5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था | 25 Jul 2019
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण शामिल है। इस आलेख में भारत के 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य की चर्चा की गई है, साथ ही इसके लिये सरकारी प्रयास एवं इसमें आने वाली चुनौतियों पर भी विचार किया गया है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
संदर्भ
भारत में 90 के दशक में अर्थव्यवस्था को गति देने के लिये उदारीकरण की नीति को अपनाया गया, इसके अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रों को निजी क्षेत्र के लिये खोल दिया गया और धीरे-धीरे भारत की अर्थव्यवस्था की गति तीव्र होती गई। भारत कुछ समय पूर्व ही फ्राँस को पीछे छोड़ते हुए विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। किंतु भारत के आकार और क्षमता के अनुपात को देखते हुए अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति की सराहना नहीं की जा सकती है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर भारत के नीति निर्माताओं ने अगले 5 वर्षों में अथवा वर्ष 2024 तक भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य रखा है।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि भारत ने स्वतंत्रता के पश्चात् आर्थिक क्षेत्र में तीव्र वृद्धि नहीं की परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था को 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचने में 55 वर्षों का समय लग गया, जबकि इसी समय-काल में चीन की अर्थव्यवस्था तेज़ी से आगे बढ़ती रही। भारत की आर्थिक क्षमता सीमित होने के कारण प्रायः विभिन्न क्षेत्रों में ज़रूरी संसाधन उपलब्ध नहीं हो सके हैं। भारत में कई क्षेत्रों जैसे- रेलवे, सामाजिक क्षेत्र, रक्षा एवं अवसंरचना आदि के लिये प्रायः धन की कमी महसूस की जाती रही है। सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करके संसाधनों की कमी को दूर करने पर विचार कर रही है।
उपर्युक्त विचार को लेकर अर्थशास्त्रियों के बीच मतभेद है। कुछ अर्थशास्त्री मानते हैं कि 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये भारत को GDP के लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि दर की आवश्यकता होगी। वर्तमान में कई अर्थशास्त्री भारतीय अर्थव्यवस्था की गति धीमी होने की बात कर रहे हैं, साथ ही इस स्थिति में उच्च आर्थिक वृद्धि दर को प्राप्त करना एक कठिन लक्ष्य समझते हैं।
मज़बूत पक्ष
सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण एवं बजट में अपनी नीति को स्पष्ट किया है तथा इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु प्रतिबद्धता जताई है। आर्थिक सर्वेक्षण में प्रकाशित किया गया है कि रोज़गार सृजन, बचत, उपभोग और मांग जैसे विषयों को अलग-अलग करके नहीं देखा जाना चाहिये। सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार का मानना है कि 7 प्रतिशत के वर्तमान जीडीपी विकास दर के साथ यदि हम निवेश में तेजी लाएँ और 8 प्रतिशत विकास दर पर लक्षित हों तो 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था में बदलना संभव है। निवेश को सबसे महत्त्वपूर्ण माना गया है, साथ ही उनका मानना है कि तरलता में कमी, मांग की कमी, अल्प निवेश, अल्प उत्पादन और न्यून विकास दर के दुश्चक्र से बाहर निकलना भी आवश्यक है। निवेश तथा बचत में वृद्धि करके एवं उत्पादन और मांग को बढ़ाकर तीव्र आर्थिक वृद्धि की ओर बढ़ा जा सकता है।
- सरकार ने ग्रामीण सड़कों, जलमार्गों और सस्ते आवासों पर विशेष ध्यान देते हुए अवसंरचनात्मक विकास पर अपना ज़ोर बनाए रखा है ताकि जीने की सुगमता की नियमित अभिवृद्धि होती रहे। सिर्फ प्रधानमंत्री आवास योजना में ही 1.95 करोड़ आवासों के निर्माण का लक्ष्य तय किया गया है। सरकार ने आवास ऋण के ब्याज भुगतान पर 1.5 लाख रुपएकी अतिरिक्त कटौती को भी मंज़ूरी दी है।
