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भारतीय राजनीति

चुनाव में 'मुफ्त' का आकर्षण

  • 02 May 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 29/04/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Are Freebies Affecting the Economic Growth of India?” लेख पर आधारित है। इसमें सरकार द्वारा प्रदत्त मुफ़्त उपहारों या ‘फ्रीबीज़’ (freebies) के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था के पतन की हालिया ख़बरों ने राज्य की भूमिका पर एक नई बहस को जन्म दिया है। श्रीलंका की सरकार ने सभी के लिये करों में कटौती और विभिन्न मुफ़्त वस्तुओं एवं सेवाओं के वितरण जैसे कदम उठाए थे। इसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ से उसके पतन की स्थिति बनी और पहले से ही भारी कर्ज में डूबे देश के पास अपनी प्रतिबद्धताओं पर डिफॉल्ट दर्ज कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा।

  • इस घटनाक्रम के परिप्रेक्ष्य में भारतीय राज्यों द्वारा दिए जा रहे मुफ़्त उपहारों या ‘फ्रीबीज़’ (freebies) के मुद्दे पर भारत में भी एक बहस की शुरुआत हुई है। समय के साथ फ्रीबीज़ भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बन गए हैं, चाहे वे चुनावी संघर्ष में मतदाताओं को लुभाने के लिये वादे के रूप में हों या उनका उद्देश्य सत्ता में बने रहने के लिये मुफ़्त सुविधाएँ प्रदान करना हो।

फ्रीबीज़ क्या हैं?

  • राजनीतिक दल मतदाताओं को लुभाने के लिये मुफ़्त बिजली/पानी की आपूर्ति, बेरोज़गारों, दिहाड़ी मज़दूरों एवं महिलाओं के लिये मासिक भत्ते के साथ-साथ लैपटॉप, स्मार्टफोन जैसे गैजेट्स देने का वादा करते हैं।
    • राज्यों को फ्रीबीज़ प्रदान करने की आदत ही हो गई है, चाहे वह ऋण माफी के रूप में हो या मुफ़्त बिजली, साइकिल, लैपटॉप, टीवी सेट आदि के रूप में।
  • लोकलुभावन दबावों या चुनावों को ध्यान में रखकर किये जाने वाले ऐसे कुछ खर्चों पर निश्चय ही प्रश्न उठाए जा सकते हैं।
    • लेकिन यह देखते हुए कि पिछले 30 वर्षों से देश में असमानता बढ़ रही है, सब्सिडी के रूप में आम आबादी को किसी प्रकार की राहत प्रदान करना अनुचित नहीं माना जा सकता, बल्कि वास्तव में अर्थव्यवस्था के विकास पथ पर बने रहने के लिये यह आवश्यक है।

