बाढ़ नियंत्रण: कारण और निवारण | 06 Jul 2020

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में बाढ़ नियंत्रण व उसके प्रबंधन से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वर्तमान में असम के 33 जिलों में से 18 ज़िले बाढ़ की चपेट में हैं। असम की बाढ़ से लगभग 37 लोगों की मृत्यु हो गई है और दस लाख से अधिक लोग तथा पशु-धन प्रभावित हुए हैं। बाढ़ ने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व (Kaziranga National Park and Tiger Reserve), पोबितोरा वन्यजीव अभ्यारण्य (Pobitora Wildlife Sanctuary) और मानस राष्ट्रीय उद्यान (Manas National Park) के बड़े हिस्से को जलमग्न कर दिया है। राज्य में बाढ़ एक वार्षिक विशेषता (प्रतिवर्ष आगमन) है। मानसून के दौरान लगातार भारी वर्षा के अतिरिक्त, प्राकृतिक और मानव निर्मित कारक हैं जो इसके लिये योगदान करते हैं। चीन, भारत, बांग्लादेश और भूटान में फैले एक बड़े बेसिन क्षेत्र के साथ ब्रह्मपुत्र नदी अपने साथ भारी मात्रा में जल और गाद का मिश्रण लेकर आती है, जिससे असम में कटाव की घटनाओं में वृद्धि होती है जो बाढ़ का कारण बनती है। 

भारत में घटित होने वाली सभी प्राकृतिक आपदाओं में सबसे अधिक घटनाएँ बाढ़ की हैं। यद्यपि इसका मुख्य कारण भारतीय मानसून की अनिश्चितता तथा वर्षा ऋतु के चार महीनों में भारी जलप्रवाह है, परंतु भारत की असम्मित भू-आकृतिक विशेषताएँ विभिन्न क्षेत्रों में बाढ़ की प्रकृति तथा तीव्रता के निर्धारण में अहम भूमिका निभाती हैं। बाढ़ के कारण समाज का सबसे गरीब तबका प्रभावित होता है। बाढ़ जान-माल की क्षति के साथ-साथ प्रकृति को भी हानि पहुँचती है। अतः सतत् विकास के नज़रिये से बाढ़ के आकलन की ज़रूरत है।

बाढ़ से तात्पर्य

  • नदी का जल उफान के समय जल वाहिकाओं को तोड़ता हुआ मानव बस्तियों और आस-पास की ज़मीन पर पहुँच जाता है और बाढ़ की स्थिति पैदा कर देता है। बाढ़ आमतौर पर अचानक नहीं आती, यह कुछ विशेष क्षेत्रों और वर्षा ऋतु में ही आती है। बाढ़ तब आती है जब नदी जल-वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है और जल, बाढ़ के रूप में मैदान के निचले हिस्सों में भर जाता है।
  • कई बार झीलें और आंतरिक जल क्षेत्रों में भी क्षमता से अधिक जल भर जाता है। बाढ़ आने के और भी कई कारण हो सकते हैं, जैसे- तटीय क्षेत्रों में आने वाला तूफान, लंबे समय तक होने वाली तेज़ बारिश, हिम का पिघलना, ज़मीन की जल अवशोषण क्षमता में कमी आना और अधिक मृदा अपरदन के कारण नदी जल में जलोढ़ की मात्रा में वृद्धि होना।

भारत में बाढ़ की स्थिति

  • भारत के विभिन्न राज्यों में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण जान-माल का भारी नुकसान होता है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हेक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है।
  • असम, पश्चिम बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्यों में से एक हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर भारत की अधिकतर नदियाँ विशेषकर उत्तर प्रदेश और पंजाब में बाढ़ लाती रही हैं।
  • राजस्थान, गुजरात, हरियाणा और पंजाब आकस्मिक बाढ़ के कारण पिछले कुछ दशकों में जलमग्न होते रहे हैं। इसका कारण मानसूनी वर्षा की तीव्रता तथा मानव कार्यकलापों द्वारा प्राकृतिक अपवाह तंत्र का अवरुद्ध होना है।
  • कई बार तमिलनाडु में बाढ़ नवंबर से जनवरी माह के बीच लौटते मानसून से होने वाली तीव्र वर्षा द्वारा आती है।

बाढ़: राज्य सूची का विषय

  • कटाव नियंत्रण सहित बाढ़ प्रबंधन का विषय राज्‍यों के क्षेत्राधिकार में आता है। बाढ़ प्रबंधन एवं कटाव-रोधी योजनाएँ राज्‍य सरकारों द्वारा प्राथमिकता के अनुसार अपने संसाधनों द्वारा नियोजित, अन्‍वेषित एवं कार्यान्वित की जाती हैं। 
  • इसके लिये केंद्र सरकार राज्‍यों को तकनीकी मार्गदर्शन और वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

