क्वाड चतुष्कोणीय समूह(Four corners: on the Quad's agenda) | 14 Nov 2018
संदर्भ
हाल ही में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के 'क्वाड समूह’ के अधिकारियों ने सिंगापुर में मुलाकात की। क्वाड को ‘स्वतंत्र, खुले और समृद्ध’ भारत-प्रशांत क्षेत्र को सुनिश्चित करने और समर्थन करने के लिये साझा उद्देश्य के साथ चार लोकतंत्रों के रूप में पहचाना जाता है। इस दौरान चार देशों के इस समूह द्वारा उन बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं पर चर्चा करने की उम्मीद है, जिन पर वे काम कर रहे हैं और मानवतावादी आपदा प्रतिक्रिया तंत्र का निर्माण कर रहे हैं।
वार्ता के प्रमुख संभावित आयाम
- पिछले कुछ महीनों में भारत और जापान ने घोषणा की है कि वे बांग्लादेश में पुलों और सड़कों, श्रीलंका में एक एलएनजी सुविधा और म्याँमार के राखीन प्रांत में पुनर्निर्माण परियोजनाओं सहित दक्षिण एशिया में कई परियोजनाओं पर सम्मिलित रूप से बल देंगे।
- ऑस्ट्रेलिया ने बुनियादी ढाँचे को वित्त पोषित करने और प्रशांत क्षेत्र में समुद्री और सैन्य बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने के लिये महत्त्वाकांक्षी $ 2 बिलियन परियोजना का अनावरण किया है, जिस पर वह अन्य क्वाड सदस्यों के साथ सहयोग करने को तैयार है।
- इन चार देशों से क्षेत्रीय विकास के बारे में बात करने की उम्मीद है जिसमें मालदीव में चुनाव, श्रीलंका में सरकार का पत्तन और उत्तर कोरिया में नवीनतम विकास शामिल हैं।
- पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान इन समूहों के बीच क्वाड वार्ता आयोजित की जा रही है, क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी शिखर सम्मेलन और आसियान-भारत अनौपचारिक शिखर सम्मेलन में चर्चाओं में कुछ समान मुद्दे शामिल होंगे।
QUAD के संभावित लाभ
- वस्तुस्थिति यह है कि क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर पिछले कुछ समय में इन चारों देशों के बीच आपसी समझ लगातार बढ़ी है।
- चीन की आक्रामक नीतियों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से की जा रही यह साझेदारी अभी बेहद शुरुआती चरण में है और इसमें किसी प्रकार की परिपक्वता नहीं है।
- माना जाता है कि धरातल पर उतरने के चार देशों की यह साझेदारी वैश्विक शक्ति समीकरण पर गहरा असर डाल सकती है। ये चारों देश एक-दूसरे के हितों की रक्षा के साथ-साथ परस्पर समृद्धि में भी अपना योगदान दे सकते हैं।
- चीन की विस्तारवादी नीति इन चारों को प्रभावित करती है, इसलिये इनका एकजुट होना समय की ज़रूरत है। भारत ने चीन के BRI प्रोजेक्ट से अपनी सुरक्षा प्रभावित होने की बात शुरू में ही उठाई थी।
- चीन भले ही कहे कि उसकी इस परियोजना से भारत सहित क्षेत्र के सभी देश लाभ उठा सकते हैं, पर चीन के इरादे अब दुनिया में संदेह से ही देखे जाते हैं।
- ऐसे में एक ऐसी परियोजना का आकार लेना ज़रूरी है जो मध्य एशिया के तेल और गैस के भंडारों और पूर्वी यूरोप के बाज़ारों तक हमारी आसान पहुँच सुनिश्चित करे।
- इसके लिये फिलहाल दो ही रास्ते दिखते हैं - एक पाकिस्तान होकर और दूसरा ईरान होकर।
- पाकिस्तान का रास्ता चीन के कब्ज़े में है और ईरान के रास्ते के आड़े अमेरिका के उसके साथ बिगड़ते हुए संबंध आते हैं। अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया-जापान-भारत का चतुष्कोणीय गठबंधन पूर्ववर्ती एशिया-प्रशांत संकल्पना के स्थान पर हिंद-प्रशांत संकल्पना की बात करता है और इसी को मज़बूती देने के उद्देश्य से इसकी परिकल्पना की गई है।
निहित समस्याएँ
- सहयोग की संभावना के बावजूद, क्वाड परिभाषित रणनीतिक मिशन के बिना एक तंत्र बना हुआ है।
- वर्ष 2007 में जब इस समूह को पहली बार संकल्पना के रूप में गठित किया गया था। तब इसका विचार आपदा परिस्थितियों के लिये समुद्री क्षमताओं को बेहतर समन्वयित करना था।
