सड़क सुरक्षा: महत्त्व और आवश्यकता | 19 Feb 2022
यह एडिटोरियल 18/02/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India has Still to Get A Good Grip on Road Safety” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु किये गए उपायों और संबंधित चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।
सड़क सुरक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, फिर भी भारत में इस दिशा में उचित ध्यान नहीं दिया गया है। भारत में सड़क दुर्घटनाओं में हर साल 150,000 से अधिक लोग मारे जाते हैं जबकि 500,000 लोग घायल होते हैं।
यद्यपि भारत ने सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों को कम करने और सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये प्रभावशाली लक्ष्य निर्धारित किये हैं, लेकिन इस रणनीति की सफलता के लिये कानूनों के सख्त कार्यान्वयन और समर्पित प्रवर्तन कार्यबल का अभी भी अभाव ही है।
लक्ष्य निर्धारित करते समय आशावादी बने रहना जितना आवश्यक है, उतना ही आवश्यक है कि भारत में सड़क सुरक्षा उपायों के प्रवर्तन के लिये सड़क दुर्घटनाओं और उपलब्ध अवसंरचना के पिछले रिकॉर्ड का ध्यान रखा जाए।
भारत में सड़क सुरक्षा
सड़क सुरक्षा के मामले में भारत की स्थिति
- यद्यपि पिछले दशक में सड़क दुर्घटनाओं पर रोक के लिये कई कदम उठाए गए हैं, लेकिन सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) द्वारा प्रकाशित आँकड़े बताते हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों की संख्या वर्ष 2011 में 1,42,485 से बढ़कर वर्ष 2019 में 1,51,113 हो गई।
- वर्ष 2020 के लिये मंत्रालय द्वारा डेटा प्रकाशित किया जाना अभी बाकी है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के ‘भारत में दुर्घटनावश मृत्यु और आत्महत्या’ (Accidental Deaths & Suicides in India- 2020) शीर्षक वार्षिक प्रकाशन से पता चलता है कि वर्ष 2020 में 1,33,201 मौतें दर्ज हुईं (वर्ष 2019 की तुलना में गिरावट)।
- यद्यपि दुर्घटना मृत्यु दर (प्रति 100 दुर्घटनाओं पर मृत्यु की संख्या) जो वर्ष 2001 में 26.9 थी, वर्ष 2011 में बढ़कर 28.63 और वर्ष 2020 में 37.54 हो गई।
- इसके अलावा, वर्ष 2020 में दुर्घटनाओं में कमी मुख्य रूप से कोविड-19 लॉकडाउन के कारण आई जब सड़कों पर बेहद सीमित संख्या में मोटर वाहन परिचालित थे।
सड़क सुरक्षा के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप
- सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल 2014 में सड़क सुरक्षा पर तीन सदस्यीय न्यायमूर्ति के.एस. राधाकृष्णन पैनल की स्थापना की थी जिसने ‘ड्रंक ड्राइविंग’ पर नियंत्रण के लिये राजमार्गों पर शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की थी।
- इसने राज्यों को हेलमेट पहनने पर कानून लागू करने का भी निर्देश दिया था।
- समिति ने सड़क सुरक्षा नियमों के संबंध में लोगों में जागरूकता पैदा करने के महत्त्व पर बल दिया।
- वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने सड़क सुरक्षा के संबंध में कई निर्देश जारी किये जिनमें अन्य बातों के साथ-साथ निम्नलिखित निर्देश भी शामिल थे:
- एक राज्य सड़क सुरक्षा परिषद का गठन करना
- सड़क सुरक्षा कोष की स्थापना करना
- सड़क सुरक्षा कार्ययोजना की अधिसूचना जारी करना
- ज़िला सड़क सुरक्षा समिति का गठन करना
- ट्रॉमा केयर सेंटर्स की स्थापना करना
- स्कूलों के शैक्षणिक पाठ्यक्रम में सड़क सुरक्षा शिक्षा को शामिल करना
भारत द्वारा की गई कुछ अन्य पहल
