अंतर्राष्ट्रीय संबंध
बिम्सटेक के भीतर सहयोग बढ़ाना
- 05 Apr 2022
- 14 min read
यह एडिटोरियल 02/04/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “BIMSTEC After the Colombo Summit” लेख पर आधारित है। इसमें बिम्सटेक समूह के पाँचवें शिखर सम्मेलन की मुख्य बातों और इसके महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
‘इंडो-पैसिफिक’ या हिंद-प्रशांत के विचार के फिर से उभार के साथ बंगाल की खाड़ी क्षेत्र का आर्थिक और सामरिक महत्त्व तेज़ी से बढ़ रहा है ।
हाल ही में आयोजित ‘बिम्सटेक’, अर्थात् ‘बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल’ (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation- BIMSTEC) के पाँचवें शिखर सम्मेलन ने क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण के मुद्दे को और आगे बढ़ाया है।
चूँकि इस वर्ष बिम्सटेक ने अपनी स्थापना के 25 वर्ष पूरे कर लिये हैं, इसे सुरक्षा, व्यापार, कनेक्टिविटी और नवाचार जैसे क्षेत्रों में दृश्यमान प्रगति के लिये सदस्य देशों के बीच केंद्रित ध्यान और सहयोग की आवश्यकता है।
बिम्सटेक महत्त्वपूर्ण क्यों है?
- तेज़ी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य में विकास सहयोग के लिये एक प्राकृतिक मंच के रूप में बिम्सटेक में विशाल संभावनाएँ निहित हैं और यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक धुरी के रूप में अपनी अनूठी स्थिति का लाभ उठा सकता है।
- बिम्सटेक के बढ़ते महत्त्व के लिये इसकी भौगोलिक निकटता, प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक एवं मानव संसाधनों की उपस्थिति और क्षेत्र में गहन सहयोग को बढ़ावा देने के लिये समृद्ध ऐतिहासिक संबंधों एवं सांस्कृतिक विरासत की उपस्थिति को श्रेय दिया जा सकता है।
- बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में हिंद-प्रशांत विचार की धुरी बनने की क्षमता है, यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ पूर्व और दक्षिण एशिया की प्रमुख शक्तियों के रणनीतिक हित प्रतिच्छेद करते हैं।
- यह एशिया के दो प्रमुख उच्च-विकास केंद्रों, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है।
कोलंबो शिखर सम्मेलन की मुख्य बातें
कोलंबो पैकेज
- शिखर सम्मेलन निर्णयों और समझौते के ‘कोलंबो पैकेज’ तक पहुँचा जिसमें समूह का चार्टर तैयार किया जाना भी शामिल है। औपचारिक रूप से अपनाए गए चार्टर में बिम्सटेक को ‘विधिक चरित्र’ के साथ ‘एक अंतर-सरकारी संगठन’ घोषित किया गया है।
- चार्टर में बिम्सटेक के उद्देश्यों को परिभाषित किया गया है और यह ‘बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में आर्थिक विकास और सामाजिक प्रगति’ में गति लाने तथा ‘बहुआयामी कनेक्टिविटी’ को बढ़ावा देने पर मुख्य ध्यान देने के साथ 11 उद्देश्यों को सूचीबद्ध करता है।
- यह समूह अब स्वयं को एक उप-क्षेत्रीय संगठन के रूप में नहीं बल्कि एक ऐसे क्षेत्रीय संगठन के रूप में देखता है जिसका भाग्य बंगाल की खाड़ी के आसपास के क्षेत्र से गहन रूप से संबद्ध है।
- ‘कोलंबो पैकेज’ का दूसरा प्रमुख तत्व यह निर्णय रहा कि सहयोग के क्षेत्रों की संख्या को पुनर्गठित और कम कर 14 से 7 कर दिया जाए ताकि इनका प्रबंधन अधिक आसान हो। प्रत्येक सदस्य-राज्य इनमें से एक क्षेत्र का नेतृत्व करेंगे:
- व्यापार, निवेश और विकास (बांग्लादेश)
- पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन (भूटान)
- सुरक्षा, ऊर्जा सहित (भारत)
- कृषि और खाद्य सुरक्षा (म्यांँमार)
- लोगों के आपसी संपर्क (नेपाल)
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (श्रीलंका)
