भारत और अमेरिका की पाँच प्राथमिकताएँ | 24 Jun 2017
संदर्भ
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन डी.सी. की यात्रा एक महत्त्वपूर्ण समय पर हो रही है। इस यात्रा के दौरान ट्रंप प्रशासन अमेरिका में रोज़गार सृजन, मुक्त और निष्पक्ष व्यापार एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सहयोग की संभावना पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। इस लेख में दोनों देशों के मध्य उपस्थित वाणिज्यिक और रणनीतिक प्राथमिकताओं पर चर्चा की गई है।
विश्लेषण
- दोनों देशों के मध्य आम चुनौतियों और साझा अवसरों की सूची लंबी है। भारत और अमेरिका की भागीदारी के बीच ऐसी पाँच वाणिज्यिक और रणनीतिक प्राथमिकताएँ हैं जिन पर दोनों देशों को विचार करना चाहिये।
व्यापार एजेंडा तैयार करना:
- 1991 के बाद से भारत की व्यापारिक स्थिति तेज़ी से विकसित हुई है और प्रधानमंत्री मोदी के आने के बाद और तेज़ी से आगे बढ़ रही है। सरकार ने एफडीआई प्रवाह को बढ़ाने के लिये उदारीकरण के जाल को व्यापक कर दिया है। कुल मिलाकर, संदेश स्पष्ट है कि भारत व्यापार के लिये खुला है। हालाँकि कुछ संरक्षणवादी उपाय यहाँ अभी भी मौज़ूद हैं, परन्तु ये मुद्दे व्यापार नीति फोरम और अमेरिका-भारत सामरिक और वाणिज्यिक वार्ता जैसे द्विपक्षीय संवाद मंचों पर बातचीत के लिये खुले हैं।
- बेशक, इन संवादों की रूपरेखा के भीतर ही दोनों देशों को भारत के आईपी मानकों और अमेरिका में उच्च कुशल श्रमिकों को प्रभावित करने वाले आप्रवासन कार्यकारी आदेशों जैसे स्पष्ट पूर्ववर्ती कदमों का हल निकालना होगा। साथ ही अमेरिका प्रथम और मेक इन इंडिया नीति से उत्पन्न संरक्षणवादी उपायों से भी बचना होगा।
- चूँकि ट्रंप प्रशासन बहुपक्षीय व्यापार सौदों के बजाय द्विपक्षीय संधियों के लिये उत्सुक है, इसलिये यदि दोनों देश एक द्विपक्षीय निवेश संधि पर बातचीत करते हैं, तो यह एक ठोस परिणाम हो सकता है ।
- दोनों देश व्यापार और निवेश बाधाओं को पहचानने और पता करने के लिये एक उच्च स्तरीय आर्थिक अवसर समूह स्थापित कर सकते हैं।
भारत-अमेरिका रक्षा साझेदारी:
- अगस्त 2016 में, लोजिस्टिक एक्सचेंज मेमोरेन्डम ऑफ एग्रीमेंट (एलईएमओए) को अंतिम रूप दिये जाने के पश्चात् अमेरिकी सरकार ने भारत को "प्रमुख रक्षा भागीदार (मेजर डिफेंस पार्टनर)" के रूप में मान्यता दी है। यह हमारी सेनाओं और उद्योगों को और भी करीब लाएगा ।
- भारत सैन्य आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुज़र रहा है और अमेरिका में बनाए गए रक्षा उपकरण खरीदना चुन सकता है। भारत में रक्षा उपकरणों की बिक्री, भारत-अमेरिका व्यापार घाटे को कम करने और अमेरिकी रक्षा-औद्योगिक विनिर्माण आधार को सुधारने में मदद कर सकता है।
भारत-अमेरिका कृषि वार्ता:
- एक उच्च स्तरीय कृषि वार्ता का उद्देश्य बाधाओं को कम करना होगा ।भारत और अमेरिका उच्च कृषि उत्पादन क्षेत्रों के प्रतिनिधियों के साथ संसदीय आदान-प्रदान तैयार कर सकते हैं, इसके साथ-साथ वे वैज्ञानिक आदान-प्रदान तथा खाद्य सुरक्षा और पोषण में सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा कर सकते हैं।
- भारत खाद्य-खुदरा क्षेत्र को उदार बनाने की अपनी मंशा भी घोषित कर सकता है ताकि गैर-खाद्य वस्तुओं की सीमित बिक्री के लिये अमेरिकी कंपनियों से निवेश आकर्षित किया जा सके।
ऊर्जा व्यापार और प्रौद्योगिकी पहल:
- इस पहल का उद्देश्य भारत की उर्जा मांग को पूरा करने के लिये अमेरिकी ऊर्जा निर्यात के महत्त्व को बढ़ाना है। इस पहल से ऊर्जा सहयोग के लिये द्विपक्षीय संवाद में उद्योग भागीदारी में भी वृद्धि होगी। भारत सरकार को इस क्षेत्र में निवेश करने के लिये अमेरिकी कंपनियों को सक्षम करने के लिये एक व्यावसायिक खनन ढाँचा भी लागू करना चाहिये ।
स्वास्थ्य सुरक्षा पर सहयोग करना:
- भारत और अमेरिका दोनों को सर्वोत्तम स्वास्थ्य प्रथाओं और प्रौद्योगिकी को साझा करने पर जोर देने के साथ-साथ वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा के प्रति अपनी वचनबद्धता की पुष्टि करनी चाहिये । भारत की आईपीआर नीति के कार्यान्वयन में सुधार लाने और पेटेंट कानून के तहत धारा 3 (डी) जैसे विवाद के विशिष्ट क्षेत्रों को संबोधित करने पर उन्हें एक साथ काम करना चाहिये ।
निष्कर्ष
- इस तरह वैश्विक भू-राजनीति के विकास से अमेरिका और भारत के बीच अभूतपूर्व अभिसरण हुआ है। दोनों देशों के निकट संबंधों के लिये वाणिज्यिक अनिवार्यता स्पष्ट है। यदि भारतीय कंपनियाँ अमेरिका में स्थानीय निवासियों को कार्य पर रखती हैं तो निश्चित रूप से वहाँ की विभाजनकारी राजनीतिक भावनाओं को दूर किया जा सकता है। उधर चीन द्वारा अपने सैन्य निर्माण को मज़बूत करने और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में इसके हस्तक्षेप से , दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सुरक्षा खतरों को संबोधित करने और बढ़ती साइबर सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनज़र दोनों देशों के बीच गहन रणनीतिक सहयोग अनिवार्य है।