किसानों की समस्याओं के लिये चाहिये दीर्घकालीन समाधान | 10 Jan 2019
संदर्भ
हाल ही में तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा की पराजय का एक बड़ा कारण सरकार द्वारा किसानों की अनदेखी को भी माना गया। लगातार ऐसी खबरें मिलने का सिलसिला चलता रहा कि किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य नहीं मिला। ऐसी खबरें भी चर्चा में रहीं कि आलू और प्याज़ जैसी फसलों की लागत तक न निकल पाने के कारण किसानों ने अपनी फसल खेतों में ही नष्ट कर दी। इसके अलावा अन्य कृषि उपजों का भी किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता।
ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि इस समस्या का हल क्या है? सरकार के इतने प्रयासों के बाद भी कहाँ कमी रह गई है? अल्पकालिक समाधान के बजाय दीर्घकालिक समाधान कौन से हो सकते हैं कि देश की अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले कृषि क्षेत्र की बेहतरी के उपाय किये जा सकें? क्या किसानों के कर्ज़ की आंशिक माफी इस समस्या का समाधान है?
किसानों की समस्या
देशभर में किसानों के असंतोष का सबसे बड़ा कारण उनकी उपज का सही मूल्य न मिलना रहा है और यही उनकी सबसे बड़ी समस्या है। किसानों की समस्याएँ कोई नई नहीं हैं; लेकिन उनके समाधान की ईमानदार कोशिशें होती कभी नज़र नहीं आईं। किसानों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें भी पिछले कई वर्षों से चर्चा में हैं। किसानों द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में निकाली गई विशाल रैलियाँ उनके असंतोष को बताने के लिये पर्याप्त है।
ईमानदार समाधान की ज़रूरत
तीन ऐसे सुधार हैं, जिन पर अविलंब अमल करते हुए किसानों की दुखती रग पर मरहम रखा जा सकता है:
- अधिकतम न्यूनतम समर्थन मूल्य
- कर्ज़ माफी
- प्रत्यक्ष आय और निवेश सहायता
प्रत्यक्ष आय और निवेश सहायता
उपरोक्त में से पहले दो के बारे में तो हमें जानकारी है, लेकिन तीसरा बिंदु (प्रत्यक्ष आय और निवेश सहायता) अपेक्षाकृत कम जाना-पहचाना है।
रायथू बंधु योजना
इस विकल्प की शुरुआत तेलंगाना में हुई और इसे ‘रायथू बंधु’ नाम दिया गया है। रायथू बंधु का अर्थ है किसानों का मित्र। यह एक किसान निवेश सहायता योजना है, जिसके तहत तेलंगाना सरकार किसानों को रबी और खरीफ की फसलों के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इस योजना के तहत कृषि निवेश का समर्थन करने के लिये प्रति सीजन राज्य सरकार 4000 रुपए प्रति एकड़ की वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। रबी और खरीफ के मौसम के लिये सालाना दो बार यह वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है यानी सालाना 4000 रुपए प्रति एकड़ की वित्तीय सहायता। इस योजना के तहत किसानों को सहायता राशि का भुगतान मंडल (उप-जिला) कृषि अधिकारी के कार्यालय से चेक के रूप में किया जाता है। यह तेलंगाना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली योजना है और इसकी सावधानीपूर्वक निगरानी भी की गई। इस योजना के अलावा तेलंगाना में किसानों को पाँच लाख रुपए का बीमा कवर भी दिया जा रहा है।
वैसे सच कहा जाए तो किसानों की समस्याओं को कम करने का रामबाण नुस्खा कृषि बाज़ारों के आमूलचूल सुधारों में छिपा है। जैसे-
- MSP सिस्टम को मज़बूत बनाकर इसका दायरा बढ़ाना
- कृषि उपज विपणन समितियों (APMCs) का मकड़जाल तोड़ना
- आवश्यक वस्तु अधिनियम,1955 में सुधार करना
- Negotiable Warehouse Receipt प्रणाली को सुधारना
- किसानों के उत्पादों को बाज़ारों तक पहुँचाने के लिये सप्लाई चेन बनाना