- कनेक्टिविटी (थाईलैंड)
- सदस्य देशों ने ‘परिवहन कनेक्टिविटी के लिये मास्टर प्लान’ (वर्ष 2018-2028 के लिये लागू) को भी अपनाया जो एशियाई विकास बैंक (ADB) द्वारा प्रकल्पित और समर्थित है।
- इसमें 126 बिलियन डॉलर के कुल निवेश वाली 264 परियोजनाएँ शामिल हैं जिनमें से 55 बिलियन डॉलर की परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है।
- पैकेज में सदस्य देशों द्वारा हस्ताक्षरित तीन नए समझौते भी शामिल हैं, जो आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता, राजनयिक अकादमियों के बीच सहयोग और कोलंबो में एक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण सुविधा की स्थापना से संबंधित हैं।
शिखर सम्मेलन का महत्त्व
- भारत के लिये बिम्सटेक का विशेष महत्त्व है क्योंकि बंगाल की खाड़ी क्षेत्र भारत की ‘नेवरहुड फर्स्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ नीतियों का अभिन्न अंग है जो क्षेत्रीय एकीकरण की प्रक्रिया को तेज़ कर सकता है।
- शिखर सम्मेलन में एक चार्टर को अपनाये जाने के साथ वैश्विक अनिश्चितताओं के वर्तमान समय में 25 वर्ष पुराने इस समूह को फिर से सक्रिय करने का वादा किया गया है।
- उम्मीद है कि इससे संगठन को अधिक ‘कनेक्टेड विज़न’ प्रदान करने में मदद मिलेगी।
- पुनर्गठित बिम्सटेक के सात नामित स्तंभों में से ‘सुरक्षा स्तंभ’ का नेतृत्व भारत को देने के शिखर सम्मेलन के निर्णय ने भारत की क्षेत्रीय आकांक्षाओं को एक नया अभिविन्यास प्रदान किया है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 से किसी बैठक के आयोजन में असमर्थ रहे सार्क (SAARC) से भारतीय आकांक्षाओं के लिये एक गतिरोध की स्थिति बनी रही थी।
बहुपक्षीय सहयोग को सुगम बनाने के मार्ग की बाधाएँ
- सदस्यों के बीच द्विपक्षीय मुद्दे: सदस्य देशों के बीच सहयोग की वृद्धि में एक बड़ी बाधा रोहिंग्या संकट से उत्पन्न हुई जिसने बांग्लादेश-म्यांँमार द्विपक्षीय संबंधों को कमज़ोर किया है। इस विषय में जहाँ ढाका शरणार्थियों के पूर्ण प्रत्यावर्तन की मांग रखता है, वहीं नैपीदॉ (Naypyidaw) अंतर्राष्ट्रीय दलीलों पर किसी सकारात्मक प्रतिक्रिया के प्रति अनिच्छुक ही रहा है।
- आर्थिक सहयोग पर अपर्याप्त ध्यान: अधूरे कार्यों और नई चुनौतियों पर नज़र डालें तो इस समूह पर लदे ज़िम्मेदारियों के बोझ का पता चलता है।
- वर्ष 2004 में एक व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लिये फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किये जाने के बावजूद बिम्सटेक इस लक्ष्य की पूर्ति से बहुत दूर है।
- FTA के लिये आवश्यक सात घटक समझौतों में से अब तक केवल दो ही पूरे हुए हैं।
- अधूरी परियोजनाएँ: कोलंबो घोषणा के सामान्य सूत्रीकरण से आरंभिक प्रगति की संभावनाओं के बारे में अधिक भरोसे की बहाली नहीं होती है।
- कनेक्टिविटी के विस्तार की आवश्यकता पर वार्ताओं के बावजूद तटीय शिपिंग, सड़क परिवहन और अंतरा-क्षेत्रीय ऊर्जा ग्रिड कनेक्शन हेतु कानूनी साधनों को अंतिम रूप देने के मामले में अधिकांश कार्य अधूरा ही पड़ा हुआ है।
- BCIM की भूमिका: चीन की सक्रिय सदस्यता के साथ एक अन्य उप-क्षेत्रीय पहल- ‘बांग्लादेश-चीन-भारत-म्यांँमार’ (BCIM) फोरम के गठन ने बिम्सटेक की विशिष्ट क्षमता के बारे में संदेहों को जन्म दिया है।
आगे की राह
- बहुपक्षीय चर्चा: घरेलू और भू-राजनीतिक घटकों की जटिलता को देखते हुए बंगाल की खाड़ी क्षेत्र को निरंतर द्विपक्षीय और समूह-स्तरीय चर्चा की आवश्यकता होगी ताकि रोहिंग्या संकट जैसी समस्याओं से आर्थिक तथा सुरक्षा परिणामों के सुचारू वितरण में बाधा उत्पन्न न हो सके।