- वर्ष 2017 में इस समूह के पुनर्जीवित होने पर, इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को काउंटर करना था। यहाँ तक कि इसमें किसी भौगोलिक क्षेत्र की एक आम परिभाषा भी शामिल नहीं की गई थी।
- इस समूह का पूरा ध्यान भारत-प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित होने के बावजूद, यह क्वाड समूह समुद्री मुद्दों पर अधिक केंद्रित प्रतीत होता है, अतः यह सवाल उठाता है कि यह सहयोग समूह एशिया-प्रशांत और यूरेशियाई क्षेत्रों तक फैला हुआ है या नहीं।
- इसके अतिरिक्त समुद्री अभ्यास पर भी सहमति की कमी है, जबकि वाशिंगटन अमेरिका और भारत को भारत-प्रशांत के ‘बुकेंड’ या ‘आलम्ब’ के रूप में देखता है, भारत और जापान ने महासागरों की अपनी परिभाषा में अफ्रीका तक को शामिल किया है।
- भारत ने ऑस्ट्रेलिया के अनुरोधों के बावजूद अमेरिका और जापान के साथ मलाबार अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया को शामिल नहीं किया और एक अधिकारी से राजनीतिक स्तर पर बातचीत के स्तर को बढ़ाने का भी विरोध किया है।
- सिंगापुर में तीसरे दौर के नतीजे का आकलन इस समूह की संयुक्त घोषणा को जारी करने की क्षमता से किया जाएगा, जिसने इसे पहले और दूसरे राउंड में हटा दिया था।
आगे की राह
- अपने पड़ोसी देशों के साथ ऐतिहासिक संबंधों में मधुरता बनाए रखने के लिये भारत को सार्क के महत्त्व को पहचानना होगा।
- यदि भारत का पड़ोसियों से संबंध बेहतर होता है तो चीन के आक्रामक क्षेत्रीय निवेश की नीति को संतुलित किया जा सकता है।
- इसके आलावा द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देना चाहिये और इसके लिये दोनों देशों को चाहिये कि 'मैत्री और सहयोग संधि' तथा मुक्त व्यापार समझौता (free trade agreement- FTA) को गंभीरता से लें।
- FTA भारत के लिये फायदेमंद तो हो सकता है लेकिन कुछ शर्तों के साथ। भारत और चीन के बीच एफटीए भारत को नुकसान पहुँचा सकता है, क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र के साथ-साथ शुल्क दरों के मामले में चीन बेहतर स्थिति में है।
- भारत में शुल्क दर के ज़्यादा होने के कारण FTA से दोनों देशों के बीच व्याप्त मौजूदा व्यापार असंतुलन और बढ़ सकता है। अतः भारत को चीन के साथ FTA बहाल करते हुए इन बातों का ध्यान रखना होगा।
- साथ ही धार्मिक कट्टरपंथ और आतंकवाद को रोकने में दोनों देशों की एक समान रुचि है।अतः परस्पर हितों को सामरिक संवादों के माध्यम से स्पष्ट किया जाना चाहिये।
- ऐतिहासिक मुद्दों पर लड़ने के बजाय दोनों देशों को चाहिये कि वे वर्तमान मुद्दों को हल करने पर बल दें। बेहतर हो।
- इसके अतिरिक्त भू-परिवहन चीन की ‘वन बेल्ट वन रोड’ के अंतर्गत निर्मित हो रहे चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) को लेकर भारत की संप्रभुता संबंधी चिंताएँ वाज़िब हैं।
- हालाँकि, यह देखना भी महत्त्वपूर्ण है कि क्या ‘वन बेल्ट वन रोड’ किसी भी रूप में भारत के लिये लाभदायक है? गौरतलब है कि दक्षिण एशिया में भू-परिवहन की स्थिति अत्यंत ही दयनीय है। तिब्बत और भारत के बीच कनेक्टिविटी के विकास में ‘वन बेल्ट वन रोड’ की अहम् भूमिका हो सकती है।
निष्कर्ष
‘भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान’ का चतुष्कोणीय गठबंधन, पूर्ववर्ती ‘एशिया-प्रशांत संकल्पना’ के स्थान पर ‘हिंद-प्रशांत संकल्पना को स्वरूप देने के उद्देश्य से बनने जा रहा है। यह चतुष्कोणीय गठबंधन इस सामरिक क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य उपस्थिति के बीच ‘मुक्त’ रखने में महत्त्वपूर्ण साबित होगा। चीन का उद्भव एक वास्तविकता है, जिससे भारत को निपटना है। लेकिन कूटनीति एक ऐसी कला है जो सही संतुलन पर निर्भर करती है और भारत को वह संतुलन बनाकर चलना होगा।