फ्रीबीज़ के पक्ष में तर्क 

  • विकास को सुगम बनाना: ऐसे उदाहरण मौजूद हैं जो दिखाते हैं कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली, रोज़गार गारंटी योजनाएँ, शिक्षा के लिये सहायता और स्वास्थ्य जैसे विषयों में किये जाने वाले परिव्यय वास्तव में समग्र लाभ का सृजन करते हैं। महामारी के दौरान विशेष रूप से इसकी पुष्टि भी हुई। 
    • ये जनसंख्या की उत्पादक क्षमता को बढ़ाने में दीर्घकालिक योगदान करते हैं और एक स्वस्थ एवं सशक्त कार्यबल के निर्माण में मदद करते हैं, जो किसी भी विकास रणनीति का एक आवश्यक अंग है।
    • शिक्षा या स्वास्थ्य पर राज्य द्वारा किया जाने वाला व्यय भी यही योगदान देता है।
  • उद्योगों को बढ़ावा: तमिलनाडु और बिहार जैसे राज्य महिलाओं को सिलाई मशीन, साड़ी और साइकिल जैसे लाभ देते रहे हैं, लेकिन वे इन वस्तुओं की खरीद अपने बजट राजस्व से करते हैं जिससे संबंधित उद्योगों की बिक्री बढ़ाने में भी योगदान करते हैं।
    • संबंधित उत्पादन वृद्धि को देखते हुए इसे आपूर्तिकर्ता उद्योग के लिये प्रोत्साहन के रूप में देखा जा सकता है, न कि फिजूलखर्ची के रूप में।
  • अपेक्षाओं की पूर्ति के लिये आवश्यक: भारत जैसे देश में जहाँ राज्यों में विकास का एक निश्चित स्तर पाया जाता है (या नहीं पाया जाता है), चुनावों के समय लोगों की ओर से ऐसी अपेक्षाएँ प्रकट की जाती हैं, जिन्हें फ्रीबीज़ के ऐसे वादों से पूरा किया जाता है। 
    • इसके अलावा, जब पड़ोस के या देश के अन्य राज्यों (अलग-अलग दलों द्वारा शासित) के लोगों को फ्रीबीज़ प्राप्त हो रहे होते हैं तो इधर भी तुलनात्मक अपेक्षाएँ बढ़ जाती हैं।
  • कम विकसित राज्यों की सहायता: गरीबी से पीड़ित आबादी के एक बड़े हिस्से के साथ तुलनात्मक रूप से विकास के निम्न स्तर पर स्थित राज्यों के लिये इस तरह के फ्रीबीज़ आवश्यकता या मांग-आधारित बन जाते हैं और अपने स्वयं के उत्थान हेतु लोगों के लिये इस तरह की सब्सिडी की पेशकश करना आवश्यक हो जाता है। 

फ्रीबीज़ के विपक्ष में तर्क

  • मैक्रोइकोनॉमिक रूप से असंवहनीय: फ्रीबीज़ मैक्रोइकॉनॉमिक संवहनीयता/स्थिरता के बुनियादी ढाँचे को कमज़ोर करते हैं। फ्रीबीज़ की राजनीति व्यय प्राथमिकताओं को विकृत करती है और परिव्यय के किसी न किसी तरह की सब्सिडी पर केंद्रित बने रहने की प्रवृत्ति उभरती है। 
  • राज्यों की वित्तीय स्थिति पर प्रभाव: फ्रीबीज़ देने का अंततः राजकोष पर प्रभाव पड़ता है, जबकि भारत के अधिकांश राज्य एक सुदृढ़ वित्तीय स्थिति नहीं रखते और उनके पास राजस्व के मामले में प्रायः अत्यंत सीमित संसाधन ही होते हैं।
    • यदि राज्य कथित राजनीतिक लाभ के लिये व्यय करना जारी रखेंगे तो उनकी वित्तीय स्थिति लड़खड़ा जाएगी और राजकोषीय अपव्ययिता की स्थिति बनेगी।
      • राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (Fiscal Responsibility and Budget Management- FRBM) नियमों के अनुसार राज्य अपनी क्षमता या सीमा से अधिक उधार नहीं ले सकते और उनके किसी भी विचलन (या अलग मद के खर्च) को केंद्र और केंद्रीय बैंक द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।
      • इस प्रकार, भले ही राज्यों के पास यह लचीलापन है कि वे अपना पैसा कैसे खर्च करना चुनते हैं, वे सामान्य परिस्थितियों में अपनी घाटे की सीमा से अधिक खर्च नहीं कर सकते हैं।
  • स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव की भावना के विरुद्ध: चुनाव से पहले लोकलुभावन फ्रीबीज़ (सार्वजनिक धन का उपयोग करते हुए) का वादा मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित करता है, सभी दलों के लिये समान अवसर की स्थिति में व्यवधान लाता है और चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता को मलिन करता है।
    • यह एक अनैतिक अभ्यास है जो मतदाताओं को रिश्वत देने के समान है।
  • पर्यावरण से एक कदम दूर: जब ये फ्रीबीज़ मुफ़्त बिजली अथवा एक निश्चित मात्रा में मुफ़्त बिजली, पानी और अन्य प्रकार की उपभोग वस्तुओं के रूप में प्रदान किये जाते हैं, तो ये  पर्यावरण एवं सतत विकास, नवीकरणीय ऊर्जा और अधिक कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के मद में किये जा सकने वाले परिव्यय को विचलित करते हैं।
    • इसके अलावा, यह एक सामान्य मानवीय प्रवृत्ति है कि जब कोई चीज़ ‘मुफ़्त’ में प्रदान की जाती है तो इनका अत्यधिक उपयोग किया जाता है, इस प्रकार संसाधनों की बर्बादी होती है।
  • भविष्य के विनिर्माण पर दुर्बलकारी प्रभाव: फ्रीबीज़ विनिर्माण क्षेत्र में उच्च-गुणक दक्षता को सक्षम करने वाले कुशल एवं प्रतिस्पर्द्धी अवसंरचना को बाधित कर विनिर्माण क्षेत्र की गुणवत्ता एवं प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कम कर देते हैं।
  • ‘क्रेडिट कल्चर’ का विनाश: फ्रीबीज़ के रूप में ऋण माफी (Loan Waivers) के अवांछित परिणाम भी सामने आ सकते हैं; जैसे कि यह संपूर्ण क्रेडिट कल्चर को नष्ट कर सकता है और यह इस बुनियादी प्रश्न को धुंधला कर देता है कि ऐसा क्यों है कि किसान समुदाय का एक बड़ा भाग बार-बार कर्ज के जाल में फँसता रहता है। 

