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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-यूरोप संबंधों में नया आयाम

  • 06 May 2022
  • 14 min read

यह एडिटोरियल 04/05/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Europe To The Centre” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के यूरोप (मुख्य रूप से जर्मनी और फ्रांस के साथ) के साथ संबंधों और सहयोग के संभावित क्षेत्रों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ  

हाल ही में भारत में राजनयिक गतिविधियाँ तेज़ रहीं हैं, विभिन्न देशों के मंत्रियों, वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों और राजनयिकों का दिल्ली आगमन हुआ और वे विभिन्न बैठकों-आयोजनों में अपने भारतीय समकक्षों के साथ वार्ता में संलग्न हुए। भारत पर विश्व का यह विशेष ध्यान यह दर्शाता है कि भारत एक नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रमुख वास्तुकारों में से एक के रूप में उभर रहा है। इस संदर्भ में भारतीय प्रधानमंत्री का बर्लिन (जर्मनी), कोपेनहेगन (डेनमार्क) और पेरिस (फ्राँस) का वर्तमान दौरा हमें यूरोप में भारत के रणनीतिक भविष्य (रूस पर पश्चिम के प्रतिबंधों के नवीन परिदृश्य में) की एक झलक देता है। अभूतपूर्व पश्चिमी प्रतिबंधों से अलग-थलग पड़े रूस के चीन के और निकट जाने के साथ यूरोप भारत के रणनीतिक समीकरण में पहले से कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण बनता जा रहा है।  

भारत और यूरोप (विशेष रूप से जर्मनी और फ्राँस के संबंधों में हालिया प्रगति):  

  • अप्रैल 2022 में यूरोपीय आयोग (European Commission) के अध्यक्ष ने अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान ‘भारत-यूरोप व्यापार एवं प्रौद्योगिकी परिषद’ (India-Europe Trade and Technology Council) की शुरुआत कर भारत के साथ यूरोपीय संघ की रणनीतिक साझेदारी के नए रूपों का अनावरण किया। यह यूरोपीय संघ की दूसरी ऐसी परिषद है।  
  • हालाँकि प्रधानमंत्री की यूरोप यात्रा के दौरान प्रमुख यूरोपीय देशों (जर्मनी और फ्राँस) के अतिरिक्त यूरोप के महत्त्वपूर्ण उत्तरी भाग (जिसे ‘Norden’ के रूप में जाना जाता है और जिसमें मुख्यतः डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन शामिल हैं) के साथ भारत की महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय साझेदारी पर ध्यान केंद्रित किया गया।  
  • इस दौरे ने रूस-यूक्रेन युद्ध के कुछ नकारात्मक क्षेत्रीय एवं वैश्विक परिणामों को सीमित करने हेतु तरीके खोजने और प्रमुख यूरोपीय देशों के साथ मज़बूत सहयोग के लिये उभरती संभावनाओं का पता लगाने का अवसर प्रदान किया।  
  • भारत और फ्राँस के बीच सामरिक अभिसरण एक बहुध्रुवीय विश्व के प्रति दोनों देशों के बुनियादी भरोसे और रणनीतिक स्वायत्तता की अवधारणा पर आधारित है।  
  • वर्ष 1998 से फ्राँस भारत के साथ खड़ा है, जब भारत ने परमाणु परीक्षण किये थे और पूरी दुनिया भारत के विरोध में थी।  
  • हाल के समय में फ्राँस भारत के लिये ‘नया रूस’ बनकर उभरा है, जो उसका सबसे महत्त्वपूर्ण सामरिक/रणनीतिक साझेदार है।  
  • पिछले कुछ वर्षों में फ्राँस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के हितों के एक मज़बूत रक्षक और विशाल हिंद-प्रशांत गतिविधि क्षेत्र में एक क्षेत्रीय सहयोगी के रूप में उभरा है ।  
  • फ्राँस भारत को उन्नत हथियारों का प्रमुख आपूर्तिकर्ता भी रहा है।  
  • जर्मनी और भारत के बीच पारंपरिक रणनीतिक साझेदारी नहीं रही है। इनके बीच व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी, कार्यात्मक सहयोग, कौशल विकास और संवहनीयता पर आधारित एक ‘हरित साझेदारी’ रही है।  
  • भारत-जर्मन ऊर्जा मंच, पर्यावरण मंच, शहरी गतिशीलता पर साझेदारी, कौशल विकास और विज्ञान व प्रौद्योगिकी जैसी कई पहलें हैं, जहाँ दोनों देश साथ आगे बढ़ रहे हैं।  
  • जनवरी 2022 में जर्मन नौसेना का एक युद्धपोत ‘बायर्न’ (Bayern) मुंबई पहुँचा था जो भारत-जर्मन संबंधों के लिये एक उल्लेखनीय कदम था। इसने वर्ष 2020 में जर्मनी द्वारा अपनाए गए हिंद-प्रशांत नीति दिशा-निर्देशों के एक ठोस परिणाम को दर्शाया।  