बाढ़ के कारण

सामान्यतः भारी वर्षा के बाद जब प्राकृतिक जल संग्रहण स्रोतों/मार्गों (Natural Water Bodies/Routes) की जल धारण करने की क्षमता का संपूर्ण दोहन हो जाता है, तो पानी उन स्रोतों से निकलकर आस-पास की सूखी भूमि को डूबा देता है। लेकिन बाढ़ हमेशा भारी बारिश के कारण नहीं आती है, बल्कि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों ही कारणों का परिणाम है, जिन्हें हम कुछ इस प्रकार से वर्णित कर सकते हैं-

  • मौसम संबंधी तत्त्व: दरअसल, तीन से चार माह की अवधि में ही देश में भारी बारिश के परिणामस्वरूप नदियों में जल का प्रवाह बढ़ जाता है जो विनाशकारी बाढ़ का कारण बनता है। एक दिन में लगभग 15 सेंटीमीटर या उससे अधिक वर्षा होती है, तो नदियों का जलस्तर खतरनाक ढंग से बढ़ना शुरू हो जाता है।
  • बादल फटना: भारी वर्षा और पहाड़ियों या नदियों के आस-पास बादलों के फटने से भी नदियाँ जल से भर जाती हैं।
  • गाद का संचय: हिमालय से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ बड़ी मात्रा में गाद और रेत लाती हैं। वर्षों से इनकी सफाई न होने कारण नदियों का मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में पानी फ़ैल जाता है।
  • मानव निर्मित अवरोध: तटबंधों, नहरों और रेलवे से संबंधित निर्माण के कारण नदियों के जल-प्रवाह क्षमता में कमी आती है, फलस्वरूप बाढ़ की समस्या और भी गंभीर हो जाती है। वर्ष 2013 में उत्तराखंड में आई भयंकर बाढ़ को मानव निर्मित कारकों का परिणाम माना जाता है।
  • वनों की कटाई: पेड़ पहाड़ों पर मिट्टी के कटाव को रोकने और बारिश के पानी के लिये प्राकृतिक अवरोध पैदा करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

विनाशक परिणाम

  • बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में कई तरह की बीमारियाँ, जैसे- हैजा, आंत्रशोथ (Enteritis), हेपेटाईटिस एवं अन्य दूषित जलजनित बीमारियाँ फैल जाती हैं। वर्तमान में पूरे देश में COVID-19 महामारी का प्रसार है, बाढ़ की स्थिति इसे और अधिक हानिकारक बना सकती है। 
  • असम, पश्चिम बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश (मैदानी क्षेत्र) और ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और गुजरात के तटीय क्षेत्र तथा पंजाब, राजस्थान, उत्तर गुजरात एवं हरियाणा में बार-बार बाढ़ आने और कृषि भूमि तथा मानव बस्तियों के डूबने से देश की अर्थव्यवस्था तथा समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

संभावित लाभ

  • दरअसल बाढ़ का पानी अपने साथ पहाड़ों से उपजाऊ गाद (मिट्टी) मैदानों की तरफ लाता है। यह  गाद काफी उपजाऊ होती है। बाढ़ के पानी के साथ बहकर आने से मैदानी इलाकों में इस उपजाऊ मिट्टी की एक परत बन जाती है। जिससे खेतों में मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसल काफी अच्छी होती है।
  • इसके साथ ही रेत-पत्थर, अवसाद आदि जमा होने से संकरी हो चुकी नदी के चैनलों को बाढ़ साफ कर देती है, जिससे नदी का फैलाव होने से नदी फिर से अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है। 
  • बाढ़ से भू-जल संभरण भी होता है।

बाढ़ प्रबंधन हेतु प्रयास

राष्ट्रीय जल नीति, 2012

  • जहाँ संरचनात्मक एवं गैर-संरचनात्मक उपायों के माध्यम से बाढ़ एवं सूखे जैसी जल संबंधी आपदाओं को रोकने के लिये हर संभव प्रयास किया जाना चाहिये, वहीं बाढ़/सूखे से निपटने के लिये तंत्र सहित पूर्व तैयारी जैसे विकल्पों पर ज़ोर दिया जाना चाहिये। साथ ही प्राकृतिक जल निकास प्रणाली के पुनर्स्थापन पर भी अत्यधिक ज़ोर दिये जाने की आवश्यकता है।
  • नदी द्वारा किये गए भूमि कटाव जैसे स्थायी नुकसान को रोकने के लिये तटबंधों इत्यादि के निर्माण हेतु आयोजना, निष्पादन, निगरानी भू-आकृति विज्ञानीय अध्ययनों के आधार पर किया जाना चाहिये। चूँकि जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक तीव्र वर्षा होने तथा मृदा कटाव की संभावना बढ़ने से यह और भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है।
  • बाढ़ का सामना करने के लिये तैयार रहने हेतु बाढ़ पूर्वानुमान अति महत्त्वपूर्ण है तथा इसका देश भर में सघन विस्तार किया जाना चाहिये और वास्तविक समय आँकड़ा संग्रहण प्रणाली (Real Time Data Collection System) का उपयोग करते हुए आधुनिकीकरण किया जाना चाहिये।
  • जलाशयों के संचालन की प्रक्रिया को विकसित करने तथा इसका कार्यान्वयन इस प्रकार किया जाना चाहिये ताकि बारिश के मौसम के दौरान बाढ़ को सहन करने संबंधी क्षमता प्राप्त हो सके और अवसादन के असर को कम किया जा सके। ये प्रक्रियाएँ ठोस निर्णय सहयोग प्रणाली पर आधारित होनी चाहिये।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005

