मोदी सरकार के चार साल (भाग 2) – वित्त : टैक्स नेट में हुआ विस्तार; निजी धन अभी भी है छिपा
- 26 May 2018
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संदर्भ
फरवरी 2015 में सरकार द्वारा जारी किये गए पहले आर्थिक सर्वेक्षण (वित्त वर्ष 2015) में देश के आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए कहा गया कि भारत इतिहास में एक ऐसे दुर्लभ स्थान पर पहुँच गया है, जहाँ वह अंततः दो-अंकीय मध्यमावधि विकास की राह सुनिश्चित कर सकता है। हालाँकि, अभी तक इस दो-अंकीय आँकड़े को नहीं पाया जा सका है तथापि अर्थव्यवस्था में निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है। यह और बात है कि वित्त वर्ष 2018 की पहली तिमाही में विकास दर 5.7 प्रतिशत के निम्न दर पर रही, जो कि मोदी सरकार के शासनकाल का सबसे न्यूनतम स्तर है।
प्रमुख बिंदु
- वित्त वर्ष 2018-19 के लिये केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (Central Statistics Office) के दूसरे अग्रिम अनुमान के मुताबिक, सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product - GDP) 6.6 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है।
- सरकार के चार वर्षों के कार्यकाल के दौरान, जहाँ एक ओर कच्चे तेल की कीमतों में कमी, स्थिर मुद्रा और अनुकूल मानसून जैसी अनुकूल आर्थिक स्थितियों ने अर्थव्यवस्था को मज़बूती प्रदान की, वहीं दूसरी ओर नवंबर 2016 में विमुद्रीकरण और अगले ही वर्ष शुरू हुए जीएसटी के निर्णय ने अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका भी दिया।
- इन सबसे विकास दर में कमी आई, इसके बावजूद सरकार वर्ष 2013-14 में मुद्रास्फीति की उच्चतम दर 9.4 प्रतिशत की तुलना में वर्ष 2017-18 में 3.6 प्रतिशत की दर हासिल करने में सफल रही।
- साथ ही वित्तीय एवं चालू खाता घाटे में भी कच्चे तेल की कीमतों में आई कमी के कारण गिरावट दर्ज की गई।
- कच्चे तेल की कीमतों में कमी होने से, न केवल मुद्रास्फीति को कम करने में मदद मिली बल्कि सरकार को अतिरिक्त कर राजस्व भी प्राप्त हुआ। इसने भारतीय रिज़र्व बैंक को रेपो दर में कुल 200 आधार अंकों की कटौती करने का साहस प्रदान किया।
क्या-क्या कार्य किये गए?
- सरकार ने बैंकिंग, विद्युत्, कराधान, ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग में सुधार सहित कई क्षेत्रों में सुधारों की एक श्रृंखला शुरू की।
- देशव्यापी स्तर पर जीएसटी (Goods and Service Tax - GST) का कार्यान्वयन किया गया। आर्थिक मोर्चे पर सरकार द्वारा किया गया एक बड़ा आर्थिक सुधार था। शुरुआती समय में हिचकोले लेने के बाद हाल के कुछ महीनों में जीएसटी के माध्यम से प्राप्त होने वाला राजस्व स्थिर हो गया है।
- करदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई है। वर्ष 2017-18 में प्रत्यक्ष कर संग्रह 10.02 लाख करोड़ रुपए के ऐतिहासिक आँकड़े पर पहुँच गया है, जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 18 प्रतिशत अधिक है। 2016-17 में इन्कम टैक्स रिटर्न के लिये 5.43 करोड़ आवेदन आए थे जो 2017-18 के दौरान बढ़कर 6.84 करोड़ हो गए।
- विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में प्रगति हुई है, इसका प्रमाण यह है कि 2016-17 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (foreign direct investment - FDI) प्रवाह 60 अरब डॉलर से अधिक हो गया।
- वित्त वर्ष 2017-18 के पहले नौ महीनों में भारत को 48.20 अरब डॉलर का एफडीआई प्राप्त हुआ। इसके अतिरिक्तस सरकार द्वारा रक्षा और विमानन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों सहित कई अन्य क्षेत्रों में एफडीआई सीमाओं को उदार बनाया गया है।
- खराब ऋण के बोझ तले दबे राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों की स्थिति को बहाल करने के लिये सरकार ने तीन ठोस पहल शुरू की। इनमें पहली पहल है बैंकों की स्थिति में सुधार हेतु शुरू की गई इंद्रधनुष योजना, दूसरी पहल सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण हेतु 2.11 लाख करोड़ रुपए तथा तीसरी पहल के रूप में दिवालिया और दिवालियापन संहिता को लाया गया।
- रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया में नीति-निर्णय की प्रक्रिया में सुधार हेतु मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण पर केंद्रित एक मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) की स्थापना की गई।
- ऊर्जा क्षेत्र में भी बहुत-से महत्त्वपूर्ण सुधार किये गए, इनमें डीज़ल की कीमतों का विनियमन करने के लिये प्राकृतिक संसाधनों की नीलामी, पेट्रोल और डीज़ल के मूल्य निर्धारण में गतिशीलता तथा उज्ज्वला योजना की शुरुआत जैसे कई अहम् निर्णय लिये गए।
कौन-कौन से कार्य अभी प्रगति पर हैं?
