दक्षिण चीन सागर विवाद: कारण और प्रभाव | 24 Apr 2020
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में दक्षिण चीन सागर विवाद व उससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
जहाँ एक ओर पूरा विश्व COVID-19 से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने में संघर्षरत है, वहीं दूसरी ओर चीन दक्षिण चीन सागर में सैन्य गतिविधियों को संचालित कर इस क्षेत्र से संबंधित देशों के समक्ष दोहरी चुनौती पेश कर रहा है। हाल के दिनों में चीन के द्वारा इस संवेदनशील क्षेत्र में सैन्य अभ्यास के आयोजन के साथ ही बड़े पैमाने पर सैन्य टुकड़ियों की तैनाती भी की गई। इतना ही नहीं वियतनाम के विदेश मंत्रालय के अनुसार, कुछ दिन पूर्व ही चीन के तटरक्षक बल के एक पोत द्वारा दक्षिण चीन सागर के पार्सल द्वीप समूह (Paracel Islands) में वियतनाम की मछली पकड़ने वाली नौकाओं को डुबाने का प्रयास किया गया। निश्चित रूप से चीन की यह हरकत वियतनाम की संप्रभुता का उल्लंघन कर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ाने वाली है।
विदित है कि दक्षिण चीन सागर को दुनिया के सबसे व्यस्त जलमार्गों में से एक माना जाता है और यह व्यापार तथा परिवहन के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार है। दक्षिण चीन सागर में स्थित विभिन्न देशों के बीच इस क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित करने को लेकर तनाव व्याप्त है। चीन से लगे दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों और उनके द्वीपों को लेकर भी चीन और वियतनाम , इंडोनेशिया , मलेशिया, ब्रूनेई दारुसलाम, फिलीपींस, ताइवान , स्कार्बोराफ रीफ आदि क्षेत्रों को लेकर विवाद है। लेकिन मूल विवाद की जड़ है दक्षिण चीन सागर में स्थित स्पार्टली और पार्सल द्वीप, क्योंकि यह दोनों द्वीप कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस से परिपूर्ण हैं।
इस आलेख में दक्षिण चीन सागर की स्थिति, विवाद के कारण तथा उसके प्रभाव के साथ इस क्षेत्र में भारत की भूमिका पर विमर्श करने का भी प्रयास किया जाएगा।
दक्षिण चीन सागर की भौगोलिक स्थिति
- दक्षिण चीन सागर प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे से सटा हुआ और एशिया के दक्षिण-पूर्व में स्थित है।
- यह चीन के दक्षिण में स्थित एक सीमांत सागर है जो सिंगापुर से लेकर ताइवान की खाड़ी तक लगभग 3.5 मिलियन वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है और इसमें स्पार्टली और पार्सल जैसे द्वीप समूह शामिल हैं।
- इसके आस-पास इंडोनेशिया का करिमाता, मलक्का, फारमोसा जलडमरूमध्य और मलय व सुमात्रा प्रायद्वीप आते हैं। दक्षिण चीन सागर का दक्षिणी भाग चीन की मुख्य भूमि को स्पर्श करता है, तो वहीं इसके दक्षिण–पूर्वी हिस्से पर ताइवान की दावेदारी है।
- दक्षिण चीन सागर का पूर्वी तट वियतनाम और कंबोडिया को स्पर्श करते हैं। पश्चिम में फिलीपींस है, तो दक्षिण चीन सागर के उत्तरी इलाके में इंडोनेशिया के बंका व बैंतुंग द्वीप हैं।
दक्षिण चीन सागर का विवादित इतिहास
- सर्वप्रथम वर्ष 1947 में मूल रूप से चीन गणराज्य की कुओमितांग सरकार ने ‘इलेवन डैश लाइन’ (Eleven Dash line) के माध्यम से दक्षिण चीन सागर में अपने दावों को प्रस्तुत किया था।
- चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा मुख्य भूमि चीन पर अधिकार करने और वर्ष 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना का गठन करने के बाद टोंकिन की खाड़ी को इलेवन डैश लाइन से बाहर कर दिया गया। परिणामस्वरूप इलेवन डैश लाइन को अब ‘नाईन डैश लाइन’ (दक्षिण चीन सागर पर चीन द्वारा खींची गई 9 आभासी रेखाएँ) के नाम से जाना जाने लगा।
- चीन द्वारा वर्ष 1958 के घोषणापत्र में नाईन डैश लाइन के आधार पर दक्षिण चीन सागर के द्वीपों पर अपना दावा किया गया।
- चीन के इस दावे से वियतनाम के स्पार्टली और पार्सल द्वीप समूह नाईन डैश लाइन (Nine Dash Line) के अंतर्गत समाहित हो गए, जो चीन और वियतनाम के बीच विवाद का प्रमुख कारण है।
- इसी प्रकार नाईन डैश लाइन के अंतर्गत फिलीपींस का स्कारबोरो शोल द्वीप, इंडोनेशिया का नातुना सागर क्षेत्र शामिल है।
- वर्ष 1949 से ही चीन नाइन-डैश लाइन के माध्यम से दक्षिण चीन सागर के अधिकांश भाग (लगभग 80%) पर अपने अधिकार का दावा करता रहा है।
दक्षिण चीन सागर विवाद के कारण
- इस विवाद का मुख्य कारण समुद्र पर विभिन्न क्षेत्रों का दावा और समुद्र का क्षेत्रीय सीमांकन है।
- चीन दक्षिण-चीन सागर के 80% हिस्से को अपना मानता है। यह एक ऐसा समुद्री क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक तेल और गैस प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है।
- एक रिपोर्ट के अनुसार इसकी परिधि में करीब 11 अरब बैरल प्राकृतिक गैस और तेल तथा मूंगे के विस्तृत भंडार मौजूद हैं।
- मछली व्यापार में शामिल देशों के लिये यह जल क्षेत्र महत्त्वपूर्ण तो है ही साथ ही इसकी भौगोलिक स्थिति के कारण इसका सामरिक महत्त्व भी बढ़ जाता है। यही कारण है कि चीन इस क्षेत्र में अपना प्रभुत्व कायम रखना चाहता है।
प्रभाव
- दक्षिण चीन सागर विवाद ने इस विवाद में शामिल क्षेत्रों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है, इन देशों का चीन के साथ व्यापार प्रभावित हुआ है।
- दक्षिण चीन सागर सबसे महत्त्वपूर्ण व्यापारिक मार्गों में से एक है। यदि इस क्षेत्र में तनाव इसी प्रकार जारी रहा तो शिपिंग और आर्थिक गतिविधियाँ बाधित हो जाएंगी।
- पूर्वी एशिया में अमेरिका की व्यापक सुरक्षा प्रतिबद्धताएँ हैं। अमेरिका ने इस क्षेत्र के कई देशों जैसे फिलीपींस, सिंगापुर और वियतनाम के साथ सुरक्षा गठबंधन भी कर रखा है। इसलिये इन देशों का चीन के साथ कोई भी विवाद अमेरिका को सीधे प्रभावित करेगा।
चीन की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति
- चीन को प्राकृतिक तेल की आपूर्ति मध्य पूर्व के देशों द्वारा मलक्का जलडमरुमध्य के रास्ते से होती है। अक्सर अमेरिका चीन को चेतावनी देता है कि वह मलक्का जलडमरुमध्य को ब्लॉक कर देगा जिससे चीन की ऊर्जा आपूर्ति रुक जाएगी।
- यही कारण है कि चीन को दक्षिण चीन सागर में अपने भू-आर्थिक और भू-सामरिक हित दिखाई देते हैं । दक्षिण चीन सागर में 11 बिलियन बैरल प्राकृतिक तेल के भंडार हैं, 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस के भंडार है , जिसके 280 ट्रिलियन क्यूबिक फीट होने की संभावना व्यक्त की गई है।