भारत-यूरोप संबंधों के लिये यूक्रेन संकट का निहितार्थ: 

  • जारी रूस-यूक्रेन युद्ध उन प्रमुख बाधाओं में से एक है जो यूरोपीय संघ के साथ भारत के अच्छे संबंधों को प्रभावित कर सकता है। हालाँकि जर्मनी पर पश्चिमी बहस अधिक आलोचनापूर्ण है।  
  • जर्मनी भारत की तुलना में रूस से कहीं अधिक गहनता से जुड़ा हुआ है, जहाँ वह रूस के साथ लगभग 60 बिलियन डॉलर (भारत के 10 बिलियन डॉलर की तुलना में) का वार्षिक व्यापार करता है।  
  • रूसी प्राकृतिक गैस पर भारी निर्भरता के साथ जर्मनी रूस पर उल्लेखनीय रणनीतिक निर्भरता भी रखता है।  
  • अन्य यूरोपीय देशों के विपरीत फ्राँस रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख को बेहतर समझ सकता है क्योंकि दोनों देशों के प्रमुख इस मुद्दे पर रूसी राष्ट्रपति के साथ लगातार वार्तारत रहे थे।  
  • रूस पर आरोपित प्रतिबंधों के साथ यूरोपीय संघ के साथ-साथ विश्व व्यापार एवं निवेश के लिये बेहतर विकल्प की तलाश कर रहा है। चीन अपनी आक्रामक विदेश नीतियों के साथ अब एक आदर्श भागीदार नहीं रह गया है।  
  • भारत अपने सतत् आर्थिक विकास और विशाल बाज़ार के कारण इस दृष्टिकोण से एक महत्त्वपूर्ण भागीदार हो सकता है।  
  • यूक्रेन संकट ने यूरोप के लिये उसकी ‘सहयोग हेतु हिंद-प्रशांत रणनीति’ (Indo-Pacific Strategy for Cooperation) के हिस्से के रूप में भारत के साथ जुड़ने की तात्कालिकता ज़ाहिर की है।  