- भारत को भी नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे भागीदारों के साथ निरंतर राजनीतिक संलग्नता सुनिश्चित करनी होगी ताकि किसी घरेलू राजनीतिक प्लवन से द्विपक्षीय एवं समूह-स्तरीय कामकाजी संबंधों पर असर न पड़े।
- भारत और अन्य सदस्य देशों को म्यांँमार की भागीदारी के प्रबंधन के विषय में भी कुछ चतुर होने की आवश्यकता होगी, जब तक कि म्यांँमार में राजनीतिक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती।
- कनेक्टिविटी और सहयोग को बढ़ावा देना: समूह में व्यापर संपर्क को सुदृढ़ करने के भारत के दृष्टिकोण को साकार करने के लिये म्यांँमार और श्रीलंका जैसे समुद्री संसाधन संपन्न सदस्य देशों तक विस्तृत एक मुक्त व्यापार समझौता सभी सदस्य देशों के लिये पर्याप्त लाभ उत्पन्न कर सकता है।
- परिवहन कनेक्टिविटी के लिये अपनाए गए मास्टर प्लान के साथ एक ‘तटीय शिपिंग पारिस्थितिकी तंत्र’ और एक ‘इंटरकनेक्टेड बिजली ग्रिड’ अंतर्क्षेत्रीय व्यापार तथा आर्थिक संबंधों को बढ़ावा देने की क्षमता रखता है।
- इसके अलावा, बिम्सटेक को परियोजनाओं के समय पर कार्यान्वयन के लिये अतिरिक्त धन जुटाने और इस पर ज़ोर देने की आवश्यकता है।
- अतीत से सबक: चीनी नेतृत्व वाले RCEP जैसे बड़े व्यापारिक गुटों से दूर रहने के बाद निकट-भूभाग के क्षेत्रीय समूह के ढाँचे के भीतर एक FTA के तलाश की भारत की इच्छा बहु-पक्षीय हितों के लिये अधिक अवसर प्रदान कर सकती है।
- ‘सार्क’ के सुरक्षा और व्यापार संबंधी सबक भी दीर्घावधि में बिम्सटेक के काम आएँगे।
- भारत-पाकिस्तान शत्रुता के बोझ का शिकार रहे ‘सार्क’ के विपरीत बिम्सटेक अपेक्षाकृत तीव्र द्विपक्षीय असहमतियों से मुक्त है और भारत के लिये अपनी स्वयं की सहयोगपूर्ण क्रियाशीलता प्रदान करने का वादा करता है।
- पथ-प्रदर्शक के रूप में भारत: इस पुनर्जीवित समूह की व्यापारिक एवं आर्थिक क्षमता को साकार करने के लिये भारत को अंतरा-समूह शक्ति असंतुलन के प्रति छोटे सदस्य देशों के बीच व्याप्त किसी भी आशंका को दूर करने के लिये नेतृत्वकारी भूमिका स्वीकार करनी होगी और लोगों एवं वस्तुओं की आवाजाही की बाधाओं को कम कर वृहत सीमा-पार कनेक्टिविटी और निवेश के प्रवाह को सुविधाजनक बनाने का प्रयास करना होगा।
- उल्लेखनीय है कि संपन्न शिखर सम्मेलन में भारत एकमात्र देश था जिसने सचिवालय के लिये और एक विज़न दस्तावेज तैयार करने हेतु एक ‘प्रतिष्ठित व्यक्ति समूह’ (Eminent Persons Group- EPG) की स्थापना के महासचिव के प्रस्ताव का समर्थन करने के लिये अतिरिक्त धन की पेशकश की।
- अन्य सदस्य देशों को भी बयानों और कार्रवाई के इसका अनुकरण करने की आवश्यकता है।
- उल्लेखनीय है कि संपन्न शिखर सम्मेलन में भारत एकमात्र देश था जिसने सचिवालय के लिये और एक विज़न दस्तावेज तैयार करने हेतु एक ‘प्रतिष्ठित व्यक्ति समूह’ (Eminent Persons Group- EPG) की स्थापना के महासचिव के प्रस्ताव का समर्थन करने के लिये अतिरिक्त धन की पेशकश की।
- फोकस के अन्य क्षेत्र: बिम्सटेक को भविष्य में ‘ब्लू इकॉनोमी’ एवं डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे नवीन क्षेत्रों और स्टार्ट-अप एवं MSMEs के बीच आदान-प्रदान तथा संबंधों को बढ़ावा देने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
अभ्यास प्रश्न: ‘‘सदस्य देशों के बीच वर्द्धित सहयोग के साथ बिम्सटेक क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि एवं विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। बिम्सटेक को अधिक जीवंत, सुदृढ़ और परिणामोन्मुखी बनाने में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। टिप्पणी कीजिये।