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भारतीय अर्थव्यवस्था

इलेक्ट्रिक वाहन (Electric vehicle) भारत की संवृद्धि को बढ़ावा देने में सक्षम

  • 18 Jul 2018
  • 8 min read

संदर्भ

विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। उल्लेखनीय है कि परिवहन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन ने भारत के प्रदूषण के स्तर को बढ़ाया है।

परिवहन क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन का भारत के प्रदूषण स्तर में योगदान

  • केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुमानों के मुताबिक, इस क्षेत्र में 2010 तक 188 मीट्रिक टन CO2 का उत्सर्जन हुआ जिसमें अकेले सड़क परिवहन का 87% योगदान था।
  • यह क्षेत्र तेल का एक बड़ा उपभोक्ता भी है और वर्तमान में भारत की तेल आयात निर्भरता लगभग 80% है।
  • पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण सेल के मुताबिक डीज़ल और पेट्रोल क्रमश: 40% और 13% तेल खपत में योगदान देते हैं।वर्ष 2014 में इस सेल ने अनुमान लगाया कि 70% डीज़ल और 100% पेट्रोल की मांग परिवहन क्षेत्र से थी।

इलेक्ट्रिक वाहन (ईवीएस) गेम चेंजर कैसे?

  • ईवीएस भारत के लिये गेम चेंजर साबित हो सकते हैं।
  • दरअसल ईवीएस नियमित संचालन के लिये पारंपरिक आंतरिक दहन इंजन-आधारित वाहनों की तुलना में कम-से-कम 3 से 3.5 गुना अधिक ऊर्जा कुशल होते हैं।
  • इसके अलावा, ईवीएस से किसी तरह काउत्सर्जन नहीं होता है, इसलिये स्थानीय प्रदूषण भी नहीं होता है।
  • इस प्रकार ईवीएस को अपनाना न केवल तेल आयात को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा, बल्कि ये स्थानीय वायु की गुणवत्ता में सुधार करने में भी सहायता कर सकते हैं।

विभिन्न स्तरों पर किये गये प्रयास 

  • वैश्विक स्तर पर ईवीएस को बढ़ावा देने के लिये कई प्रयास किये गए हैं (अंतिम उपयोगकर्त्ताओं को वित्तीय/गैर-वित्तीय प्रोत्साहन सहित)। कई देशों ने ईवी 30 @ 30 अभियान की ओर कदम बढ़ाए हैं, जिनका उद्देश्य वर्ष 2030 तक ईवीएस की बिक्री हिस्सा 30% तक बढ़ाना है
  • नीदरलैंड, आयरलैंड और नॉर्वे जैसे देश इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं जिन्होंने वर्ष 2030 तक पैसेंजर लाइट ड्यूटी वाहनों और बसों के मामले में 100% ईवी की बिक्री का लक्ष्य रखा है।
  • भारत में राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (एनईएमएमपी) और इलेक्ट्रिक एवं हाइब्रिड वाहनों के फेम-इंडिया (एफएएम इंडिया) जैसे पहल भी ईवी बाज़ार के निर्माण के लिये  ठोस प्रयास कर रहे हैं।
  • भारत एक सतत ईवी पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिये भी कदम उठा रहा है।
  • भारी उद्योग विभाग, भारतीय मानक ब्यूरो और भारत के ऑटोमोटिव रिसर्च एसोसिएशन इलेक्ट्रिक वाहन आपूर्ति उपकरण (ईवीएसई) के डिज़ाइन और निर्माण के लिये विभिन्न तकनीकी मानकों की स्थापना या बुनियादी ढाँचे को मज़बूत बनाने के लिये काम कर रहे हैं।
  • हालाँकि, ईवीएस को व्यवस्थित रूप से अपनाने के लिये सक्षम शहरी नियोजन, परिवहन और बिजली क्षेत्रों के बीच समन्वय की आवश्यकता है।
  • घरेलू क्षेत्र में विनिर्माण तकनीकी की विशेषज्ञता हमारे युवा जनसांख्यिकीय को रोज़गार प्रदान करने के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
  • कर्नाटक राज्य द्वारा अपनी ईवी नीति (2017) को जारी करने के बाद अन्य राज्य भी इस प्रक्रिया में हैं।

कमियाँ 

  • विभिन्न सक्रिय कदमों के बावजूद भारत में अभी भी कई व्यवस्थित, तकनीकी और भौतिक विभिन्नताएँ हैं।
  • हमारी बिजली वितरण ग्रिड प्रणाली वर्तमान में बड़े पैमाने पर ईवी ऊर्जा आवश्यकताओं को संभालने में असमर्थ है।
  • भारत में लिथियम के बहुत कम ज्ञात भंडार हैं साथ ही, हम निकल, कोबाल्ट और बैटरी-ग्रेड ग्रेफाइट भी आयात करते हैं, जो बैटरी निर्माण में महत्त्वपूर्ण घटक हैं।
  • अतः भारत को कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये उपयुक्त देशों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने पर विचार करना चाहिये।
  • अन्य तकनीकी क्षमताओं में अर्द्धचालक विनिर्माण सुविधाओं की कमी  और नियंत्रक डिज़ाइन क्षमताओं की कमी भी शामिल है।
  • ये उद्योग ईवीएस के लिये इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माण हेतु आधार बनाते हैं, अतः नीतियों के अंतराल को दूर करना चाहिये जो इनके विकास में बाधा डाल रहे हैं।

क्या किये जाने की आवश्यकता है?

  • भारत और फ्राँस द्वारा शुरू किये गए अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) जैसे संगठन, इस तरह के व्यापार को सुविधाजनक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  • उदाहरण के लिये ऑस्ट्रेलिया, चिली, ब्राज़ील, घाना और तंजानिया जैसे आईएसए सदस्य देश लिथियम भंडार में समृद्ध हैं।
  • इसी तरह कांगो, मेडागास्कर और क्यूबा जैसे राष्ट्र कोबाल्ट की आपूर्ति के लिये भागीदार हो सकते हैं तो वहीं बुरुंडी, ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया निकल भंडार में समृद्ध हैं।
  • गौरतलब है कि तकनीकी रूप से लिथियम बैटरी विनिर्माण में हमें कम जानकारी है।
  • खास बात यह है कि इसरो ने अपने इन-हाउस प्रौद्योगिकी को गैर-विशेष रूप से योग्य उत्पादन एजेंसियों को स्थानांतरित करने की इच्छा व्यक्त की है जो एक स्वागत योग्य कदम है।
  • इसके अलावा, केंद्रीय इलेक्ट्रो केमिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (कराईकुडी, तमिलनाडु) और रासी (RAASI) सौर ऊर्जा प्राइवेट लिमिटेड द्वारा जल्द ही इन-हाउस लिथियम आयन बैटरी का निर्माण किये जाने की उम्मीद है।

निष्कर्ष

उपर्युक्त बाधाओं के बावजूद, ईवीएस को अपनाना एक महत्त्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी कदम साबित होगा। यह राजकोषीय से लेकर स्वास्थ्य तथा रोज़गार तक विभिन्न मोर्चों पर संभावित गेम चेंजर साबित हो सकता है। अतः आवश्यकता है इस दिशा में उचित नीति-निर्माण को प्रमुखता दी जाए और सही दिशा में कार्य को आगे बढ़ाया जाए।

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