- इतना कुछ अर्जित किये जाने के बावजूद सरकार राजकोषीय घाटे (fiscal deficit) के लक्ष्य को हासिल करने के काफी पीछे है। वर्ष 2014 में 2015-16 के लिये 3.6 प्रतिशत और 2016-17 के लिये 3 प्रतिशत का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
- 2017-18 में 3.5 प्रतिशत प्राप्त करने की संभावना के मद्देनज़र 2018-19 के लिये राजकोषीय घाटे का लक्ष्य 3.3 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है।
- आईबीसी के तहत 4 लाख करोड़ रुपए की एनपीए की गणना की गई है। इसके अंतर्गत भूषण स्टील जैसे बड़े मामले (एनपीए से संबंधित) को सफलतापूर्वक हल भी कर लिया गया है, हालाँकि अभी भी बहुत से ऐसे मामले हैं जिनके संदर्भ में कार्यवाही किये जाने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त कुछ प्रमुख विषयों औद्योगिक श्रम; मज़दूरी; सामाजिक सुरक्षा; व्यावसायिक सुरक्षा; स्वास्थ्य और कार्य परिस्थितियों में 44 श्रम कानूनों के समेकन की घोषणा भी की गई है।
- ट्रेड यूनियनों के विरोध के बीच सरकार द्वारा मज़दूरी विधेयक पर संहिता को भी पेश किया गया है। इसके बाद इसे जाँच के लिये एक समिति को संदर्भित किया गया, जिसके द्वारा आगामी मानसून सत्र में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किये जाने की उम्मीद है।
- बजट 2018-19 में सरकार ने सभी क्षेत्रों के लिये निश्चित अवधि के रोज़गार के विस्तार की घोषणा की, जिसे बाद में मार्च में अधिसूचित किया गया।
- सभी क्षेत्रों के लिये निश्चित अवधि का रोज़गार सुनिश्चित किये जाने से मौसमी रुझानों के आधार पर कंपनियों को किराए पर श्रमिक लेना आसान हो जाएगा।
- केंद्र सरकार ने अक्तूबर 2016 में परिधान विनिर्माण क्षेत्र के लिये भी निश्चित अवधि के रोज़गार को अधिसूचित किया था।
- दिसंबर 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चमड़े, जूते और एक्सेसरीज़ उद्योगों के लिये निश्चित अवधि के रोज़गार के प्रस्तावित को विस्तारित करने को भी मंजूरी प्रदान की थी।
कौन-कौन से कार्य अभी लंबित हैं?
- जीएसटी के तहत पेट्रोलियम उत्पादों और अचल संपत्ति लाने के लक्ष्य को अभी तक प्राप्त नहीं किया गया है, इसका एक कारण यह भी है कि केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारें भी राजस्व के इन प्रमुख स्रोतों को खोना नहीं चाहती हैं।
- हाल के कुछ महीनों में क्रेडिट में वृद्धि की स्थिति देखी गई है (मुख्य रूप से खुदरा ऋण में) हालाँकि, इस संबंध में निजी क्षेत्र के निवेश के विषय में फिलहाल ऐसी कोई जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है।
- निजी निवेश को पुनर्जीवित करने की चुनौती वर्तमान सरकार की शुरुआती प्राथमिकताओं में से एक, इसके बावजूद इसके विषय में वैसी कोई प्रतिक्रिया नज़र नहीं आ रही है जैसी कि शुरुआत के समय व्यक्त की गई थी।
- एनपीए के संबंध में इतने प्रयासों के बावजूद यह बैंकों के लिये एक बड़ी समस्या बनी है, जबकि इनकी वसूली दर अभी भी काफी निराशाजनक बनी हुई है। इन 4 वर्षों के दौरान पीएसयू बैंकों द्वारा दर्ज किये गए एनपीए का लगभग 90 प्रतिशत वसूल नहीं किया जा सका है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, पिछले चार वर्षों में वित्त वर्ष 2015, 2016, 2017 और 2018 तक देश के सभी 21 सार्वजनिक बैंकों द्वारा 2.72 लाख करोड़ रुपए की एनपीए राशि में से केवल 29,343 करोड़ रुपए वसूल किये गए, अर्थात् एनपीए की वसूली दर मात्र 10.77 प्रतिशत ही रही, जोकि एक निराशाजनक प्रदर्शन है।
- रोज़गार के अवसरों में उस गति से वृद्धि नहीं हुई है जिस गति से होने की आशा व्यक्त की गई थी, जो कि निराशा का विषय है।
- श्रम ब्यूरो के सातवें तिमाही रोज़गार सर्वेक्षण (Labour Bureau’s seventh Quarterly Employment Survey) से प्राप्त जानकारी के अनुसार, जुलाई से सितंबर 2017 के मध्य तकरीबन 1,36,000 रोज़गारों का सृजन हुआ, जबकि अप्रैल से जून 2017 के दौरान केवल 64,000 एवं पिछले साल जुलाई से सितंबर माह के मध्य मात्र 32,000 रोज़गारों का ही सर्जन हो सका।
प्रश्न: केंद्र सरकार द्वारा एनपीए की समस्या का निदान करने के लिये कौन-कौन सी पहल शुरू की है? क्या बैंकों का पुनर्पूंजीकरण किये जाने भर से इस समस्या का प्रभावी समाधान किया जा सकता है? आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिये।