लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली अपडेट्स

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अत्यावश्यक हैं शिक्षा एवं श्रम सुधार

  • 16 Jan 2017
  • 8 min read

पृष्ठभूमि

  • भारतीय अर्थव्यवस्था की सर्वाधिक बड़ी चुनौतियों में से एक चुनौती है रोज़गार सृजन की। इस समस्या के समाधान के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। ध्यातव्य है कि हर साल लगभग 13-15 लाख युवा कार्यशील जनसंख्या में तब्दील हो जाते हैं जो रोज़गार के उपयुक्त अवसर की तलाश में रहते हैं। इसके अतिरिक्त, देश की लगभग आधी आबादी कृषि क्षेत्र में संलग्न है और अब यह सम्भव नहीं है कि कृषि क्षेत्र में और अधिक लोगों को रोज़गार दिया जा सके। अतः समय की मांग यही है कि गैर-कृषि क्षेत्रों में रोज़गार सृजन के उपाय किये जाएँ।
  • 1991 के आर्थिक सुधारों ने देश की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था में नई जान फूँक दी थी, लाइसेंस राज़ को खत्म कर दिया गया, आर्थिक नीतियों को लचीला बनाया गया और विदेशी निवेश के लिये देश के दरवाज़े खोल दिये गए। ज़ाहिर है कि इन प्रयासों के चलते भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की। वर्तमान परिस्थितियाँ अगली पीढ़ी के सुधारों का आह्वान करती हैं जो मुख्य रूप से शिक्षा और श्रम सुधारों पर आधारित हों। अब, हम पहले बात करते हैं शिक्षा सुधारों की।

शिक्षा सुधार

  • यह सच्चाई है कि हमारी प्रचलित शिक्षा व्यवस्था में जीर्णोद्धार की नितांत ही आवश्यकता है। हमें शिक्षा क्षेत्र के नियमों एवं प्रावधानों को बदलने पर गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा, विशेषरूप से विश्वविद्यालयों से संबंधित नियमों एवं प्रावधानों को। भारत में विश्वविद्यालयों का प्रबंधन, शैक्षिक कार्यक्रम तथा डिग्री देने की प्रक्रिया बदलते वक्त की मांग के अनुरूप नहीं हैं, अतः हमें इस दिशा में ध्यान देना होगा।
  • हमें उस ज्ञान-कौशल की पहचान करने की ज़रूरत है जो रोज़गार सृजित कर सके और युवाओं के लिये आगे का रास्ता तय कर सके। उदाहरण के लिये, दवा व्यवसाय के क्षेत्र में बिक्री और विपणन   व्यापार का एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन शायद ही किसी विश्वविद्यालय में वर्तमान समय की ज़रूरतों के हिसाब से इनसे संबंधित किसी पाठ्यक्रम की व्यवस्था की गई हो। अतः विभिन्न संगठनों को विश्वविद्यालयों में शोध-आधारित गतिविधियों के लिये प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है।
  • दरअसल, भारत के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों एवं निकायों को इस बात की स्वायत्तता मिलनी चाहिये कि वे स्वयं की ज़रूरतों के हिसाब से ‘अध्यापक’ का चुनाव कर सकें। वैसे लोग जो औद्योगिक विकास की प्रक्रिया और आवश्यकताओं को समझते हों, उन्हें विश्वविद्यालयों से जोड़ना होगा और इसके लिये विश्वविद्यालयों की कार्य-संस्कृति में बदलाव करना होगा। दरअसल, देश की आर्थिक स्थिति बदल रही है, ऐसे में हमें शिक्षा क्षेत्र में डिजिटलीकरण की भूमिका बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।

श्रम सुधार

  • यदि देश में गरिमापूर्ण रोज़गार का सृजन करना है तो सर्वप्रथम श्रम कानूनों के आधिक्य को कम करना होगा। केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर अधिक संख्या में श्रम कानून हैं जो प्रायः औद्योगिक विकास में बाधक बनते हैं, उदाहरण के लिये छोटे एवं मध्यम उद्यम आरम्भ करने के इच्छुक लोगों के लिये श्रम कानून का इतनी अधिक संख्या में होना किसी अभिशाप से कम नहीं है।
  • श्रम कानूनों का निर्माण कुछ इस तरह से करना होगा कि कारोबारी सुगमता पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े, सख्त श्रम कानूनों के कारण औद्योगिक प्रगति नहीं हो पाती जो आगे चलकर रोज़गारहीनता का एक बड़ा कारण बन जाती है। हमें आधुनिक श्रम कानूनों का निर्माण करना होगा जिनसे कोई सीधा नतीजा निकले। अगर हम श्रम सुधारों को कारोबार में आसानी से जोड़ सकें, तो मानव संसाधन को उत्पादक संपत्ति बनाना संभव हो पाएगा।
  • रोज़गार सृजन के अनुकूल माहौल को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। जहाँ एक तरफ छोटे एवं मध्यम उद्यमों से बोझ घटाने की ज़रूरत है, वहीं ऐसे सुधारों को कामगारों के लाभ से भी जोड़ना होगा। तर्कसंगत व्याख्या के साथ श्रम कानून को फिर से आकार देना अत्यंत आवश्यक है। हालाँकि, एकीकृत श्रम पोर्टल की शुरुआत के साथ इस दिशा में कदम उठाए गए हैं लेकिन अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

  • उद्योगों को बढ़ावा दने के साथ ही सरकार को समग्र नीतियों का भी निर्माण करना होगा। ऐसे क्षेत्रों की पहचान करनी होगी जहाँ रोज़गार सृजन की अधिक संभावनाएँ हों। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के श्रम कानून दुनिया के सर्वाधिक प्रतिबंधात्मक श्रम कानून हैं। देश के श्रम कानून लंबे समय से लाइसेंस राज की विरासत को ढोने वाले कानून बने हुए हैं। अतः हमें श्रम कानूनों को व्यावहारिक बनाना होगा।
  • बहुप्रतीक्षित श्रम सुधार देश की ज़रूरत हैं और सरकार ने इस दिशा में प्रयास भी किया थे, लेकिन श्रम संगठनों के विरोध को देखते हुए केंद्र सरकार ने श्रम सुधारों की अपनी महत्त्वाकांक्षी योजना को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दिया है। यद्यपि केंद्र में श्रम सुधार संबंधी कई चुनौतियाँ हैं लेकिन कुछ राज्यों जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात ने श्रम कानूनों में कई व्यापक बदलाव किये हैं।
  • हम अक्सर अस्पतालों  के बाहर भारी भीड़ खड़ी देखते हैं। इसका एक कारण तो बढ़ती जनसंख्या है और दूसरा है भारत में चिकित्सकों का अभाव। चिकित्सकीय आधारभूत ढाँचे के निर्माण से हम स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में असीम रोज़गार पैदा कर सकते हैं।
  • हालाँकि कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक, कौशल की कमी या ज़रूरत के लिहाज़ से कौशल का न होना ही बेरोज़गारी को बढ़ावा देता है, न कि श्रम कानूनों की जटिलता। ऐसे में सरकार द्वारा कौशल विकास को गति देने के लिये भी आवश्यक सुधार करने चाहियें।
  • किसी भी देश की श्रम नीति का यही उद्देश्य होना चाहिये कि एक ओर वह श्रमिकों के उचित पारिश्रमिक और बेहतर कार्य शर्तों को पूरा करे, साथ ही साथ उद्यमियों को भी श्रम असंतोष से मुक्त रखे।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2