- ‘स्टडी इन इंडिया’ पहल के अंतर्गत निजी उच्च शिक्षा के प्रोत्साहन के लिये कई घोषणाएँ की गई हैं, जबकि विश्वस्तरीय संस्थानों के निर्माण और ‘खेलो भारत’ पहल के अंतर्गत खेल विश्वविद्यालयों की स्थापना के लिये भी सरकार प्रतिबद्ध है।
- सरकार ने एक संप्रभु ऋण बाज़ार (Sovereign Debt Market) की स्थापना की भी घोषणा की है। यह उच्च लागत वाले घरेलू ऋण को सस्ते अंतर्राष्ट्रीय साख से बदलने में सरकार की मदद करेगा और इस प्रकार ब्याज दर में कमी लाने में सहायता मिलेगी।
- इसके अतिरिक्त निजी पूंजी निर्माण में सहायता करने के लिये सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 70,000 करोड़ रुपए के नए पूंजी निवेश का वादा किया है। दीर्घावधिक परियोजनाओं के सहयोग और परिसंपत्ति-देयता असंतुलन से निपटने के लिये सरकार वित्तीय विकास संस्थानों की भी स्थापना करेगी।
- उपभोग को बढ़ावा देने और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थानों (NBFC) से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिये सरकार ने एनबीएफसी से 1,00,000 करोड़ रुपए तक की परिसंपत्ति पूल की खरीद की मंशा प्रकट की है जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 10 प्रतिशत तक के नुकसान पर ऋण गारंटी प्राप्त होगी।
- वर्तमान में निजी क्षेत्र अधिकांशतः ऋण अतिभार (Over-Leveraged) का शिकार है और उस पर ऋणों को चुकाने का दबाव है। उसके पास पूंजी की भी भारी कमी है। पूंजी निर्माण के लिये सरकार को विदेशी पूंजी पर ही निर्भरता बनाए रखनी होगी और इसलिये वह विशेष रूप से बीमा, विमानन और एकल ब्रांड खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को उदार बनाए रखने की नीति पर ही आगे बढ़ रही है।
- सरकार द्वारा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSME) के लिये भी विशेष आवंटन किया गया है। विनिर्माण को मजबूत करने के लिये सरकार ने 55 श्रम कानूनों को चार संहिताओं के रूप में एकबद्ध करने और न्यूनतम मज़दूरी में वृद्धि करने की घोषणा की है।
- सरकार ने 400 करोड़ रुपए तक के टर्नओवर वाले छोटे उद्यमों के लिये कॉर्पोरेट कर (Corporate Tax) को घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया है।
- रेलवे के आधुनिकीकरण के लिये लगभग 50 लाख करोड़ रुपए के निवेश की आवश्यकता है। सरकार ने इसके संसाधनों में वृद्धि के लिये सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) का प्रस्ताव किया है। राष्ट्रीय बिजली ग्रिड और वेयरहाउसिंग ग्रिड के निर्माण जैसी पहल के दूरगामी लाभ प्राप्त होंगे।
- कारोबार में सुगमता के लिये कर अनुपालन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। ई-मूल्यांकन (e-assessment) लागू करने की सरकार की योजना एक बड़ा परिवर्तन लाएगी। इससे पारदर्शिता आएगी और व्यक्तिनिष्ठ मानवीय हस्तक्षेप से करदाताओं के होने वाले उत्पीड़न में कमी आएगी।
- सरकार द्वारा विरासत विवाद समाधान योजना के माध्यम से लंबित अप्रत्यक्ष कर मुकदमों को हल करने की पहल की गई है। यह योजना पिछले विवादों को अपने दायरे में लेती है और 40 से 70 प्रतिशत तक राहत प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त यह ब्याज और जुर्माने पर भी राहत प्रदान करती है।
- बजट ने केंद्र-प्रायोजित योजनाओं के लिये प्रदत्त धनराशि में 8 प्रतिशत की वृद्धि करते हुए 3,31,610 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं। सरकार का कुल व्यय संशोधित अनुमानों से 13.4 प्रतिशत अधिक है। राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 3.3 प्रतिशत तक नियंत्रित रखा गया है। यह बजट राजकोषीय गणित को कोई झटका दिये बिना निवेश और विकास की आकांक्षा को पूरा करता है।
सरकार के बजट में उपर्युक्त प्रयास इंगित होते हैं जिन्हें सरकार अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिये ज़रूरी मानती है। हालाँकि सिक्के का दूसरा पहलू भी है जिसके अनुसार सरकार के उपर्युक्त प्रयास 5 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये नाकाफी समझे जा रहे हैं, साथ ही भारत की अर्थव्यवस्था एवं उसके मौलिक ढाँचे में विद्यमान कमजोरियों को इस लक्ष्य की प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा मानती है।
चुनौतियाँ
- भारत का ऊर्जा क्षेत्र मुश्किलों के दौर से गुज़र रहा है तथा इस क्षेत्र को संरचनात्मक स्तर पर सुधार की आवश्यकता है। केंद्र को राज्य सरकारों के साथ मिलकर टैरिफ नीति में सुधार करने की ज़रूरत है ताकि उद्योगों एवं बड़े उपभोक्ताओं को इसका लाभ प्राप्त हो सके, साथ ही कृषि क्षेत्र एवं घरेलू उपभोक्ताओं के लिये टैरिफ की दरों में वृद्धि भी की जानी ज़रूरी है। कृषि क्षेत्र पहले से ही अधिक बिजली उपयोग के कारण सिंचाई संकट से जूझ रहा है तथा घरेलू उपभोक्ता के स्तर पर भी बिजली उपयोग को तार्किक बनाने के साथ यह डिस्कॉम की आर्थिक स्थिति सुधारने में भी सहायक सिद्ध हो सकता है इस संदर्भ में टैरिफ दरों में वृद्धि आवश्यक है।
- पिछले एक दशक में नवीकरणीय ऊर्जा में सात गुना वृद्धि हुई है किंतु अभी भी भारत का ऊर्जा क्षेत्र मुख्य रूप से कोयला आधारित ही बना हुआ है। इस प्रकार के कोयला सयंत्र 80 प्रतिशत ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। इस प्रकार की ऊर्जा का ट्रांसमिशन अकुशल एवं बेकार है। नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन में वृद्धि करके तथा ट्रांसमिशन को बेहतर करके ऊर्जा क्षेत्र की क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। इससे यह क्षेत्र उद्योगों एवं उपभोक्ताओं की ऊर्जा ज़रूरतें पूरी कर सकेगा। ज्ञात हो कि ऊर्जा किसी देश की अर्थव्यवस्था में विनिर्माण को बढ़ावा देने में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- परिवहन के क्षेत्र में भारत में वैश्विक स्तर के इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी है, साथ ही अभी भी ग्रामीण एवं दूरदराज़ के क्षेत्र कनेक्टिविटी से दूर हैं। अंतर्देशीय जलमार्ग के क्षेत्र में कुछ कार्य हुआ है किंतु भारत का नदी तंत्र वर्तमान स्थिति से कहीं अधिक की क्षमता रखता है। भारत का रेलवे विश्व के कुछ सबसे बड़े रेलवे मार्गों में शामिल है फिर भी इसमें सुधार की आवश्यकता है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि रेलवे के आधुनिकीकरण के लिये लगभग 50 लाख करोड़ रूपए के निवेश की आवश्यकता है। इसी प्रकार उच्च गुणवत्ता के सड़क मार्ग, बंदरगाहों की क्षमता में वृद्धि तथा इनको रेल एवं सड़क के ज़रिये देश के विभिन्न आर्थिक प्रतिष्ठानों से जोड़ना भी ज़रूरी है। इस प्रकार से भारत की परिवहन क्षमता में वृद्धि हो सकेगी जिससे अर्थव्यवस्था तीव्र गति से वृद्धि कर सकेगी।
- किसी देश की अर्थव्यवस्था को धारणीय बनाने के लिये आवश्यक है कि उस देश का अपशिष्ट प्रबंधन कुशल हो भारत जैसे देश में जहाँ पहले से ही जल की कमी एक आम समस्या बन चुकी है तथा सभी प्रमुख शहरों में बड़े-बड़े कचरे के अंबार होना भी आम हो गया है। जितनी तेज़ी से भारत आर्थिक विकास की ओर कदम बढ़ा रहा है उतनी तेज़ी से ही भारत का अपशिष्ट प्रबंधन निष्प्रभावी एवं पर्यावरण दूषित होता जा रहा है। भारत में कृषि क्षेत्र को अत्यधिक मात्रा में जल एवं उर्वरकों की आवश्यकता होती है, साथ ही कुछ ऐसे उद्योग भी हैं जो अधिक जल का उपयोग करते हैं। दूषित जल एवं अपशिष्ट पुनर्चक्रण प्रबंधन द्वारा उपर्युक्त ज़रूरतों को पूर्ण किया जा