- ज़मीनों से जुड़े तथा चकबंदी आदि कानूनों को सरल बनाना
- कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देना
- कृषि-निर्यात बढ़ाने के लिये अनुकूल माहौल बनाना
- फूड प्रोसेसिंग की सुविधाओं का विकास
- उपभोक्ताओं और बाज़ार के बीच बेहतर संपर्क
किसानों की कर्ज़ माफी का मुद्दा
ऊपर जिन विधानसभा चुनावों का जिक्र किया गया है, वहाँ किसानों की कर्ज़ माफी का मुद्दा अहम रहा, जिसने विरोधी दल कांग्रेस को सत्ता दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन कर्ज़ माफी किसानों की समस्या का कोई पुख्ता समाधान नहीं है, क्योंकि इसका लाभ 20 से 30 प्रतिशत किसानों से अधिक को नहीं मिल पाता है। इस सीमित पहुँच की वज़ह से भारतीय किसानों की व्यापक शिकायतों और समस्याओं का निवारण नहीं हो सकता। हकीकत यही है कि कर्ज़ माफी जैसे अंतरिम उपायों से कृषि से होने वाली आय लगातार कम होते जाने की असल समस्या का समाधान नहीं हो पाता।
संरचनात्मक सुधारों की ज़रूरत
देखा यह गया है कि समय बीतने के साथ किसानों की हालत सुधरने के बजाय और खराब होती चली गई है। किसानों को संतुष्ट करने के लिये देश के नीति-निर्धारक समय-समय पर जो उपाय करते हैं, वे तात्कालिक राहत पहुँचाने वाले होते हैं। इन उपायों के तहत किसानों को लुभाने वाले कदम उठाए जाते हैं, जबकि ज़रूरत ऐसे संरचनात्मक उपायों की है जो दीर्घकालिक हों और किसानों की समस्या को स्थायी तौर पर हल कर सकें। जैसे- यूनिवर्सल बेसिक इनकम जैसी योजना चलाना। इससे हर महीने एक निश्चित आय हो सकेगी और किसान अपनी उपज को औने-पौने दामों पर बेचने को विवश नहीं होंगे। लेकिन वास्तविकता यह है कि बिजली-पानी, खाद, कृषि के बुनियादी ढाँचे, विपणन और जोखिमों का सामना करने की क्षमता आदि जैसी किसानों की सामान्य समस्याओं को ही दूर करने में हम सफल नहीं हो पा रहे हैं।
आधुनिक तकनीक से वंचित है भारत की कृषि
आज जब पूरी दुनिया में मानव गतिविधियों के हर क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हो रहा है, वहीं अधिकांश भारतीय कृषि अभी सदियों पुराने ढर्रे पर ही काम कर रही है। आज तक भारतीय कृषि जगत में किसी तकनीक विशेष का इस्तेमाल नहीं हुआ है। 15 साल पहले BT कॉटन का इस्तेमाल होना शुरू हुआ था, लेकिन उसके बाद ऐसा कोई प्रयोग कृषि क्षेत्र में नहीं हुआ है। आज मनुष्य के पास विभिन्न प्रकार की तकनीक मौज़ूद हैं, जैसे- जैव प्रौद्योगिकी, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, उपग्रह प्रौद्योगिकी, परमाणु कृषि प्रौद्योगिकी और खाद्य प्रसंस्करण के लिये नैनो प्रौद्योगिकी। इन सबका इस्तेमाल कमोबेश कृषि क्षेत्र में किया जा सकता है।
6-सूत्री योजना
- इनपुट डिलीवरी सिस्टम को मज़बूत बनाना
- सिंचाई सुविधाओं का तेज़ी से विस्तार
- विविध तकनीकों का इस्तेमाल
- ग्रामीण अवसंरचना में निवेश
- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) का अधिकतम इस्तेमाल
- किसानों का क्षमता निर्माण
बेशक कृषि राज्यों का विषय है और हर राज्य अपनी सुविधा और परिस्थितियों को मद्देनज़र रखते हुए ही अपनी कृषि नीतियों का निर्धारण करता है। इस मामले में केंद्र और राज्यों को मिलकर काम करने की ज़रूरत है, लेकिन आज का सच यही है कि किसानों को खेती-बाड़ी से जो आय हो रही है, वे उससे कहीं अधिक के हक़दार हैं। लेकिन अल्पकालिक उपायों से उनकी आय में बढ़ोतरी कर पाना संभव नहीं है। इसके लिये लंबे समय तक प्रतिबद्धता के उपाय करने होंगे, तभी किसानों की आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार आ सकता है।