आगे की राह   

  • भारत, यूरोप और हिंद-प्रशांत: भारत को वर्तमान में निकट अतीत की तुलना में यूरोप की अधिक आवश्यकता है, चाहे वह अपनी निवारक क्षमताओं के निर्माण के मामले में हो या अपने स्वयं के आर्थिक और तकनीकी परिवर्तन को गति देने के मामले में।  
  • भारत को यूरोप के साथ अपनी सर्वांगीण साझेदारी को गहरा करना चाहिये, रूपांतरित भू-राजनीतिक परिदृश्य के संबंध में एक साझा दृष्टिकोण का निर्माण करना चाहिये और यूरोप को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ी भूमिका के निर्वहन के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।  
  • भारत और यूरोप क्षेत्रीय अवसंरचना के सतत् विकास के लिये बड़े पैमाने पर आर्थिक संसाधन जुटा सकते हैं, राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल कर सकते हैं और इंडो-पैसिफिक आख्यान को आकार देने के लिये अपने ‘सॉफ्ट पावर’ का लाभ उठा सकते हैं।  
  • जर्मनी के साथ सहयोग के संभावित क्षेत्र: जर्मनी जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, ऊर्जा और अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा सहित विभिन्न वैश्विक मुद्दों को हल करने के लिये भारत को एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में देखता है।  
  • दशकों से रूस के साथ एक महत्त्वपूर्ण संलग्नता के निर्माण के बाद भारत और जर्मनी दोनों पर रूसी संपर्क से अलग होने का दबाव है।  
  • दोनों देश के प्रमुख रूसी राष्ट्रपति से वार्ता के मामले में संयुक्त रूप से कोई समाधान ढूंढ सकते हैं।  
  • भारत-जर्मनी द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार भी महत्त्वपूर्ण है। जर्मनी के लिये वाणिज्य अत्यंत महत्त्वपूर्ण है जो उसकी अर्थव्यवस्था का संचालन करता है।  
  • जर्मन पूंजी के लिये (जो अब रूसी और चीनी बाज़ारों में अपनी पहुँच को कम करने के दबाव में है) भारत को एक आकर्षक नया गंतव्य बनाना भारत के लिये सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिये।  
  • फ्राँस के साथ सहयोग के संभावित क्षेत्र: राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की सत्ता में वापसी भारत के लिये द्विपक्षीय संबंधों के अगले चरण में प्रवेश के लिये एक अच्छा अवसर है।  
  • निजी और विदेशी पूंजी की वृहत भागीदारी के साथ हथियारों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने की भारत की महत्त्वाकांक्षी योजनाओं को सफल बनाने में फ्राँस महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।  
  • फ्राँस हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक अधिमान्य भागीदार भी है। दोनों देशों के बीच वर्ष 2018 में संपन्न हुए ‘हिंद महासागर क्षेत्र में सहयोग के लिये संयुक्त रणनीतिक दृष्टिकोण’ (Joint Strategic Vision for cooperation in the Indian Ocean Region) के साथ फ्राँस की इस भूमिका की और अधिक पुष्टि हुई है।  
  • परमाणु ऊर्जा के संदर्भ में दोनों देशों द्वारा संयुक्त रूप से महाराष्ट्र के जैतापुर में बनाए जा रहे विश्व के सबसे बड़े परमाणु पार्क की कार्य-प्रगति की समीक्षा की जानी चाहिये।  
  • इस परियोजना में कुछ बाधा आई है और राजनीतिक प्रेरणा के साथ इस बाधा को दूर किया जा सकता है।  
  • पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा कनेक्टिविटी, जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी जैसे सहयोग के नए क्षेत्रों में भी दोनों देशों के नेताओं के बीच वार्ता होनी चाहिये।  
  • नॉर्डिक देशों से संलग्नता: ‘नॉर्डिक फाइव’—डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नॉर्वे और स्वीडन की आबादी मात्र 25 मिलियन है, लेकिन उनका सकल घरेलू उत्पाद 1.8 ट्रिलियन डॉलर है जो रूस से कहीं अधिक है।  
  • पिछले कुछ वर्षों में भारत ने तथ्य की पहचान की है कि यूरोपीय देशों में से प्रत्येक भारत के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।  
  • छोटा सा देश लक्जमबर्ग वृहत वित्तीय शक्ति रखता है, नॉर्वे प्रभावशाली समुद्री प्रौद्योगिकियाँ रखता है, एस्टोनिया एक साइबर शक्ति है, चेकिया ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में प्रमुख शक्ति है, पुर्तगाल ‘लुसोफोन वर्ल्ड’ में प्रमुख स्थान रखता है और स्लोवेनिया कोपर में स्थित अपने एड्रियाटिक समुद्री बंदरगाह के माध्यम से यूरोप के मुख्य भाग तक वाणिज्यिक पहुँच प्रदान करता है।   
  • नॉर्डिक देशों, विशेष रूप से डेनमार्क के साथ भारत अद्वितीय द्विपक्षीय हरित रणनीतिक साझेदारी का निर्माण कर सकता है।  

अभ्यास प्रश्न: “पश्चिमी यूरोप भारत की विदेश एवं सुरक्षा नीतियों के हाशिये से निकलकर अब केंद्र में आ गया है। यूक्रेन संकट ने भारत और उसके यूरोपीय भागीदारों के बीच गहरे रणनीतिक सहयोग की अनिवार्यता को गहन कर दिया है।” चर्चा कीजिये।  

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