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मोदी सरकार के चार साल (भाग 1) - रेलवे: ट्रैक पर सुधार, पर राजस्व चिंता का विषय

  • 25 May 2018
  • 8 min read

संदर्भ

वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने की बाद से रेलवे मंत्रालय के बुनियादी ढाँचे के संबंध में काफी काम किया गया है। मोदी सरकार ने सत्तासीन होने के 6 माह के अंदर ही सदानंद गौड़ा की जगह सुरेश प्रभु को नियुक्त किया, इसके बावजूद आगामी तीन वर्षों में इस क्षेत्र में बहुत अधिक परिवर्तन देखने को नहीं मिला। सुरेश प्रभु ने रेलवे में निवेश को बढ़ाने तथा भविष्य में रेलवे नेटवर्क क्षमता में वृद्धि करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। सितंबर 2017 में पुन: कैबिनेट में कुछ परिवर्तन किया गया और पियूष गोयल को रेलवे की कमान सौंप दी गई। संभवत: यही कारण है कि सभी मंत्रियों द्वारा प्रत्येक प्रगति समीक्षा बैठक में रेलवे के विकास की दिशा में असाधारण रुचि दिखाई गई।

क्या-क्या कार्य किया गया है?

  • एनडीए सरकार ने पिछले चार वर्षों में रेलवे में दीर्घकालिक आधारभूत संरचना के निर्माण पर काफी काम किया है।
  • नेटवर्क क्षमता बढ़ाने के लिये व्यस्त मार्गों पर दूसरी, तीसरी और चौथी लाइनों को बिछाना तथा ब्रॉड-गेज रूपांतरण के माध्यम से पूर्वोत्तर कनेक्टिविटी बढ़ाना, इसकी प्रमुख प्राथमिकताओं में से एक है।
  • इसके अलावा, रेलवे मार्गों के विद्युतीकरण पर भी विशेष बल दिया गया। इन सबके लिये रेलवे ने पहली बार बाहरी स्रोतों से धन उधार लेने का विकल्प भी खुला रखा।
  • यूपीए-2 के शासनकाल के दौरान रेलवे द्वारा पूंजीगत कार्यों पर 2.3 लाख करोड़ रुपए खर्च किये गए, जबकि वर्तमान सरकार द्वारा चार वर्षों में बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर 3.82 लाख करोड़ रुपए खर्च किये जा चुके हैं।
  • जहाँ एक ओर यूपीए-2 के समय में 7,600 किलोमीटर की विस्तृत गेज लाइनें शुरू की गईं, वहीं दूसरी ओर 2014 से मार्च 2018 के बीच 9,500 किमी. की गेज लाइनों को कमीशन किया गया है। पुरानी पटरियों के प्रतिस्थापन और रख-रखाव के संबंध में सबसे अधिक गंभीरता और लगन से काम किया गया है।
  • 2014 से अभी तक हुई रेलवे दुर्घटनाओं के बाद वर्ष 2017-18 में दुर्घटनाओं की संख्या 73 तक सिमट गई, जो इस बात का प्रमाण है कि रेलवे की सुरक्षा के संबंध में किये गए उपबंध कागज़ी नहीं थे, वरन् वे प्रभावी भी हुए हैं।
  • हालाँकि, इस सबमें वित्त मंत्रालय का भी बहुत अहम् योगदान रहा है। आपको बता दें कि चालू वर्ष के लिये सकल बजटीय समर्थन 55,000 करोड़ रुपए है। 
  • इसके अतिरिक्त, रेलवे के अंतर्गत ग्राहक सेवा में भी एक बड़ा बदलाव आया है। रेलवे ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के माध्यम से एक मज़बूत ग्राहक-इंटरफेस पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया है। रीयल-टाइम शिकायत निवारण अब केवल एक संदेश के द्वारा संभव हो जाता है। 

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कौन-कौन सी परियोजनाएँ अभी प्रगति में है?