- MoRTH ने वर्ष 2020 में स्वीडन में आयोजित ‘वैश्विक लक्ष्य 2030 की प्राप्ति के लिये सड़क सुरक्षा पर तृतीय उच्चस्तरीय वैश्विक सम्मेलन’ (Third High Level Global Conference on Road Safety for Achieving Global Goals 2030) में भाग लिया जहाँ वर्ष 2030 तक भारत में शून्य सड़क दुर्घटना मृत्यु की स्थिति प्राप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।
- भारत ने ‘ब्रासीलिया घोषणा’ (Brasilia Declaration) पर हस्ताक्षर किये हैं और दुर्घटना मृत्यु दर में कमी लाने के लिये प्रतिबद्धता जताई है।
- ब्राज़ील में आयोजित ‘सड़क सुरक्षा पर द्वितीय वैश्विक उच्चस्तरीय सम्मेलन’ में इस घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए थे।
- मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 लागू किया गया है जिसके तहत यातायात उल्लंघन, दोषपूर्ण वाहन, किशोर ड्राइविंग आदि के लिये दंड में वृद्धि की गई है।
- इसके तहत एक मोटर वाहन दुर्घटना कोष (Motor Vehicle Accident Fund) का प्रावधान किया गया है जो भारत में सभी सड़क उपयोगकर्त्ताओं को कुछ प्रकार की दुर्घटनाओं के लिये अनिवार्य बीमा कवर प्रदान करेगा।
- इसने एक ‘राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा बोर्ड’ (National Road Safety Board) का भी प्रावधान किया है जिसे एक अधिसूचना के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा गठित किया जाना है।
- इसके साथ ही ‘गुड समैरिटन’ (Good Samaritans) के संरक्षण का भी प्रावधान किया गया है।
सड़क सुरक्षा सुनिश्चित करने संबंधी चुनौतियाँ
- दोषपूर्ण मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019: मोटर वाहन (संशोधन) अधिनियम, 2019 ने यातायात नियमों के उल्लंघन के लिये मौजूदा अर्थदंड में वृद्धि की है जिसकी इस आधार पर आलोचना की गई है कि एक औसत भारतीय व्यक्ति की जुर्माना चुका सकने की क्षमता अभी भी सीमित है।
- इसके साथ ही, यातायात उल्लंघन के कुछ ही मामलों को आरोपी द्वारा अदालत में चुनौती दी जाती है।
- इस प्रकार, संशोधित कानून के निवारक प्रावधान ज़मीनी स्तर पर अपेक्षित प्रभाव शायद ही उत्पन्न कर सकें।
- प्रवर्तन जनशक्ति की कमी: यातायात की लगातार बढ़ती मात्रा से निपटने के लिये उपलब्ध प्रवर्तन कार्यबल (Enforcement Manpower) अपर्याप्त है। प्रक्रियाओं का स्वचालन अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है और बड़े शहरों तक ही सीमित है।
- वित्त की कमी: विद्यमान विभिन्न दोषों के परिहार और यातायात सुगमकारी उपायों के उपक्रम के लिये धन की कमी है।
- यद्यपि 60% से अधिक सड़क दुर्घटनाएँ कथित तौर पर वाहनों की तेज़ गति के कारण होती हैं, लेकिन 'स्पीड लिमिट' साइनबोर्ड राज्य राजमार्गों और प्रमुख सड़कों पर भी प्रायः गायब ही मिलते हैं।
- ड्राइविंग कौशल में सुधार: किसी भी व्यक्ति के लिये ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करना प्रायः आसान है, क्योंकि इसके लिये कोई मानक लिखित और कठोर व्यावहारिक परीक्षा प्रणाली मौजूद नहीं है।
- कई राज्यों में टेस्ट ड्राइविंग ट्रैक भी मौजूद नहीं हैं। यदि किसी व्यक्ति का ड्राइविंग लाइसेंस निलंबित कर दिया जाता है तो ‘रिफ्रेशर ट्रेनिंग’ के लिये कोई संस्थान उपलब्ध नहीं है।
- कानूनों का सख्त प्रवर्तन नहीं: सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों में लगभग दो-तिहाई दुपहिया वाहन चालक और उन पर पीछे बैठे लोग होते हैं। कानून द्वारा हेलमेट पहनना अनिवार्य तो बनाया गया है, लेकिन दृढ़ इच्छाशक्ति की कमी के कारण इसे सख्ती से लागू नहीं किया जाता है।