Flood-response

  • दिसंबर, 2005 को भारत सरकार द्वारा ‘आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005’ अधिनियमित किया गया, जिसके तहत ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) एवं ‘राष्ट्रीय आपदा मोचन बल’ (NDRF) का गठन किया गया।

बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम

  • बाढ़ प्रबंधन और सीमा क्षेत्र कार्यक्रम (Flood Management and Border Areas Programme-FMBAP) प्रभावी बाढ़ प्रबंधन, भू-क्षरण पर नियंत्रण के साथ-साथ समुद्र तटीय क्षेत्रों के क्षरण की रोकथाम पर भी ध्यान केंद्रित करेगी।
  • यह प्रस्ताव देश में बाढ़ और भू-क्षरण से शहरों, गाँवों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों, संचार नेटवर्क, कृषि क्षेत्रों, बुनियादी ढाँचों आदि को बचाने में मदद करेगा।
  • बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम (FMP) तथा नदी प्रबंधन गतिविधियों और सीमावर्ती क्षेत्रों से संबंधित कार्य (River Management Activities and Works related to Border Areas-RMBA) नामक दो स्कीमों के घटकों का आपस में विलय करके FMBAP (Flood Management and Border Area Management) योजना तैयार की गई है।
  • जलग्रहण उपचार कार्यों से नदियों में गाद कम करने में सहायता मिलेगी।

बाढ़ प्रबंधन हेतु सुझाव 

  • राज्य स्तर पर बाढ़ नियंत्रण एवं शमन के लिये प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करना तथा स्थानीय स्तर पर लोगों को बाढ़ के समय किये जाने वाले उपायों के बारे में प्रशिक्षित करना।
  • संरचनात्मक उपाय जैसे कि तटबंध, कटाव रोकने के उपाय, जल निकास तंत्र का सुदृढ़ीकरण, तटीय सुरक्षा के लिये दीवार जैसे उपाय जो कि उस खास भू-आकृतिक क्षेत्र के लिये सर्वश्रेष्ठ हों।
  • गैर-संरचनागत उपाय, जैसे कि आश्रय गृहों का निर्माण, सार्वजनिक उपयोग की जगहों को बाढ़ सुरक्षित बनाना, अंतर्राज्यीय नदी बेसिन का प्रबंधन, बाढ़ के मैदानों का क्षेत्रीकरण इत्यादि।
  • बाढ़ की प्रकृति के अनुसार आपदा-मोचन बल को प्रशिक्षित करना तथा आवश्यकता पड़ने पर तुरंत तैनात करना।
  • विनिर्माण में संरचना के प्रारूप, स्थान, सामग्री और अनुमेय क्षति (Permissible Damage) के प्रकार एवं आकार के विषय में उचित निर्णय लेना महत्त्वपूर्ण है ताकि प्रकृति को कम-से-कम नुकसान पहुँचे।
  • बांध प्रबंधन और समय पर लोगों को सचेत किये जाने में पर्याप्त सावधानी बरती जानी चाहिये।
  • पुनर्वनीकरण, जल निकास तंत्र में सुधार, वाटर-शेड प्रबंधन, मृदा संरक्षण जैसे उपाय।
  • वर्तमान परिदृश्य ऐसा है कि देश के कुछ हिस्से बाढ़ से घिरे हुए हैं तो कुछ अन्य हिस्से जल की अत्यंत कमी का सामना कर रहे हैं। ऐसे में नदी जोड़ों परियोजना एक व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत कर सकती है। 

आगे की राह 

  • अवसंरचनात्मक तैयारी- नियोजित विकास, शहरी क्षेत्रों में हरित कवर व हरित पट्टी को बढ़ाना, भारी वर्षा के जल की निकासी व्यवस्था में सुधार करना आदि कुछ निवारक उपाय हैं, जिन्हें अपनाना चाहिये।
  • संस्थागत सतर्कता- इस संबंध में कुछ संस्थागत तैयारियाँ इस प्रकार हैं- जन-स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना, वैक्सीन व दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करना और बचाव के लिये मानसून पूर्व तैयारियाँ करना, नागरिकों को बचाव का प्रशिक्षण देना आदि।
  • ऐतिहासिक तथ्यों का संकलन- अतीत की घटनाओं से सीखना और उसके आधार पर सुरक्षा के समुचित कदम उठाना, निजी क्षेत्र को इससे संबद्ध करना, लोगों की मानसिकता में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करना, शहरी लोगों के रहन-सहन की आदतें व उनकी जीवनशैली में सुधार संबंधी मानकों को अपनाना आदि।

प्रश्न- भारत के विभिन्न राज्यों में बाढ़ के कारणों का विश्लेषण कीजिये तथा बाढ़ प्रबंधन हेतु किये जाने वाले प्रयासों का उल्लेख कीजिये।