सकता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पर्यावरण को संरक्षित करने के लिये भी प्रयास करने होंगे, इसके अतिरिक्त भारत में तेज़ी से परिवहन क्षेत्र से प्रदूषण में वृद्धि हो रही है। प्रदूषण को दूर करने के लिये बीएस VI को प्रभावी रूप से लागू करना होगा, साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ावा देना होगा, ऐसे वाहनों को बढ़ावा देने के लिये सरकार पहले ही बजट एवं कर को कम करके प्रोत्साहन दे रही है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को रासायनिक संदूषण में वृद्धि को रोकने में भी भूमिका निभानी होगी। UNEP की रिपोर्ट वैश्विक रसायन आउटलुक (GCO) में प्रकाशित हुआ है कि रसायन तेज़ी से मानव खाद्य श्रंखला में प्रवेश कर रहे हैं, यह प्रवेश विभिन्न उत्पादों के माध्यम से हो रहा है इस प्रवेश को रोकने के लिये विनियमन बनाने की आवश्यकता है।
- भारत में टेलिकॉम सेक्टर भी समस्याग्रस्त है। अन्य देश जहाँ 5G का उपयोग आरंभ कर चुके है भारत में अभी इसके लिये ज़रुरी प्रयास भी नहीं किये जा सके हैं। पहले ही TRAI एवं सरकार की स्पेक्ट्रम और इसकी बेस कीमतों की नीति के कारण टेलिकॉम सेक्टर संघर्ष कर रहा है। भारत नेट परियोजना जो भारत में स्थानीय स्तर तक इंटरनेट सेवा पहुँचाने के लिये आरंभ की गई थी, अभी भी पूर्ण नहीं हो सकी है। आने वाला समय डिजिटल अर्थव्यवस्था का है और जो भी देश इस दौड़ में पीछे रह जाएंगे उनको भारी आर्थिक मूल्य चुकाना होगा। अतः भारत को इस क्षेत्र के सुधार पर बल देना चाहिये, साथ ही इंटरनेट को सर्वसमावेशी बनाना होगा ताकि डिजिटल अर्थव्यवस्था को गति प्रदान की जा सके।
- किसी भी अर्थव्यवस्था को पूंजीगत सहयोग उस देश की बैंकिंग व्यवस्था द्वारा दिया जाता है। भारत का बैंकिंग क्षेत्र पिछले कुछ वर्षों से गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) की समस्या से जूझ रहा है। हालाँकि पहले की तुलना में NPA में कमी आई है, फिर भी भारतीय रिज़र्व बैंक को बैंकों की सेहत सुधारने के अधिक प्रयास करना होगा।
निष्कर्ष
सरकार ने वर्ष 2024 तक अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। अर्थव्यवस्था की क्षमता के अनुसार यह लक्ष्य प्राप्त करना अधिक मुश्किल नहीं है, किंतु भारत की मौजूदा स्थिति कई समस्याओं का सामना कर रही हैं जिसमें मुख्य चुनौती आर्थिक क्षेत्र से आ रही है, साथ ही अन्य समस्याएँ भी हैं जिन्हें दूर करना भी ज़रूरी है। हालाँकि सरकार ने बजट एवं अपनी नीतियों के माध्यम से इस दिशा में प्रयास भी आरंभ किये हैं। शिक्षा की गुणवत्ता, बेरोज़गारी, आर्थिक असमानता, महिलाओं की स्थिति, कुपोषण, जातिगत भेदभाव, गरीबी जैसे भी कई ज़रूरी मुद्दे हैं जिनको संबोधित करना आवश्यक है। उपर्युक्त समस्याओं को दूर करके ही भारत में समावेश के आदर्श तक पहुँचा जा सकता है। यह ध्यान देने योग्य है कि आपूर्ति पक्ष को कितना भी मज़बूत कर लिया जाए, ये तब तक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान नहीं दे सकता जब तक कि मांग पक्ष कमज़ोर हो। सामाजिक ढाँचे को सर्वसमावेशी बनाकर ही मांग पक्ष को मज़बूत किया जा सकता है अतः सरकार को न सिर्फ आपूर्ति पक्ष बल्कि मांग पक्ष अथवा सामाजिक कल्याण पर भी ध्यान देना होगा। सरकार की सबके लिये आवास योजना, किसान सम्मान योजना, आयुष्मान भारत योजना, मनरेगा योजना आदि कार्यक्रम सरकार के इस ओर प्रयासों को भी इंगित करते हैं।
प्रश्न: भारत ने अर्थव्यवस्था को अगले पाँच वर्षों में बढ़ाकर 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सरकार ने कुछ प्रयास भी किये हैं। हालाँकि इस लक्ष्य की प्राप्ति में चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं, आपके अनुसार ऐसे कौन से पक्ष हैं जिन पर सरकार को ध्यान देने की आवश्यकता है?