आगे की राह 

  • फ्रीबीज़ के आर्थिक प्रभावों को समझना: सवाल यह नहीं कि फ्रीबीज़ कितने सस्ते हैं, बल्कि यह है कि दीर्घावधि में अर्थव्यवस्था, जीवन की गुणवत्ता और सामाजिक सामंजस्य के लिये वे कितने महंगे साबित हो सकते हैं।
    • इसके बजाय हमें लोकतंत्र और सशक्त संघवाद की प्रयोगशालाओं के माध्यम से दक्षता की दौड़ के लिये प्रयास करना चाहिये जहाँ राज्य अपने प्राधिकार का उपयोग नवीन विचारों एवं सामान्य समस्याओं के समाधान के लिये करें, जिनका फिर अन्य राज्य भी अनुकरण कर सकते हैं।
  • विवेकपूर्ण मांग-आधारित फ्रीबीज़: भारत एक बड़ा देश है और यहाँ अभी भी ऐसे लोगों का एक बड़ा समूह मौजूद है जो गरीबी रेखा से नीचे है। देश की विकास योजना में सभी लोगों को शामिल किया जाना भी ज़रूरी है।
    • ऐसे फ्रीबीज़ या सब्सिडी की उचित एवं विवेकपूर्ण पेशकश, जिसे राज्यों के बजट में आसानी से समायोजित किया जा सकता है, अधिक नुकसानदायक नही होगा और इनका लाभ उठाया जा सकता है।
    • संसाधनों के बेहतर समग्र उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये राज्य व्यय का एक अनुपात निर्धारित किया जाना चाहिये।
  • सब्सिडी और फ्रीबीज़ में अंतर करना: फ्रीबीज़ के प्रभावों को आर्थिक नज़रिये और करदाताओं के धन से जोड़कर देखने की ज़रूरत है।
    • सब्सिडी और फ्रीबीज़ में अंतर करना भी आवश्यक है क्योंकि सब्सिडी उचित और विशेष रूप से लक्षित लाभ हैं जो मांगों से उत्पन्न होते हैं।
    • यद्यपि प्रत्येक राजनीतिक दल को लक्षित ज़रूरतमंद लोगों को लाभ देने के लिये सब्सिडी पारितंत्र के निर्माण का अधिकार है, राज्य या केंद्र सरकार के आर्थिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक बोझ नहीं होना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘समय के साथ फ्रीबीज़ भारतीय राजनीति का अभिन्न अंग बन गए हैं। यद्यपि सार्वजनिक वितरण योजना और मनरेगा जैसी कुछ पहलें भारत की विकास रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बन गई हैं, फ्रीबीज़ मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता के बुनियादी ढाँचे को कमज़ोर भी करते हैं।’’ चर्चा कीजिये।

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