- यहाँ तक कि 'किशोरों द्वारा अपराध' से संबंधित एक संशोधित प्रावधान को भी सख्ती से लागू नहीं किया जाता है।
- सटीक आँकड़ों की अनुपलब्धता: भारत में सड़क सुरक्षा संबंधी आँकड़े समस्याग्रस्त है। सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु एवं आघात संबंधी आँकड़ों को विशेषज्ञ वास्तविक स्थिति से कम या अल्प-आकलन मानते हैं। IIT दिल्ली के परिवहन अनुसंधान एवं आघात निवारण कार्यक्रम (Transportation Research and Injury Prevention Programme) का अनुमान है कि समग्र रूप से पुलिस द्वारा सड़क दुर्घटना चोटों को 20 गुना कम और जिन मामलों में अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता होती है, उन्हें चार गुना कम आकलित किया जाता है।
आगे की राह
- प्रथम श्रेणी के मानदंडों का कार्यान्वयन: एक पेशेवर सड़क वातावरण की ओर आगे बढ़ने के लिये प्रथम श्रेणी के सुधारों के कार्यान्वयन की आवश्यकता है जो सड़क अवसंरचना की गुणवत्ता, भेद्य उपयोगकर्त्ताओं के लिये सुविधाओं की व्यवस्था और एक प्रशिक्षित, पेशेवर एवं अधिकार-प्राप्त तंत्र द्वारा नियमों के शून्य-सहनशील प्रवर्तन (zero-tolerance enforcement) को संबोधित करे।
- स्थानीय समुदायों को शामिल करते हुए ज़िला सड़क सुरक्षा समितियों की एक अनिवार्य मासिक सार्वजनिक सुनवाई सुरक्षा चिंताओं को उजागर कर सकती है और उनकी अनुवर्ती कार्रवाई की निगरानी क्षेत्र विशेषज्ञों द्वारा की जा सकती है।
- बेहतर डेटा संग्रह: दुर्घटना के सही कारण की पहचान करने और उपचारात्मक उपाय करने के लिये MoRTH का दुर्घटना डेटा संग्रह प्रारूप आवश्यक है।
- इसी प्रकार, एकीकृत सड़क दुर्घटना डेटाबेस (Integrated Road Accident Database- iRAD) परियोजना का उद्देश्य iRAD मोबाइल एवं वेब एप्लिकेशन के माध्यम से विभिन्न हितधारकों से डेटा एकत्र कर देश में दुर्घटना डेटाबेस को समृद्ध करना और सड़क सुरक्षा में सुधार करना है ।
- इन परियोजनाओं का एकीकरण कुछ हद तक समन्वय स्थापित कर सकता है और डेटा संग्रह प्रक्रिया को अधिक उपयोगकर्त्ता-अनुकूल बना सकता है।
- बेहतर केंद्र-राज्य समन्वय: यातायात कानूनों के खराब प्रवर्तन के कारण और जानें नहीं गँवाई जा सकती हैं।
- आधिकारिक वित्त प्रदान कर राज्यों के बुनियादी ढाँचे में सुधार लाने और उसे सशक्त बनाने के लिये राज्यों और केंद्र का एकसमान दृष्टिकोण होना महत्त्वपूर्ण है।
- सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने के लिये केवल लक्ष्य तय कर लेना ही पर्याप्त और व्यावहारिक दृष्टिकोण नहीं है। उन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये समर्पित प्रयास करने की भी आवश्यकता है।
- व्यवहार में बदलाव लाना: जबकि यातायात सुरक्षा कानूनों को सख्ती से लागू करना बेहद प्रभावी होगा, सार्वजनिक संवाद के माध्यम से पीड़ितों के परिजनों पर दुर्घटनाओं के प्रभाव के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने से भी दुर्घटनाओं को कम करने में मदद मिल सकती है।
- यह महत्त्वपूर्ण है कि सड़क उपयोगकर्त्ताओं और आम लोगों को सड़क सुरक्षा के मानदंडों और भावना के बारे में जागरूक किया जाए।
- रेज़ीडेंट वेलफेयर एसोसिएशन/स्थानीय निकायों/गैर-सरकारी संगठनों की सक्रिय सहायता से आवासीय क्षेत्रों में नियमित सड़क सुरक्षा जागरूकता और शिक्षा कार्यक्रम आयोजित किये जाने चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘सड़क सुरक्षा को परिवहन मुद्दे के बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के रूप में देखा जाना चाहिये।’’ टिप्पणी कीजिये।