  • वर्तमान सरकार द्वारा अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना को अंतिम रूप प्रदान किया गया है। इस परियोजना की समय-सीमा को 2022 तक बढ़ा दिया गया है। साथ ही इसके कार्यान्वयन के लिये भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया भी शुरू हो गई है।
  • भारत में एलएचबी (Linke Hofmann Busch -LHB) कोच की शुरुआत के बाद इस वर्ष के अंत तक पहली बार उचित ढंग से रोलिंग स्टॉक को अपग्रेड किया जा रहा है, इसके तहत आधुनिक, इंजन-रहित ट्रेनों को शुरू करने की योजना है। परंपरागत कोचों को एलएचबी में रूपांतरित करने का कार्य इस समय गति पर है।
  • अधिक-से-अधिक स्टेशनों को मुफ्त वाईफाई कवरेज प्रदान किया जा रहा है। रेलवे का 100 प्रतिशत विद्युतीकरण प्रक्रिया की समीक्षा भी शुरू हो गई है।

कौन-कौन कार्य अभी लंबित हैं?

  • रेलवे नीति निर्माताओं के लिये राजस्व उत्पादन हमेशा से एक गंभीर समस्या रहा है। वर्तमान सरकार किराए में सीधी वृद्धि को प्रभावित करने में असमर्थ रही है। प्रधानमंत्री ने 2017 की शुरुआत में रेलवे को यात्रियों के किराए में बढ़ोतरी करने के लिये कहा था, जिसके परिणामस्वरूप प्रीमियम ट्रेनों में गतिशील मूल्य निर्धारण किया गया। इससे रेलवे को एक साल में 800 करोड़ रुपए प्राप्त हुए, जिसे ‘हाथ की सफाई’ कहकर सरकार की काफी आलोचना की गई।
  • रेलवे विभाग गैर-परंपरागत स्रोतों से पर्याप्त पैसा कमाने में असमर्थ रहा है। इतना ही नहीं बल्कि माल ढुलाई के संबंध में तय लक्ष्य तक को पाने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
  • रेलवे निरंतर गैर-किराया राजस्व अर्जित करने के तरीकों की तलाश कर रहा है। इसके द्वारा कराए गए प्रत्येक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इस विभाग में बहुत सी क्षमताएँ मौजूद हैं लेकिन भौतिक रूप से कोई परिणाम नज़र नहीं आ रहा है।
  • इसी क्रम में आगे बात करें तो स्टेशन पुनर्विकास परियोजना एक फ्लॉप प्रोग्राम साबित हुई है। सरकार की योजना निजी निवेश के सहयोग से वाणिज्यिक लाभ केंद्रों के रूप में 635 स्टेशनों का पुनर्विकास करने की थी, लेकिन इन 4 सालों में केवल भोपाल के हबीबगंज और संभवतः गांधीनगर रेलवे स्टेशन (गुजरात) को इस परियोजना के अनुरूप तैयार किया जा रहा है। 
  • प्रधानमंत्री की एक अन्य महत्त्वाकांक्षी परियोजना ‘देश के सभी रेलवे स्टेशनों को सीसीटीवी कवरेज में लाना’ के विषय में भी कोई विशेष प्रगति देखने को नहीं मिल रही है।
  • पिछले तीन वर्षों से बिना किसी उचित प्रबंधन के समर्पित फ्रेट कॉरिडोर (Dedicated Freight Corridor) के संबंध में भी कोई विशेष गतिविधि देखने को नहीं मिल रही है। ऐसे में सरकार का कार्यकाल समाप्त होने तक इस परियोजना का केवल एक छोटा हिस्सा ही तैयार हो पाएगा। इस परियोजना को पूरा करने के लिये मार्च-अप्रैल 2020 तक की समय-सीमा तय की गई है।

प्रश्न: पिछले चार वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा रेलवे की दशा सुधारने के लिये किये गए प्रयासों का आलोचनात्मक वर्णन कीजिये।

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