- यह क्षेत्र ऐसा हैं जहाँ से हर वर्ष 5 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार होता है। यहाँ स्थित महत्त्वपूर्ण समुद्री व्यापारिक मार्गों के जरिये अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में सुगमता होती है।
- यह जानना भी जरूरी है कि सिर्फ़ तेल और गैस ही नहीं, दक्षिणी चीन सागर में मछलियों की हज़ारों नस्लें पाई जाती है। दुनिया भर के मछलियों के कारोबार का करीब 55 प्रतिशत हिस्सा या तो दक्षिणी चीन सागर से गुज़रता है, या वहाँ पाया जाता है। इसलिये चीन इस प्रकार के क्षेत्रों में विशेष रुचि रखता है।
- चीन ने दक्षिण चीन सागर के द्वीपों में कई प्रकार के अवैध कार्य किये हैं । अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए चीन ने यहाँ कृत्रिम द्वीप बनाए हैं , संसाधन अन्वेषण के लिये सर्वे भी आयोजित किये हैं।
दक्षिण चीन सागर विवाद में भारत की भूमिका
- भारत स्पष्ट रूप से ‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑफ द लॉ ऑफ द सी , 1982’ (United Nations Convention on the Law of the Sea) के सिद्धांतो के आधार पर दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र व निर्बाध जल परिवहन का समर्थन करता है।
- भारत का यह भी मानना है कि दक्षिण चीन सागर विवाद में शामिल क्षेत्र के सभी देशों को किसी भी प्रकार की धमकी और बल प्रयोग किये बिना आपसी विवादों को हल करना चाहिये, क्योंकि यदि ऐसा नहीं होता है तो न चाहते हुए भी जटिलताएँ पैदा हो जाएंगी और क्षेत्र की शांति व स्थिरता को खतरा पैदा हो जाएगा।
- भारत, वियतनाम और फिलीपींस जैसे देशों के साथ सैन्य साज़ो सामान के आयात-निर्यात की गतिविधियों को बढ़ा रहा है। इस प्रकार भारत पूर्वी एशिया खासतौर पर चीन के साथ विवाद में उलझे हुए देशों के महत्त्वपूर्ण सैन्य भागीदार के रूप में उभर सकता है।
- दक्षिण चीन सागर विवाद को भारत के लिये पूर्वी एशियाई पड़ोसियों के साथ रिश्ते सुधारने के महत्त्वपूर्ण मौके के रूप में देखा जा रहा है।
- नाईन डैश लाइन संबंधी अंतर्राष्ट्रीय पंचाट के निर्णय को ठुकरा कर चीन ने पूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने संबंध खराब कर लिये हैं, ऐसे में भारत को इस क्षेत्र में अपना कद बढ़ाने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।
- अमेरिका के साथ मिलकर भारत इस क्षेत्र के लोगों की क्षमताओं में वृद्धि करने में सहायता कर सकता है तथा इस प्रकार इस क्षेत्र में चीन की बढ़ रही आक्रामक भूमिका को संतुलित करने में भारत-अमेरिका का महत्त्वपूर्ण भागीदार बन सकता है।
निष्कर्ष
भारत को चीन और पूर्वी एशियाई देशों विशेषकर दक्षिण चीन सागर विवाद में उलझे देशों के साथ मधुर संबंध रखते हुए कूटनीतिक दृष्टि से अत्यधिक सावधानी बरतने की आवश्यकता है ताकि इन देशों के मामलों में प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप किये बिना अपने आर्थिक और राजनीतिक हितों की पूर्ति की जा सके। ऐसा करके ही भारत इस क्षेत्र में स्वयं को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित कर सकता है।
प्रश्न- दक्षिण चीन सागर विवाद क्या है? इस क्षेत्र में निहित चीन के हितों का उल्लेख करते हुए भारत की भूमिका का विश्लेषण कीजिये।