत्र आदान-प्रदान, सूचना और ज्ञान का आदान-प्रदान, बहस और विभिन्न दृष्टिकोणों की अभिव्यक्ति महत्त्वपूर्ण होती है। जनता की आवाज़ होने के आधार पर स्वतंत्र मीडिया, उन्हें राय व्यक्त करने के अधिकार के साथ सशक्त बनाता है। इस प्रकार, लोकतंत्र में स्वतंत्र मीडिया महत्त्वपूर्ण है।
  • स्वतंत्र मीडिया के साथ, लोग सरकार के निर्णयों पर प्रश्न करके अपने अधिकारों का प्रयोग करने में सक्षम होते हैं। ऐसा माहौल तभी बनाया जा सकता है जब प्रेस की स्वतंत्रता प्राप्त हो।
  • अतः मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जा सकता है, अन्य तीन स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका हैं।

वर्तमान में मीडिया से संबंधित मुद्दे

  • निजता का अधिकार: निजता का अधिकार प्राकृतिक अधिकारों से उत्पन्न होता है, जो बुनियादी, निहित एवं अपरिहार्य अधिकार होते हैं।
    • अनुच्छेद 21 जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है, गोपनीयता के अधिकार की भी गारंटी देता है।
    • कई बार, मीडिया ने निष्पक्ष रिपोर्टिंग की अपनी सीमाएँ पार की हैं और व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप किया है।
    • आरुषि तलवार हत्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि किसी जाँच में पारदर्शिता और गोपनीयता दो अलग-अलग चीजें हैं। जहाँ सर्वोच्च न्यायालय ने मीडिया के एक वर्ग की रिपोर्टिंग पर प्रश्न उठाए जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित और उसके परिवार के सदस्यों की प्रतिष्ठा धूमिल हुई।
    • मीडिया ट्रायल: सहारा बनाम सेबी (2012) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पाया कि अदालत स्वतंत्र ट्रायल और एक स्वतंत्र प्रेस के अधिकार के संतुलन पर निवारक राहत प्रदान कर सकती है।
    • इसके अलावा, कई बार सर्वोच्च न्यायालय का विचार था कि मीडिया मुद्दों को इस तरह से कवर करता है कि यह एक ट्रायल की तरह लगता है।
    • चूँकि मीडिया द्वारा इस तरह के ट्रायलों से न्यायपालिका और न्यायिक कार्यवाही की प्रतिष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना होती है, अतः यह न्यायपालिका के कामकाज में भी हस्तक्षेप करता है।
    • पेड न्यूज़: पेड न्यूज़ और फेक न्यूज़ सार्वजनिक धारणा को तोड़-मरोड़ सकती हैं एवं समाज के अंदर विभिन्न समुदायों के मध्य घृणा, हिंसा, तथा असामंजस्य उत्पन्न कर सकती हैं।
    • निष्पक्ष पत्रकारिता की अनुपस्थिति एक समाज में सत्य की झूठी प्रस्तुति को जन्म देती है जो लोगों की धारणा और विचारों को प्रभावित करती है।

आगे की राह

  • एक संस्थागत ढाँचा मज़बूत करना: भारतीय प्रेस परिषद, एक नियामक संस्था, मीडिया को चेतावनी दे सकती है और विनियमित कर सकती है अगर यह पाती है कि एक समाचार पत्र या समाचार एजेंसी ने मीडिया नैतिकता का उल्लंघन किया है।
    • न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन (एनबीए) को वैधानिक दर्ज़ा प्रदान किया जाना चाहिये जो निजी टेलीविजन समाचार एवं करंट अफेयर्स ब्रॉडकास्टर्स का प्रतिनिधित्व करता है।
  • फेक न्यूज़ से निपटना: मीडिया में विश्वास बहाल करने के लिये मीडिया स्वतंत्रता को कम किये बिना मीडिया सामग्री से छेड़छाड़ और फेक न्यूज़ का सामना करने के लिये सार्वजनिक शिक्षा, नियमों को मज़बूत करने तथा प्रौद्योगिकी कंपनियों द्वारा न्यूज़ क्यूरेशन हेतु उपयुक्त एल्गोरिदम बनाने के प्रयासों की आवश्यकता होगी।
    • फेक न्यूज़ पर अंकुश लगाने के भविष्य के किसी भी कानून को पूरी तस्वीर को ध्यान में रखना चाहिये और मीडिया को दोष नहीं देना चाहिये एवं बिना सोचे प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिये; नये मीडिया के इस युग में कोई भी अज्ञात लाभों के लिये खबर बना सकता है और प्रसारित कर सकता है।
  • मीडिया द्वारा नैतिकता का पालन: यह महत्त्वपूर्ण है कि मीडिया सत्यता और सटीकता, पारदर्शिता, स्वतंत्रता, औचित्यता एवं निष्पक्षता,उत्तरदायिता जैसे मुख्य सिद्धांतों का पालन करती रहे।

निष्कर्ष

स्वतंत्र अभिव्यक्ति और अन्य समुदाय एवं व्यक्तिगत अधिकारों के मध्य संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है; यह ज़िम्मेदारी केवल न्यायपालिका द्वारा नहीं बल्कि उन सभी लोगों द्वारा वहन की जानी चाहिये जो इन अधिकारों का प्रयोग करते हैं।

मुख्य परीक्षा प्रश्न (निबंध के लिये भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण):

मीडिया को ‘अभिव्यक्ति के अधिकार’ के तहत सूचनाओं के प्रसारण का अधिकार है परंतु यह प्रसारण ‘युक्तियुक्त निर्बंधन’ के तहत होना चाहिये। मीडिया की स्वतंत्रता से संबंधित हालिया घटनाओं की चर्चा करते हुए इस कथन का परीक्षण करें कि क्या मीडिया वास्तव में अपने इस अधिकार का दुरुपयोग कर रहा है? यदि हाँ, तो दुरुपयोग को रोकने के उपायों की चर्चा करें।

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